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Updated: 31 दिसम्बर, 2015 07:00 PM
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बिहार चुनाव भूले तो नहीं हैं. वोटों के जातिगत बंटवारे और ध्रुवीकरण की कोशिशों पर कितनी बहस हुई. लेकिन अब अमेरिका चलिए जहां नवंबर में राष्ट्रपति चुनाव होने हैं. लेकिन फॉर्मूला वही, बिहार वाला. मतलब, ध्रुवीकरण. रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप ने खुद ही मोर्चा संभाल लिया है. कह चुके हैं कि अमेरिकी अब किसी काले व्यक्ति को राष्ट्रपति नहीं चुनेंगे.

वैसे, इस बार कोई अश्वेत उम्मीदवार चुनावी मैदान में है भी नहीं लेकिन अमेरिकी अस्मिता और ISIS के बहाने अमेरिकी लोगों की भावनाओं को भुनाने की कोशिश खूब हो रही है.

'काले' ओबामा

इन सबके बीच 2008 का चुनाव भी बहस में आ गया है. बहस इस बात पर कि क्या 2008 में रिपब्लिकन पार्टी के चुनावी कैंपेन में बराक ओबामा को तस्वीरों में जानबूझकर ज्यादा 'काला' दिखाया गया? क्या रिपब्लिकन पार्टी ने निगेटिव प्रचार का सहारा लिया ताकि गोरे लोगों का ध्रुवीकरण तब ओबामा के प्रतिद्वंद्वी जॉन मैकेन के पक्ष में हो सके. यह पूरी बहस शुरू हुई है पब्लिक ओपिनियन क्वार्टर्ली के ऑनलाइन संस्करण में प्रकाशित एक अध्ययन को लेकर.

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 साभार- द इंडिपेंडेंट

अध्ययन करने वालों ने 2008 के चुनाव में प्रकाशित या प्रसारित हुए 126 विज्ञापनों को देखा. फिर इनका डिजिटल तरीके से मूल्यांकन हुआ और तब जाकर तस्वीरों में अंतर की बात सामने आई है. क्या रिपब्लिकन पार्टी ने जानबूझकर ऐसा किया, इस बारे में कुछ भी कहा नहीं जा सकता लेकिन इस रिपोर्ट के सामने आने के बाद डोनाल्ड ट्रंप निशाने पर आ गए हैं. ओबामा को अगर ज्यादा काला दिखाने की कोशिश हुई तो इसका सीधा मतलब यही है कि लोगों में नस्लभेदी विचार को बढ़ावा दिया जाए. गोरे और काले लोगों के बीच वोट का जमकर ध्रुवीकरण हो और इसका फायदा उठाया जाए. हालांकि, लगता है कि इसका असर रिपब्लिकन पार्टी के लिए उल्टा पड़ गया.

वैसे चुनाव से ठीक पहले अगर इस तरह का कोई अध्ययन सामने आया है, तो उसकी टाइमिंग पर भी सवाल खड़े होते हैं. क्या यह रिपोर्ट अश्वेत लोगों को इस चुनाव में भी रिपब्लिकन पार्टी से दूर करने की कोशिश है?

बराक ओबामा जब 2008 में अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए तो आधुनिक राजनीति में यह एक नए अध्याय की तरह था. ओबामा चुनाव जीतने में कैसे सफल हुए, इसे लेकर राजनीतिक पंडितों ने कई अध्ययन किए. कई लेख लिखे गए..कई तरह की बातें हुईं. क्योंकि 1776 में आजाद हुए अमेरिका को पहला अश्वेत राष्ट्रपति मिला था. इन्हीं में से एक दलील ये सामने आई कि ओबामा को अपने रंग का खासा फायदा मिला. वह अश्वेत वोटरों के दिल में जगह बनाने में कामयाब रहे.

2008 के चुनाव से पहले वोट देने वाले गोरे लोगों की संख्या 3 फीसदी तक बढ़ी. यानी वो लोग जिन्होंने बतौर वोटर अपना रजिस्ट्रेशन कराया होगा. जबकि वोट देने वाले अश्वेत और लैटिन अमेरिकी लोगों की संख्या में 5 और 11 फीसदी तक बढ़ोत्तरी हुई. 2012 का चुनाव भी कुछ ऐसा ही रहा जहां 89 फीसदी अश्वेत लोगों ने ओबामा का समर्थन किया जबकि केवल 11 फीसदी तब के रिपब्लिकन उम्मीदवार मिट रोम्नी के पक्ष में आए. रोम्नी ने नतीजों के बाद ओबामा से ये कहा भी था, 'तुम इसलिए जीते क्योंकि काले लोगों ने तुम्हें वोट किया'.

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