राहुल की पदयात्रा से क्या वाक़ई मजबूत हो पाएगी कांग्रेस ?
कभी देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी मौजूदा दौर में बहुत कमजोर स्थिति से गुजर रही है. 2014 के बाद तो लोकसभा में कांग्रेस को विपक्ष के नेता के का पद भी नहीं मिल पाया है.
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कांग्रेस नेता राहुल गांधी की 145 दिनों तक चली भारत जोड़ो पदयात्रा का श्रीनगर के लाल चौक में तिरंगा झंडा फहराने के साथ ही समापन हो गया है. 7 सितंबर को कन्याकुमारी से प्रारंभ हुई भारत जोड़ो पदयात्रा 12 राज्यों व 2 केंद्र शासित प्रदेशों से होकर गुजरी है. पदयात्रा के दौरान राहुल गांधी करीबन 3970 किलोमीटर पैदल चले हैं. अब तक देश की राजनीति में एक असफल नेता के रूप में जाने जाने वाले राहुल गांधी अपनी इस पदयात्रा के बाद एक नए अवतार में परिपक्व राजनेता के रूप में नजर आने लगे हैं. पदयात्रा के दौरान राहुल गांधी ने लोगों से सीधे संवाद स्थापित कर उनकी समस्याओं से रूबरू हुए. यात्रा के दौरान राहुल गांधी का पूरा प्रयास था कि वह पूरी तरह वीआईपी कल्चर से दूर रहे. इस पदयात्रा में राहुल गांधी का एक अलग ही रूप देखने को मिला जो लोगों को आकर्षित व प्रभावित करने में सफल रहा है. कभी देश पर एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस पार्टी मौजूदा दौर में बहुत कमजोर स्थिति से गुजर रही है. 2014 के बाद तो लोकसभा में कांग्रेस को विपक्ष के नेता के का पद भी नहीं मिल पाया है. देश के अधिकांश राज्यों में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो चुकी है. लगातार चुनाव हारने के कारण कांग्रेस नेता राहुल गांधी की छवि भी बहुत कमजोर हो गई थी. उन्हें जनाधार विहीन नेता के तौर पर माना जाने लगा था.
भारत जोड़ो यात्रा के बाद कांग्रेस में सभी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है
राजनीतिक पर्यवेक्षक भी मानने लगे थे कि राहुल गांधी में चुनाव जिताने की क्षमता नहीं है. उनके नेतृत्व में कांग्रेस शायद ही फिर से देश की बड़ी राजनीतिक पार्टी बन सके. इन्हीं सब आशंकाओं के मध्य राहुल गांधी ने कुछ ऐसे फैसले किए जिनसे उनकी छवि एक दृढ़ निश्चयी मजबूत नेता के रूप में उभरी है. 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की करारी हार के बाद राहुल गांधी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था. उस समय सभी ने उनसे इस्तीफा वापस लेने के लिए बहुत दबाव भी डाला था. मगर वह अपने फैसले पर अटल रहे. अंततः सोनिया गांधी को कांग्रेस का अंतरिम अध्यक्ष बनना पड़ा था. करीब तीन साल बाद कांग्रेस पार्टी में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के चुनाव करवाए गए.
इस दौरान भी कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने राहुल गांधी से कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने की अपील की थी. जिसे उन्होने सिरे से खारिज कर दिया था. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव से पहले ही राहुल गांधी ने पदयात्रा करने की घोषणा कर दी थी. जिसे राहुल गांधी ने पूरी कर दिखाया है. कन्याकुमारी से अपने भारत जोड़ो पदयात्रा की शुरुआत करने वाले राहुल गांधी बिना थके बिना रुके लगातार चलकर 4000 किलोमीटर की अपनी पदयात्रा को सफलतापूर्वक पूरा कर देश की जनता को यह संदेश दिया है कि उनमें नेतृत्व करने की क्षमता आज भी बरकरार है.
आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी एक बार फिर से मजबूत होकर उभरेगी. राहुल गांधी ने अपनी पदयात्रा के दौरान सभी विपक्षी दलों के नेताओं को आमंत्रित कर विपक्ष को एकजुट करने का भी सार्थक प्रयास किया था. बहुत से विपक्षी दलों के नेता राहुल गांधी की भारत जोड़ो पदयात्रा में शामिल भी हुए. जिससे देश की जनता को एक संदेश गया कि कांग्रेस के बिना विपक्ष की राजनीति हमेशा ही अधूरी रहेगी. जब तक कांग्रेस केंद्र में नहीं रहेगी तब तक विपक्षी एकजुटता नहीं हो पाएगी.
कांग्रेस के बिना भाजपा को हराना संभव नहीं है. पूरे देश में आज भी कांग्रेस का जनाधार बरकरार है. हाल ही में कांग्रेस ने हिमाचल प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा को करारी शिकस्त देकर अपनी सरकार बनाई है. जिससे साबित होता है कि कांग्रेस में आज भी भाजपा से दो-दो हाथ करने का दमखम बाकी है.राहुल गांधी द्वारा अपनी पदयात्रा में विपक्षी नेताओं को आमंत्रित करना इस बात का द्योतक है कि राहुल गांधी बड़े मन से राजनीति करना चाहते हैं. उनका इरादा सभी विपक्षी दलों को साथ लेने का है.
राहुल गांधी की पदयात्रा में डीएमके, वामपंथी दल, राष्ट्रीय जनता दल, महाराष्ट्र की उद्धव बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी जैसी बहुत सी विपक्षी पार्टियों के नेताओं ने शामिल होकर विपक्षी एकता मजबूत करने की बात कही है. इस पदयात्रा में शामिल होने वाले विपक्षी दलों के सभी नेताओं ने राहुल गांधी की सराहना करते हुए उनके साथ मिलकर विपक्षी गठबंधन को मजबूत करने की प्रतिबद्धता जाहिर की है.
इससे लगता है कि आने वाले समय में कांग्रेस एक मजबूत गठबंधन बनाकर भाजपा को सत्ता से हटाने का प्रयास करेगी.राहुल गांधी ने इस यात्रा के जरिए उन सभी सवालों को खारिज कर दिया है जो उन पर उठते रहे थे. पहले कहा जाता था कि राहुल गांधी अध्यक्ष पद नहीं छोड़ेंगे उन्होंने अध्यक्ष पद छोड़ा. फिर कहा गया कि वो खुद अध्यक्ष बन जाएंगे लेकिन वो नहीं बने. इसके बाद कहा गया कि अध्यक्ष के चुनाव को टाल दिया जाएगा लेकिन वो भी नहीं टाला गया. भारत जोड़ो यात्रा के जरिए राहुल गांधी ने एक मजबूत और गंभीर नेता की छवि बनाई है.
इस यात्रा के जरिये राहुल गांधी ने भारतीय जनता पार्टी के सामने एक ताकतवर विकल्प के रूप में खड़े होने की कोशिश की है. अब लोग राहुल गांधी को गंभीरता से ले रहे हैं. इसके अलावा राहुल गांधी विपक्ष के नेताओं में भी आगे निकल गए हैं. अब तक ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल, मायावती, अखिलेश यादव सभी राहुल गांधी की गंभीरता पर सवाल उठाते रहे थे. आज उन सभी को लगने लगा है कि उनके बिना विपक्ष की एकता मुमकिन नहीं है.
हर यात्रा का कोई राजनीतिक उद्देश्य होता है. राहुल की यात्रा भी इससे अछूती नहीं है. खासतौर से यह देखते हुए कि अगले साल लोकसभा चुनाव हैं. इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि राहुल की भारत जोड़ो यात्रा ने देश में हलचल पैदा की है. जिन-जिन राज्यों से यह पद यात्रा गुजरी है वहां पार्टी और कार्यकर्ता सक्रिय हो गए हैं. एक तरह से कहा जा सकता है इस यात्रा से कांग्रेस पार्टी को नई जान मिली है.
भारत जोड़ो के नारे में राहुल गांधी कितने कामयाब हुए हैं इसका पता तो बाद में चलेगा. लेकिन इस दौरान राहुल गांधी जिस तरह लगातार प्रधानमंत्री को घेरते रहे उससे उन्हें फायदा हुआ है. सबसे पहले तो वो कांग्रेस के निर्विवादित नेता बन गए हैं. कांग्रेस में सभी ने राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार कर लिया है.राहुल गांधी की पद यात्रा के नतीजे इसी साल से दिखने शुरू हो जाएगें.
इस वर्ष राजस्थान, मध्यप्रदेश़, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, तेलंगाना, त्रिपुरा, मेघालय, नागालैंड और मिजोरम सहित नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं. इनमें राजस्थान और छत्तीसढ़ में कांग्रेस के सामने सरकार बचाने की चुनौती होगी. 2024 के लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस को स्थिति मजबूत करने की जरूरत है. यह तभी होगा जब कांग्रेस नौ राज्यों के विधानसभा चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करे. इन नौ राज्यों के नतीजों से ही राहुल गांधी व कांग्रेस पार्टी का भविष्य तय होगा.
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