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Updated: 10 अगस्त, 2022 08:51 PM
रमेश सर्राफ धमोरा
रमेश सर्राफ धमोरा
  @ramesh.sarraf.9
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2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा, जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) गठबंधन ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में चुनाव लड़ा था. जिसमें बड़ी मुश्किल से दोनों पार्टियों को बहुमत मिल पाया था. उस चुनाव में जहां भाजपा की ताकत में इजाफा हुआ था वहीं, जेडीयू कमजोर पड़ी थी. भाजपा के विधायक 53 से बढ़कर 74 हो गए थे. तो, जेडीयू के विधायक 71 से घटकर 43 पर आ गए थे.

हालांकि, बिहार में तीसरे नंबर की पार्टी होने के उपरांत भी भाजपा ने नीतीश कुमार को ही मुख्यमंत्री बनाया था. मगर उनके साथ अपने दो- दो उपमुख्यमंत्री बना दिए थे. इसके अलावा विधानसभा अध्यक्ष के पद के साथ ही मंत्रिमंडल में भी भाजपा ने अपनी हिस्सेदारी अधिक रखी थी. अपनी मर्जी के हिसाब से काम करने वाले नीतीश कुमार को उस वक्त मजबूरी में भाजपा की शर्तें माननी पड़ी थी. लेकिन, मन ही मन वह भाजपा के व्यवहार से संतुष्ट नहीं थे.

BJP goes clean bowled on Nitish Kumar Googly in Biharनीतीश कुमार ने भाजपा को ऐसा झटका दिया है, जो अन्य राज्यों में भी महसूस किया जाएगा.

2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की हार का सबसे बड़ा कारण बिहार के दिग्गज नेता रहे रामविलास पासवान के पुत्र चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी द्वारा चुनाव लड़ना रहा था. उस वक्त चिराग पासवान की पार्टी ने भाजपा के सामने कहीं भी अपने प्रत्याशी नहीं उतारे. जबकि, जेडीयू के प्रत्याशियों के सामने हर सीट पर चुनाव लड़ा था. जिससे वोट कटने से नीतीश कुमार को नुकसान हुआ और उनके कई प्रत्याशी चुनाव हार गए. एनडीए गठबंधन में साथ होने के बाद भी चिराग पासवान द्वारा नीतीश कुमार के खिलाफ चुनाव लड़ने को नीतीश कुमार भाजपा की कारस्तानी ही मानते थे.

कई अवसरों पर नीतीश कुमार ने अपनी बात का इजहार करते हुए कहा भी था कि यदि भाजपा के बड़े नेता चाहते तो चिराग पासवान चुनाव मैदान से हट सकते थे. मगर भाजपा के बड़े नेता उन्हें कमजोर करने के लिए ही पासवान को शह देते रहे. इसी के चलते चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी ने 134 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़कर मात्र एक बेगूसराय जिले की मतीहानी सीट मात्र 303 वोटों से जेडीयू प्रत्याशी को हराकर जीत पाई थीं. लेकिन, एलजेपी 23 लाख 82 हजार 739 यानी 5.59 प्रतिशत वोट ले गई. जिसका सीधा नुकसान जेडीयू को उठाना पड़ा था.

पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जहां 110 सीटों पर चुनाव लड़ कर 82 लाख 2 हजार 67 वोट यानी 19.46 प्रतिशत वोट प्राप्त किए थे. वहीं नीतीश कुमार की जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ कर महज 64 लाख 50 हजार 179 यानी 15.39 प्रतिशत मत ही प्राप्त कर पाई थी. वहीं राष्ट्रीय जनता दल ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ कर 75 सीटों के साथ 97 लाख 38 हजार 855 वोट यानी 23.11 प्रतिशत मत प्राप्त किया था. आरजेडी के साथ महागठबंधन में शामिल कांग्रेस 70 सीटों पर चुनाव लड़कर महज 19 सीटें ही जीत सकी थी. कांग्रेस को 39 लाख 95 हजार 319 यानी 9.48 प्रतिशत मत मिले थे.

नीतीश कुमार का मानना था कि भाजपा अंदर ही अंदर उनकी पार्टी को कमजोर करके उनके वोट बैंक पर अपना प्रभाव जमा रही है. पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष आरसीपी सिंह को केंद्र में कैबिनेट मंत्री नीतीश कुमार ने बनाया था. मगर वह व्यवहार ऐसा करने लगे थे जैसे भाजपा के सांसद हो. कई बातों में उन्होंने नीतीश कुमार की भी जानबूझकर उपेक्षा की थी. यह बात नीतीश कुमार को नागवार गुजरी. इसी के चलते नीतीश कुमार ने आरसीपी सिंह को तीसरी बार राज्य सभा नहीं भेजा. जिस कारण उनको केंद्रीय मंत्रिमंडल से त्यागपत्र भी देना पड़ा.

धीरे-धीरे आरसीपी सिंह को पार्टी में कमजोर कर नीतीश कुमार ने उन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया. नीतीश कुमार का आरोप है कि आरसीपी सिंह के माध्यम से भाजपा उनकी पार्टी के विधायकों को करोड़ों रुपए का प्रलोभन देकर तोड़ने का प्रयास कर रही थी. नीतीश कुमार ने भाजपा पर आरोप लगाया कि बिहार के शासन व्यवस्था में भी भाजपा के नेता बहुत ज्यादा हस्तक्षेप करने लगे थे. जिसके चलते सरकार चलाना मुश्किल हो रहा था.

इन्हीं सब बातों को लेकर नीतीश कुमार ने भाजपा से गठबंधन तोड़ने में ही अपनी भलाई समझी. नीतीश कुमार तो फिर एक बार पहले से अधिक विधायकों के समर्थन से मुख्यमंत्री बन गए हैं. मगर जाते-जाते भाजपा को बड़ा झटका दे गए हैं. महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, गोवा, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश सहित कई जगह विधायकों का दल-बदल करवा कर सरकार बनाने वाली भाजपा को नीतीश कुमार ने आईना दिखा दिया है. भाजपा से गठबंधन तोड़ने के बाद नीतीश कुमार की राष्ट्रीय राजनीति में भी बड़ी भूमिका देखी जा रही है.

राजनीति के जानकारों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने अभी तक विपक्ष में कोई एक ऐसा दमदार चेहरा नहीं था. जिसके नाम पर सभी पार्टियां एकजुट हो सके. मगर अब भाजपा से अलग हटने के बाद नीतीश कुमार विपक्ष की तरफ से नरेंद्र मोदी को टक्कर देने के लिए एक मजबूत चेहरा होंगे. सुशासन बाबू के नाम से विख्यात नीतीश कुमार की छवि अमूमन साफ मानी जाती है. भाजपा से गठबंधन तोड़ने से पहले नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी कई बार फोन पर बातचीत की है.

ऐसे में यदि सोनिया गांधी भी नीतीश कुमार के नाम पर सहमत होती हैं. तो, अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को नीतीश कुमार से कड़ी टक्कर मिल सकती है. नीतीश कुमार के झटके के बाद झारखंड सहित कई प्रदेशों में भाजपा द्वारा चलाए जा रहे ऑपरेशन लोटस पर भी लगाम लगेगी. अभी तक राजनीति के मैदान में खुलकर खेल रही भाजपा को आने वाले समय में कड़ी टक्कर का सामना करना होगा. भाजपा नीत एनडीए गठबंधन में शामिल अन्य दलों को भी अब भाजपा को आंख दिखाने का मौका मिलेगा और वह पहले से कहीं अधिक सीटे लेने में सफल हो पाएंगे. कुल मिलाकर बिहार का झटका भाजपा के लिए जोर का झटका साबित होने वाला है.

लेखक

रमेश सर्राफ धमोरा रमेश सर्राफ धमोरा @ramesh.sarraf.9

(लेखक राजस्थान सरकार से मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार हैं। इनके लेख देश के कई समाचार पत्रों में प्रकाशित होतें रहतें हैं।)

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