बंगाल में मरे हुए कुत्ते बिल्लियों का मांस परोसा जाना निकाय अधिकारियों की सच्चाई बताता है
कोलकाता और आसपास के जिलों के डम्पिंग यार्ड में फेंके जाने वाले जानवरों के शव को दुकानों में बेचा जाता था. बिना किसी सरकारी अधिकारी के मिलीभगत के इतने बड़े रैकेट का चलना असंभव है.
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पश्चिम बंगाल के लोगों को जानवरों के शव का मांस धड़ल्ले से परोसा जा रहा है. पुलिस इस संसाधित मांस उद्योग से जुड़े लोगों और इकाइयों पर दबिश भी कर रही, लेकिन फिर भी इसकी पूरी तस्वीर सामने आनी बाकी है. कोलकाता और आसपास के जिलों के डंपिंग यार्ड अवैध गतिविधियों का गढ़ हैं. डंपिंग ग्राउंड से पशु शवों को आसानी से ले जाने की सच्चाई सामने आना बताता है कि नगर निकाय के अधिकारी कितने गैरजिम्मेदार और ढीले हैं. ये पूरी तरह से नगर निकाय अधिकारियों की विफलता है. उनकी इसी उदासीनता का फायदा उठाकर ठीक उनके नाक के नीचे ऐसे उद्योग फल-फूल रहे हैं और वो आंखें बंद किए बैठे हैं.
कोलकाता हमेशा से अपने स्वादिष्ट और सस्ते स्ट्रीट फूड के लिए प्रसिद्ध है. लेकिन उन निकाय अधिकारियों की कृपा से अब मांस की बिक्री में लगातार गिरावट हो रही है और इसका खतरा उन पड़ोसी राज्यों पर भी बढ़ गया है जो मीट की सप्लाई के लिए पश्चिम बंगाल पर निर्भर हैं.
खबरों के मुताबिक, 19 अप्रैल को, बज बज (कोलकाता के नजदीक) के स्थानीय लोगों को जानवरों के मीट की तस्करी का संदेह हुआ. दरअसल एक टैक्सी ड्राइवर ने स्थानीय लोगों से मदद मांगी और लोगों ने देखा कि टैक्सी के अंदर मांस पड़ा हुआ है. लेकिन ये बात लोगों की कल्पना से भी परे थी कि वो सारे मांस वास्तव में राज्य भर के रेस्तरां और दुकानों के साथ साथ पड़ोसी देशों में जाते हैं. बज बज नगरपालिका के एक कर्मचारी और उस टैक्सी चालक को गिरफ्तार कर लिया गया. उन दोनों ने ही इस संगठित रैकेट का पर्दाफाश लिया. ये गोरखधंधा सत्ता में बैठे लोगों की सहमति से हो रहा था.
बिना सरकारी अधिकारियों के मिलीभगत के ये रैकेट चल ही नहीं सकता
रात भर कोलकाता के कई कोल्ड स्टोरेज में छापेमारी करने के बाद पुलिस को लगभग 20 टन शव मांस मिला, जिन्हें होटलों और रेस्तरां में बेचे जाने के लिए पैक करके रखा गया था. इन नकली मांसों का बाजार ओडिशा, बिहार, नेपाल और बांग्लादेश तक फैला हुआ है.
रैकेट बहुत बड़ा है: ये नया नहीं हो सकता-
विभिन्न रिपोर्टों ने रैकेट के व्यवस्थित तरीके से काम करने का खुलासा किया है. उन्होंने डम्पिंग यार्ड से जानकारी पाने के लिए लोगों को तैनात कर रखा है. जैसे ही जानवरों का वहां डम्प किया जाता है, खबरी अपना काम कर देते हैं उन शवों शहर के बीचोबीच बसे कोल्ड स्टोरेज में ले जाया जाता है. इसके बाद पांच दिनों तक मांस को संसाधित किया जाता है. इसके बाद इसे ताजा मांस के साथ मिला दिला दिया जाता है और स्थानीय कंपनियों के नाम वाले छोटे पैकेट में डाल दिया जाता है.
अब तक लगभग 10 लोगों को गिरफ्तार कर लिया गया है, जिन्होंने स्वीकार किया है कि ज्यादातर मांस बिल्लियों या कुत्तों का था. अभी तक इस बात की कोई वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हुई है क्योंकि मांस को रासायनिक रूप से संसाधित किया गया था. इससे भी ये साबित होता है कि किस व्यवस्थित तरीके से पूरे रैकेट का आयोजन किया जाता है. और इतना बड़ा रैकेट नगरपालिका के भीतर के लोगों के मिलीभगत के बिना चलाना असंभव है.
डर से मांस की बिक्री गिरी-
अब इस रैकेट के रडार सभी भोजनालय आ गए हैं. फिर चाहे वो कितने भी बड़े, छोटे या प्रसिद्धि क्यों न हों. मांस की बिक्री गिरी है. पूर्वी भारत के होटल और रेस्तरां एसोसिएशन ने भोजनालयों से केवल पंजीकृत आपूर्तिकर्ताओं से ही मांस खरीदने के लिए कहा है.
जागे तो मगर बहुत देर से-
इस डर ने कई गतिविधियों को जन्म दे दिया है. विभिन्न स्तरों पर कई जांच दल स्थापित किए गए हैं. अब निकाय अधिकारी डम्पिंग यार्ड में बाहरी लोगों के प्रवेश को प्रतिबंधित की योजना बना रहे हैं. इलेक्ट्रॉनिक निगरानी रखने की भी बात चल रही है. इस बात की भी योजना बनाई जा रही है कि जिन डम्प यार्डों में भट्टी नहीं है वहां एक सीमांत क्षेत्र होगा जहां पशु शवों को जला दिया जाएगा.
लेकिन आखिर निकाय अधिकारियों को अपना ही काम और अपनी ही जिम्मेदारियां निभाने में इतना समय क्यों लग गया? इसके अलावा, कोल्ड स्टोरेज और बर्फ कारखानों में भी औचक निरीक्षण किए जाने चाहिए. अगर 10 लोगों की गिरफ्तारी ने वर्षों से चल रहे इस रैकेट के संचालन को सामने ला खड़ा किया तो अब नगर निकाय के लिए समय पर कार्य करने में कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए.
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