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Updated: 22 अप्रिल, 2018 07:22 PM
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आंध्र प्रदेश और तेलंगाना से शुरू हुआ नगदी संकट एक दिन छंट जाएगा. रिजर्व बैंक की तिजोरियों से निकलकर नगद नारायण बैंक की शाखाओं और एटीएम मशीनों में पहुंच जाएंगे. अंतर्धान हो चुके कैश भगवान के दर्शन करके जनता भी अपने काम में लग जाएगी. मान लिया जाएगा कि सब कुछ दुरुस्त हो चुका है. हाट बाजारों, चौक-चौराहों, फल-अनाज की मंडियों, बसों और रेलगाड़ियों में चल रही कैश की चर्चा कुछ ही दिनों में बंद हो जाएगी और बहस के नये मुद्दे सामने आ जाएंगे. मगर नगदी का यह संकट जाते-जाते एक सवाल छोड़ जाएगा.

मोदी सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक, नगद, एटीएम

नगद नारायण असली भगवान 8 नवंबर 2016 की रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब नोटबंदी का एलान किया, तब उन्होंने एक साथ कई बातें कहीं. उनमें एक अहम बात यह थी कि भारतीय अर्थव्यवस्था में नगदी जरूरत से ज्यादा है जो काला धन बढ़ा रहा है. वित्त मंत्री अरुण जेटली और मंत्रालय के अर्थशास्त्रियों ने प्रधानमंत्री की बात का समर्थन किया और बताया कि कैश ज्यादा होने के कारण लोग करेंसी की जमाखोरी कर रहे हैं. पैसे का निवेश नहीं हो रहा, इसलिए विकास की किरपा नहीं हो रही. नवंबर 2016 में जीडीपी में कैश का अनुपात 11.7 फीसदी था, जिसे घटाना जरूरी लग रहा था. नोटबंदी के समर्थक नॉर्वे और स्वीडन जैसे स्कैंडिवियाई देशों का उदाहरण देकर बता रहे थे कि कैश का अनुपात जीडीपी के 3 से 4 फीसदी हो तो भी देश की अर्थव्यवस्था कुलांचे मार सकती है. नोटबंदी हुई तो जीडीपी में कैश का अनुपात एक झटके में नीचे चला आया. मगर भारतीय बाजार में नोट कितने जरूरी हैं, इस बारे में सरकार के सारे अनुमान गलत साबित हुए. डिजिटल ट्रांजैक्शन को बढ़ावा देने की योजनाएं ध्वस्त हो गईं. नगद नारायण के अंतर्धान होने से सरकार और रिजर्व बैंक के हाथ-पांव फूल गए. आनन-फानन में रिजर्व बैंक ने नोटों की अंधाधुंध छपाई की. तेज़ी का आलम यह रहा कि 500 रुपये और 2000 रुपये के नोटों में महात्मा गांधी की रंगत भी बार-बार बदलती रही. आखिर कितने नोट चाहिए? नोटबंदी के करीब 11 महीने बाद 4 अक्टूबर 2017 को कंपनी सचिवों की बैठक में प्रधानमंत्री ने फख्र के साथ बताया कि जीडीपी में कैश का अनुपात अब सिर्फ 9 फीसदी रह गया है. यानी सरकार अपने लक्ष्य को साधने की तरफ बढ़ रही है. यह प्रधानमंत्री का अर्धसत्य था, क्योंकि रिजर्व बैंक लगातार नये नोट छाप रहा था. अप्रैल 2018 में कैश का अनुपात बढ़कर 10.7 फीसदी तक पहुंच गया. आज बाजार में 17.5 लाख करोड़ रुपये के नोट मौजूद हैं. नगदी का यह स्तर नोटबंदी के समय से ज्यादा है. फिर भी रिजर्व बैंक नोटों की छपाई और बढ़ाने को मजबूर है, क्योंकि आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार और झारखंड जैसे राज्यों में नगदी की भारी कमी है. हजारों एटीएम कैश के बिना बेकार पड़े हैं. बैंक शाखाओं में लंबी-लंबी लाइनें लग रही हैं, लेकिन कैश नहीं मिल रहा. अर्थशास्त्रियों का अनुमान है बाजार को 19.4 लाख करोड़ रुपये से लेकर 20 लाख करोड़ रुपये तक की नगदी चाहिए. डिजिटल ट्रांजैक्शन सिर्फ 1.2 लाख करोड़ रुपये तक ही पहुंच पाया है. ऐसे में 70 हजार करोड़ रुपये से लेकर एक लाख करोड़ रुपये तक की नई करेंसी जरूरी है. इस जरूरत को पूरी करने के लिए नोट छापने वाले रिजर्व बैंक के छापाखाने दोनों पालियों में काम कर रहे हैं. नये नोट जीडीपी में कैश के अनुपात को कहां तक ले जाएंगे, इसकी फिलहाल किसी को सुध नहीं है. 2000 के नोट कहां गए? नगद यदि नारायण हैं तो 2000 रुपये के नोट को आप देवों के देव महादेव समझिए. रिजर्व बैंक ने उसी के साथ प्रयोग किया. 2017 के मध्य में आरबीआई ने भारत के सबसे बड़े करेंसी नोट की छपाई बंद कर दी. उसकी जगह 200, 50 और 10 रुपये की छोटी करेंसी छापने पर जोर दिया गया. सैद्धांतिक रूप से यह फैसला सही हो सकता है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर दिक्कतें खड़ी हो गईं. नगदी में कारोबार करने वाले लोग 2000 रुपये के नोटों की जमाखोरी करने लगे. 2000 रुपये के नोट बैंक से निकलते रहे, लेकिन वापस बैंकिंग सिस्टम में नहीं लौटे. रही-सही कसर अफवाहों ने पूरी कर दी. पहले एफआरडीआई बिल आया, फिर पंजाब नेशनल बैंक का घोटाला सामने आया. जनता में संदेश यह गया कि बैंक में भी पैसा सुरक्षित नहीं है. विपक्ष ने इस आशंका को बढ़ावा दिया. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने बार-बार यह बयान दिया कि मोदीजी ने सारा कैश नीरव मोदी और विजय माल्या की झोली में डालकर उन्हें भगा दिया है और गरीबों का पैसा सुरक्षित नहीं है. इससे बैंकों से नगद निकासी बढ़ गई.

16 अप्रैल 2018 को देश भर के बैंकों और एटीएम से 29,470 करोड़ रुपये का कैश निकाला गया, जबकि बैंकों के पास सिर्फ़ 23,650 करोड़ की करेंसी जमा हुई. निकासी और जमा के इस अंतर ने बैंकों को कैश से खाली कर दिया और अफवाहों को बल मिलता रहा. वित्त मंत्रालय के निर्देश पर आयकर विभाग ने इस बात की जांच शुरू की है कि 2000 रुपये के नोटों की जमाखोरी कौन कर रहा है. यह भी जांचा जा रहा है कि आखिर किस एक घटना या खबर ने बैंकिंग सिस्टम में लोगों के विश्वास को हिला दिया. जांच रिपोर्ट जब आएगी तब आएगी, फिलहाल तो नुकसान हो चुका है. नोटबंदी के जो फायदे गिनाए गए थे, उनमें से एक और फायदे ने दम तोड़ दिया है.

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लेखक

वेंकटेश वेंकटेश @venkatesh.singh.33

लेखक टीवीटुडे नेटवर्क में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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