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Updated: 25 अक्टूबर, 2017 06:25 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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पांच विधानसभाओं के लिए इसी साल हुए चुनाव में उत्तराखंड को लेकर सर्वे के नतीजे बीजेपी के पक्ष में बताये जा रहे थे. हिमाचल प्रदेश को लेकर भी ताजा सर्वे बहुत हद तक वैसा ही है. इंडिया टुडे- एक्सिस माइ इंडिया के ओपिनियन पोल के मुताबिक इस बार भी पहाड़ पर कमल खिलने के काफी आसार हैं.

क्या ये सब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जादू के चलते हो रहा है, या कांग्रेस की अंदरूनी झगड़े के चलते - या फिर राहुल गांधी खुद ही हिमाचल में 2022 के हिसाब से तैयारी कर रहे हैं?

ओपिनियन पोल क्या कहता है

हिमाचल प्रदेश में हुए ओपिनियन पोल में तीन बातें खास तौर पर सामने आयी हैं. पहली, जीएसटी-नोटबंदी का कहीं कोई असर नहीं है - यानी, सारा शोर शराबा सिर्फ और सिर्फ सियासी है. दूसरा, वीरभद्र सिंह बतौर सीएम लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं - यानी, उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को भी लोग आपराधिक कम और राजनीतिक ज्यादा मानते हैं. तीसरा, बीजेपी की सत्ता में वापसी हो रही है - यानी, बाकी बातें अपनी जगह और सत्ता विरोधी लहर अपनी जगह कायम है.

ओपिनियन पोल के अनुसार बीजेपी को इस बार 43-47 सीटें मिल सकती हैं. 68 सदस्यों वाली विधानसभा में अभी बीजेपी के 26 विधायक हैं और एक एमएलए वाली हिमाचल लोकहित पार्टी भी उसके साथ है. मौजूदा विधानसभा में कांग्रेस के 36 विधायक हैं लेकिन सर्वे के मुताबिक इस बार 21-25 सीटों पर ही कांग्रेस की कामयाबी के आसार हैं.

बीजेपी को वॉकओवर दे रही है कांग्रेस

सर्वे में सबसे चौंकाने वाली बात है वो ये कि भ्रष्टाचार के आरोपों में बुरी तरह घिरे होने के बावजूद वीरभद्र सिंह लोगों की पहली पसंद बने हुए हैं. क्या इसके पीछे उनको लेकर लोगों में कोई सहानुभूति है? वैसे भी सीबीआई ने उनके यहां उसी दिन छापेमारी की कार्रवाई की थी जब उनके घर में शादी थी. इससे वीरभद्र को अपने समर्थकों में समझाने में आसानी हो गयी कि उन्हें जानबूझ कर राजनीतिक वजहों से फंसा कर परेशान किया जा रहा है.

सर्वे के मुताबिक 31 फीसदी लोग वीरभद्र सिंह को मुख्यमंत्री के तौर पर देखना चाहते हैं. वीरभद्र के बाद 24 फीसदी ही बीजेपी के जेपी नड्डा और 16 फीसदी लोग प्रेम कुमार धूमल को पसंदीदा चेहरा बताया है.

वीरभद्र ने अपनी कई मांगों को लेकर आलाकमान को चेताया भी था. थोड़े बहुत उसी अंदाज में जैसे कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब चुनाव से पहले किया था. वीरभद्र ने तो अपनी बातें नहीं सुनी जाने पर चुनाव प्रचार से हट जाने तक की धमकी दे डाली थी.

कैप्टन अमरिंदर की ही तरह वीरभद्र भी कह रहे हैं कि ये उनके राजनीतिक जीवन का आखिरी चुनाव है. 83 साल के वीरभद्र की लोगों से अपील है कि अपनी राजनीतिक पारी के आखिरी दौर में वो चाहते हैं कि उनकी पार्टी कांग्रेस चुन कर सत्ता में आये. पार्टी नेतृत्व को भी वीरभद्र ने यही समझाया है कि 55 साल में पार्टी ने उन्हें सब कुछ दिया है और अब इसके अलावा उनकी कोई आकांक्षा नहीं बची है.

हिमाचल दौरे पर पहुंचे राहुल गांधी ने एक रैली में कहा कि वीरभद्र सिंह सातवीं बार मुख्यमंत्री बनेंगे. ये बयान असल में वीरभद्र को सीएम कैंडिडेट घोषित करने के लिए ही था. ये भी तब जब वीरभद्र ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरेआम बेइज्जती की. राज्य कांग्रेस प्रभारी सुशील कुमार शिंदे को लेकर भी वीरभद्र ने आपत्ति जतायी. कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी के आगे तो शिंदे भी बेबस नजर आए जब समर्थकों के दो गुट एक दूसरे के खिलाफ नारेबाजी करने लगे.

rahul, virbhadraआखिरी दांव...

कांग्रेस की गुटबाजी को सरल भाषा में समझने के लिए ठियोग सीट बेहतरीन उदाहरण है. 89 साल की विद्या स्टोक्स ने पहले तो चुनाव लड़ने से ही मना कर दिया. फिर वीरभद्र के अर्की सीट से चुनाव लड़ने की बात हुई तो जैसे तैसे उन्हें मनाया गया. तभी कांग्रेस की ओर से विजयपाल खाची को टिकट देने की बात चली और उन्होंने मिठाई भी बांट दी. कुछ देर बाद खाची की जगह दीपक राठौर को टिकट दे दिया गया. देखें तो करीब दो हफ्ते में ठियोग से चार नाम सामने आये.

बहरहाल, जब विद्या स्टोक्स चुनाव लड़ने के लिए राजी हुईं तो उन्होंने नामांकन भी दाखिल किया. उसी सीट पर कांग्रेस की ओर से ही दीपक पहले से ही नामांकन भर चुके थे. बाद में पता चला विद्या स्टोक्स का नामांकन खारिज हो गया. एक बार फिर वो गुस्सा हो गयी हैं और अब उन्होंने दीपक के सपोर्ट में चुनाव प्रचार से भी इंकार कर दिया है.

एक तरफ कांग्रेस तमाम झंझावातों से जूझ रही है, तो दूसरी तरफ बीजेपी हर मौके का भरपूर फायदा उठाने की कोशिश में है. वैसे भी सर्वे में लोग जीएसटी और नोटबंदी को हरी झंडी दिखा रहे हैं. सर्वे में शामिल 59 फीसदी लोग मानते हैं कि नोटबंदी से फायदा हुआ है और 48 फीसदी लोग प्रधानमंत्री मोदी के कामकाज को भी अच्छा मान रहे हैं. इन्हीं में 55 फीसदी ऐसे हैं जो जीएसटी से संतुष्ट भी नजर आ रहे हैं. जहां तक नोटबंदी की बात है तो यूपी चुनाव में बीजेपी की जीत इसका असर न होने का सहज सबूत है. राहुल गांधी ने जीएसटी को गब्बर सिंह टैक्स बताया है, लेकिन लोग इन सबके पीछे वजह सिर्फ राजनीतिक समझ रहे हैं. कम से कम ओपिनियन पोल के नतीजे तो यही संकेत दे रहे हैं.

modi, virbhadra"काम अच्छा है!"

उम्मीदवारों के चयन में भी बीजेपी, कांग्रेस के मुकाबले बेहतर नजर आ रही है. गुटबाजी और दूसरे दबावों के बीच ही कांग्रेस को टिकट देने पड़े हैं. ठियोग तो बस नमूना भर है. वैसे कांग्रेस ने चार मौजूदा विधायकों के टिकट जरूर काटे भी हैं. जहां तक पहली बार चुनाव मैदान में उम्मीदवार को उतारने का सवाल है तो बीजेपी आगे है. बीजेपी ने 14 नये कैंडिडेट उतारे हैं जबकि कांग्रेस सिर्फ सात. इसी तरह बीजेपी ने छह महिलाओं को टिकट दिया है जबकि कांग्रेस ने सिर्फ तीन.

बीजेपी तो हिमाचल को कांग्रेस मुक्त करने के मिशन में लगी है, लेकिन कई जानकार इसे अलग तरीके से देखते हैं. ये भी माना जा रहा है कि कांग्रेस खुद ही वीरभद्र मुक्त होने की ख्वाहिशमंद लगती है. वीरभद्र सिंह आलाकमान पर कैप्टन अमरिंदर की तरह दबाव बनाने में कामयाब जरूर रहे लेकिन उनकी छवि बिलकुल उल्टा है. फिर वैसे ही नतीजों की उम्मीद कैसे कर सकते हैं? हां, अगर राहुल गांधी खुद ही हिमाचल में 2022 के हिसाब से तैयारी में जुटे हैं तो बात और है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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