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Updated: 25 जनवरी, 2016 03:36 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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पेशावर में बाचा खान यूनिवर्सिटी मुशायरे के लिए तैयार थी. देशभर से सैकड़ों शायर अपनी-अपनी नज्म अर्ज करने के लिए दुरुस्त कर चुके थे. तीन हजार से ज्यादा छात्र इन नज्मों से रूबरू होने का इंतजार कर रहे थे. लेकिन कुछ मंसूबे जो पाकिस्तान में शांति और सार्वभौमिक भाईचारे की प्रतीक इस बाचा खान यूनिवर्सिटी को बर्दाश्त नहीं कर सके, ने इस पर आतंकी हमला कर मुशायरे को टाल दिया. यह एक आतंकी हमला है तो किसी अन्य आतंकी हमलों जैसा ही, लेकिन पाकिस्तान के साथ-साथ दुनियाभर के लिए इस आतंकी हमले से गंभीर संकेत मिल रहे है. लिहाजा, इस हमले को समझने की जरूरत है.

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तेहरीक-ए-तालिबान या कह लें पाकिस्तानी तालिबान के इस हमले में 19 लोग मारे गए और 50 से अधिक घायल हो गए. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले की जिम्मेदारी तेहरीक-ए-तालिबान के उसी धड़े ने ली है जिसने दिसंबर 2014 में पेशावर के आर्मी पब्लिक स्कूल पर हमला कर 132 स्कूली बच्चों समेत 141 लोगों की हत्या कर दी थी. गौरतलब है कि तालिबान एक सुन्नी इस्लामिक आतंकी संगठन है जिसकी नींव 1990 के दशक में रखी गई थी. इस संगठन ने अफगानिस्तान के बड़े हिस्से पर 1996 से 2001 तक अपनी हुकूमत चलाई है, जिस दौरान महिलाओं के खिलाफ हिंसा, स्कूल को धमाके कर के उड़ा देना और शरियत कानून को स्थापित करने का काम किया गया.

तालिबान के ज्यादातर आतंकी पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मदरसों में पढ़े हैं और उनकी कोशिश अफगानिस्तान समेत समूचे पाकिस्तान में शरियत कानून को लागू करना है. इसी मकसद से 2007 में इस संगठन के नेतृत्व में तेहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) की स्थापना की गई थी जिसमें पाकिस्तान के ज्यादातर आतंकी संगठन शामिल हैं. इस टीटीपी का मकसद पाकिस्तान मे शरियत कानून (इस्लामिक कैलिफेट) लागू करने के साथ-साथ पाकिस्तान की सेना का विरोध करना है क्योंकि वह पश्चिमी देशों की सेना के साथ मिलकर तालिबान के खिलाफ अभियान चला रही है.

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 बाचा खान युनिवर्सिटी, पेशावर

लिहाजा, बाचा खान यूनिवर्सिटी पर टीटीपी हमले से साफ संकेत है कि पाकिस्तान की हालत भी अफगानिस्तान, सीरिया और लीबिया जैसी होने के कगार पर है. पाकिस्तान में स्कूल, कॉलेज, महिलाओं समेत सभी ऐसे प्रतीकात्मक संस्थाओं पर हमले हो रहे जिसकी नींव देश में सेना ने रखी है या फिर जो सेना के संरक्षण में चल रहे हैं. आतंकियों के मंसूबे साफ है कि वह जल्द से जल्द पाकिस्तान को भी सीरिया, लीबिया या फिर अफगानिस्तान जैसा बना दे. इसके लिए जरूरी है कि जिस तरह तालिबान ने अफगानिस्तान में सेना और सरकार को एक छोटे से क्षेत्र में सीमित कर बड़े हिस्से पर इस्लामिक कैलिफेट को स्थापित किया है, ठीक वैसा ही पाकिस्तान में किया जाए.

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गौरतलब है कि अभी तक पाकिस्तान में सेना ने आतंकी संगठनों को पाला-पोसा था लेकिन अब अंतरराष्ट्रीय दबाव के चलते पाकिस्तानी सेना का ऐसा करना मुश्किल हो रहा है. इसीलिए इस हमले से आतंकियों ने एक बार फिर साफ संकेत देने की कोशिश की है कि वह पाकिस्तान की सेना के साथ दो-दो हाथ करने के लिए पूरी तरह से तैयार है. अगर तेजी से बदलती पाकिस्तान की परिस्थिति में आतंकी अपने मंसूबे में कामयाब हो गए तो इस संभावना को नकारा नहीं जा सकता कि उसकी हालत भी अफगानिस्तान, सीरिया और लीबिया जैसी हो जाए जहां सरकार और सेना की संप्रभुता सीमित की जा चुकी है और आतंकी संगठन उसे इस्लामिक कैलिफेट का दर्जा दे रहे हैं.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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