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Updated: 27 अप्रिल, 2019 06:41 PM
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आप नेता अरविंद केजरीवाल दिल्ली में कांग्रेस से गठबंधन न हो पाने के लिए राहुल गांधी को जिम्मेदार बता रहे हैं. हालांकि, राहुल गांधी का भी बिलकुल यही आरोप है. ज्यादा जिम्मेदार जो भी हो सच तो यही है कि दिल्ली में कांग्रेस और आप का गठबंधन नहीं हो सका.

गठबंधन की स्थिति में बीजेपी की मुश्किल बढ़ सकती थी जो कांग्रेस और आप के अलग अलग लड़ने से चुनाव से पहले ही खत्म हो चुकी लगती है. फायदे के हिसाब से गठबंधन की अहमियत भी दोनों दलों के लिए अलग अलग लगती है. दिल्ली लोक सभा और विधान सभा चुनाव में करीब एक साल का फासला है - और राहुल गांधी इसे अपनी नजर से देखते होंगे, जबकि अरविंद केजरीवाल का नजरिया अलग होगा.

कांग्रेस को खारिज क्यों कर रहे हैं केजरीवाल?

राहुल गांधी के लिए बड़ी चुनौती ये है कि कैसे लोक सभा चुनाव में कांग्रेस की ज्यादा से ज्यादा सीटें आयें - अगर बहुमत की स्थिति में नहीं पहुंच पाये तब भी. अरविंद केजरीवाल के लिए लोक सभा की अहमियत तो है, लेकिन कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण उनके लिए 2020 का विधानसभा चुनाव है. दिल्ली से अरविंद केजरीवाल की राजनीति का अस्तित्व जुड़ा है. अगर दिल्ली ने केजरीवाल से मुंह मोड़ लिया तो मायावती जैसी हालत हो सकती है. बीएसपी और आप दूसरे राज्यों में भी ताकत आजमाते रहते हैं, लेकिन एक के लिए यूपी तो दूसरे के लिए दिल्ली में जमे रहना हर हाल में जरूरी है.

अरविंद केजरीवाल लोक सभा चुनाव में लगे हुए तो हैं लेकिन अभी से वो विधानसभा चुनाव के हिसाब से तैयारी कर रहे हैं. कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात बहुत आगे तक बढ़ी हुई बतायी जा रही है. खुद केजरीवाल का ही कहना है कि लोक सभा की 18 सीटों को लेकर समझौता हो चुका था. कांग्रेस की ओर से भी संकेत दिया गया था कि संयुक्त प्रेस कांफ्रेंस में इसकी घोषणा कर दी जाएगी. इन 18 सीटों में दिल्ली की सात, हरियाणा की 10 और चंडीगढ़ सीट को शामिल किया गया था.

गठबंधन को लेकर आज तक के साथ इंटरव्यू में भी अरविंद केजरीवाल ने सीधे सीधे राहुल गांधी के बारे में कहा - 'उनकी नीयत ही गठबंधन करने की नहीं थी.'

इंटरव्यू के दौरान कांग्रेस के साथ 4-3 सीटों पर हुई बातचीत का जिक्र आने पर केजरीवाल का कहना रहा, ऐसा होना तो बीजेपी को तीन सीटें गिफ्ट करने जैसा ही होता. केजरीवाल का कहना है कि बेहतर तो ये है कि हम सात सीटों पर लड़ कर जीतें. दिल्ली की चांदनी चौक सीट का उदाहरण देते हुए केजरीवाल पूछते हैं - कांग्रेस उम्मीदवार जेपी अग्रवाल बीजेपी प्रत्याशी हर्षवर्धन को हरा पाएंगे क्या?

गठबंधन का मुद्दा कांग्रेस और आप के बीच बातचीत का जरिया जरूर बना था लेकिन वो पीछे छूट चुका है. अब कांग्रेस और राहुल गांधी कांग्रेस के निशाने पर हैं. यहीं ये सवाल उठता है कि आखिर गठबंधन की बात होते होते राहुल गांधी केजरीवाल की नजर में इस कदर क्यों चढ़ गये?

rahul gandhi, arvind kejriwalअरविंद केजरीवाल आखिर राहुल गांधी की नीयत पर सवाल क्यों उठा रहे हैं?

केजरीवाल के राहुल गांधी को टारगेट करने के कई कारण हो सकते हैं. एक कारण तो 2020 का विधानसभा चुनाव है जिससे कांग्रेस केजरीवाल पूरी तरह दूर रखना चाहते हैं. कांग्रेस को देश के बाकी हिस्सों की तरह दिल्ली में भी पांव जमाना है और शीला दीक्षित की वापसी से पार्टी और कुछ हो न हो चर्चा में तो आ ही गयी है. नतीजे जो भी हों लेकिन दिल्ली त्रिकोणीय मुकाबले की बात तो होने ही लगी है.

केजरीवाल की यही कोशिश लगती है कि कांग्रेस मुकाबले में न आ सके. विधानसभा चुनाव भी हों तो बीजेपी और आम आदमी पार्टी के बीच हो. कांग्रेस के मुकाबले में आने का मतलब तो यही होगा कि वो आप के ही वोट में हिस्सेदार होगी, बीजेपी के वोटबैंक में सेंध लगाना तो दोनों के लिए मुश्किल काम है.

2020 की तैयारी में केजरीवाल

अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी दिल्ली को पूर्ण राज्य बनाने के मुद्दे पर चुनाव लड़ रही है. देखा जाये तो दिल्ली की सभी सात सीटें जीत कर भी आम आदमी पार्टी पूर्ण राज्य नहीं बनवा सकती.

मुद्दे की महत्ता इस हिसाब से आंकी जाती है कि उनका राजनीतिक असर कितना हो सकता है, सत्ता हासिल होने पर उसे हकीकत में बदला जाये जरूरी नहीं है. लोकपाल से बड़ी मिसाल आम आदमी पार्टी के लिये क्या हो सकती है, सत्ता हासिल होने के बाद वो मुद्दा हाशिये पर रख दिया गया. ये लोकपाल का ही मुद्दा तो रहा कि आम आदमी पार्टी न सिर्फ राजनीति में स्थापित हुई, बल्कि दिल्ली में सत्ता पंजाब में विधानसभा की कुछ सीटें जीतने में भी कामयाब रही.

दिल्ली के पूर्ण राज्य का मुद्दा भी लोकपाल जैसा ही कारगर नजर आ रहा है. चुनावी रैलियों में इसे उछाल कर ताली तो बजवायी ही जा सकती है, उसके वोटों में भी तब्दील होने की काफी गुंजाइश है.

दिल्ली के पूर्ण राज्य का मुद्दा डबल बेनिफिट स्कीम जैसा है - ये लोक सभा चुनाव तो निकाल ही देगा, साल भर बाद होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए भी काफी असरदार हो सकता है. जिस तरह अरविंद केजरीवाल कांग्रेस और बीजेपी को गठबंधन की राजनीति में उलझा कर लोक सभा के लिए चुनाव प्रचार काफी पहले से करते आ रहे हैं - लग तो ये रहा है कि अरविंद केजरीवाल अभी से विधानसभा चुनाव की तैयारी कर रहे हैं.

गठबंधन की जगह ये तो बदले की राजनीति शुरू हो गयी

कहां अरविंद केजरीवाल कांग्रेस के साथ गठबंधन शुरू करने वाले थे और कहां दोनों दलों में दुश्मन जैसी राजनीति शुरू हो गयी है. अरविंद केजरीवाल जहां राहुल गांधी को विपक्षी खेमे में खलनायक की तरह पेश करने लगे हैं, कांग्रेस भी केजरीवाल के खिलाफ चुनाव आयोग पहुंच गयी है. अगर दुश्मनी जैसी स्थिति नहीं होती फिर ऐसी नौबत तो नहीं आती.

अरविंद केजरीवाल ने तकरीबन मायावती वाले अंदाज में ही दिल्लीवासियों से वोट बंटने न देने की अपील की थी. केजरीवाल का कहना रहा, 'कोई भी हिंदू कांग्रेस को वोट नहीं दे रहा है... केवल मुसलमानों में थोड़ा बहुत भ्रम है.' केजरीवाल के मुंह से ये सुनते ही कांग्रेस नेता शिकायत दर्ज कराने चुनाव आयोग पहुंच गये. कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित के मुताबिक कांग्रेस ने केजरीवाल के सांप्रदायिक, भड़काऊ और गैर जिम्मेदाराना बयानों के लिए चुनाव आयोग दिल्ली के मुख्यमंत्री के चुनाव प्रचार करने पर पांबदी लगाने की मांग की है.

राहुल गांधी को केजरीवाल के टारगेट करने की वजह सिर्फ गठबंधन न हो पाना ही है या कुछ और भी? कहीं ऐसा तो नहीं कि राहुल गांधी के साथ केजरीवाल पुराना हिसाब किताब चुकता करने में लग गये हैं?

राहुल गांधी को केजरीवाल सिर्फ दिल्ली में गठबंधन न होने देने के लिए ही नहीं, बल्कि कई राज्यों में विपक्ष के साथ एक जैसा खेल खेलने का इल्जाम लगा रहे हैं. ऐसा लगता है राहुल गांधी को आप नेता विपक्षी खेमे में विलेन साबित करने की कोशिश कर रहे हों.

अरविंद केजरीवाल का आरोप है कि कांग्रेस देश भर में विपक्ष को कमजोर कर रही है. अरविंद केजरीवाल के मुताबकि राहुल गांधी का जो रवैया दिल्ली में है वही पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और केरल में भी है. पश्चिम बंगाल और आंध्र प्रदेश के बारे में तो कांग्रेस नेतृत्व ने कह दिया था कि राष्ट्रीय स्तर पर भले ही पार्टियों साथ खड़ी रहें, लेकिन राज्यों में लड़ाई परंपरागत तरीके से ही होगी.

केरल में तो वायनाड सीट से राहुल गांधी खुद ही चुनाव लड़ रहे हैं. राहुल गांधी के चुनाव लड़ने पर केरल में सत्ताधारी लेफ्ट ने आपत्ति भी जतायी थी. लेफ्ट की आपत्ति पर राहुल गांधी ने वादा किया है कि वो उनके खिलाफ पूरे चुनाव के दौरान एक शब्द भी नहीं बोलेंगे. अरविंद केजरीवाल विपक्षी दलों को यही सब समझा रहे हैं.

क्या राहुल गांधी से अरविंद केजरीवाल पुरानी बातों का बदला ले रहे हैं?

राष्ट्रपति चुनाव के समय से ही कांग्रेस नेतृत्व अरविंद केजरीवाल को विपक्षी खेमे में नो एंट्री का बोर्ड लगा रखा था. इसे लेकर ममता बनर्जी ने कई बार सोनिया गांधी से बात भी की थी. राहुल गांधी को भी समझाने की कोशिश की गयी थी, लेकिन केजरीवाल की एंट्री उन्हें मंजूर ही नहीं हुई. ममता बनर्जी की कोलकाता रैली के बाद जब केजरीवाल ने दिल्ली में वैसी ही रैली की तो शरद पवार के घर पर उनकी राहुल गांधी से मुलाकात हुई. उसी मुलाकात में विपक्षी नेताओं ने दोनों को आपस में गठबंधन की सलाह दी - और बात बनते बनते बिगड़ गयी.

लगता तो ऐसा है कि केजरीवाल ने गठबंधन की जरा भी फिक्र नहीं की. वो अपने धुन में लगे रहे. समय रहते उम्मीदवारों की घोषणा कर दी. उम्मीदवार चुनाव प्रचार में जुट गये. कांग्रेस तो उलझी ही रही - बीजेपी भी इंतजार में बैठी रही.

अब केजरीवाल राहुल गांधी को विपक्षी खेमे में खलनायक के तौर पर पेश कर रहे हैं, जिसमें वो चुनाव नतीजों के बाद के समीकरणों को दिमाग में रखे हुए लगते हैं. लगता तो ये भी है कि जो व्यवहार कांग्रेस नेतृत्व केजरीवाल के साथ पहले की विपक्षी बैठकों में करता रहा - वो भविष्य में राहुल गांधी के साथ ऐसा ही करना चाहते हैं.

फिर तो सब कुछ पूरी तरह साफ है कांग्रेस और आप आपस में लड़कर बीजेपी की ही मदद कर रहे हैं. राहुल गांधी को लगातार टारगेट कर अरविंद केजीरवाल आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फायदा नहीं पहुंचा रहे हैं तो और क्या कर रहे हैं?

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