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Updated: 10 अप्रिल, 2015 09:51 AM
राजदीप सरदेसाई
राजदीप सरदेसाई
  @rajdeep.sardesai.7
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आम आदमी पार्टी में लड़ाई तेज होती जा रही है. ट्विटर पर एक फॉलोअर ने मुझसे पूछा कि आप किसके पक्ष में हैं? मैंने उसे समझाने की कोशिश करते हुए कहा कि एक पत्रकार होने के नाते मैं सच के पक्ष में हूँ. लेकिन मैं समझ सकता हूँ कि क्यों किसी के लिए यह समझना इतना आसान नहीं है. योगेन्द्र यादव और मैंने चुनाव के दौरान टेलीविजन के लिए एक साथ काम किया है. हमारा रिश्ता आपसी सम्मान और राजनीतिक विश्लेषण के लिए एक साझा जुनून बन गया था. इसी तरह से मैंने आईबीएन नेटवर्क 18 के मुख्य संपादक के रूप में आशुतोष के करीब रहकर भी काम किया. उस वक्त वे आईबीएन 7 के प्रबंध संपादक थे. बाद में वे दोनों संयोग से आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए. उन्होंने जो कुछ किया अपनी समझ से किया. अब वे दोनों आप की लड़ाई में विपरीत दिशा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. यह कोई संयोग नहीं है. लेकिन यह इस बात का सबूत है कि किस तरह से राजनीति आसानी से सही व्यक्तियों के दिमाग को भी नष्ट कर सकती है.

मेरी भूमिका पेशेवर पर्यवेक्षक की है. और एक पर्यवेक्षक के रूप में मुझे स्वीकार करना होगा कि पहले मैं खुश हो रहा था. अब थोड़ा हैरान हूँ. आप की जो सार्वजनिक छवि जनता के बीच बनी थी उसे कैसे आंतरिक कलह ने बर्बाद कर दिया है. सद्भावना के वादे फिजूल हो गए. आप नेता बताते हुए नहीं थकते थे कि किस तरह से उनकी पार्टी अलग है. कैसे यह पार्टी अपने स्वयंसेवकों के आदर्शवादी सपनों का प्रतिनिधित्व करती है. कैसे पार्टी में आंतरिक लोकतंत्र है. हाँ आम आदमी पार्टी की स्थापना ने वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था को चुनौती देने का वादा किया गया था. और यह पार्टी के लिए सचमुच शानदार आगाज था. लेकिन पिछले छह हफ्तों में 'अलग तरह की पार्टी' होने का दावा केवल एक क्रूर मजाक बनकर रह गया है. हां यह पार्टी दूसरी राजनीतिक पार्टियों से अलग है क्योंकि दूसरी पार्टियों में न तो अपने ही सदस्यों के स्टिंग ऑपरेशन किए जाते हैं. और न ही खुशी से उनका वीडियो/ऑडियो फुटेज मीडिया को उपलब्ध कराया जाता है. सच कहूँ तो अरविंद केजरीवाल का नया ऑडियो स्टिंग ऑपरेशन पार्टी नेताओं के भीतर विश्वास की कमी को दर्शाता है. एक मायने में आप का विभाजन शायद यह बताने के लिए सबसे अच्छा उदहारण है कि एक टीवी सीरियल में क्या-क्या हो सकता है.

अंत में, आप का भविष्य इसके झगड़े से तय नहीं किया जाएगा. हमारे सभी राजनीतिक दलों में एक आलाकमान संस्कृति और आंतरिक लोकतंत्र का अभाव चलता आ रहा है. नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा, गांधी परिवार के नेतृत्व में कांग्रेस और लालू या एक जया की पसंद से चलने वाले क्षेत्रीय दल एक निरंकुश राजनीतिक प्रणाली का प्रतीक हैं. इनके अलावा यहां किसी विकल्प के लिए कोई जगह नहीं है. आप की सफलता या विफलता का फैसला अगले पांच वर्षों के शासनकाल का आंकलन करने के बाद दिल्ली ही करेगी. पार्टी के अंदर के झगड़े से हमें टीवी समाचारों के लिए पर्याप्त मसाला मिला. इसकी एक बड़ी वजह यह भी रही कि दिल्ली राष्ट्रीय समाचार चैनलों का केन्द्र भी है. जब एक बार मीडिया के कैमरे बंद हो जाएंगे और वे दूसरी स्टोरी करने के लिए चले जाएंगे. तब केजरीवाल और उनकी टीम शोर कम करके उम्मीद के मुताबिक बेहतर शासन प्रदान करेगी. या फिर ऐसी राजनीतिक पार्टी बनकर रह जाएगी जो स्थाई तौर पर केवल टीवी कैमरों के सहारे ही जी रही हो?

, आप, केजरीवाल, प्रशांत

लेखक

राजदीप सरदेसाई राजदीप सरदेसाई @rajdeep.sardesai.7

वरिष्ठ पत्रकार, लेखक

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