तो क्या बरखा को बाहर का रास्ता दिखाने से सुलझ जाएगी कांग्रेस की अबूझ पहेली ?
मोदी अभी से 2019 के चुनावों की तैयारियों में जुट गए हैं. तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने फिलहाल कई बड़े नेताओं को खोया है, दिल्ली हो या कर्नाटक. अगर यह जारी रहा तो आने वाले सालों में कांग्रेस के लिए बड़ी कठिनाई होने वाली है.
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में फिलहाल कुछ भी ठीक ठाक नहीं चल रहा है. इसे मोदी की ही हवा कहें या समय का चक्र, कांग्रेस और खासकर दिल्ली कांग्रेस में विद्रोह का माहौल बना हुआ है. माहौल है अजय माकन के खिलाफ, अब यह माहौल अपनों को टिकट न मिलने के कारण बना, या दिल्ली कांग्रेस में हालत ही ऐसे हो गए हैं कि पहले अरविंदर सिंह लवली ने अजय माकन पर निशाना साधते हुए कहा कि अजय माकन को परिश्रम करने की बजाए आराम पसंद हैं. तो दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को ‘बोझ’ करार दिया.
दिल्ली कांग्रेस के एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता अशोक कुमार वालिया भी नगर निगम चुनावों में टिकट बंटवारे से खुश नहीं हैं. वरिष्ठ नेता हारून यूसुफ और राजकुमार चौहान भी चुपचाप हैं वे केवल गिने-चुने प्रत्याशियों के लिए ही प्रचार कर रहे हैं. योगानंद शास्त्री व रमाकांत गोस्वामी तो माकन के खिलाफ पहले से ही भड़के हुए हैं. अमरीश सिंह गौतम पहले ही बीजेपी में शामिल हो चुके थे. अब बरखा शुक्ला सिंह को भी कांग्रेस ने 6 साल के लिए पार्टी से बाहर कर दिया है.
यह हालत तो कांग्रेस के तब हैं जब महज नगर निगमों के चुनाव हो रहे हैं, कल्पना कीजिए दो या तीन साल बाद क्या होगा जब लोकसभा व विधानसभा के चुनाव होंगे. कांग्रेस अगर समय रहते हुए नहीं चेती तो महाविनाश तय है. हाल फिलहाल के 6 महीने की रिपोर्ट अगर देखें तो कांग्रेस के लिए आने वाले संकेत ठीक नहीं लगते. सोनिया एवं राहुल गांधी को जल्द से जल्द अपने घर को ठीक ठाक करना होगा, वरना नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहना होगा. तब मोदी के कांग्रेस मुक्त सपने को कोई रोक नहीं सकता.
क्योंकि मोदी अभी से 2019 के लोकसभा की तैयारियों में जुट गए हैं. तो दूसरी तरफ कांग्रेस ने फिलहाल कई बड़े नेताओं को खोया है. चाहे वह उत्तराखंड हो, उत्तर प्रदेश हो, दिल्ली हो या कर्नाटक. अगर यह जारी रहा तो आने वाले सालों में कांग्रेस के लिए बड़ी कठिनाई होने वाली है.
पार्टी से निकाल बहार करना समस्या का समाधान नहीं है, जब वरिष्ठ नेताओं का यह हाल है तो एक आम कार्यकर्ता की तो औकात ही क्या ? असल में होना तो यह चाहिए था कि पार्टी में पार्टी के अंदर ही मतभेदों को दूर करने के लिए रास्ता होता, लेकिन फिलहाल सभी रास्ते बंद हैं. इस बगावत का फैसला तो निगम के चुनाव तय कर देंगे. शायद अजय माकन का भी रुतबा यह चुनाव तय कर ले, लेकिन कांग्रेस में जो हो रहा है वह शुभ नहीं.
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