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Updated: 02 अक्टूबर, 2019 02:58 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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दिल्ली में अगले साल चुनाव होने वाले हैं और उसकी गर्मी अभी से दिखने लगी है. एक ओर अरविंद केजरीवाल बयान दे रहे हैं, तो दूसरी ओर मनोज तिवारी भाजपा की ओर से मोर्चे पर हैं. अभी कुछ दिन पहले ही अरविंद केजरीवाल ने मनोज तिवारी के उस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया दी थी, जिसमें तिवारी ने कहा था कि दिल्ली में भी एनआरसी लागू होनी चाहिए. केजरीवाल ने कहा था कि अगर ऐसा होता है तो सबसे पहले मनोज तिवारी ही बाहर जाएंगे. मौका न छोड़ते हुए तिवारी ने तुरंत पलटवार किया था और कहा कि अरविंद केजरीवाल पूर्वांचल और बाकी अन्य राज्यों से आए लोगों को बाहरी मानते हैं. रविकिशन ने भी मौका देखते हुए केजरीवाल पर अपने बयानों के दो-चार तीर छोड़ दिए.

यहां तक कि भाजपा की पूर्वांचली शाखा ने सीएम आवास के सामने तगड़ा प्रदर्शन भी किया. अब एक बार फिर अरविंद केजरीवाल ने बाहरी जैसा एक बयान दिया है, जिसे मनोज तिवारी भुनाने में तनिक भी देर नहीं कर रहे हैं और केजरीवाल के खिलाफ किलेबंदी करना शुरू कर दिया है. केजरीवाल ने दिल्ली वाले, हमारी दिल्ली करना तो शुरू कर दिया है, लेकिन उन्हें ये ध्यान रखना चाहिए कि वह बाल ठाकरे नहीं हैं, कि लोग उनकी एक बात पर उनके पीछे-पीछे चल देंगे. केजरीवाल के ये बयान भले ही कैसी भी मंशा से दिए गए हों, लेकिन इसका नुकसान खुद आम आदमी पार्टी को भी हो सकता है. वैसे शायद ये बात केजरीवाल को एक बार याद दिलाने की जरूरत है कि वह खुद भी दिल्ली के नहीं हैं, बल्कि हरियाणा के हिसार से हैं. इतना ही नहीं, दिल्ली के अब तक बाकी 6 मुख्यमंत्रियों ने से 4 बाहर के ही थे.

अरविंद केजरीवाल, दिल्ली विधानसभा चुनाव, भाजपा, मनोज तिवारीदिल्ली में बाहरी लोगों के इलाज को लेकर केजरीवाल का बयान चुनाव के मद्देनजर बिल्कुल सही नहीं हैं.

दरअसल, अरविंद केजरीवाल ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा कि दिल्ली में बाहर से भी लोग इलाज करने आते हैं, जिसकी वजह से अस्पतालों में भीड़ अधिक होती है. अरविंद केजरीवाल ने कहा- 'पहले दवाइयां नहीं मिलती थीं, अब दवाइयां मिलती हैं. डॉक्टर जो दवाइयां लिखते हैं, वो मिलती हैं. लाइनें लंबी हैं, इसकी बड़ी वजह ये है कि बाहर से लोग भी दिल्ली में इलाज कराने आ रहे हैं. हमने एक सीमावर्ती अस्पताल का सर्वे कराया तो 80 फीसदी मरीज वहां बाहर के थे. अगर सिर्फ दिल्ली के लोगों का इलाज करना हो तो जितने अस्पताल हैं वह बहुत हैं. लंबी लाइनें इसलिए हैं, क्योंकि जैसी व्यवस्थाएं अब दिल्ली के अस्पतालों में हैं, वह देश में और कहीं नहीं हैं. यहां तक कि बिहार से एक आदमी 500 रुपए का टिकट लेता है, दिल्ली आता है और अस्पताल में 5 लाख रुपए का ऑपरेशन मुफ्त में कराकर वापस चला जाता है. इससे खुशी होती है कि अपने ही देश के लोग हैं, बढ़िया है सबका इलाज होना चाहिए, लेकिन दिल्ली की भी अपनी क्षमता है. दिल्ली पूरे देश का इलाज कैसे करेगी, तो जरूरत है कि व्यवस्था सुधरे.'

बाल ठाकरे नहीं हैं अरविंद केजरीवाल !

पता नहीं किसने अरविंद केजरीवाल को ये पट्टी पढ़ाई है कि वह दिल्ली-दिल्ली कहें, या हो सकता है कि वह खुद ही ये सब सोच रहे हैं, लेकिन उन्हें एक बात ध्यान रखनी चाहिए कि वह बाल ठाकरे नहीं हैं, जो आमची मुंबई करेंगे और जनता उनके साथ हो लेगी. वैसे भी, बाल ठाकरे ने वक्त की नजाकत को देखते हुए कई सालों में महाराष्ट्र में यूपी-बिहार के लोगों के खिलाफ बोलते हुए अपनी राजनीति चमकाई थी. दिल्ली में तो 40 फीसदी लोग ही बाहर के हैं. इनमें बहुत सारे ऐसे लोग हैं, जिनकी वजह से दिल्ली के लोगों की रोजी-रोटी चल रही है. अब लक्ष्मी नगर और मुखर्जी नगर में छात्रों को ही ले लीजिए. अगर वहां स्टूडेंट ना रहें तो क्या होगा. इन जगहों की तो इकोनॉमी ही छात्रों के भरोसे चल रही है. बाल ठाकरे ने उस विरोध को हवा दी थी, जो राज्य में धीरे-धीरे सुलग रहा था, लेकिन अरविंद केजरीवाल तो खुद ही आग लगाने के चक्कर में पड़े हैं. दिल्ली में ऐसा कोई विरोध नहीं है कि बाहर के लोग उनकी नौकरी खा रहे हैं, लेकिन अरविंद केजरीवाल इस आग को भड़काने की कोशिश करते हुए से दिख रहे हैं. उन्हें ये ध्यान रखना होगा कि इससे उनके खुद के हाथ जल सकते हैं.

दबी-दबी आवाज में केजरीवाल की रणनीति

अरविंद केजरीवाल की बातों से एक बात तो साफ हो ही जाती है कि वह राजनीति के लिहाज से दिल्ली वालों को आकर्षित करना चाहते हैं. यही वजह है कि वह हर मौके पर ये जरूर जताते हैं कि क्या दिल्ली वालों का है और क्या बाहर के लोगों का नहीं. भले ही अरविंद केजरीवाल ये कहते हैं कि पूरे देश के लोगों का इलाज जरूरी है, उनका खुश होना जरूरी है, लेकिन अगले ही पल वह ये भी कह देते हैं कि दिल्ली की अपनी क्षमता है. वह कहते हैं कि अगर बाहर के लोग दिल्ली में इलाज ना कराएं तो जितने अस्पताल हैं, वो काफी हैं. यानी दबी आवाज में वह दिल्ली की जनता को ये जताना चाहते हैं कि उन्होंने दिल्ली के लिए बहुत कुछ किया है. यानी उनका कहना है कि ये भाजपा-कांग्रेस हैं, जो बाकी राज्यों में अच्छी सुविधाएं नहीं दे रही हैं, इसीलिए वहां के लोग भी दिल्ली आ रहे हैं और दिल्ली के लोगों को अस्पतालों में लाइन लगानी पड़ रही है. वैसे ये कहना भी गलत होगा कि चुनाव देखकर अरविंद केजरीवाल ने ये रणनीति बनाई है. दरअसल, उन्होंने इस रणनीति पर काफी पहले ही काम शुरू कर दिया था.

कॉलेजों में 85 फीसदी कोटा दिल्ली के लिए

आम आदमी पार्टी के एजेंडा में ये भी है कि दिल्ली के कॉलेजों में 85 फीसदी सीटें सिर्फ दिल्ली के स्टूडेंट्स के लिए आरक्षित की जाएं. यानी अगर बाहर से कोई छात्र आता है तो उसके पास सिर्फ 15 फीसदी का स्पेस होगा, जिसके लिए उसे संघर्ष करना होगा. वैसे एक्सपर्ट्स ने कहा है कि आंशिक या पूर्ण रूप से दिल्ली सरकार के 28 कॉलेजों में 85 फीसदी सीटें दिल्ली के छात्रों के लिए आरक्षित नहीं की जा सकती हैं. यहां आपको बता दें कि दिल्ली यूनिवर्सिटी से कुल 63 कॉलेज अफिलिएटेड हैं, जिनमें से 28 को पूरी तरह से या आंशिक रूप से दिल्ली सरकार फंड देती है. केजरीवाल सरकार का ये कदम भी यही दिखाता है कि वह दिल्लीवालों की ही सोचते हैं, बाकी देश के लोगों के हितों के बारे में वह नहीं सोच रहे हैं.

दिल्ली में सबसे अधिक इंटर-स्टेट माइग्रेंट

अगर अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बाहर के लोगों को बाहरी मान रहे हैं तो ऐसे तो दिल्ली की करीब 40 फीसदी आबादी को बाहर जाना पड़ेगा. इसमें वो परिवार भी होंगे, जो अब दिल्ली में बस गए हैं, वो लोग भी होंगे जो अपनी रोजी रोटी कमाने के लिए यहां आए हैं और वो बच्चे भी होंगे, जो शिक्षा लेने के लिए दिल्ली आए हैं. अगर 2001 की मतगणना को देखें तो इस समय करीब 23.6 लाख परिवार ऐसे हैं जो दिल्ली में आकर बस गए हैं. 19.8 लाख लोग ऐसे हैं, जो दिल्ली में नौकरी या बिजनेस करते हैं. 12.2 ऐसी बहुएं हैं, जो शादी के बाद दिल्ली की हो गई हैं. 1 लाख बच्चे यहां आकर शिक्षा ले रहे हैं. इसके अलावा भी 6.8 लाख लोग हैं, जो दिल्ली के बाहर के हैं, लेकिन दिल्ली में रह रहे हैं.

इस चुनाव केजरीवाल पर भारी पड़ेंगे मोदी !

अगर बात की जाए 2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव की तो उससे पहले अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली की सत्ता 49 दिनों तक संभाली थी. लोग ये भी नहीं समझ पाए थे कि उनकी काबीलियत कितनी है. वहीं दूसरी ओर मोदी सरकार की लहर भी उस दौरान बिल्कुल ताजी-ताजी थी, जबकि दिल्ली की जनता भाजपा-कांग्रेस के अलावा कोई दूसरा विकल्प तलाश रही थी. यानी तब परिस्थितियां केजरीवाल के अनुकूल थीं, लेकिन इस बार थोड़ी दिक्कत है. जो तब मोदी लहर थी, वो अगले 2019 के लोकसभा चुनाव तक तूफान बन गई, जिसका सामना अच्छे-अच्छे नेता नहीं कर सके. ऐसे में केजरीवाल की बयानबाजी को उनके खिलाफ इस्तेमाल करने का मौका भाजपा नहीं छोड़ रही है जिसके केजरीवाल के खिलाफ जाने की संभावनाएं काफी अधिक हैं.

यूपी-बिहार वो राज्य हैं, जहां आबादी काफी अधिक है और रोजगार के मौके बेहद कम. यही वजह से है कि इन राज्यों से लोग दूसरे राज्यों की ओर काम की तलाश में निकलते हैं. कई लोग तो दूसरे राज्यों में अच्छा काम देखकर वहीं बस भी जाते हैं. आपको बता दें कि यूपी-बिहार के जो लोग काफी समय से दिल्ली में हैं और यहां का वोटर आईडी कार्ड तक बनवा चुके हैं, वो भी अरविंद केजरीवाल के वोट हैं, लेकिन केजरीवाल उन्हें नाराज करने वाले काम कर रहे हैं. दिल्ली में करीब 40 लाख पूर्वांचली लोग हैं, जो चुनाव में दिल्ली में वोट भी डालते हैं. दिल्ली की कुल 70 में से करीब 25 सीटें ऐसी हैं, जहां पर पूर्वांचलियों का दबदबा है. यानी जिधर पूर्वांचल के लोगों ने वोट डाल दिया, उस पार्टी का जीतना लगभग तय ही है. पूर्वांचल के लोगों के खिलाफ बयान देना केजरीवाल की 25 सीटों पर खतरा पैदा कर सकता है. वहीं दूसरी ओर, भाजपा के मनोज तिवारी ये कैल्कुलेशन बहुत पहले ही कर चुके हैं. तभी तो केजरीवाल के बयानों को पूर्वांचल की अस्मिता से जोड़ने में वह तनिक भी देर नहीं करते. वैसे भाजपा ने मनोज तिवारी को पूर्वांचल वोटबैंक देखते हुए ही दिल्ली की जिम्मेदारी दी है.

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