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Updated: 26 जनवरी, 2017 04:10 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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मनोहर पर्रिकर गोवा चुनाव में उतने ही इन्वॉल्व हैं जितने कि असम चुनाव के वक्त सर्वानंद सोनवाल थे. दोनों के मामले में बड़ा फर्क ये है कि सोनवाल को बीजेपी ने सीधे सीधे सीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रोजेक्ट किया था, लेकिन मनोहर पर्रिकर को लेकर वो सिर्फ अटकलों को हवा दे रही है. तब सोनवाल भी केंद्रीय मंत्री थे.

बीजेपी आलाकमान को लगता है कि मौजूदा मुख्यमंत्री लक्ष्मीकांत पारसेकर में वो बात नहीं जो पर्रिकर में है. पर्रिकर की छवि पहले से ही इमानदार नेता की रही है और सर्जिकल स्ट्राइक के बाद वो मजबूत नेता के तौर पर भी उभरे हैं. बावजूद इसके बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार को लेकर सस्पेंस बनाये हुए है.

सस्पेंस की सियासत

यूपी की तरह ही गोवा में भी बीजेपी ने किसी को मुख्यमंत्री उम्मीदवार नहीं घोषित किया है. पहले बीजेपी नेताओं की तरफ से कहा जाता रहा कि चुनाव के बाद जीतने पर विधायक ही इसका फैसला करेंगे. फिर एक दिन अचानक बीजेपी के गोवा प्रभारी नितिन गडकरी ने ये कह कर संदेह बढ़ा दिया कि कोई केंद्रीय मंत्री भी गोवा का सीएम बन सकता है.

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गडकरी के बयान से पहला नाम तो मनोहर पर्रिकर का ही उभरा लेकिन श्रीपद नाईक ने भी कह दिया कि पार्टी चाहे तो वो जिम्मेदारी निभाने को तैयार है. असल में नाइक भी गोवा से ही आते हैं. हालांकि, बाद में साफ हो गया कि गडकरी पर्रिकर की बात कर रहे थे, नाइक की नहीं.

गडकरी ने तो सिर्फ अटकलों को हवा दी थी बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने यहां तक कह दिया कि गोवा की अगली सरकार पर्रिकर के नेतृत्व में ही काम करेगी - वो चाहे जहां और जिस पद पर रहें.

manohar-parrikar_650_012617032057.jpgसीएम चाहे जो बने नेता तो...

वास्को में एक कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा, "गोवा ने मनोहर पर्रिकर के रूप में देश को बहुत बड़ी संपत्ति दी है. उनकी दिल्ली और गोवा दोनों जगह जबर्दस्त मांग है. गोवा के लोग उन्हें वापस मांग रहे हैं, जबकि प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई को भी केंद्र में पर्रिकर की उतनी ही जरूरत है."

इतना ही नहीं, शाह ने आगे कहा, "मैं आपको भरोसा दिलाता हूं कि आपके मनोहर पर्रिकर जहां भी काम करेंगे, गोवा सरकार उन्हीं के नेतृत्व में काम करेगी." शाह की ये बात कांग्रेस को नागवार गुजरी और प्रताप सिंह राणे ने प्रेस कांफ्रेंस बुलाकर इस पर आपत्ति जताई. राणे ने कहा कि गोवा कोई केंद्र शासित क्षेत्र नहीं जिसे दिल्ली से कंट्रोल किया जा सके.

अगर बीजेपी पर्रिकर का नाम उछाल कर जीत की उम्मीद कर रही है तो वो भी इतना आसान नहीं है.

दांव कहीं उल्टा न पड़े

बीजेपी की राह में सबसे बड़ी मुश्किल आरएसएस से हटाए गये सुभाष वेलिंगकर हैं जो अब बीजेपी के साथ साथ पर्रिकर के भी कट्टर दुश्मन बन गये हैं. उन्हें हटाए जाने में पर्रिकर का भी हाथ माना गया था. तब से वो खार खाये हुए हैं.

पर्रिकर की ताजा चुनौती गोवा में अपने गढ़ पणजी विधानसभा सीट बचाने की है. 1994 से 2012 तक पर्रिकर इस सीट से पांच बार चुनाव जीत चुके हैं. केंद्र में आने के बाद वो चाहते थे कि उपचुनाव में उनके अपने आदमी कृष्णराज सुकरेकर को बीजेपी टिकट दे, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. बीजेपी ने सिद्धार्थ कुनकेलिंकर को टिकट दिया और वो जीते भी.

कुनकेलिंकर एक बार फिर उसी सीट से चुनाव मैदान में हैं लेकिन उन्हें चुनौती कृष्णराज सुकरेकर ही दे रहे हैं. सुकरेकर पर को गोवा सुरक्षा मंच ने टिकट दिया है जिसके पीछे वेलिंगकर का हाथ माना जाता है. गोवा के ज्यादातर नेताओं को सियासत के शुरुआती सबक सिखाने वाले वेलिंगकर बीजेपी के हराने के मिशन में जुटे हुए हैं.

कहीं अंदरूनी गुटबाजी का खामियाजा न भुगतना पड़े इसलिए बीजेपी मुख्यमंत्री उम्मीदवार के नाम पर सस्पेंस बनाए रखना चाहती है, लेकिन उसके बैकफायर होने का भी खतरा मंडराने लगा है. असम को छोड़ कर बीजेपी सभी तकरीबन राज्यों में यही रणनीति अपनाती रही है. बिहार के बाद सभी चुनावों में उसे कहीं कामयाबी नहीं मिल पाई है.

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गोवा में कांग्रेस के अलावा आम आदमी पार्टी भी बीजेपी को टक्कर दे रही है और उसने एल्विस गोम्स को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट किया है. आप नेता अरविंद केजरीवाल का कहना है कि बीजेपी गोम्स की लोकप्रियता से घबरा कर पर्रिकर को वापस लाने के संकेत दे रही है. ऐसे में गोवा के लोगों के पास इस बार कई विकल्प मौजूद है.

ठीक 50 साल पहले गोवा में जनमत सर्वेक्षण हुआ था जो अपनी तरह का भारत का पहला सर्वे था. 1967 में लोगों ने अपनी पहचान को कायम रखते हुए महाराष्ट्र के साथ विलय के सुझाव को खारिज कर दिया था. उसके ठीक 20 साल बाद गोवा को पूर्ण राज्य बना और कोंकणी को राज्य भाषा का दर्जा मिला.

ये 4 फरवरी 1967 की बात है - और ये संयोग है कि उसी दिन गोवा के लोग नई सरकार के लिए वोट डालने जा रहे हैं.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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