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Updated: 14 सितम्बर, 2015 12:33 PM
सुशील कुमार मोदी
सुशील कुमार मोदी
  @modisushilkumar
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दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) छात्रसंघ के चुनाव में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी, फिर भी आम आदमी पार्टी (आप) की छात्र इकाई सीवाईएसएस का खाता नहीं खुल सका.

छात्रसंघ के चारों पदों पर विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को जिता कर दिल्ली के बिहारी छात्रों ने केजरीवाल-नीतीश गठजोड़ को नकार दिया है.

विद्यार्थी परिषद ने जहां डीयू छात्रसंघ पर लगातार दूसरे साल अपना वर्चस्व बनाये रखा, वहीं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) के छात्रसंघ चुनाव में 14 साल बाद संयुक्त सचिव का पद जीत कर विद्यार्थी परिषद ने वामपंथियों के गढ़ में सेंध भी लगाई. जेएनयू में उपाध्यक्ष और महासचिव के पद पर कड़ी टक्कर देने वाले परिषद के उम्मीदवार दूसरे स्थान पर रहे.

छात्रसंघ के चुनाव में मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक प्रचार करने नहीं जाते, लेकिन केजरीवाल और उनके विधायकों ने डीयू में क्लासरूम तक में जाकर प्रचार किया. सरकारी साधनों का दुरुपयोग किया गया, फिर भी सीवाईएसएस के उम्मीदवार तीसरे स्थान पर रहे.

केजरीवाल से मिलकर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार दिल्ली में रहने वाले बिहारियों को प्रभावित करना चाहते थे,लेकिन वहां के बिहारी छात्रों ने केजरीवाल को औकात बता दी. इसका असर बिहार विधान सभा के चुनाव पर भी होगा। डीयू छात्रसंघ चुनाव के ये नतीजे दीवार पर लिखी बदलाव की इबारत हैं, जिसे नीतीश कुमार पढ़ना नहीं चाहते.

दिल्ली के अधिकतर बिहारी छात्रों ने दिखा दिया कि वे पूरी दृढ़ता से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास और राष्ट्रवाद माडल के साथ हैं.

बिहार में युवा बदलाव और रोजगार चाहते हैं, इसलिए बिहार में हुई प्रधानमंत्री की सभी पांच रैलियों में इनकी भागीदारी सबसे ज्यादा थी. वे जात-पात से ऊपर उठकर परिवर्तन के लिए मतदान करेंगे, इसलिए नीतीश कुमार और लालू प्रसाद को अपने जातीय वोट-बैंक की जमीन खिसकती दिखाई पड़ रही है.

लेखक

सुशील कुमार मोदी सुशील कुमार मोदी @modisushilkumar

लेखक बीजेपी के वरिष्ठ नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री हैं.

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