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Updated: 30 अगस्त, 2016 11:34 PM
राकेश उपाध्याय
राकेश उपाध्याय
  @rakesh.upadhyay.1840
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जिंदगी की सफलता का राज आखिर क्या है? आखिर वो कौन सी चीज है जो उन्हें भारत की मौजूदा राजनीति में नेताओँ की भीड़ में सबसे अलग और सबसे खास बनाती है? दिल्ली से प्रकाशित स्पीकिंगः द मोदी वे नाम की किताब इसी रहस्य से पर्दा उठाती है. आप भी अगर जानना चाहते हैं कि आखिर चाय बेचने वाले एक बेहद साधारण और गरीब परिवार में पैदा हुए नरेंद्र मोदी ने भारत के साथ-साथ संसार भर को चकित और विस्मित कर देने वाली महान भाषणकला पर असाधारण अधिकार हासिल कैसे किया. एक बार आपको भी वीरेंदर कपूर की लिखी इस किताब को पढ़ना चाहिए. इसके शब्द शब्द में नरेंद्र मोदी की प्रेरक जिंदगी के वो सारे पन्ने बेहद संक्षेप में लेखक ने खोल दिए हैं. इस किताब से हर शख्स को खुद की जिंदगी के लिए सीखने, समझने और दोहराने लायक कोई ना कोई चीज जरूर मिलेगी.

मोदी ही क्यों?

रूपा पब्लिकेशन ने लीडरशिपःद गांधी वे, इनोवेशनः द आइंस्टीन वे की सीरीज के अन्तर्गत स्पीकिंगः द मोदी वे का प्रकाशन किया है. नरेंद्र मोदी का ही चयन क्यों? इस सवाल के जवाब में रूपा पब्लिकेशन के एमडी कपीश मेहरा कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी की यात्रा एक साधारण इंसान के असाधारण बनने की कहानी है. वो आज जिस मुकाम पर हैं तो इसमें उनकी संवाद शैली का सबसे अहम रोल है. उनके भाषणों की गूंज सिर्फ देश में ही सुनाई नहीं देती, उन्होंने अपनी अनूठी भाषण कला से दुनिया भर को प्रभावित किया है. वो बोलते हैं तो हर किसी के लिए उनके पास कुछ ना कुछ रहता है, वो अपनी बात जिस तरीके से समझाते हैं और लोगों को प्रभावित करते हैं, उससे लोग प्रेरित होते हैं, लोग उन्हें देखकर सीखना-समझना चाहते है. इसी लिहाज से हमने अगस्त महीने के दूसरे हफ्ते में बाजार में इस किताब को जारी किया. इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वक्तृत्व कला के बारे में गहराई से हमने फोकस किया है.

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 मोदी के जीवन पर लिखी किताब 'स्पीकिंग दि मोदी वे'

मोदी के जीवन का सत्य

महज 145 पन्नों में अंग्रेजी में प्रकाशित इस किताब में नरेंद्र मोदी का बेहद संक्षिप्त किंतु प्रभावी जीवन परिचय भी 16 पन्नों में अलग से दिया गया है. इसमें गहरे शोध और विश्लेषण के बाद लेखक वीरेंद्र कपूर ने नरेंद्र मोदी की जिंदगी के कई अप्रकाशित तथ्यों को भी पहली बार सामने लाने की कोशिश की है. जिसने नरेंद्र मोदी के भीतर के इंसान को गढ़ने में अहम भूमिका निभाई और जिस वजह से वो बचपन से ही कुशाग्र बुद्धि के साथ जन-मन को जीतने वाली भाषण शैली में हर बीते दिन के साथ सिद्धहस्त होते चले गए.

सबसे जुदा हैं मोदी

वीरेंद्र कपूर कहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी ने देश के नेताओं को लेकर सोचने के बने-बनाए ढर्रे को तोड़ दिया. आम लोग जब नेताओँ के भाषणों से उकता गए थे, जब चारों ओर निराशा घर कर चुकी थी, उनके उदय ने हताश-निराश माहौल के सारे अंधेरे को छांट दिया. वो आए और लोगों के दिलो-दिमाग पर छा गए. कैसे उन्होंने ये सारा कुछ किया, कैसे उन्होंने अपने जीवन में मन-वचन-कर्म को एक कर करोड़ों लोगों में अपनी अद्भुत भाषण शैली से नई जान डाली, इसी का विश्लेषण हमने इस पुस्तक में किया है.

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पुस्तक की शुरुआत लेखक ने 13 सितंबर 2013 की उस तारीख से की है जबकि नरेंद्र मोदी को भारतीय जनता पार्टी ने 2014 के लोकसभा चुनाव की कमान सौंपी और उन्हें प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया. महज 6 महीने के भीतर शुरु हो रहे आम चुनावों में उन्हें पार्टी ने सवा अरब भारतवासियों के साथ संवाद करने की जिम्मेदारी सौंपी. और तब जिस जोरदार तरीके से उन्होंने रैलियों में अपने लरजते-गरजते अंदाज वाले भाषणों से समां बांधा, उस चुनाव अभियान ने एक बारगी पूरे विश्व को अचंभित कर दिया. बगैर थके-बगैर रुके और बगैर एक भी सभा स्थगित किए नरेंद्र मोदी ने 440 रैलियों के साथ पूरे देश की 3 लाख किलोमीटर की बेहद थकाऊ यात्रा महज 6 महीने में पूरी कर रिकॉर्ड कायम किया.

इस चुनावी कैंपेन में उनके ओजस्वी भाषणों, भाव-भंगिमाओं, उनके वक्तृत्व के हुनर और उसकी प्रभावशीलता में हर भाषण में कुछ ना कुछ अनूठा था, कुछ नया था. इसने पूरे देश को उनके करिश्माई नेतृत्व में ऐसा गूंथ दिया कि भारतीय जनमानस में आत्माभिमान और आत्मगौरव वाले राजनीतिक नेतृत्व को लेकर एक नई बहस पैदा हो गई. प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह 10 साल के शासन ने देश की जनता में जो हताशा और निराशा पैदा की थी, मोदी जनता को समझा पाने में कामयाब हो गए कि वो देश के हालात बदलकर ही दम लेंगे.

मोदी ने जिस चतुराई और बुद्धिमत्ता से देश की जनता का दिल मंचीय सभाओँ के जरिए जीत लिया, उसकी बेहद सूक्ष्म और रोचक पड़ताल इस पाठ के साथ आपको पुस्तक में पढ़ने को मिलेगी कि आपके भीतर का नेतृत्व जाग उठेगा. यदि आपमें नेतृत्व की क्षमता है तो उसे मंजिल तक पहुंचाने के लिए ये पुस्तक आपको रास्ता भी बताती चलेगी.

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मोदी इज मैन ऑफ एक्शन (खुद जैसा करते हैं, दूसरों से वैसी अपेक्षा रखते हैं)

समूची पुस्तक नरेंद्र मोदी की जोशीली भाषण शैली पर केंद्रित है. लेकिन क्या मोदी का व्यक्तित्व सिर्फ भाषणों ने गढ़ा है? लेखक वीरेंदर कपूर कहते हैं कि मोदी तो मैन ऑफ एक्शन हैं, उन्हें मालूम है कि किस चीज को कैसे किया जाता है और भाषण की चीजों को एक्शन में कैसे लाया जाता है.

दस छोटे-छोटे अध्यायों में लिखी पुस्तक का पहला अध्याय मोदी की जिंदगी के मूल भाव पर रोशनी डालता है. लक्ष्य केंद्रित मोदी को मालूम है कि उनकी जिंदगी का उद्देश्य क्या है? SINCERITY OF PURPOSE AND FOCUSED APPROACH अध्याय की शुरुआत मोदी के प्रधानमंत्री कार्यालय पहुंचने के अनुभव के ब्यौरे के साथ होती है. ब्यूरोक्रेसी के साथ सारे सहयोगियों को समय पर आने के आग्रह की शुरुआत प्रधानमंत्री खुद दफ्तर में ठीक 9 बजे हाजिर होकर शुरु करते हैं. उनका ये एक कार्य ही मातहतों के लिए साफ संकेत था कि प्रधानमंत्री किस तरह की कार्यशैली के कायल हैं. एक तंत्र जो अरसे से चलता है, प्रवृत्ति का शिकार है, जिसकी नसों में रिश्वतखोरी समाई है, उस तंत्र को भीतर से दुरुस्त कर साल भर में ही उसे इस तरह सक्रिय करना कि देखते ही देखते सारा काम पटरी पर आ जाए. ये कमाल उस नेतृत्व का ही जिसके आते ही प्रशासन में लोग खुद को बदलने के लिए मजबूर हो गए.

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 किताब 'स्पीकिंग दि मोदी वे' के लेखक वीरेंद्र कपूर

कैसे बदल रहा है 7 रेस कोर्स?

किताब का दूसरा अध्याय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनुशासित जिंदगी, उनके भीतर आध्यात्मिक भाव की प्रधानता और उनकी सादगी के बारे में चुने हुए ढंग से ब्यौरा देता है. प्रधानमंत्री निवास 7 रेसकोर्स रोड की दिनचर्या में बदलाव की आहट देश ने कैसे महसूस की, इसे एक पत्रकार की आंखोदेखी के जरिए समझाया गया है. भारतीय जीवनमूल्यों में बेहद अहम शाकाहार और उपवास परंपरा को कैसे मोदी ने अपने जीवन में जिया और चीन, अमेरिका तक कैसे उन्होंने निजी जिंदगी से बगैर कुछ बोले ही शाकाहार की अहमियत को स्थापित किया. नवरात्रि में साल में दो बार बीते 40 सालों से उनके 9 दिन के उपवास से उन्हें जो शक्ति मिली, उसका भी विश्लेषण लेखन ने इऩ अर्थों में किया है कि मोदी मनसा-वाचा-कर्मणा यानी मन-वाणी और कर्म से एक हैं, जिसमें जो बात उनके दिल में है, वही जुबां पर है और जो जुबां पर है वही उनके कर्म में है.

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की निजी जिंदगी और दिनचर्या के बारे में कई खास जानकारियों भी लेखक ने पुस्तक में मुहैया कराई हैं. वह सुबह जल्दी उठकर मोदी योगासन, ध्यान, प्राणायाम से दिन की शुरुआत करते हैं, साल में करीब 300 से अधिक दिन वो इसका नियमित पालन करते हैं. संयुक्त राष्ट्र संघ में 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाने की उनकी कोशिशों को सफलता मिलने की कहानी का खास जिक्र इस अध्याय में किया गया है.

लेखक ने इसी अध्याय में मोदी के गो-पशुपालन प्रेम को भी उजागर किया है. गुजरात का मुख्यमंत्री बनने के बाद न सिर्फ मोदी ने पशुओं के स्वास्थ्य की देखभाल के मेले शुरु किए बल्कि सड़कों पर भटकने वाली हजारों गायों के लिए अकर्डा गांव में गोशाला खुलवाकर उन्होंने कमाल की मिसाल कायम की. इससे गोवंश सड़कों पर भटकने की बजाए गोबर गैस के संयंत्र के जरिए इलाके में ऊर्जा का अहम स्रोत बन गया.

किताबों के साथ प्रधानमंत्री की गहरी दोस्ती और उनके जीवन पर संगीत के रोचक प्रभाव की जानकारी पुस्तक में है. जापान दौरे में ताइको ड्रम बजाकर उन्होंने जिस तरह से संसार भर को खुद के भीतर लय-सुर-ताल की समझ रखने वाले शख्स का अहसास कराया, उसने क्षण भर में ही उनके भीतर मौजूद हर मौके पर आम लोगों की दिलचस्पी के मुताबिक काम करने वाले बहुआयामी शख्सियत को सामने ला दिया. जो बताता है कि उन्हें यह मालूम है कि आखिर उनके सामने दर्शक वर्ग उक्त समय में क्या सुनना पसंद करेगा और किस तरह के बर्ताव और संवाद की अपेक्षा लोग उनसे करते हैं.

भाषणों में पिरोते हैं दिल की आवाज

DIFFERENT AUDIENCE AND DIFFERENT STROKES नाम के तीसरे अध्याय में प्रधानमंत्री मोदी की भाषण कला की खूबियों पर लेखक ने गहराई से रोशनी डाली है. इस अध्याय से यह साफ है कि वो ऐसे नेता हैं जिनके पास देश के हर वर्ग के इंसान को करने-कराने, सुनाने-समझाने, अपना मुरीद बनाने वाली वह भाषणशैली है. इसके कारण विपक्षी सियासत कहीं भी उनके वार पर टिक नहीं पाती और चुटीले अंदाज में उनके जरिए कहे गए जाने कितने ही संवाद लंबे समय तक लोगों की जुबां पर चढ़ जाते हैं. चूंकि वो भीतर की आवाज से बोलते हैं इसलिए वो छप्पन इंच की छाती के साथ ललकारते हैं. चूंकि उनका जीवन बेदाग है लिहाजा वो भ्रष्टाचार पर हर भाषण में वार करते हैं. चूंकि आम भारतीय की जिंदगी में बदलाव लाने, देश को आने वाले कुछ वर्षों में संसार की प्रतिस्पर्धा लायक टिकाऊ और मजबूत बुनियाद देने के लिए वो अहर्निश जूझते हैं. लिहाजा विपक्ष की हर आलोचना को तर्कों और तथ्यों से खारिज करने में उन्हें महारत हासिल है. सबसे अहम कि वो जानते हैं कि भाषण के दौरान उन्हें तर्कों और तथ्यों को किस समय और किस अंदाज में लोगों को बताना है. यही कारण है कि लोकप्रिय भाषण देने में वो समकालीन नेताओं में सबसे आगे दिखाई देते हैं क्योंकि उनके भाषण के पीछे कठोर तपस्या और कर्म-साधना का बल खड़ा रहता है.

और हर जगह के हिसाब से उनके भाषणों का मिजाज अलग. स्थानीय बोलियों के साथ देश की अनेक मातृभाषाओं में जनता के साथ वो सीधा संवाद करते हैं. स्थानीय लोकोक्तियों और स्थानीय लोगों की जिंदगी से जुड़े मार्मिक प्रसंगों का वो आसरा लेते हैं. मोदी अपने भाषणों में अक्सर जरुरत के अनुसार कहानीकार दिखाई देते हैं तो कहीं वो सख्त प्रशासक तो कहीं नरमदिल और उदार नेता के तौर पर खुद की भावनाओं को आगे रखते हैं.

कठिनाइयों को बनाया मंजिल की सीढ़ी

जिंदगी के रास्ते में उनके ऊपर फेंके गए पत्थरों से कैसे उन्होंने अपनी सफलता की मंजिल की सीढ़ियों का निर्माण किया, उनका जीवन और उनके भाषण ही इसका जीता-जागता उदाहरण हैं. वो एक ओर देश के युवाओं में आस भरते हैं तो खिलखिलाकर हंसते हैं. मुट्ठी बांधकर आसमान में देश की ताकत का परचम फहराते हैं तो दोनों हाथ उठाकर करोड़ों भारतियों के आत्मविश्वास को आवाज देते हैं. आंखों में आंसू भरकर अपने बचपन और माता-पिता के दुखों भरी जिंदगी का हवाला देकर वो आम भारतीय को हार न मानकर हिम्मत के साथ लड़ने और कर्मक्षेत्र में डटने की सीख भी देते हैं. ताकि गांव-गरीब-किसान, झुग्गी-झोपड़ी के इंसान, बेरोजगार नौजवान की जिंदगी में उम्मीदों का नया सवेरा आए.

प्रधानमंत्री इन्हीं वजहों से बार बार मुद्रा बैंक योजना के जरिए 3 करोड़ युवकों को स्वरोजगार के लिए कर्ज देने, 17 करोड़ नए बैंक खातों की योजना को सफल बनाने और स्किल इंडिया के जरिए हर नौजवान को देश की जरुरत के हिसाब से हुनरमंद बनाने की बात करते हैं. स्टार्टअप योजना के जरिए लाखों नए उद्यमी खड़े करने, स्वच्छता अभियान के जरिए भारत की बदरंग तस्वीर बदलने और बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के जरिए महिलाओं और बच्चियों की जिंदगी में बड़ा बदलाव लाने की कोशिश करते हैं. वह देश के कॉरपोरेट, विज्ञान और शिक्षा जगत, खेल जगत समेत हर वर्ग और हर क्षेत्र में सबका साथ-सबका विकास का महान मंत्र देते हैं ताकि सबके साथ मिलकर भविष्य के भारत की तस्वीर को बदला जा सके.

लेखक

राकेश उपाध्याय राकेश उपाध्याय @rakesh.upadhyay.1840

लेखक भारत अध्ययन केंद्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर हैं

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