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Updated: 11 फरवरी, 2018 04:11 PM
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आम आदमी पार्टी ने अपने 20 विधायकों की सदस्यता को लेकर अभी उम्मीद नहीं छोड़ी है. पार्टी को उम्मीद है कि दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला उसके पक्ष में ही आएगा. साथ ही साथ उपचुनाव की तैयारियां भी चल रही हैं.

एक चर्चा इधर बीच इस बात को भी लेकर थी कि मुमकिन है आप उपचुनाव की बजाये विधानसभा भंग कर दोबारा जनादेश लेने का फैसला करे. दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने ऐसी अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया है. मगर, पार्टी की हरियाणा यूनिट की ओर से ऐलान किया गया है कि आम आदमी पार्टी हरियाणा में अगला विधानसभा चुनाव लड़ेगी. वैसे तो हरियाणा में विधानसभा चुनाव 2019 के आम चुनाव के बाद होने हैं, लेकिन जैसी संभावनाएं जतायी जा रही हैं - चुनाव साथ भी हो सकते हैं.

आप की हरियाणा स्कीम

दिल्ली विधानसभा चुनावों में जीत की तीसरी सालगिरह पर आप का पूरा अमला दिल्लीवासियों के बीच पहुंचा है, तो घोषणा ये भी हुई है कि आम आदमी पार्टी हरियाणा का अगला विधानसभा चुनाव पूरी शिद्दत से लड़ेगी. वैसे ऐसी घोषणा आप की ओर से गुजरात को लेकर भी की गयी थी. पंजाब और गोवा में तो लड़े भी हारे भी.

आप के हरियाणा अध्यक्ष नवीन जयहिंद ने बाकायदा प्रेस कांफ्रेंस कर बताया कि पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में सभी सीटों पर चुनाव लड़ेगी. इसी मकसद से आप की ओर से 25 मार्च को हिसार में हरियाणा बचाओ रैली आयोजित की जा रही है. हिसार रैली के बाद आम आदमी पार्टी हरियाणा में चुनावी बिगुल बजा देगी.

arvind kejriwalघरवापसी का इरादा...

हिसार के पुराना कॉलेज ग्राउंड में होने वाली इस रैली को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल संबोधित करेंगे. उससे पहले सभी 90 विधानसभाओं में आप के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों को हरियाणा बचाओ रैली का न्योता देंगे.

आप के अनुसार सभी 90 विधानसभा सीटों पर प्रत्याशियों के चयन की प्रक्रिया अभी से शुरू कर दी गयी है. एक चयन कमेटी इस काम की देखरेख कर रही है. इसके अलावा आप की ओर से व्हाट्सऐप और मिस्ड कॉल के जरिये लोगों को पार्टी से जोड़ने के लिए मुहिम भी चलाई जानी है.

केजरीवाल का घरवापसी प्लान

हरियाणा का होने के चलते अरविंद केजरीवाल को पंजाब चुनाव में खासी मुश्किलें हुईं. केजरीवाल के विरोधी कदम कदम पर उन्हें बाहरी साबित करने पर तुले रहे. केजरीवाल भिवानी जिले के सिवानी के रहने वाले हैं. केजरीवाल की शुरुआती राजनीति के साथी योगेंद्र यादव भी हरियाणा के ही रहने वाले हैं. दिल्ली चुनाव के बाद हरियाणा को लेकर उनकी खास दिलचस्पी देखी गयी और दोनों के बीच मतभेद में एक बड़ी वजह ये भी रही.

पंजाब चुनाव के दौरान केजरीवाल की एक बड़ी मुश्किल ये भी रही कि वो किसी ऐसे मुद्दे पर किसका पक्ष लें जो दोनों से जुड़ा हो. सच्चाई का भी रास्ता तो एक पक्ष के खिलाफ ही जाता है. तब ये था कि केजरीवाल अगर पंजाब के पक्ष में बोलते तो हरियाणा के लोग नाराज होते - जो उनके अपने हैं. हरियाणा के पक्ष में बोलने पर पंजाब के लोग यकीन कर लेते कि केजरीवाल बाहरी हैं. पंजाब और हरियाणा के बीच सतलुज यमुना लिंक नहर का मामला बड़ा ही संवेदनशील है. ये ऐसा मसला है जिस पर दोनों राज्यों के लोग आमने सामने आ खड़े होते हैं.

arvind kejriwalपंजाब जैसी मुश्किलें तो बिलकुल नहीं...

लगता है केजरीवाल हरियाणा को पंजाब चुनाव के सिक्वल के तौर पर ले रहे हैं. पंजाब में केजरीवाल भले ही सरकार नहीं बना पाये लेकिन विपक्ष में मजबूती के साथ तो डटे ही हुए हैं. अब अगर हरियाणा में भी बीजेपी के खिलाफ केजरीवाल और उनकी टीम उसी अंदाज में उतरती है तो जाहिर से ज्यादा फायदा मिल सकता है.

हरियाणा में निश्चित तौर पर केजरीवाल के सामने पंजाब जैसी चुनौतियां तो नहीं ही होंगी. हरियाणा में कम से कम उन्हें बाहरी जैसे टैग हटाने के लिए तो नहीं ही जूझना पड़ेगा. अगर बाहरी टैग के साथ पंजाब में केजरीवाल की पार्टी मुख्य विपक्षी दल बन सकती है तो हरियाणा तो उनका अपना है. देखना दिलचस्प होगा केजरीवाल सतलुज यमुना जैसे मुद्दों पर हरियाणा के लोगों के मन की बात करते हैं या फिर पंजाब के लोगों के किये वादे पर कायम रहते हैं.

केजरीवाल के लिए मौका तो है

मीडिया रिपोर्ट तो बताती हैं कि आप मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में भी किस्मत आजमाने पर विचार कर रही है. हालांकि, घोषणा अभी सिर्फ हरियाणा की हुई है.

दरअसल, केजरीवाल को वे चुनाव ही सूट करते हैं जहां बीजेपी, सत्ताधारी कांग्रेस को चुनौती दे रही हो या फिर सत्ताधारी बीजेपी को कांग्रेस को चैलेंज कर रही हो. केजरीवाल दोनों की लड़ाई में तीसरे विकल्प के रूप में पेश करते हैं. केजरीवाल का ये फॉर्मूला तब नाकाम हो जाता है जब बीजेपी को कांग्रेस मजबूती के साथ चुनौती पेश करती है. पंजाब और गुजरात इसकी मिसाल हैं. पंजाब के खट्टे अनुभवों के चलते ही केजरीवाल गुजरात चुनाव से दूर ही रहे. आप का गुजरात चुनाव अभियान सिर्फ राज्य प्रभारी पर निर्भर रहा - और उसने भी साफ तौर पर कह दिया था कि जिसके खाते में ₹ 28 लाख हों वे ही आगे आएं. ये रकम चुनाव आयोग द्वारा विधानसभा प्रत्याशी के लिए तय की गयी खर्च की सीमा के अंदर आता है.

हरियाणा के हिसाब से देखें तो केजरीवाल के लिए मौका तो अच्छा बनता है. केजरीवाल पंजाब की ही तरह दिल्ली सरकार के कामों को आगे कर लोगों के बीच जा सकते हैं. वैसे भी हरियाणा की बीजेपी सरकार लगातार विरोधियों के निशाने पर रही है.

चाहे राम रहीम को सजा सुनाये जाने के बाद पंचकूला हिंसा की घटना रही हो, या फिर स्कूली बच्चों की बस पर हमले की बात. हरियाणा के मुख्यमंत्री हर बार अपनी प्रशासनिक क्षमता को लेकर सवालों के घेरे में रहे हैं. दूसरी तरफ, कांग्रेस की अंदरूनी गुटबाजी खत्म होने का नाम नहीं ले रही. -खट्टर-

कांग्रेस की भूपिंदर सिंह हुड्डा सरकार से ऊबे लोगों ने पिछली बार बीजेपी को वोट दिया. वो चुनाव 2014 की मोदी लहर के ठीक बाद हुआ और बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया. अब केजरीवाल लोगों के सामने नया विकल्प पेश कर सकते हैं. लोगों के पास भी ऑप्शन खुले हैं. लोग चाहें तो बीजेपी को फिर से मौका दें, चाहें तो फिर से कांग्रेस को मौका देकर देखें - और तीसरी स्थिति ये है कि लोग नये विकल्प पर विचार करें. एक ऐसा विकल्प जिसके पास शासन का दिल्ली का मॉडल है. जो पंजाब में मुख्य विपक्षी दल है - और लोक सभा के साथ साथ राज्य सभा में भी जिसके तीन सदस्य पहुंच चुके हैं.

पंजाब चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने कहा था - 'मैं आ गया हूं और अब यहीं खूंटा गाड़ कर बैठूंगा.' वैसे दिल्ली के बारे में भी अरविंद केजरीवाल कर्ई बार कह चुके हैं वो छोड़ कर कहीं नहीं जाने वाले. कुछ उसी तरह अब हरियाणा की भी बारी आ चुकी है. देखना है कि दिल्ली से निकल कर पूरा मुल्क घूमने के बाद केजरीवाल की घरवापसी का प्लान क्या गुल खिलाता है?

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