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Updated: 24 जनवरी, 2018 08:43 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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सुप्रीम कोर्ट के चार जजों की प्रेस कांफ्रेंस से उपजा विवाद अब नया मोड़ ले रहा है. सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी CJI यानी भारत के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ महाफियोग लाने की तैयारी में जुटे हैं.

येचुरी की दलील है कि विधायिका के सामने अब अपनी भूमिका निभाने का वक्त आ गया है. येचुरी के अपने तर्क हो सकते हैं, सच्चाई तो ये है कि विधायिका लंबे अरसे से न्यायपालिका में दखल देने की फिराक में बैठी हुई. न्यायपालिका की मुश्किल ये है कि सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जज ही उन्हें ये मौका मुहैया करा रहे हैं.

येचुरी की मुहिम

सीपीएम येचुरी के बयान के मुताबिक CJI दीपक मिश्रा के खिलाफ संसद के बजट सत्र में महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है. संसद का बजट सत्र 29 जनवरी से शुरू हो रहा है जो 9 फरवरी तक चलेगा. इसी दौरान 1 फरवरी को वित्तीय वर्ष 2018-19 के लिए देश का आम बजट पेश किया जाना है.पता चला है कि येचुरी ने महाभियोग के लिए विपक्षी पार्टी कांग्रेस और एनसीपी से संपर्क साधा है. नियमों के तहत महाभियोग का प्रस्ताव लाने के लिए 50 सांसदों का हस्ताक्षर जरूरी होता है. फिलहाल लोक सभा में सीपीएम के 9 और राज्य सभा में 7 सांसद हैं.

sitaram yechuryमहाभियोग के पीछे मकसद क्या है?

येचुरी का कहना है विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों की जिम्मेदारी है कि सुप्रीम कोर्ट के सीनियर जजों ने जो मुद्दा उठाया है उस पर ध्यान दिया जाये. जजों द्वारा प्रेस कांफ्रेंस के जरिये उठाये गये मुद्दों को बहुत ही गंभीर बताते हुए येचुरी कहते हैं - चीफ जस्टिस अपनी मर्जी से बेंच को केस अलॉट कर रहे हैं और जस्टिस लोया की मौत से जुड़े मामले हाईकोर्ट से मंगा रहे हैं. ऐसी हालत में, येचुरी कहते हैं, एक ही विकल्प है कि विधायिका अपना रोल निभाये और अगर कुछ गलत हो रहा है तो उसे ठीक करे.

सियासत का कितना रोल है?

जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद सियासी गतिविधियां बड़ी तेज देखी गयीं. कांग्रेस में फौरी तौर पर मीटिंग शुरू हो गयी. केंद्र सरकार ने भी इसे काफी गंभीरता से लिया. बाद में राहुल गांधी ने जस्टिस लोया की मौत का मामना उछालते हुए केंद्र की मोदी सरकार को कठघरे में घसीटने की कोशिश की. हुआ ये था कि मीडिया की ओर से जस्टिस लोया का मामना उठाया गया और तभी कुछ और सवालों को लेकर शोर मच गयी. इसी दौरान 'यस' सुना गया लेकिन ये स्पष्ट नहीं था कि ये रिस्पॉन्स किस सवाल के जवाब में रहा? इस मामले में अब भी हालत "अश्वत्थामा मरो नरो वा कुंजरो..." वाली ही बनी हुई है.

सबसे पहले तो सीपीआई नेता डी राजा विवादों में छा गये. जजों की प्रेस कांफ्रेंस के बाद राजा तपाक से जस्टिस जे चेलमेश्वर के घर पहुंच गये. जब पूछा गया तो उनका कहना रहा कि ये सब उन्होंने पुरानी जान पहचान के चलते किया. वैसे ऑफ द रिकॉर्ड चर्चाएं ये भी रहीं कि जस्टिस चेलमेश्वर को राजा का ऐसे नाजुक मौके पर अपने घर पर देख कर अच्छा नहीं लगा - और उन्होंने नाराजगी भी जतायी.

cji justice dipak misraसाथियों की बगावत के बाद बढ़ी सियासी गतिविधियां...

अगले ही दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रधान सचिव नृपेंद्र मिश्रा को चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के घर के बाहर कार में बैठे देखा गया. मिश्रा करीब पांच मिनट वहां रुके भी रहे, जब तक कि उनका अटेंडेंट नो-एंट्री का संकेत पाकर लौटा नहीं. नतीजा ये हुआ कि मिश्रा को बैरंग लौटना पड़ा. बाद में मिश्रा की ओर से बड़ी ही दिलचस्प वजह भी बतायी गयी - वो नये साल की शुभकामनाओं का कार्ड देने गये थे. ये उस दिन की बात है जब पूरा देश धूमधाम से लोहड़ी मना रहा था.

येचुरी के महाभियोग लाने के मकसद को फिलहाल अलग करके देखें तो भी जजों की प्रेस कांफ्रेंस का मामला रहस्यमय दिखता है - और तमाम सवालों के जवाब मिलने बाकी हैं. मसलन - क्या डी राजा को जजों के प्रेस कांफ्रेंस के बारे में पहले से मालूम था? मालूम था या नहीं, फिर भी, क्या राजा ने जस्टिस चेलमेश्वर से प्रेस कांफ्रेंस के सिलसिले में क्या क्या बातें जाननी चाही होंगीं? क्या पुरानी पहचान के जरिये डी राजा ने कुछ ऐसी जानकारी भी जुटा ली होगी जो अब उन नेताओं के काम आ सकती है जो चीफ जस्टिस के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव लाने में लगे हुए हैं.

नेपथ्य में ही सही, जजों की प्रेस कांफ्रेंस के वक्त एक सीनियर पत्रकार की मौजूदगी, एक वरिष्ठ वकील की उपस्थिति अब तक सवालों के घेरे में है. इन सवालों का जवाब जब भी मिले - निहायत ही जरूरी है.

अब तक के महाभियोग

भारतीय न्यायपालिका के इतिहास में महाभियोग के कुल जमा चार मामले ही दर्ज किये गये हैं - और सभी में राजनीतिक दांव-पेंच ही हावी देखे गये.

1. जस्टिस वी रामास्वामी सुप्रीम कोर्ट के पहले जज रहे जिनके खिलाफ 1993 में लोक सभा में महाभियोग प्रस्ताव लाया गया, लेकिन कांग्रेस सांसदों के सदन से बहिष्कार के कारण प्रस्ताव गिर गया.

2. कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ 2011 में महाभियोग का प्रस्ताव आया. राज्य सभा से प्रस्ताव पास भी हो गया, लेकिन लोक सभा की बारी आने से पहले ही जस्टिस सेन ने इस्तीफा दे दिया.

3. कर्नाटक हाईकोर्ट के जस्टिस पीडी दिनाकरन पर महाभियोग चलाने का प्रस्ताव लाया गया था, फिर जुलाई, 2011 में उन्होंने भी इस्तीफा दे दिया.

4. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस एसके गंगेले के खिलाफ ऐसा मामला चला लेकिन फिर उन्हें बरी कर दिया गया.

सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी है. याचिका दाखिल करने वालों में शुमार सीनियर वकील इंदिरा जयसिंह चाहती हैं कि देशहित से जुड़े बड़े मामलों की सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई लोगों को लाइव दिखायी जाये. मीडिया ट्रायल के खिलाफ लोग अक्सर ही अपने मामलों की मीडिया कवरेज पर पाबंदी की मांग करते रहे हैं, संसद की कार्यवाही के सजीव प्रसारण के बाद अब सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई लाइव होने की गुजारिश की गयी है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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