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Updated: 08 जनवरी, 2020 07:50 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Assembly Elections ) के लिए चुनाव आयोग ने तारीखों (Delhi Assembly Elections Date )का ऐलान कर दिया है. चुनाव आयोग के अनुसार दिल्ली में 8 फरवरी को सभी 70 विधानसभा सीटों पर वोट डाले जाएंगे. 11 फरवरी को नतीजों के बाद इस बात का फैसला हो जाएगा कि दिल्ली की जनता अरविंद केजरीवाल (Delhi CM Arvind kejriwal) को फिर से मुख्यमंत्री बनने का मौका देगी या फिर इस बार सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई कांग्रेस और भाजपा के खेमे में जाएगी. दिल्ली में चुनाव होने हैं तो सियासी सरगर्मियां तेज हैं. आम आदमी पार्टी, भाजपा, कांग्रेस सभी ने कमर कस ली है. सभी की तैयारियां पूरी हैं. चाहे दिल्ली में 200 यूनिट तक बिजली मुफ्त करना हो या फिर मेट्रो और बसों में महिलाओं की मुफ्त यात्रा  राजनीति में दिलचस्पी रखने वालों का एक बड़ा वर्ग ऐसा है जिसका मानना है कि दिल्ली के वर्तमान मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ऐसा बहुत कुछ कर चुके हैं जिसका फायदा आम आदमी पार्टी को मिलेगा और आप सरकार बनाएगी. वहीं एक दूसरा वर्ग भी है जिसका मानना है कि भाजपा और कांग्रेस दोनों ही दलों ने अपने पासे तैयार कर लिए हैं. दोनों ही बड़ी सियासी पारी खेलने के लिए अपनी रणनीति का निर्धारण कर चुके हैं.

अरविंद केजरीवाल, दिल्ली विधानसभा चुनाव, आप, भाजपा, Arvind Kejriwal आगामी दिल्ली चुनावों को मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए एक बड़ी चुनौती की तरह देखा जा रहा है

बात भाजपा की हो तो भाजपा जहां दिल्ली विधानसभा चुनाव में एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे करेगी. तो वहीं कांग्रेस ने भी जामिया से लेकर जेएनयू तक CAA का विरोध कर रहे लोगों को समर्थन देकर ये बता दिया है किदेश के अल्पसंख्यकों की सबसे बड़ी रहनुमा कांग्रेस है. जैसे समीकरण फ़िलहाल दिल्ली विधानसभा चुनावों के मद्देनजर स्थापित हुए हैं कह सकते हैं कि अंतिम पड़ाव तक आते आते दिल्ली का चुनाव हिंदू मुस्लिम के आधार पर ही लड़ा जाएगा.

दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल को विनर की तरह देखा जा रहा है. निर्णायक समय में हमारे लिए भी जरूरी हो जाता है कि हम इन दोनों का अवलोकन करें और जानें कि क्या वाकई आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल में इतना माद्दा है कि वो फिर से सरकार बना लें ? या फिर कहीं ऐसा तो नहीं कि वास्तविकता कुछ अलग है और केजरीवाल की वापसी की बातें कोरी लफ्फाजी से ज्यादा और कुछ नहीं है.

बात आप और अरविंद केजरीवाल के सन्दर्भ में हुई है. तो बता दें कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी, अरविंद केजरीवाल के चेहरे को सामने करके चुनाव लड़ रही है. किसी और नेता को आगे करने के बजाए पार्टी का अरविंद केजरीवाल के नाम के दम पर चुनाव लड़ना खुद इस बात की तस्दीख कर देता है कि कहीं न कहीं पार्टी को भी इस बात का विश्वास है कि किसी और नेता के मुकाबले दिल्ली की जनता केजरीवाल पर ज्यादा भरोसा करती है.

पार्टी के ऐसा करने का फायदा ये है कि वो वोट जो पार्टी को केजरीवाल के चेहरे के कारण मिले हैं वो अपनी जगह स्थिर रहेंगे जिससे पार्टी को बढ़त मिलेगी. पार्टी का एजेंडा साफ़ है. उसकी यही रणनीति है कि वो केजरीवाल को आगे करेगी और शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य तक पार्टी के काम गिनाते हुए दिल्ली की जनता को ये बताएगी कि पार्टी की तरफ से उनके लिए अब तक क्या क्या काम हुए.

केजरीवाल आम आदमी पार्टी के स्टार कैम्पेनर हैं तो पार्टी भी अपनी तरफ से पूरी ताकत इसी में झोंक रही है कि कैसे उन्हें दिल्ली विधानसभा चुनाव में कैश किया जाए. बात अगर केजरीवाल के साथियों जैसे संजय सिंह या फिर उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की हो तो इन लोगों को पार्टी ने फ्रेम से अलग कर दिया है. पार्टी का प्रयास यही है कि कैसे भी करके उसे केजरीवाल के उस स्टेटस को जनता के सामने रखना है जिसमें वो किसी 'स्टार' की तरह अपना जलवा बिखेरते रहें. मगर देखा जाए तो यही पार्टी के लिए आने वाले वक़्त में मुसीबत का एक बड़ा कारण बनेगा.

क्या था पूर्व में हुए चुनावों का गणित

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल पर कुछ बात करने से पहले हमारे लिए दिल्ली में पूर्व में हुए चुनावों का अवलोकन करना और स्थिति को समझना भी बहुत जरूरी है. ये आंकलन इसलिए भी अहम है क्योंकि हम लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सात सीटों पर केजरीवाल फैक्टर को बुरी तरह विफल होते देख चुके हैं.

2015 में हुए चुनाव में दिल्ली की कुल 70 सीटों में से 67 सीटों पर आप ने 54.34 % वोट शेयर के साथ कब्ज़ा जमाया था. जबकि भाजपा ने 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. लेकिन भाजपा का वोट प्रतिशत दिलचस्प था भाजपा को 2015 में 32.19 प्रतिशत वोट मिले थे. बात अगर कांग्रेस की हो तो कांग्रेस 2015 में दिल्ली में अपना खाता नहीं खोल पाई थी और पार्टी को 9.65 प्रतिशत मतों के साथ संतोष करना पड़ा था.

वहीं जब हम बात 2013 की करें तो 2013 के चुनावों में 28 सीटें जीतने वाली आम आदमी पार्टी का वोट शेयर परसेंटेज 29.49, 31 सीटों पर जीत दर्ज करने वाली भाजपा का वोट शेयर परसेंटेज 33.07 और  8 सीटें जीतने वाली कांग्रेस का वोट शेयर परसेंटेज 24.55 था.

2015 में कैसे सत्ता सुख भोगने में कामयाब हुई आप

हम 2013 और 15 के वोट शेयर परसेंटेज पर बात कर चुके हैं. साथ ही हम ये भी देख चुके हैं कि 2013 के मुकाबले भले ही 15 में भाजपा को बहुत कम वोट मिले हों मगर उसका वोट शेयर परसेंटेज दिलचस्प था. अब सवाल ये है कि 2015 में आम आदमी पार्टी ने सत्ता सुख कैसे भोगा?

बात इस सवाल के जवाब की हो तो इसकी एक बड़ी वजह वो नाराजगी थी जो दिल्ली की जनता को कांग्रेस से मिली थी. बाद में जब आप- कांग्रेस गठबंधन टूटा और उसके केजरीवाल ने दिल्ली के लोगों से माफ़ी मांगी तो उनका ये हथकंडा भी कामयाब हुआ.

दिल्ली की जनता को लगा कि शायद केजरीवाल एक दूसरी तरह की राजनीति के लिए मेन स्ट्रीम पॉलिटिक्स में आए हैं और इसी भरोसे के साथ 15 के चुनाव में केजरीवाल और उनकी पार्टी ने बम्बर जीत दर्ज की.

वर्तमान में चौतरफा आलोचना का शिकार हो रहे हैं केजरीवाल

बात 2020 के चुनावों की हो तो महिला सुरक्षा, प्रदूषण, अवैध कॉलोनी, बिजली, पानी, कानून व्यवस्था, सीएए और एनआरसी वो मुद्दे हैं जिनपर आम आदमी पार्टी चुनाव लड़ रही है. बात अगर विपक्ष की हो तो विपक्ष इन सभी मुद्दों पर हमलावर है और जमकर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी की फजीहत कर रहा है. क्योंकि इस चुनाव में सिर्फ केजरीवाल को प्रोजेक्ट किया जा रहा है तो कहीं न कहीं पार्टी भी बैकफुट में है और तमाम तरह की चुनौतियों का सामना कर रही है.

पार्टी की नींद विपक्ष मुख्यतः भाजपा ने किस तरह उड़ाई है इसे हम केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के आरोपों से भी समझ सकते हैं. दिल्ली में आयोजित रैली में अमित शाह राज्य सरकार पर खासे तल्ख़ नजर आए. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर आरोप लगाते हुए अमित शाह ने साफ़ लहजे में कहा कि आम आदमी पार्टी हवा में प्रचार कर रही है.

साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि आप पार्टी की सरकार ने अगर किसी का सबसे ज्यादा नुकसान किया है तो दिल्ली के गरीब और गांव के लोग हैं  जिनकी आंख में मोहल्ला क्लिनिक दिखाकर धूल झोंकी गई है. साथ ही अमित शाह ने आयुष्मान भारत को लेकर भी अरविंद केजरीवाल को निशाने पर लिया. गृह मंत्री का तर्क था कि केजरीवाल आयुष्मान भारत योजना को गरीब के पास पहुंचने नहीं दे रहे हैं.

अकेला स्टार होने की अपनी मजबूरियां हैं

दिल्ली में आयोजित रैली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर तमाम तरह के गंभीर आरोप लगाए हैं. दिलचस्प बात ये है कि शाह की बातों का काउंटर अभी न तो आम आदमी पार्टी की तरफ से आया है और न ही अरविंद केजरीवाल की तरफ से. पार्टी ने जवाब नहीं दिया है कारण स्वयं एक बड़े चेहरे के रूप में आम आदि पार्टी का अरविंद केजरीवाल को प्रोजेक्ट करना है. कह सकते हैं कि अगर पार्टी के पास और चेहरे होते तो यकीनन जवाब आता और उन जवाबों के माध्यम से भाजपा को चुनौती दी जाती.

विभीषणों का क्या करेंगे केजरीवाल

जैसा कि हम पहले ही बता चुके हैं आम आदमी की ताकत अरविंद केजरीवाल हैं. बात कमजोरियों की हो तो पार्टी के लिए इसकी भी वजह केजरीवाल ही हैं. चुनाव का मौसम है तो केजरीवाल को बाहर वालों से ज्यादा खतरा उनसे है जो या तो उनके साथ हैं या फिर उनसे अलग हो चुके हैं.

पार्टी के ये विभीषण केजरीवाल की लंका को कैसे प्रभावित कर सकते हैं? इसे समझना हो तो चाहे कुमार विश्वास रहे हों या फिर कपिल मिश्रा और आशुतोष सभी केजरीवाल की आलोचना करते नजर आ रहे हैं. बात बीते दिन की हो तो जैसे आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता आशुतोष ने जेएनयू में हुई हिंसा मामले को लेकर केजरीवाल के खिलाफ मोर्चा खोला. वो ये साफ़ बता देता है कि आने वाले वक़्त में तमाम चुनौतियां हैं जिनका सामना पार्टी को करना पड़ेगा.

जेएनयू मामले पर आशुतोष के ट्वीट पर नजर डालें तो उन्होंने लिखा है कि आखिर क्यों अरविंद केजरीवाल जेएनयू के छात्रों से नहीं मिले. वो दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं. सिर्फ बैठकर ट्वीट करना जरूरी नहीं है.

आशुतोष का ये ट्वीट केजरीवाल पर एक बड़ा हमला है. ट्वीट खुद ब खुद बता रहा है कि केजरीवाल को सिर्फ अपनी सियासत से मतलब है और उन्हें किसी की भी कोई परवाह नहीं है.

क्या आने वाले वक़्त में गठबंधन कर सकते हैं आप और कांग्रेस

ये अपने आप में एक दिलचस्प विषय है. एक ऐसे वक़्त में जब लड़ाई मोदी बनाम अन्य दल हो गई है. साथ ही भाजपा लगातार आम आदमी पार्टी पर हमलावर भी है. तो हो ये सकता है कि मोदी विरोध के कारण तमाम पुराने गिले शिकवे भुला दिए जाएं और एक दूसरे को गले लगा लिया जाए.

बात केजरीवाल की हो रही है तो बताना जरूरी है कि केजरीवाल लोकसभा चुनावों में भाजपा से मुंह की खा चुके हैं और अगर विधानसभा चुनाव में कुछ इधर उधर होता है तो कांग्रेस के साथ आना उसकी मजबूरी माना जाएगा.

चुनावों के बाद केजरीवाल का भविष्य क्या होगा इसका जवाब वक़्त देगा लेकिन जैसा वर्तमान है वो ये बता रहा है कि आम आदमी पार्टी के लिए अगर कुछ अच्छा हुआ तो उसकी वजह केजरीवाल होंगे इसी तरह अगर पार्टी ने बुरा प्रदर्शन किया या फिर कुछ इधर उधर हुआ तो इकलौता चेहरा होने के कारण उसकी भी वजह केजरीवाल होंगे. 

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बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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