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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 10 नवम्बर, 2021 08:57 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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लखीमपुर खीरी हिंसा केस के दो पहलू हैं - एक विशुद्ध राजनीतिक और दूसरा पूरी तरह आपराधिक. राजनीतिक पहलू से जहां मोदी सरकार को जूझना पड़ रहा है, वहीं आपराधिक पहलू योगी सरकार के लिए चैलेंज बना हुआ है क्योंकि सिर पर चुनाव आ खड़ा हुआ है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कोशिश होगी कि कैसे राजनीतिक तौर पर लखीमपुर खीरी केस से निकलने का कोई सेफ पैसेज निकाला जा सके. प्रधानमंत्री मोदी के लिए ये मामला चुनौती इसलिए बना है कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी (Ajay Mishra Teni) के बेटे आशीष मिश्रा मोनू को हत्या के आरोप में गिरफ्तार कर जेल भेजा गया है.

जिन परिस्थितियों में योगी आदित्यनाथ की यूपी पुलिस मामले की जांच-पड़ताल कर रही है, सुप्रीम कोर्ट को काफी खामियां नजर आ रही हैं और देश की सबसे बड़ी अदालत ने अब तक की जांच के तौर तरीके पर सवाल उठाया है.

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के असंतोष जताने के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने एक वीडियो बयान जारी कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) से एक साथ पूछा है, 'प्रधानमंत्री और मुख्‍यमंत्री जी, आप किसको बचा रहे हैं?'

असल में सुप्रीम कोर्ट ने यूपी पुलिस की जांच पर जिस तरीके से टिप्पणी की है, साफ तौर पर लग रहा है कि कुछ तो गड़बड़ है. सुप्रीम कोर्ट ने दो-दो एफआईआर के बीच घालमेल न करने की भी हिदायत दी है - और साथ ही, हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज से जांच की निगरानी कराने का भी इरादा जताया है.

जांच के तरीके को लेकर जहां योगी आदित्यनाथ सरकार विपक्ष के निशाने पर आ जा रही है, वहीं केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की लखनऊ रैली में कुछ देर के लिए अजय मिश्रा टेनी का मंच पर आगे नजर आने पर भी सवाल उठ चुके हैं - सवाल बड़ा इसलिए भी हो जाता है क्योंकि अमित शाह के बाकी कार्यक्रम में अजय मिश्रा टेनी गायब हो जाते हैं.

अब तक ये तो साफ हो चुका है कि मोदी-शाह अजय मिश्रा टेनी को लेकर बीजेपी के खिलाफ कोई गलत राजनीतिक मैसेज जाने देना नहीं चाहते - और ये भी कि योगी आदित्यनाथ पूरे केस में धीरे धीरे ऐसे आगे बढ़ना चाहते हैं कि पूरा विपक्ष मिल कर लखीमपुर खीरी हिंसा में बीजेपी की भूमिका को कहीं चुनावी मुद्दा न बना दे.

सुप्रीम कोर्ट के सीधे हस्तक्षेप के बाद ये सवाल और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि क्या अजय मिश्रा टेनी के केंद्रीय मंत्री बने रहते लखीमपुर खीरी हिंसा के शिकार लोगों को इंसाफ नहीं मिल सकता?

हां या ना में इस सवाल का सीधा जवाब तो नहीं मिल पा रहा है, लेकिन अजय मिश्रा टेनी के केंद्रीय मंत्री रहते हुए न्याय नहीं मिलने वाला है - सुप्रीम कोर्ट की सक्रियता से ऐसा भी नहीं लगता!

कोर्ट को यूपी सरकार की जांच पर शक क्यों?

लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच पर सुप्रीम कोर्ट का यकीन न होना, साफ संकेत है कि अदालत की नजर में जांच के नाम पर लीपापोती ही हो रही है - और योगी आदित्यनाथ सरकार में ही यूपी पुलिस की तरफ से ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. हाथरस केस में तो सीबीआई जांच से ही मालूम हुआ कि तफ्तीश के नाम पर यूपी पुलिस के आला अफसर तक झूठी बयानबाजी कर रहे थे.

पुलिस के बड़े अधिकारियों का वैसा ही रवैया तब भी देखने को मिला था जब बीजेपी विधायक रहते कुलदीप सिंह सेंगर को गैंगरेप के केस में नामजद किया गया था - और लखीमपुर खीरी केस में तो ये स्वाभाविक भी लगता है - जब केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को घटना में सिर्फ पुलिस की लापरवाही नजर आ रही है - और बहाने से ही सही पुलिस अफसरों को सीधे सीधे धमका रहे हों कि वे बख्शे नहीं जाएंगे.

ajay mishra, priyanka gandhiलखीमपुर खीरी केस को चुनावी मुद्दा बनाने में प्रियंका गांधी कामयाब हो पाएंगी?

केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र टेनी का बयान तकनीकी तौर पर भले ही गलत न लगे, लेकिन जो मैसेज वो अफसरों को देना चाहते हैं वो तो उन तक पहुंच ही रहा होगा. वैसे भी केंद्रीय मंत्री को उनके बेटे आशीष मिश्रा मोनू से पुलिस की पूछताछ के दौरान बीजेपी कार्यकर्ताओं से कहते सुना ही गया था कि वो कुछ ऐसा वैसा होने नहीं देंगे - क्या ये सब पुलिस अफसरों पर दबाव बनाने की कोशिश नहीं समझी जानी चाहिये?

केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी जांच को प्रभावित कर पाने में सफल हों पायें या असफल साबित हो रहे हों, लेकिन जांच प्रक्रिया पर सुप्रीम कोर्ट का ऑब्जर्वेशन शक तो पैदा कर ही रहा है. वो भी तब जब अदालत को ऐसा लगे कि आरोपी विशेष को बचाने के लिए दो-दो एफआईआर किये गये हैं.

जब देश की सबसे बड़ी अदालत ऐसे हाई प्रोफाइल केस में जांच पर शक जाहिर करते हुए टिप्पणी करे तो क्या समझा जाये - ये कहते हुए दुख हो रहा है कि प्रथमदृष्यटा ऐसा लगता है कि एक विशेष आरोपी को दो एफआईआर में ओवरलैप करके फायदा पहुंचाया जा रहा है.

1. दो FIR और जांच प्रक्रिया: लखीमपुर खीरी केस में सुप्रीम कोर्ट को भी दो एफआईआर दर्ज करने से कोई दिक्कत नहीं है. किसी भी केस में ऐसा हो सकता है, अक्सर होता भी है - मुद्दे की बात ये है कि जांच किस दिशा में आगे बढ़ रही है.

लखीमपुर खीरी केस में सुप्रीम कोर्ट को जांच की प्रगति से लग रहा है कि जांच अधिकारियों का कुछ चीजों पर तो पूरा जोर है, लेकिन कई चीजें नजरअंदाज की जा रही हैं और अदालत के शक गहराने की वजह भी यही है.

जरा सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी पर गौर कीजिये - 'एक एफआईआर में जुटाये गये सबूत दूसरे में इस्तेमाल किए जाएंगे - एक आरोपी को बचाने के लिए... दूसरी एफआईआर में एक तरह से सबूत इकट्ठा किये जा रहे हैं.'

सुप्रीम कोर्ट का कहना है, 'हमें लगता है कि एसआईटी दोनों एफआईआर के बीच एक दूरी बनाये रखने में असमर्थ है - लेकिन दोनों ओवरलैपिंग या इंटरलिंकिंग नहीं होनी चाहिये.'

यही वजह से कि सुप्रीम कोर्ट ने साफ तौर पर बोल दिया है कि दोनों ही एफआईआर के लिए अलग अलग और सही तरीके से चार्जशीट भी तैयार की जाये - और फिर फाइल भी की जाये.

2. न्यायिक आयोग पर भरोसा नहीं: यूपी सरकार की तरफ से इलाहाबाद हाई कोर्ट के रिटायर्ड जज प्रदीप कुमार की अध्यक्षता में 3 अक्टूबर को हुई लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच के लिए न्यायिक आयोग बनाया है - लेकिन सुप्रीम कोर्ट को यूपी सरकार के न्यायिक आयोग पर भी भरोसा नहीं हो रहा है.

3. एक ही आरोपी के पास मोबाइल: सुप्रीम कोर्ट ने जांच के दौरान एक ही आरोपी का मोबाइल जब्त करने पर भी सवाल उठाया है - और हैरानी की बात ये है कि यूपी सरकार की तरफ से हायर किये गये हरीश साल्वे जैसे नामी गिरामी वकील के लिए बचाव करना मुश्किल हो रहा है.

सुप्रीम कोर्ट का सवाल था, 'सिर्फ एक आरोपी का मोबाइल क्यों सीज किया गया? बाकियों का क्यों नहीं?'

यूपी सरकार की तरफ से पेश वकील हरीश साल्वे ने बताया, सिर्फ एक ही आरोपी मोबाइल रखता था.

आज के जमाने में हैरानी तो इसी बात पर होती है कि आरोपियों में सिर्फ एक ही मोबाइल रखता था - जबकि सारे आरोपी हर तरह से सक्षम हैं. अगर कुछ आरोपियों के मोबाइल हड़बड़ी में निकलते वक्त घर पर ही छूट गये हों ये बात अलग है, लेकिन पुलिस का ये दावा कि एक को छोड़ कर किसी कोई भी मोबाइल नहीं रखता था - सुनने में ही काफी अजीब लगता है.

बहरहाल, सुप्रीम कोर्ट ने हरीश साल्वे से सिर्फ इतना ही कहा कि एक ही आरोपी मोबाइल रखता था ये आपने लिख कर कहां दिया.

सुप्रीम कोर्ट की लखीमपुर खीरी केस में यूपी पुलिस की जांच पर टिप्पणी के बाद कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ पर किसानों को कुचलने वालों को बचाने का आरोप लगाया है. प्रियंका गांधी लखीमपुर खीरी के शिकार किसानों के घर तो गयी ही थीं, पत्रकार के परिवार से भी मिली थीं. पूरे मामले में न्याय की लड़ाई लड़ने को लेकर बनारस में कांग्रेस की रैली कर प्रियंका गांधी वाड्रा घोषणा भी कर चुकी हैं - और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिल कर केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी के खिलाफ शिकायत भी.

सीबीआई जांच से परहेज क्यों?

लखीमपुर खीरी हिंसा में मारे गये पत्रकार रमन कश्यप के भाई पवन कश्यप ने स्थायी अदालत में अर्जी देकर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी और उनके बेटे आशीष मिश्रा मोनू सहित 14 लोगों के खिलाफ नामजद शिकायत दर्ज करायी है. कोर्ट ने पुलिस को नोटिस भेज कर रिपोर्ट तलब की है. केस की अगली सुनवाई 15 नवंबर को होनी है.

अब अगर कोर्ट को लगता है कि शिकायत सही है तो पुलिस को केस दर्ज कर जांच का आदेश जारी किया जाएगा - और अगर ऐसा होता है तो तय है अजय मिश्र टेनी की मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.

पुलिस ने जांच के दौरान आशीष मिश्रा और उसके दोस्त अंकित दास के लाइसेंसी हथियार भी जब्त किये थे और उसकी बैलिस्टिक रिपोर्ट भी आ चुकी है. रिपोर्ट के मुताबिक चार में से तीन असलहों से फायरिंग होने की पुष्टि हुई है.

हालांकि, इतने भर से ये साबित नहीं हो सकता है कि लखीमपुर खीरी में जो फायरिंग हुई थी उसमें ये असलहे ही इस्तेमाल किये गये थे. ये साबित करने के लिए घटनास्थल से मिले खाली कारतूसों की भी जांच करनी होगी - और जांच में आशीष और उसके दोस्त के लाइसेंसी हथियार और खोखे मैच करते हैं तभी साबित हो सकेगा कि फायरिंग उन हथियारों से ही हुई है.

सुप्रीम कोर्ट में लखीमपुर केस की सुनवाई के दौरान सीबीआई जांच का मामला भी उठा - और हैरानी तो तब हुई जब अदालत ने सीबीआई जांच में कोई दिलचस्पी नहीं दिखायी.

सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार के वकील से पूछा कि श्याम सुंदर के केस में हो रही जांच में लापरवाही पर क्या कहेंगे? असल में श्याम सुंदर की पत्नी के वकील ने अदालत से केसी की सीबीआई से जांच कराने की मांग की है.

सीबीआई जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट का साफ साफ कहना रहा - 'सीबीआई को केस सौंपना कोई सॉल्यूशन नहीं है.'

कितने ताज्जुब की बात है कि सुप्रीम कोर्ट को यूपी सरकार के ज्यूडिशियल कमीशन पर भरोसा नहीं हो रहा है - क्योंकि जांच की प्रक्रिया में अदालत को साफ साफ खामियां नजर आ रही हैं. कितनी हैरानी की बात है कि सुप्रीम कोर्ट को नहीं लग रहा है कि सीबीआई को मामला सौंपने से कोई हल निकलने वाला है.

सुनवाई के दौरान यूपी सरकार की पैरवी कर रहे हरीश साल्वे ने अदालत को ध्यान दिलाया कि मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश हो रही हैं - और उस पर कोर्ट ने कहा कि वो भी राजनीतिक रंग दिये की बात नहीं कर रहा है.

क्या सुप्रीम कोर्ट को अब भी लग रहा है कि केस की जांच सीबीआई को सौंपना मामला 'पिंजरे के तोते' के हवाले करने जैसा है?

लखीमपुर खीरी केस को लेकर अब तो यही समझ में आ रहा है कि सुप्रीम कोर्ट हाई कोर्ट के रिटायर्ड दो जजों की निगरानी में जांच कराने के पक्ष में है - और अगर वास्तव में ऐसा होता है तो लगता नहीं कि केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी केस को कहीं से भी प्रभावित कर सकेंगे.

ऐसा इसलिए भी क्योंकि बीजेपी को यूपी चुनाव में फिजूल का बवाल कतई नहीं चाहिये. मोदी और शाह को हर हाल में यूपी चुनाव में बीजेपी की जीत सुनिश्चित करनी है और राजनीतिक रूप से सेफ पैसेज मिलते ही वो अजय मिश्र टेनी से हाथ पीछे खींचने में जरा भी संकोच नहीं करेंगे. जिस तरीके से अजय मिश्रा टेनी को अमित शाह के मंच से फौरन ही हटा दिया गया, लगता नहीं कि बीजेपी नेतृत्व खुल कर उनका बचाव करने के मूड में है - और रही बात योगी आदित्यनाथ की तो वो तो बेटे को जेल भिजवा ही चुके हैं, जरूरी लगा तो उद्धव ठाकरे जैसा कदम भी उठा सकते हैं जैसे महाराष्ट्र पुलिस नारायण राणे के साथ पेश आयी थी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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