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Updated: 28 सितम्बर, 2017 01:56 PM
शरत प्रधान
शरत प्रधान
 
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गिरीश चंद्र त्रिपाठी का बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वाइस-चांसलर बनने के पीछे की कहानी बड़ी ही रोचक है. यह भले ही अविश्वसनीय लग सकता है. लेकिन गिरीश चंद्र त्रिपाठी को इस प्रमुख विश्वविद्यालय में वीसी की नौकरी रिटायर्ड हाईकोर्ट जज जस्टिस गिरधर मालवीय से घनिष्ठता की वजह से मिली है. जस्टिस गिरधर मालवीय ने 2014 के लोकसभा चुनाव में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नामांकन पत्र पर प्रमोटर के रूप में हस्ताक्षर किए थे. गिरीश चंद्र त्रिपाठी इन्ही मालवीय जी द्वारा संचालित एक कॉलेज के प्रबंधक थे. इसके पहले त्रिपाठी जी इलाहाबाद यूनीवर्सिटी में इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर हुआ करते थे.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के साथ अपने जुड़ाव के कारण ही त्रिपाठी को उच्च शिक्षा में भारत के अग्रणी संस्थानों में से एक में वीसी बनने का मौका मिला. दिलचस्प बात ये है कि खुद जस्टिस मालवीय भी बीएचयू के वीसी की नियुक्ति के लिए बनाई गई सर्च कमेटी का भी हिस्सा थे. इसी कमेटी ने त्रिपाठी का नाम शॉर्टलिस्ट किया था.

BHUवीसी ने बेहुदगी की हदेें पार कर दी

पिछले हफ्ते बीएचयू में छात्राओं पर हुए लाठीचार्ज और अत्याचार के लिए बीएचयू अधिकारियों, छात्रों और बीएचयू के ही कुछ अधिकारियों ने सीधे-सीधे वीसी गिरीश त्रिपाठी को जिम्मेदार ठहराया है. पिछले हफ्ते विश्वविद्यालय परिसर में छात्राएं यौन शोषण के खिलाफ कार्रवाई और अपनी सुरक्षा की मांग को लेकर प्रदर्शन कर रहीं थीं जब पुलिस ने उनपर लाठीचार्ज किया. साथ ही प्रदर्शनकारी छात्राओं के साथ मारपीट की.

त्रिपाठी द्वारा बुलाए गए पुलिस अधिकारियों ने कथित तौर पर रात में लड़कियों को उनके हॉस्टल से बाहर खींचकर निकाला था और उनकी पिटाई की थी. खुद त्रिपाठी के सार्वजनिक बयानों से यह स्पष्ट है कि वो एक रूढ़िवादी मानसिकता के इंसान हैं और लड़का-लड़की एक समान जैसे विचारों में उनका विश्वास नहीं है. विश्वविद्यालय में पढ़ने वाली लड़कियों के लिए जारी किए गए उनके 'संस्कारी आदेशों' में लड़कियों का पश्चिमी कपड़े न पहनाना, लड़कियों को नॉन-वेज खाना न देना और लड़कियों के हॉस्टल में आने-जाने की कर्फ्यू टाइमिंग प्रमुख हैं.

BHUहॉस्टल से निकालकर आधी रात को लड़कियों की पिटाई करना बहुादुरी का काम है!

ये साफ हो गया है कि 2700 एकड़ में फैले विशाल बीएचयू परिसर में पढ़ने वाली 10,000 छात्राओं के लिए स्थिति बहुत ही खराब हो गई है. विश्वविद्यालय परिसर में स्‍ट्रीट लाइट का न होना, सीसीटीवी कैमरों का न होना और एक गैरजिम्मेदार आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था ने सूरज ढलने के बाद असामाजिक तत्वों के लिए मुफीद वातावरण मुहैया कराया है. इन सुरक्षा व्यवस्थाओं की कमी के कारण बाहर के लड़के पूरी आजादी से विश्वविद्यालय परिसर में आते हैं. और लड़कियों से छेड़छाड़ की वारदात को अंजाम देकर चले जाते हैं.

हद तो ये है कि ऐसे असामाजिक तत्व हत्या तक करके विश्वविद्यालय से निकल जाते हैं और उन पर किसी तरह की कोई कार्रवाई नहीं होती. विश्वविद्यालय प्रशासन का रवैया इतना उदासीन है कि छात्रों की समस्या को संजीदगी से देखने के बजाए उन्हें ही उल्टा खरी-खोटी सुनाया जाता है. छात्राओं का आरोप है कि विश्वविद्यालय के एक प्रॉक्टर के पास जब कुछ छात्राएं छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न जैसी समस्याओं की शिकायत लेकर गईं तो प्रोक्टर ने उन्हें डांटा. कहा कि- "तुम इतना शोर क्यों कर रही हो? तुम्‍हारा रेप नहीं हुआ है; भगवान का शुक्र मनाओ कि तुम्हें सिर्फ छेड़ा गया है."

इस अपमानजनक और असंवेदनशील टिप्पणी के बाद भी उपकुलपति ने कोई कार्रवाई नहीं की. बल्कि वो भी पीड़ित लड़कियों को ही बदनाम करने में लग गए. त्रिपाठी ने कहा: "लड़कों के लिए कर्फ्यू का समय रात 10 बजे है, जबकि छात्रावास के आधार पर लड़कियों के लिए ये समय शाम 6 बजे और रात 8 बजे है."

एक राष्ट्रीय दैनिक को दिए गए इंटरव्यू में त्रिपाठी ने सारा दोष वामपंथी छात्र संगठनों पर मढ़ दिया. उन्होंने विश्वविद्यालय परिसर में हो रहे इस आंदोलन के लिए एसएफआई (SFI) और आइसा (AISA) जैसी संस्थाओं पर आरोप लगाया. उन्होंने उन पर आरोप लगाते हुए कहा कि- "ये लोग सिर्फ बीएचयू में ही नहीं बल्कि देश के अधिकतर विश्वविद्यालयों में इस तरह की कठिनाइयां उत्पन्न करने के लिए जिम्मेदार थे."

लड़कियों के साथ हुई घटना की गंभीरता से बेपरवाह, उपकुलपति ने तो छात्राओं की शिकायतों को ये कहकर हवा में उड़ा दिया कि- 'ये molestation की घटना नहीं थी बल्कि ये सिर्फ एक eve-teasing का मामला है.' इतना संवेदनशील बयान देकर वीसी साहब ने अपराधियों को पाक-साफ घोषित कर दिया.

वो इतने पर ही नहीं रूके. बल्कि इसके बाद विरोध की घटना को पीएम मोदी के वाराणसी दौरे से जोड़कर इसे अलग ही एंगल देने की कोशिश की. विश्वविद्यालय के अधिकांश छात्रों और कर्मचारियों का मानना ​​है कि ऐसा करके वीसी साहब और कुछ नहीं बल्कि वो प्रधानमंत्री को दिखाना चाहते थे कि उनके लिए वो कितने चिंतित हैं. त्रिपाठी जी का कार्यकाल नवंबर में समाप्त हो रहा है. उनकी कोशिश है कि किसी भी तरह से वो दूसरा टर्म ले लें. उनके दूसरे टर्म के लिए मानव संसाधन मंत्रालय की मुहर लगनी जरुरी है.

यूनी‍वर्सिटी परिसर में मौजूद हर शख्‍स यही मान रहा है कि वीसी त्रिपाठी ने एक के बाद एक कई गलतियां कर डाली हैं. राज्य सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मुझे बताया कि- "इस स्थिति को संभाला जा सकता था. वीसी साहब को सिर्फ इतना करना था कि वो प्रदर्शन कर रही छात्राओं से मिल आते और उन्हें इस मुद्दे पर कड़ी कार्रवाई करने का आश्वासन दे देते. साथ ही छात्राओं की सुरक्षा व्यवस्था को दुरुस्त करने की बात कह आते. आखिर छात्राएं सिर्फ इतने की ही तो मांग कर रहीं थी."

BHUजायज मांगों के लिए नाजायज व्यवहार!

एक अन्य अधिकारी ने कहा: "कुछ मुट्ठी भर छात्र ही हैं जो असामाजिक कार्यों में लिप्त होते हैं. अगर वीसी ठान लें तो ऐसे लोगों को पहचानना और उन्हें सजा देना कोई मुश्किल काम नहीं होगा."

लेकिन एक तरफ जहां वीसी के फैलाए रायते को केवल केंद्र सरकार के हस्तक्षेप से ही हल किया जा सकता है. तो दूसरी तरफ योगी आदित्यनाथ की सरकार भी की उतनी ही जवाबदेही बनती है.

वाराणसी पीएम मोदी का लोकसभा क्षेत्र है. और यहां होने वाली छेड़छाड़ और यौन उत्पीड़न की घटनाएं कोई मामूली बात नहीं हैं. साथ ही मार्च 2017 में सीएम पद की शपथ लेने के बाद योगी आदित्यनाथ ने बड़े ही जोर-शोर से महिला सुरक्षा की बात करते हुए एंटी रोमियो स्कवॉड को बनाया था.

आखिर ये एंटी रोमियो स्कवॉड वाराणसी में क्यों दिखाई नहीं दे रहा है? जबकि यहां खतरे ज्यादा हैं और स्थिति बेहद खराब.

( DailyO से साभार )

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लेखक

शरत प्रधान शरत प्रधान

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं.

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