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Updated: 25 मार्च, 2017 04:57 PM
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1984 के सिख विरोधी दंगे, कांग्रेस के दामन पर एक ऐसा दाग है कि हर विरोधी उसे आसानी से टारगेट कर लेता है. 2015 में असहिष्णुता के मसले पर घिरी मोदी सरकार ने सिख दंगों के नाम पर उसे निशाना बनाया तो 2016 में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने पंजाब चुनाव से पहले इसे जोर शोर से उठाया.

यूपी की हार के बाद और गुजरात चुनाव से पहले दिल्ली के एमसीडी चुनाव में उतरी कांग्रेस एक बार फिर सिख दंगों की चपेट में आ गई लगती है, खासकर सुप्रीम कोर्ट के ताजा रुख के बाद.

कांग्रेस की चुनौती

पिछले साल सिख विरोधी दंगों की 31वीं बरसी पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पीड़ितों को मुआवजे का चेक बांट रहे थे - और ऐसा बयान दिया कि एक ही लाइन में कांग्रेस और प्रधानमंत्री मोदी दोनों लपेटे में आ जायें.

उस वक्त केजरीवाल ने कहा था कि अगर 84 के दंगा पीड़ितों को न्याय मिला होता, तो 2002 के गुजरात दंगे और दादरी जैसी हिंसक घटनाएं नहीं होतीं.

cong-mcd_650_032517035215.jpgदुकानों, बाजारों और पार्कों में भी प्रचार होगादादरी में एखलाक की मौत के बाद देश भर में खूब बवाल हुआ था. 2015 में बिहार में चुनावी माहौल के बीच देश भर में अवॉर्ड वापसी की मुहिम भी जोर पकड़ रखी थी.

तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक नया स्लोगन भी गढ़ा था - 'डूब मरो, डूब मरो.'

मोदी एक चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे, बोले - 'आज 2 नवंबर है. क्या आपको 1984 याद है? इंदिरा गांधी की हत्या के दूसरे, तीसरे और चौथे दिन दिल्ली और देश भर में लाखों सिखों का नरसंहार हुआ जिसमें कांग्रेस और उसके नेताओं पर गंभीर आरोप लगे. आज, उसी दिन, कांग्रेस पार्टी असहिष्णुता पर लेक्चर दे रही है.'

अब सुप्रीम कोर्ट ने 1984 के सिख दंगों से जुड़े मामलें की 199 फाइलें तलब की है - और इसके लिए केंद्र सरकार को तीन हफ्ते की मोहलत दी है. ये वे मामले हैं जिन्हें एसआईटी ने केस न चलाने लायक मानते हुए बंद कर दिया था.

सुप्रीम कोर्ट ने ये फाइलें ऐसे वक्त तलब की हैं जब दिल्ली में एमसीडी के लिए चुनावों की तैयारी चल रही है - और यही कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती भी है और मुश्किल भी.

दिल्ली की बात

पंजाब में मिली जीत से उत्साहित प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन आम आदमी पार्टी से दिल्ली विधानसभा चुनावों की हार का बदला लेने का मौका चूकना नहीं चाहते. वैसे कांग्रेस के पास दिल्ली में अपनी मौजूदगी दर्ज कराने के दो-दो मौके हैं जिसके लिए अपनी ओर से कोशिश वो हर कोशिश में जुटी भी है.

दिल्ली की राजौरी गार्डन विधानसभा सीट पर उपचुनाव कांग्रेस के लिए बेहतरीन मौका है. ये सीट आम आदमी पार्टी के जरनैल सिंह के इस्तीफे से खाली हुई है. जरनैल ने पंजाब में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए राजौरी गार्डन सीट छोड़ दी थी. सिख दंगों को लेकर कांग्रेस से खफा जरनैल तब के केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम पर जूता उछाल कर सुर्खियों में आये थे, लेकिन वो इस सीट से इस बार चुनाव नहीं लड़ रहे हैं. कांग्रेस ने राजौरी गार्डन से मीनाक्षी चंदीला को फिर से मैदान में उतारा है. पूर्व विधायक और मौजूदा पार्षद दयानंद चंदीला की बहू मीनाक्षी पिछली बार तीसरे स्थान पर रही थीं. उप चुनाव के लिए 9 अप्रैल को वोट डाले जाएंगे और 13 को नतीजे भी आ जाएंगे.

वैसे कांग्रेस को ज्यादा उम्मीद एमसीडी चुनावों से है जिसके लिए पार्टी जोरदार कैंपेन चलाने जा रही है.

कांग्रेस ने अपने चुनाव अभियान का नारा दिया है - 'दिल्ली की बात, दिल के साथ'. इस दौरान कांग्रेस 200 नुक्कड़ सभाएं करेगी जिसमें कांग्रेस के बड़े नेता शामिल होंगे.

पंजाब में अकाली दल बीजेपी गठबंधन और आप को शिकस्त देने वाले कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी कांग्रेस दिल्ली में चुनाव प्रचार में उतारने जा रही है. पहले 30 मार्च को अमरिंदर की राजौरी गार्डन से कांग्रेस उम्मीदवार के पक्ष में वोट मांगने का कार्यक्रम रखा गया है - और उसके बाद एमसीडी चुनाव में उन्हें सिख बहुल इलाकों में खास तौर पर ले जाने की तैयारी है.

आम आदमी पार्टी को घेरने के लिए कांग्रेस की केजरीवाल के दो साल के कार्यकाल को लेकर पोल-खोल की योजना है. एमसीडी चुनावों में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और केजरीवाल के पुराने साथी योगेंद्र यादव के स्वराज अभियान की शिरकत की घोषणा जरूर कांग्रेस के लिए जोश बढ़ाने वाली है, लेकिन ऐन वक्त पर सिख दंगों का मामला सामने आ जाना उसके लिए सबसे बड़ी चुनौती बन गया है. ऐसे में कांग्रेस 'दिल्ली की बात, दिल के साथ' कितना कर पाएगी, फिलहाल तो कुछ कहना मुश्किल ही है.

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