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Updated: 10 सितम्बर, 2016 04:18 PM
आलोक रंजन
आलोक रंजन
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नासा के सेटेलाइट द्वारा 2015 में जुटाए गए आकड़ों ने सब को चौका दिया जब उसने ये दिखाया कि विश्व के 37 बड़े एक्विफ़र (जलभृत) में से 21 में पानी की भारी कमी है. हम पानी के लिए प्रकृति पर निर्भर हैं. अगर किसी साल बारिश कम होती है तो नदियों में पानी की कमी होना लाजमी है. जिस हिसाब से विश्व की आबादी बढ़ रही है, कृषि और इंडस्ट्री के क्षेत्र से अधिक पानी की मांग बढ़ रही है. लगातार बढ़ता शहरीकरण, बढ़ती जरूरतें इस चुनौती को और विस्तार दे रही हैं.

जाहिर है, जल संकट और बढ़ता ही जाएगा. कई दफा और न जाने कितने लोग और संस्थाएं, समीक्षक ये कह चुके है कि अगला विश्वयुद्ध पानी के कारण होगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर कावेरी नदी से तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ने के विरोध में कर्नाटक में लोग सड़क पर उतर आये हैं. कावेरी नदी सियासी जंग का मैदान बन गई है. कावेरी नदी का 15,000 क्यूसेक पानी तमिलनाडु को रोजाना दिए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में 9 सितम्बर को कर्नाटक बंद भी रहा. कावेरी नदी के जल के बंटवारे को लेकर कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच काफी लंबे समय से विवाद है.

ऐसा पहली बार नहीं है की नदी के जल को लेकर भारत के दो राज्य आपस में टकराये हैं. भारत में कई राज्यों में सिचाई का प्रमुख स्रोत नदी के जल ही हैं. इस जल को लेकर ही कई राज्यो में अभी भी तनातनी रहती है.

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भारत में नदी विवाद के पीछे राजनीति है! (कावेरी नदी-फाइल फोटो) 

भारत में नदी विवाद का समाधान अंतर्राज्‍यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत किया जाता है. अगर इसका समाधान बातचीत द्वारा नहीं निकल पाता तब केंद्रीय सरकार, राज्य सरकार के अनुरोध पर जल विवाद पंचाट को इसके निपटारन के लिए सौंपती है.

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राज्यों के बीच के कई विवाद अभी भी चल रहे हैं. पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के बीच रवि और व्यास नदियों को लेकर घमासान है. यह मामला अभी भी न्यायालय में विचाराधीन है. कृष्णा नदी के पानी को लेकर भी कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्रप्रदेश और महाराष्ट्र में विवाद चल ही रहा है. यह मसला भी फ़िलहाल सब-जुडिस है. उसी तरह वंसधारा नदी को लेकर आंध्रप्रदेश और ओडिशा में विवाद है. महादयी नदी को लेकर गोवा, कर्नाटक और महाराष्ट्र में विवाद है.

महानदी के पानी के बंटवारे को लेकर ओडिशा और छत्तीसगढ़ सरकार में भी ठनी हुई है. छत्तीसगढ़ सरकार ने महानदी पर चार परियोजनाओं का निर्माण प्रस्तावित किया है. ओडिशा सरकार को इन परियोजनाओं पर आपत्ति है. उसका कहना है कि इनके बनने के बाद उसके राज्य में जल संकट उत्पन्न हो सकता है. इस मामले को लेकर 17 सितम्बर को बैठक भी होने वाली है.

नर्मदा के पानी के बंटवारे को लेकर गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच भी विवाद है. नर्मदा पर बन रहे बांध, पानी का इस्तेमाल, प्रभावित क्षेत्र से लोगो का विस्थापन जैसे कई मुद्दों ने गुजरात और मध्य प्रदेश को एक-दूसरे के सामने लाकर खड़ा कर दिया है. देखे तो धीरे धीरे यह अंतहीन समस्या बनती जा रही है.

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यमुना नदी जल विवाद और उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश के बीच सोन नदी विवाद भी काफी दिनों से चल रहा है. अंतर्राज्‍यीय नदी जल विवाद अधिनियम 1956 के तहत अभी तक 8 जल विवाद पंचाट का गठन किया जा चुका है. लेकिन समाधान केवल 3 का ही हो पाया है.

भारत में संवैधानिक व्यवस्था ऐसी है कि राज्य सूची के हिसाब से नदी-जल राज्य का विषय तो है, लेकिन संघीय सूची, नदी घाटी के नियमन और विकास को केंद्र का विषय बना देती है. नदिया एक या एक से ज्यादा राज्यों से होकर गुजरती हैं. बढ़ती हुई डिमांड और बढ़ती हुई पानी की कमी वर्तमान में कई राज्यो को आपस में उलझाई हुई है. अब लग रहा है भारत जैसे विशाल देश में नदी-जल के बंटवारे को लेकर एक कारगर नीति बनाये जाने की जरुरत है. कुछ लोग इसका समाधान नदियों को जोड़ने यानी इंटरलिंकिंग को मानते है और भारत सरकार ने इस क्षेत्र में कुछ कदम भी उठाये है.

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पानी के क्षेत्र में काम करने वाली एक कंसल्टिंग फर्म की स्टडी के अनुसार 2025 तक भारत ऐसा देश बन जायेगा जहां पानी की भयंकर कमी होगी. पानी का विकल्प दूसरा कुछ नहीं है. देश को दूरदर्शिता अपनानी होगी. समाधान निकलना होगा. अंतर्राज्‍यीय नदी विवादों को सुलझाने में जो विलम्ब हो रहा है, वो राज्यों और उनमे रहने वाले लोगों में आक्रोश भरता जा रहा है. हमें यह समझाना होगा की इसके दूरगामी परिणाम क्या हो सकते है. सभी राज्यों की सहमति से सक्षम हल निकाला जा सकता है. राजनीतिक हठधर्मिता छोड़नी होगी और व्यावहारिक हल निकलना होगा.

लेखक

आलोक रंजन आलोक रंजन @alok.ranjan.92754

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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