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Updated: 19 मई, 2015 02:20 PM
आशीष मिश्र
आशीष मिश्र
  @ashish.misra.77
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2007 में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) की आंधी थी और उसके पांच साल बाद 2012 में समाजवादी पार्टी (सपा) की. इनमें से कोई भी आंधी फरेंदा विधानसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का कमल खिलने से नहीं रोक पाई. पिछले साल मई में लोकसभा चुनाव में भी बीजेपी ने इस सीट पर रिकॉर्ड वोट बटोरे. लेकिन 1 मई को जब इसी सीट पर हुए विधानसभा उपचुनाव के नतीजे आए तो पूरी बाजी ही पलट गई. दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी होने का दम भरने वाली बीजेपी यहां तीसरे नंबर की पार्टी बन गई.

हुआ यूं कि विधायक रहते हुए सरकारी ठेका लेने के आरोप में बीजेपी विधायक बजरंग बहादुर सिंह की विधानसभा सदस्यता रद्द हो गई, जिसके बाद उपचुनाव कराया गया. पर खुद को एक अलग तरह की पार्टी कहने वाली बीजेपी दागी विधायक से पीछा छुड़ाने की हिम्मत नहीं जुटा सकी और इसकी कीमत उसे चारों खाने चित होकर चुकानी पड़ी.

पिछले एक साल के दौरान हुए कुल 15 उपचुनावों में से बीजेपी को महज तीन में ही जीत मिली है. जाहिर है कि पिछले साल लोकसभा चुनाव में ‘मोदी लहर’ के सहारे 80 में से 71 सीटें जीतने वाली बीजेपी साल में अपनी साख गवां चुकी है. अभी उपचुनाव की हार से पार्टी उबर ही रही थी कि इसी साल जनवरी में छावनी बोर्ड के चुनावों ने भी शहरी क्षेत्रों में पार्टी के लिए खतरे की घंटी बजा दी. कुल 11 छावनी बोर्ड के चुनावों में बीजेपी न केवल बुरी तरह हारी, बल्कि नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी और राजनाथ सिंह के संसदीय क्षेत्र लखनऊ में तो उसका खाता तक नहीं खुला.

शाह की शरण में
लगातार हार से यूपी में खिसकी जमीन और कार्यकर्ताओं में पनप रही निराशा के बीच बीजेपी ने गाजियाबाद में 11-12 मई को राज्य कार्यकारिणी की बैठक का आयोजन किया. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह पहली बार राज्य कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में पहुंचे और कार्यकर्ताओं में जोश भरने की गरज से बोले, ‘‘मैं दीवारों पर लिखा हुआ पढ़ सकता हूं. उत्तर प्रदेश में बीजेपी की पूर्ण बहुमत की सरकार आएगी. कार्यकर्ता परिणामों से निराश न हों.’’

लोकसभा चुनाव के दौरान एकजुट दिख रहे बीजेपी के प्रदेश संगठन की कई कमजोरियां साल भर में सामने आ चुकी हैं. गाजियाबाद प्रदेश कार्यसमिति से पार्टी के पूर्व अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही, विनय कटियार, ओमप्रकाश सिंह, कलराज मिश्र जैसे नेताओं का गायब रहना सुखद संकेत नहीं है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह का अपने पूर्व संसदीय क्षेत्र में आयोजित राज्य कार्यकारिणी की बैठक में न आना और गाजियाबाद के सांसद वी.के. सिंह का भी गायब रहना भीतरी उठापटक का ही संकेत है.

कार्यकारिणी के बैठक स्थल पर जगह-जगह चस्पा स्वामी विवेकानंद के पोस्टरों पर उनकी यह सूक्ति लिखी थी, ‘‘दूसरों को नीचा दिखाकर मैं ऊपर उठूं, मैं इस धरती पर इसलिए नहीं आया हूं.’’ यूपी में अगली चुनावी जीत इसी बात से तय होगी कि पार्टी नेता इस सूक्ति से कितना सीख पाते हैं.

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लेखक

आशीष मिश्र आशीष मिश्र @ashish.misra.77

लेखक लखनऊ में इंडिया टुडे के पत्रकार हैं.

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