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Updated: 04 अक्टूबर, 2020 01:26 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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महागठबंधन (Mahagathbandhan) में तो सबकी सीटें फाइनल हो गयीं, लेकिन NDA का झगड़ा अभी खत्म नहीं हो सका है. अमित शाह की दखल के बावजूद, चिराग पासवान अब भी अड़े हुए हैं और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के खिलाफ हमले जारी रखे हुए हैं. अब तो नया नारा भी गढ़ लिया है - 'मोदी से कोई बैर नहीं, नीतीश तेरी खैर नहीं.' ऐसा ही नारा राजस्थान विधानसभा चुनाव में 2018 में चला था - 'मोदी तुझसे बैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं.'

रही बात महागठबंधन की तो, वहां भी नया स्लोगन तैयार है - संकल्प बदलाव का.

खबर है कि सीटों पर बंटवारे की रूपरेखा रांची के केली बंगले से ही लालू यादव ने तय कर दिया था. केली बंगले को लालू यादव के लिए जेल का रूप दिया गया है क्योंकि फिलहाल वो चारा घोटाले में जेल की सजा काट रहे हैं - और प्रेस कांफ्रेंस में भोला यादव की मौजूदगी भी यही संकेत दे रही थी.

साथ ही, प्रियंका गांधी की भी भूमिका को लेकर खबर आयी है. बताते हैं कि आरजेडी और कांग्रेस के बीच फाइनल प्रियंका गांधी ने ही कराया है. इससे पहले राजस्थान में अशोक गहलोत और सचिन पायलट का झगड़ा शांत कराने में भी प्रियंका गांधी वाड्रा की ही अहम भूमिका मानी गयी थी.

सीट शेयरिंग की जो सबसे बड़ी खासियत है वो ये कि तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) तो फायदे में हैं ही, कांग्रेस (Congress) को भी 2015 की ही तरह इस बार भी भरपूर फायदा मिला है.

तेजस्वी का फायदा

महागठबंधन की प्रेस कांफ्रेंस से कुछ देर पहले लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव की तबीयत खराब हो गयी थी. वो अपने घर पर थे. तेज प्रताप स्ट्रैंड रोड के अपने आवास पर रहते हैं.

सूचना मिली कि तेज प्रताप यादव अचानक चक्कर खाकर जमीन पर गिर पड़े हैं. ये सुनते ही राबड़ी देवी और तेजस्वी यादव, तेज प्रताप के आवास पहुंचे और दौड़ते हुए तेज के कमरे की तरफ जाते देखे गये. बहरहाल, घंटे भर बाद पूरी तरह ठीक होकर तेज प्रताप यादव होटल पहुंचे और भाई तेजस्वी की बगल में बैठे नजर आये.

सीटों के बंटवारे को लेकर खबर है कि आरजेडी सबसे ज्यादा 144 विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ेगी - और कांग्रेस 70 सीटों पर. 29 सीटें वाम दलों को दी गयी हैं. सीपीआई एमएल को 19, सीपीआई को 6 और सीपीएम को 4 सीटें मिली हैं. महागठबंधन के दो पार्टनर झारखंड में सत्ताधारी हेमंत सोरेन की पार्टी JMM और मुकेश साहनी की VIP को लेकर बताया गया कि आरजेडी उनके लिए अपने हिस्से से सीटें शेयर करेगी - और यही बवाल का नये बवाल की जड़ भी बना है.

प्रेस कांफ्रेंस में तेजस्वी यादव और तेज प्रताप यादव के अलावा थे तो आरजेडी नेता मनोज झा, कांग्रेस नेता अविनाश पांडे और लेफ्ट के नेता भी लेकिन भोला यादव की मौजूदगी खास लगी. भोला यादव आरजेडी के राष्ट्रीय महासचिव हैं और उनको लालू यादव का हनुमान समझा जाता है. रांची में जेल चले जाने के बाद भोला यादव ही ज्यादातर इंतजाम देखते हैं - मतलब, लालू यादव से मुलाकात के लिए ये समझिये कि टोकन भी वही देते हैं और मुलाकात की कृपादृष्टि भी.

भोला यादव की मौजूदगी इस बात का सबूत है कि सब कुछ लालू यादव ने ही तय किया है - और अगर कोई शंका समाधान की जरूरत पड़े तो सबसे सटीक दलील भी उनके पास ही होती. हालांकि मुकेश साहनी को संतुष्ट कराने का कोई फॉर्मूला उनके पास भी नहीं था.

अब समझने वाली बात ये है कि आखिर कैसे कांग्रेस को फायदा पहुंचाने के बाद आरजेडी खुद भी फायदे में रही?

खास बात ये रही कि आरजेडी के फायदे वाली बात की घोषणा भी कांग्रेस के बिहार प्रभारी अविनाश पांडे ने की - "तेजस्वी यादव महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे."

शुक्रिया के साथ ही तेजस्वी यादव ने भी वो वादा दोहराया जो हाल ही में नीतीश कुमार के रोजगार देने के काउंटर में बताया था - 'हम बिहार की जनता से वादा करते हैं कि हमारी सरकार बनने के बाद पहली कैबिनेट में ही हम अपना ये वादा पूरा कर देंगे. हम वादा करते हैं कि सरकार बनने के एक डेढ़ महीने में ही लोगों को रोजगार मिलना शुरू हो जाएगा. सरकारी नौकरी के फॉर्म पर कोई पैसा नहीं लिया जाएगा.'

दरअसल, आरजेडी के लिए सबसे बड़ा चैलेंज भी यही था - तेजस्वी यादव को महागठबंधन के नेता के रूप में स्थापित करना. लालू यादव ने तो काफी पहले ही तेजस्वी यादव को अपनी विरासत सौंप दी थी, लेकिन महागठबंधन में उसे घोषित मान्यता नहीं मिली थी.

tejashwi yadavतेजस्वी यादव महागठबंधन के नेता और मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार घोषित कर दिये गये हैं.

महागठबंधन में ऐसे कई मौके देखे गये जब किसी न किसी नेता ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व पर सवाल उठाया था. ताजा मामला तो उपेंद्र कुशवाहा का ही है. उपेंद्र कुशवाहा का तो यही कहना रहा कि अगर आरजेडी महागठबंधन का नेता बदलने को राजी हो जाये तो वो साथ रहने को तैयार हैं. आरजेडी को ये भला कहां मंजूर होता.

उपेंद्र कुशवाहा की ही तरह कांग्रेस नेता शक्ति सिंह गोहिल ने भी तेजस्वी के नेतृत्व पर सवाल उठाया था. शक्तिसिंह गोहिल का कहना रहा कि तेजस्वी यादव युवा चेहरा हैं - जो कम अनुभवी लोग होते हैं उनको लोग गुमराह करते हैं. राहुल गांधी ने भी पहले ही बोल दिया था कि सम्मानजनक सीटें मिलने पर ही गठबंधन होगा.

तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता कांग्रेस नेता के मुंह से घोषित करा कर लालू यादव ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व को लेकर आगे की मुश्किलें खत्म कर दी है.

कांग्रेस का फायदा

कांग्रेस नेता अविनाश पांडे ने तेजस्वी की तारीफ तो की है बिहार की हालत का जिक्र करते हुए नीतीश कुमार पर खूब हमले भी किये. जब अविनाश पांडेय लगातार बोलते रहे तो बीच में ही रोकना पड़ा. बताया गया कि ये प्रेस कांफ्रेंस है - चुनावी रैली नहीं. अपना भाषण रोक कर अविनाश पांडे ने तेजस्वी यादव को महागठबंधन का नेता घोषित किया और चुप हो गये. अविनाश पांडे पहले राजस्थान के प्रभारी थे, लेकिन अशोक गहलोत और सचिन पायलट के झगड़े में पक्षपात की शिकायत के बाद उनको हटा दिया गया था. सचिन पायलट ने अविनाश पांडे की भूमिका पर सवाल उठाये थे.

कांग्रेस के लिए फायदे वाली बात ये रही कि उसके हिस्से में आरजेडी ने 70 सीटें छोड़ दी. वैसे भी कांग्रेस 90 से शुरू होकर 75 पर ठहर गयी थी. सौदेबाजी में पांच सीटों से समझौता भी फायदे का ही सौदा माना जाएगा.

साथ ही, आरजेडी ने वाल्मीकि नगर संसदीय सीट भी कांग्रेस के लिए छोड़ दी है. 2019 में भी वाल्मीकि नगर लोक सभा सीट कांग्रेस के ही हिस्से में रही जिसे वो जेडीयू से हार गयी थी. वाल्मीकि नगर सीट पर उपचुनाव हो रहा है.

ये दोनों कांग्रेस के लिए फायदे का सौदा रहे - और दोनों ही पक्षों ने अपने अपने फायदे के लिए एक दूसरे को फायदा पहुंचाने का फैसला किया. लालू यादव ने कांग्रेस की सीटों की डिमांड पूरी कर दी और कांग्रेस ने तेजस्वी यादव को नेता मान लिया.

ध्यान देने वाली बात ये है कि 2015 में भी महागठबंधन का नेता घोषित कराने में कांग्रेस की ही भूमिका रही. असल में तब लालू नहीं चाहते थे कि नीतीश कुमार को महागठबंधन का नेता घोषित करें और चुनाव नतीजों के बाद उस पर फैसला हो. नीतीश कुमार जानते थे कि अगर ऐसा हुआ तो चुनाव बाद लालू यादव पेंच फंसा सकते हैं. तब नीतीश कुमार ने राहुल गांधी से बात कर दबाव डलवाया और लालू यादव को जहर का घूंट पीकर नीतीश कुमार को नेता घोषित करना पड़ा था.

2015 में भी नीतीश कुमार को नेता बनवा कर कांग्रेस फायदे में रही और इस बार भी तेजस्वी को नेता मान कर वैसे ही फायदा उठाया है. तब बदले में नीतीश कुमार ने कांग्रेस 41 सीटें दिला दी थी और इस बार लालू यादव ने कांग्रेस को 70 सीटें दे डाली है.

हेमंत सोरेन की पार्टी JMM को भी कोई एतराज नहीं है और भरोसा है कि आरजेडी अपने हिस्से से उसे झारखंड से लगी बिहार की सीमावर्ती विधानसभा सीटें मिल जाएंगी, लेकिन VIP नेता मुकेश साहनी तो प्रेस कांफ्रेंस में ही हत्थे से उखड़ गये.

कहां मुकेश साहनी मान कर चल रहे थे कि उनको डिप्टी सीएम का उम्मीदवार घोषित किया जाएगा और कहां उनके हिस्से की सीटों के नंबर भी नहीं बताये गये. लिहाजा वो नाराज होकर बीच में ही ये कहते हुए चले गये कि उनको अब महागठबंधन में नहीं रहना है.

महागठबंधन में 6 सीटें सीपीआई को मिली हैं, फिर तो तय है कि कन्हैया कुमार पार्टी के स्टार प्रचारक होने के नाते महागठबंधन के लिए भी वोट मांगेंगे ही - लेकिन ये नहीं मालूम कि अब तक हो रही चर्चाओं के मुताबिक तेजस्वी और कन्हैया मंच शेयर करेंगे या नहीं - वैसे अब कोई दिक्कत तो नहीं लगती क्योंकि अब तो तेजस्वी यादव घोषित तौर पर महागठबंधन के नेता हैं और मंच पर जो भी रहेगा वो कितना भी बड़ा क्यों न हो या तो मेहमान समझा जाएगा या फिर ज्यादा से ज्यादा तेजस्वी यादव के बाद की कतार का नेता.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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