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Updated: 02 जुलाई, 2022 08:47 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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बीजेपी को एकनाथ शिंदे (Eknath Shinde) की शिद्दत से तलाश थी और ये ख्वाहिश मुद्दतों बाद पूरी हुई है. फिर तो फुल पैसा वसूल टाइप मामला बनता ही है. बीजेपी की राजनीतिक मिजाज के हिसाब से समझें तो एकनाथ शिंदे के जरिये आधी वसूली तो हो ही चुकी है. आधा बिलकुल बाकी है. मुश्किल तो यहां तक का सफर भी रहा, लेकिन आगे की राह और कठिन होगी, ये भी मान कर चलना होगा.

और शिंदे के कंधे पर बंदूक रख कर बीजेपी (BJP for Maharashtra) ने देवेंद्र फडणवीस को जो टास्क दिया है, उसे धीरे धीरे करके 2024 तक पूरा किया जाना है - हां, उसके बाद अगर शिंदे बीजेपी के काम लायक बचे रहेंगे तो फिर कहना ही क्या?

मतलब ऐसे समझा जाये कि ये सब महाराष्ट्र को शिवसेना मुक्त बनाने भर का ही मामला नहीं है, ये तो महाराष्ट्र में हिंदुत्व की राजनीति (Shiv Sena Hindutva Politics) पर पूरी तरह काबिज होने की लड़ाई है. जैसे गुजरात, जैसे उत्तर प्रदेश या हिमंत बिस्वा सरमा की बदौलत असम जैसे राज्यों को भी लिस्ट में शामिल किया जा सकता है.

लेकिन महाराष्ट्र में ऐसी पैठ बनाने के मामले में बीजेपी अभी मीलों पीछे हैं. आगे कई मील का सफर बाकी है. ये भी तो जरूरी नहीं कि एकनाथ शिंदे ही मंजिल तक पहुंचा दें. क्या पता कल कोई ऐसी परिस्थिति पैदा हो कि एकनाथ शिंदे की भी कुर्बानी देनी पड़े. हालांकि, ऐसी स्थिति बहुत बाद में आएगी. अभी तो मामला 2024 में लोक सभा की सारी सीटें और फिर अगले प्रयास में अपने बूते पूर्ण बहुमत की महाराष्ट्र में भी सरकार बनाने का इरादा लगता है.

बड़ा सवाल तो ये है कि एकनाथ शिंदे जैसा महत्वाकांक्षी नेता बीजेपी का कहां तक साथ दे पाएगा? वैसे भी मुख्यमंत्री बन जाने के बाद भी एकनाथ शिंदे की स्थिति नीतीश कुमार से बेहतर तो होने से रही. नीतीश कुमार तो अपने अनुभव, बुद्धि चातुर्य और राजनीतिक कौशल से अपने खिलाफ तमाम चालों को काउंटर भी कर लेते हैं, पहले से ही जांच एजेंसियों के रडार पर चढ़े शिवसेना के बागी विधायकों के बूते एकनाथ शिंदे कहां तक मजबूती से टिक पाएंगे, कैसे कहा जाये?

पूरा काडर साथ लेने की कोशिश होगी

शिवसेना विधायकों को उद्धव ठाकरे की पकड़ से बाहर लाने के बाद बीजेपी की नजर अब लोक सभा सांसदों पर है - और बीजेपी की तरफ से अभी से दावा किया जाने लगा है कि विधायकों की बगावत के बाद अब शिवसेना के दर्जन भर सांसद भी पार्टी नेतृत्व के संपर्क में हैं.

eknath shinde, devendra fadnavisजब तक एकनाथ शिंदे काम लायक रहेंगे बीजेपी की तरफ से आवभगत में कोई कमी नहीं रहेगी, लेकिन...

शिवसेना के पास फिलहाल 19 सांसद हैं. 2019 के आम चुनाव में महाराष्ट्र 48 में 41 बीजेपी-शिवसेना गठबंधन ने जीते थे. बीजेपी ने 23 और शिवसेना ने 18 - और दादरा एंड नगर हवेली की जीत के साथ शिवसेना के पास कुल 19 सांसद हो गये हैं.

शिवसेना की सबसे बड़ी मुश्किल ये है कि 19 में ही एक सांसद एकनाथ शिंदे के बेटे श्रीकांत शिंदे भी हैं - और उद्धव ठाकरे की तरफ से बुलायी गयी सांसदों की मीटिंग में श्रीकांत शिंदे के अलावा दो और भी नदारद रहे - भावना गवली और राजन विचारे. दोनों की अपनी अपनी मजबूरियां हैं. पांचवी बार सांसद बनी भावना गवली प्रवर्तन निदेशालय से सहमी हुई हैं, जबकि राजन विचारे को तो ठाणे में ही रहना है जो एकनाथ शिंदे का इलाका है.

ऐसे तो सिर्फ तीन नाम ही सामने आये हैं, लेकिन बीजेपी का दावा है कि करीब एक दर्जन सांसद पाला बदलने को तैयार हैं. शिवसेना के पास तीन राज्य सभा सांसद भी हैं. आपको याद होगा तेलुगु देशम पार्टी ने लोक सभा चुनाव से पहले ही एनडीए छोड़ दिया था - और 2019 की जीत के बाद बीजेपी ने जो फायदे के काम किये उसमें टीडीपी के छह में से चार सांसदों को पार्टी में मिला लेना भी एक महत्वपूर्ण काम था.

कहने को तो लोकसभा में शिवसेना के नेता विनायक राउत का दावा है कि विधायकों की बगावत का असर शिवसेना के संसदीय दल पर नहीं पड़ेगा. ऐसे ही उस्मानाबाद से लोकसभा सांसद ओमराजे निंबालकर खुल कर उद्धव ठाकरे के साथ रहने की बात कर रहे हैं - और उनका ये कहना भी महत्वपूर्ण है कि उद्धव ठाकरे के निर्देशों के मुताबिक ही वो 18 जुलाई को होने वाले राष्ट्रपति चुनाव में अपना वोट देंगे.

ये तो हुई लोक सभा और विधानसभा के स्तर की बातें, असली लड़ाई तो जमीनी स्तर पर होनी है. कब्जे की लड़ाई तो निगमों के चुनाव में देखी जाने वाली है. बीजेपी की फिलॉसफी तो वैसे ही पंचायत से पार्लियामेंट तक पार्टी के शासन को लेकर है - ऐसा हो पाया तभी अमित शाह उसे बीजेपी के लिए स्वर्णिम काल मानेंगे.

एकनाथ शिंदे के जरिये बीजेपी पहले बीएमसी और निगमों के चुनावों में शिवसेना के सफाये की तैयारी कर रही है - और फिर उसके बाद पूरे काडर को अपने पाले में मिलाने की होगी. अपने में मिलाने से फिलहाल मतलब अपने सपोर्ट यानी एकनाथ शिंदे के साथ करने भर से ही है.

अभी एक चर्चा राज ठाकरे को भी नयी सरकार में हिस्सेदार बनाने की सुनी जा रही है. सुना है कि शिंदे ने अपनी तरफ से राज ठाकरे को कैबिनेट में दो सीटें ऑफर की है, जबकि महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के पास अभी एक ही विधायक है. अब ये एकनाथ शिंदे की पहल है या फिर बीजेपी राज ठाकरे को उनकी लाउडस्पीकर मुहिम के इनाम में कुछ देना चाहती है, देखना होगा. ये तो साफ है कि जो भी होगा बीजेपी की मंजूरी के बगैर होने से रहा क्योंकि बीजेपी के मन में ये सवाल भी तो होगा कि कहीं शिंदे मजबूती से पैर जमाने के लिए कहीं अपनी ताकत बढ़ाने के लिए तो ऐसा नहीं कर रहे हैं?

ये भी हो सकता है कि राज ठाकरे को साथ लेने के पीछे भी बीजेपी की ही आगे की चाल हो - महाराष्ट्र में हिंदुत्व की राजनीति पर पूरी तरह से काबिज होने के लिए बीजेपी को सिर्फ उद्धव ठाकरे को खत्म करने भर से काम तो नहीं ही चलने वाला है - फिर भला राज ठाकरे को भविष्य के लिए सिरदर्द क्यों बनाये रखा जाये?

गठबंधन तो बस नाम भर का होगा

महाराष्ट्र के लोगों के बताने भर के लिए बीजेपी ने एकनाथ शिंदे के साथ सरकार बनाने के लिए गठबंधन किया है. कोई शक शुबहे वाली बात न हो इसके लिए एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री भी बना दिया - और बाकी बचे खुचे संदेह की स्थिति पैदा न होने देने के लिए देवेंद्र फडणवीस को उनका डिप्टी सीएम बना डाला है.

पब्लिक सब जानती है, सिवा ऐसी बातों के. आने वाले चुनावों में भी बीजेपी, शिवसेना के साथ ही अपने गठबंधन को प्रचारित करने की कोशिश करेगी, लेकिन जब तक चुनाव निशान के विवाद का निपटारा नहीं हो जाता है, खुल कर खेल पाना बीजेपी के लिए मुमकिन नहीं होगा.

एकनाथ शिंदे के साथ गठबंधन तो नाम भर का ही होगा. आखिर एकनाथ शिंदे को सीटों के बंटवारे में हिस्सेदारी तो शिवसेना के साथ आये विधायकों के नंबर के हिसाब से ही मिलेगी. ऐसे में तो यही होगा कि बीजेपी हर इलाके में अपना कैंडिडेट उतारेगी और कुछ सीटें गठबंधन साथी के नाम पर छोड़ेगी. फायदा ही फायदा है.

और गठबंधन का ये फॉर्मूला हर चुनाव में लागू होगा. चाहे वो बीएमसी का चुनाव हो या 2024 का लोक सभा चुनाव हो या फिर उसके कुछ महीने बाद होने वाला विधानसभा चुनाव. बाद में गठबंधन साथियों का क्या हाल होता है पुराने सहयोगियों की मौजूदा स्थिति देख कर लगाया जा सकता है - चंद्रबाबू नायडू, बादल परिवार, चिराग पासवान और नीतीश कुमार भी तो बेहतरीन मिसाल हैं ही.

महाराष्ट्र में हिंदुत्व चेहरा भर होंगे शिंदे

अभी तो ये मान कर चलना होगा कि महाराष्ट्र के उन इलाकों में जहां जहां भी शिवसेना का प्रभाव रहा है, बीजेपी के भी हिंदुत्व का चेहरा एकनाथ शिंदे ही होंगे. शिंदे को ही बाल ठाकरे के असली राजनीतिक वारिस के तौर पर पेश किया जाएगा.

लेकिन ये आवभगत तभी तक संभव है जब तक बीजेपी को अपने बूते वोट मिलने शुरू नहीं हो जाते. बीजेपी भी जानती है कि ये सब इतना जल्दी नहीं हो पाता. तभी तो उद्धव सरकार गिरने के लिए ढाई साल तक इंतजार करती रही है. आगे भी किया जा सकता है.

बीजेपी के साथियों के साथ ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए एकनाथ शिंदे को भी मन ही मन तैयार हो जाना होगा. बीजेपी कुछ भी कर सकती है. पूरा इस्तेमाल कर सकती है, और उसके बाद कुछ देने से भी मुकर सकती है. फिर जरूरत पड़ने पर किसी करीबी को पकड़ कर डोरे भी डलवा सकती है, जैसे राष्ट्रपति चुनाव को लेकर चिराग पासवान को मनाने के प्रयास चल रहे हैं.

एकनाथ शिंदे के जरिये अभी तो शिवसेना के टुकड़े किये गये हैं, आगे कितने टुकड़े होने हैं ये तो बस अंदाजा भर लगाया जा सकता है. हो सकता है आखिर में बस एकनाथ शिंदे अपने गुट के अकेले नेता और कार्यकर्ता बचे रहें - और तब वो कितने काम के बचे रहते हैं या क्या फैसला लेते हैं, भविष्य तो उनका उसी से तय होगा.

शिंदे बीजेपी ज्वाइन भी कर सकते हैं क्या?

एकनाथ शिंदे को मुख्यमंत्री बनाना बीजेपी की हिमंता बिस्वा सरमा से आगे की राजनीतिक रणनीति है. जो भी काम लायक होगा, मजे में रहेगा. ये बात पक्की है - और हां, सरमा नहीं तो कौन ज्योतिरादित्य सिंधिया बन सकता है और कौन सचिन पायलट ही बने रहना चाहता है, ये फर्क ऐसे भी समझा जा सकता है.

महाराष्ट्र को शिवसेना मुक्त बनाने के बाद भी एकनाथ शिंदे बीजेपी के काम के हो सकते हैं. उसके लिए शिंदे को आगे भी बीजेपी और नेताओं के लिए खुले दिल से मददगार बने रहना होगा - क्योंकि बगैर मददगारों के दुनिया नहीं चलती तो राजनीति कैसे चल सकती है.

वैसे शिवसेना मुक्त महाराष्ट्र का मतलब शब्दशः भी नहीं समझा जाना चाहिये. जैसे कांग्रेस मुक्त भारत का मतलब गांधी परिवार से मुक्ति की ख्वाहिश है, शिवसेना को भी ठाकरे मुक्त बनाने तक ही ये मुहिम चलने वाला है. ये भी जरूरी नहीं कि एकनाथ शिंदे को भी बीजेपी हिमंता बिस्व सरमा जैसा इस्तेमाल करना चाहे.

वैसे भी बीजेपी को महाराष्ट्र की राजनीति में प्रमोद महाजन की कमी हमेशा ही महसूस होती रही है. अपने जमाने में प्रमोद महाजन ही शिवसेना के साथ गठबंधन की राजनीति के सूत्रधार हुआ करते थे - एकनाथ शिंदे चाहें तो बीजेपी के लिए नये सिरे से प्रमोद महाजन बन सकते हैं. वैसे प्रमोद महाजन तो बीजेपी और शिवसेना के गठबंधन तक ही सीमित रहे, एकनाथ शिंदे ने तो संजीवनी बूटी की जगह द्रोणागिरि पर्वत का बड़ा टुकड़ा ही लाकर रख दिया है.

अब सवाल है कि आगे चल कर. बीजेपी के हाथों सब कुछ लुटा डालने के बाद. आखिर में, एकनाथ शिंदे बीजेपी ज्वाइन करेंगे. अभी से समझ लेना होगा कि ऐसा तब तक नहीं होने वाला जब तक खुद बीजेपी ऐसा नहीं चाहेगी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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