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Updated: 02 अक्टूबर, 2019 11:16 AM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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मोदी सरकार ने जम्मू-कश्मीर से जो धारा 370 हटाई है, अब उसे सुप्रीम कोर्ट में संवैधानिक टेस्ट से गुजरना होगा. वैसे ऐसा होने की उम्मीद पहले से ही थी. खुद मोदी सरकार को भी ये पता था कि सुप्रीम कोर्ट में उन्हें एक दिन धारा 370 को लेकर अपना बचाव करना ही पड़ेगा. मोदी सरकार द्वारा धारा 370 को हटाए जाने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हो चुकी है, जिस पर एक संवैधानिक बेंच सुनवाई कर रही है. फिलहाल तो बेंच ने केंद्र और राज्य से कहा है कि वह इस मामले में हलफनामे दायर करें और मामले को 13 नवंबर तक के लिए टाल दिया है.

मोदी सरकार को पता था कि धारा 370 हटाने, जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटने और जम्मू-कश्मीर को डाउनग्रेड कर के उसे एक पूर्ण राज्य से केंद्र शासित राज्य बनाने को लेकर कोर्ट में चुनौती का सामना करना पड़ेगा. जब 5 और 6 अगस्त को राष्ट्रपति के ऑर्डर और जम्मू-कश्मीर रीऑर्गेनाइजेशन पर संसद में बहस हो रही थी, तभी गृहमंत्री अमित शाह ने इस मामले से जुड़े सभी कानूनी पहलुओं का अध्ययन कर लिया था और वह पूरी तरह आश्वस्त थे कि ये फैसला पूरी तरह से संवैधानिक है.

धारा 370, सुप्रीम कोर्ट, मोदी सरकार, जम्मू और कश्मीरमोदी सरकार जानती थी कि धारा 370 हटाने पर उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती जरूर मिलेगी.

याचिकाकर्ताओं ने कश्मीर से धारा 370 हटाए जाने को इसकी असंवैधानिकता और संवैधानिक प्रक्रिया को लेकर चुनौती दी है. नए प्रावधान 31 अक्टूबर से लागू होंगे. संसद ने तो संविधान (जम्मू और कश्मीर) ऑर्डर, 2019 को अपनी मंजूरी भी दे दी है. इस नए प्रेसिडेंशियल ऑर्डर में आर्टिकल 370 का जिक्र होगा. यानी धारा 370 खत्म नहीं हुई है, जिसके लिए एक लंबी प्रक्रिया की जरूरत है, लेकिन जो प्रावधान किए गए हैं, उसके चलते नया प्रेसिडेंशियल ऑर्डर संविधान (जम्मू और कश्मीर) आदेश, 1954 की जगह ले लेगा.

1954 के प्रेसिडेंशियल ऑर्डर ने धारा 35ए को संविधान में जोड़ा था, जिसके तहत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा मिला और इसके नागरिकों को भी विशेष अधिकार मिले. 1954 का प्रेशिडेंशियल ऑर्डर तत्काली राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की कैबिनेट की सलाह पर जारी किया था. संसद से सलाह-मशवरा तक नहीं किया गया था. सुप्रीम कोर्ट में मोदी सरकार इस बात को अपनी ढाल बनाते हुए चुनौती का सामना करेगी.

जिसे विशेषज्ञ आर्टिकल 370 के प्रावधान की खामी कह रहे हैं, उसी के जरिए मोदी सरकार ने भाजपा और आरएसएस की तरफ से लंबे समय से आ रही मांग को पूरा करने का काम किया है. मोदी सरकार ने धारा 370(1) के तहत मिली ताकत का इस्तेमाल करते हुए धारा 367 में बदलाव कर दिया.

आपको बता दें कि धारा 367 के तहत जम्मू-कश्मीर से जुड़ा एक क्लॉज जोड़ दिया गया है. अब संशोधन के बाद जम्मू-कश्मीर की सरकार को वहां के गवर्नर की ब राबरी पर ला दिया है (अगर वहां विधानसभा भंग हो चुकी है). इतना ही नहीं, जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा (Constituent Assembly) को भी राज्य विधायिका की बराबरी में ला दिया है.

अभी तक धारा 370 में किसी भी तरह का बदलाव करने के लिए जम्मू-कश्मीर की सविंधान सभा की सहमति की जरूरत होती थी. लेकिन एक खामी का फायदा उठाने के बाद मोदी सरकार ने गवर्नर को राज्य विधायिका की बराबरी पर खड़ा कर दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट के सामने सवाल ये है कि क्या मोदी सरकार के फैसले को संवैधानिक रूप से सही है, खासकर तब जब राज्य का गवर्नर केंद्र का प्रतिनिधि है.

आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर में जून 2018 से ही केंद्र का शासन है, जब भाजपा और पीडीपी के गठबंधन की सरकार के गिरने के बाद गवर्नर रूल लागू कर दिया गया था. दिंसबर 2018 से राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था, जो अब तक चल रहा है. बहुत से लोग कहते हैं कि राज्य विधायिका के पास वो ताकत नहीं होती है, जो संविधान सभा के पास होती है. सुप्रीम कोर्ट को इस सवाल का भी जवाब देना पड़ सकता है. आपको बता दें कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को 1957 में भंग कर दिया गया था.

मोदी सरकार को इस तरह धारा 370 हटाने के लिए एक पुराने केस से भी प्रेरणा मिली हो सकती है. 1968 में सुप्रीम कोर्ट में संपत प्रकाश बनाम जम्मू-कश्मीर राज्य का मुकदमा चला था. उसमें सुप्रीम कोर्ट ने धारा 370 को लागू रखने का पक्ष लिया था और उस तर्क तो खारिज कर दिया था कि यह एक अस्थाई प्रावधान था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर की संविधान सभा को ही भंग कर दिया गया है, तो ऐसे में धारा 370 को अस्थाई प्रावधान नहीं माना जा सकता है.

2016 में भी सुप्रीम कोर्ट ने कुछ ऐसी ही टिप्पणी की थी कि धारा 370 तब तक लागू रहेगी, जब तक इसके सब-क्लॉज (3) के संदर्भ में बदलाव नहीं होती है. आपको बता दें कि मोदी सरकार ने इसी सब-क्लॉज का इस्तेमाल किया है और प्रावधान में बदलाव कर दिया है. अब सुप्रीम कोर्ट को ये फैसला करना है कि जो कुछ हुआ है वह संवैधानिक है या नहीं.

सुप्रीम कोर्ट के सामने एक और सवाल होगा कि क्या एक पूर्ण राज्य को डाउनग्रेड कर के केंद्र शासित प्रदेश बना देना संवैधानिक है या नहीं?

ऐसा पहले कभी नहीं हुआ, हां इसका उल्टा जरूर हुआ है. गोवा 1987 तक एक केंद्र शासित प्रदेश था, जिसे 1975 में पूर्ण राज्य बना दिया गया. सिक्किम एक संरक्षित राज्य हुआ करता था, जिसे 1975 में पूर्ण राज्य का दर्जा दे दिया गया. जम्मू-कश्मीर का मामला बिल्कुल यूनीक है. सुप्रीम कोर्ट को इस बात का भी जवाब देना होगा कि जम्मू-कश्मीर रीऑर्गेनाइजेशन एक्ट 2019 मनमाना तो नहीं.

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लेखक

प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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