New

होम -> सियासत

 |  4-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 10 मई, 2016 03:39 PM
अभिरंजन कुमार
अभिरंजन कुमार
  @abhiranjan.kumar.161
  • Total Shares

रातों-रात पीएम बनने की महत्वाकांक्षा के चलते 49 दिन की तुगलकी सरकार से भागकर जो शख्स भस्मासुर की तरह अपने ही सिर पर हाथ रखकर (राजनीतिक रूप से) मर चुका था, उसे बीजेपी के बौराए रणनीतिकारों ने अमृत छिड़ककर दोबारा जिला दिया, लेकिन अब भी उन्हें चेतना नहीं आई है.

पीएम डिग्री विवाद पर अमित शाह और अरुण जेटली का प्रेस कांफ्रेंस करना सियार को जवाब देने के लिए बाघ-बहादुरों की फौज को सामने कर देने जैसा था. क्या उन्हें पता नहीं कि सियार जब तक (राजनीतिक रूप से) ज़िंदा है, तब तक "हुआ-हुआ" करना छोड़ ही नहीं सकता. ख़ासकर तब, जबकि "हुआ-हुआ" करना ही उसकी मुख्य राजनीति हो.

आपको याद होगा कि इस "हुआ-हुआ" राजनीति का सबसे पहला शिकार शीला दीक्षित बनीं, जब सियासी सियारों की टोली ने बिना सबूत उन्हें बार-बार "चोर" और "बेईमान" बोला और लिखा. दिल्ली के तमाम ऑटो के पीछे पोस्टर चिपका दिये गये थे, जिनमें "हुआ-हुआ” राजनीति के प्रणेता की फोटो लगाकर "ईमानदार" और शीला दीक्षित की फोटो लगाकर "बेईमान" लिखा गया था.

तब “हुआ-हुआ” राजनीति के इस प्रणेता ने कहा था कि शीला के ख़िलाफ़ उसके पास 370 पेज के दस्तावेजी सबूत हैं और सत्ता में आने के दो दिन के भीतर वह उन्हें जेल भेज देगा, लेकिन चुनाव बाद सरकार बनाने के लिए सीटें कम पड़ने पर उसने शीला दीक्षित की ही पार्टी यानी शीला दीक्षित से ही हाथ मिला लिया.

अब वही सियासी सियार सोनिया गांधी को गिरफ्तार करने के लिए नरेंद्र मोदी की हिम्मत को ललकार रहा है. लेकिन कोई उससे पूछे कि तुमने अभी तक शीला दीक्षित को क्यों गिरफ्तार नहीं किया, तो उसका सारा रंग उतर जाएगा. इस सियासी सियार की "हुआ-हुआ कथा" के अनंत अध्याय हैं-

kejriwal_650_051016030457.jpg
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल

1. भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ कथित लड़ाई के दौरान उसने कहा था कि राजनीति में नहीं आऊंगा, लेकिन एक दिन अपने गुरु तक की छाती पर पैर रखकर वह राजनीति में आ गया.

2. उसने अपने बच्चों की कसम खाकर कहा था कि कांग्रेस और बीजेपी समेत किसी भी पार्टी से न समर्थन लूंगा, न दूंगा. लेकिन 2013 के विधानसभा चुनाव में बहुमत से कम सीटें रह जाने पर उसने निर्लज्जता-पूर्वक कांग्रेस का समर्थन ले लिया.

3. उसने कहा था कि सरकारी गाड़ी-बंगला-सुरक्षा वह कभी नहीं लेगा, लेकिन उसने न सिर्फ़ लग्ज़री गाड़ियां और आलीशान बंगले लिए, बल्कि आज उसकी सुरक्षा में 50 से अधिक जवान चौबीसों घंटे तैनात रहते हैं.

4. दिल्ली में कानून-व्यवस्था और महिला-सुरक्षा के मुद्दे पर सुबह से शाम तक पानी पी-पीकर वह शीला दीक्षित सरकार को कोसता रहता था, लेकिन जबसे उसकी सरकार बनी है, इसके लिए वह केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराने लगा है.

5. उसने कहा था कि "लोकपाल के मुद्दे पर राजनीतिक दल 44 साल में भी आम सहमति नहीं बना पाए, लेकिन अपनी सैलरी बढ़ाने के लिए 5 मिनट में सहमत हो जाते हैं." लेकिन जब उसकी सरकार बनी, तो वह 5 मिनट तो क्या, 5 सेकेंड में तैयार हो गया अपने विधायकों की सैलरी चार गुना से भी अधिक बढ़ाने के लिए. और जो लोकपाल बिल उसने पास किया, उसे उसके राजनीतिक गुरुओं ने ही जोकपाल और धोखापाल करार दिया.

6. उसने कहा था कि वह आम आदमियों की पार्टी चलाएगा, लेकिन उसके 67 में से 41 विधायक करोड़पति हैं, जिनमें से कई अब अरबपति और खरबपति बनने की राह पर हैं. 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाकर उसने मंत्री का दर्जा दे दिया. इससे पहले कभी किसी सरकार ने इतने संसदीय सचिव नहीं बनाए थे.

7. उसने कहा था कि वह शरीफ लोगों की पार्टी चलाएगा, लेकिन उसकी पार्टी में तरह-तरह के संगीन आपराधिक मामलों में लिप्त लोग उसी शान से रह रहे हैं, जैसे अन्य पार्टियों में रह रहे हैं. पीएम की डिग्री को लेकर बवाल करने वाले इस शख्स ने महज कुछ ही महीने पहले अपने धूर्त मंत्री जिंतेंद्र तोमर की फ़र्ज़ी डिग्रियों को छिपाने और उसे बचाने में पूरी ताकत झोंक दी थी.

मज़े की बात यह है कि साल भर में बिना कोई काम-धाम किए ही उसने अपने प्रचार पर जनता की गाढ़ी कमाई के सैकड़ों करोड़ रुपये फूंक डाले हैं और “ऑड-इवन” जैसे मूर्खतापूर्ण प्रयोग के लिए भी अपनी पीठ थपथपा ले रहा है. आए दिन इस “हुआ-हुआ” राजनीति के चलते दिल्ली आज दया की पात्र बन गई है.

दुर्भाग्यपूर्ण किंतु सत्य है... भारतीय राजनीति में अभी तुगलकों, भस्मासुरों और “हुआ-हुआ” करने वाले रंगे सियारों के अच्छे दिन आ गए हैं!

लेखक

अभिरंजन कुमार अभिरंजन कुमार @abhiranjan.kumar.161

लेखक टीवी पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय