New

होम -> सियासत

 |  6-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 20 जनवरी, 2020 02:15 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

AAP नेता अरविंद केजरीवाल ने नये तरीके की राजनीति करने का ऐलान किया था - क्या नया और क्या पुराना, जो है सब सामने ही है. ऐसा तो नहीं कि सब कुछ निराश करने वाला है, लेकिन बड़ी उम्मीदें बंधाने वाला भी नहीं कहा जाएगा. अरविंद केजरीवाल नामांकन (Arvind Kejriwal nomination) दाखिल करने के साथ दिल्‍ली की सत्‍ता में दोबारा वापसी की जद्दोजहद शुरू कर दी है. दिल्ली विधानसभा चुनाव (Delhi Election 2020) में घोषणा पत्र के आने से पहले अरविंद केजरीवाल ने आम आदमी पार्टी की तरफ से नया आइडिया जरू पेश किया है - 'केजरीवाल गारंटी कार्ड' (Arvind Kejriwal Guarantee Card).

ऐसे में जब सियासी घोषणाओं और नेताओं के वादों पर यकीन करना मुश्किल हो रहा हो चुनावी राजनीति में कोई गारंटी की बात करे, फिर दिलचस्पी तो जगेगी ही - लेकिन किस हद तक? अरविंद केजरीवाल अपनी सरकार के रिपोर्ट कार्ड में 2015 के सारे वादू पूरे करने का दावा करते हैं - और बीजेपी नेता अमित शाह और मनोज तिवारी सवाल पूछते हैं कि 5 साल में कौन सा काम (2015 Poll Promises) पूरा कर लिया है बतायें. राजनीति अपनी जगह है और जमीनी हकीकत बिलकुल अलग.

अभी तो यही कहा जा सकता है कि गारंटी कार्ड नाम सुनने में बेहद खूबसूरत है - बाकी सब तो वक्त ही जाने!

राजनीति में गारंटी कार्ड - सुनने में तो अच्छा लगता है

'केजरीवाल गारंटी कार्ड' पेश करते हुए अरविंद केजरीवाल ने बताया कि सत्ता में लौटने पर कोई भी सरकारी स्कीम बंद नहीं की जाएगी - महिलाओं की ही तरह छात्रों को भी बस में मुफ्त यात्रा की सुविधा मिलेगी. ये तो माना जा सकता है कि महिलाओं की तरह स्कीम में छात्रों को जोड़ा जा सकता है.

बिजली और पानी को लेकर जो चल रहा है उसे लेकर कोई शक-शुबहे की बात नहीं है. नलों से 24 घंटे पानी भी मुहैया कराना बहुत मुश्किल वाली बात नहीं है, लेकिन यमुना को स्वच्छ और अविरल बना देने की बात नामुमकिन तो नहीं लेकिन काफी मुश्किल जरूर लगती है.

मोहल्ला क्लिनिक के जरिये इलाज की सुविधा में सुधार की बात भी ठीक है, ऐसा किया जा सकता है. शिक्षा में सुधार को लोग मान रहे हैं कि केजरीवाल सरकार ने फीस नहीं बढ़ने दी जो दिल्ली में रह रहे लोगों के लिए बहुत बड़ी राहत रही है.

लेकिन अगले पांच साल में झुग्गी में रह रहे लोगों को पक्का मकान दिये जाने का वादा गारंटी कार्ड की क्षमता से भी ज्यादा लग रहा है. साथ ही, सभी कच्ची कालोनियों में पीने के पानी, सीवर, मोहल्ला क्लिनिक और सीसीटीवी सुविधा देने का वादा भी काफी मुश्किल टास्क लगता है.

गारंटी कार्ड में दावा तो सीसीटीवी कैमरा जेटलाइट और बस मार्शल के साथ साथ मोहल्ला मार्शल की भी तैनाती को लेकर किया जा रहा है, लेकिन सीसीटीवी के पुराने वादे की स्थिति को देखते हुए फिलहाल पूरी तरह यकीन करना किसी के लिए भी मुश्किल लगता है.

kejriwal guarantee card2015 के वादों के हिसाब से गारंटी पर यकीन किया जा सकता है!

ये सवाल हो सकता है कि आखिर गारंटी कार्ड के वादे पर यकीन करने में दिक्कत क्या है?

सीधा सा जवाब है - पुराने वादे कूद कूद कर गवाही दे रहे हैं क्या क्या मुश्किल है और क्या क्या मुमकिन है?

वादे के कितने पक्के केजरीवाल

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने दिल्ली की एक रैली में कहा था - ‘केजरीवाल जी अखबारों में अपनी फोटो वाले विज्ञापन देकर बधाई देने के बजाए ये बताएं कि 5 वर्षो में कौन सा काम पूरा कर लिया है?’

रैली के सवाल का आम आदमी पार्टी ने ट्विटर पर जवाब दे दिया - जवाब में दिल्ली में चालू मौजूदा मोहल्ला क्लिनिक की पूरी लिस्ट रही. केजरीवाल सरकार के अनुसार दिल्ली में 450 मोहल्ला क्लिनिक चल रही हैं और डेंगू जैसी बीमारी पर काफी हद तक काबू पाया जा सका है. बीते वर्षों के मुकाबले कम मामले सामने आये हैं.

फिर भी कुछ ऐसी बातें हैं जो 'केजरीवाल गारंटी कार्ड' जैसी बेहतरीन चीजों पर आंख मूंद कर यकीन करने से रोक दे रही हैं -

1. अरविंद केजरीवाल लोकपाल यानी भ्रष्टाचार खत्म करने के वादे के साथ सत्ता में आये थे. आखिरी बार 2016 में केंद्र सरकार ने बिल वापस कर दिया था - लेकिन उसके बाद कहीं कोई चर्चा नहीं सुनायी दी.

2. अरविंद केजरीवाल के स्वराज बिल का भी यही हाल हुआ. दिल्ली विधानसभा में बिल पास हो गया, लेकिन उपराज्यपाल की मंजूरी नहीं मिल सकी - और वहीं ढाक के तीन पात. केजरीवाल का उनके साथियों के मुंह से अब ऐसी बातें सुनने को भी नहीं मिलतीं.

3. ऐसा ही एक लंबा चौड़ा वादा रहा दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने का. लोक सभा चुनाव के दौरान भी अरविंद केजरीवाल और उनके साथी कहा करते थे कि वोट उसे दो जो दिल्ली को पूर्ण राज्य बना देने या बनवा देने का वादा करे - चुनाव के बाद ये शब्द दोबारा शायद ही सुनने को मिला हो.

बेशक, ये दिल्ली की संवैधानिक और प्रशासनिक स्थिति के दायरे के बाहर की बात थी, लेकिन ये सलाह किसने दी कि लोगों से वादा करो जो पूरा करना संभव ही न हो.

2015 में दिल्ली में 15 लाख सीसीटीवी कैमरे (CCTV) लगाने की बातें हुई थीं. 2019 में हर विधानसभा में 4 हजार कैमरे लगाने की मुहिम चलायी गयी और जुलाई में PWD विभाग को 1.5 लाख कैमरे खरीदने के आदेश मिले थे - बाकी का अंदाजा सहज तौर पर लगाया जा सकता है.

वैसे अमित शाह ने सीसीटीवी को लेकर सवाल उठाये तो डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने उनके जनसंपर्क अभियान की तस्वीरें पेश कर दी थी - कहा, और भी हैं. पिछले चुनाव में केजरीवाल ने पूरी राजधानी में फ्री वाई-फाई सुविधा देने का भी वादा किया था - आचार संहिता लागू करने से पहले 16 अगस्त से बहुत नहीं तो कुछ कुछ देने की कोशिश तो हुई ही है.

कोई ये तो नहीं कह सकता कि अरविंद केजरीवाल की सरकार वादे की कच्ची है, लेकिन ट्रैक रिकॉर्ड बहुत ज्यादा भरोसा करने से रोक देता है. देखा जाये तो केजरीवाल सरकार ने जो भी काम किये हैं उनमें सरकारी स्कूलों में क्लास रूम और मोहल्ला क्लिनिक को छोड़ दें तो बाकी सारे आखिर के एक साल में किये गये हैं - क्योंकि शुरू के चार साल तो मंत्रियों के विवादों का बचाव करने, संसदीय सचिव बनाये गये विधायकों की सदस्यता की लड़ाई लड़ने, मानहानि के मुकदमों की पैरवी करने, उप राज्यपाल के दफ्तर में धरना देने और आधी रात को मुख्य सचिव को बुला कर पीटे जाने के आरोपों की सफाई देने में गुजर गया - वैसे बचे हुए वक्त में जो काम हुए हैं उनका माइलेज खराब तो नहीं ही कहा जा सकता.

केजरीवाल गारंटी कार्ड पर यकीन दिलाने वाली अगर कोई मजबूत चीज है तो वो है उनका बदला हुआ हाव-भाव और राजनीतिक स्टैंड. दिल्ली के मुख्यमंत्री पांच साल पहले वाले अरविंद केजरीवाल तो नहीं ही हैं - आजमाने में कोई बुराई भी नहीं है. ये वोटों की बात नहीं, सिर्फ गारंटी कार्ट पर यकीन करने की बात है.

इन्हें भी पढ़ें :

Delhi Assembly Election में ये 2 मुद्दे अरविंद केजरीवाल के लिए गले की हड्डी बन गए हैं !

AAP candidate list तो सिर्फ पेपर वर्क है - दिल्ली में लड़ाई तो कुछ और है!

केजरीवाल, दिल्ली की सत्ता और सियासी चक्रव्यूह के 7 द्वार!

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय