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Updated: 19 मार्च, 2017 07:32 PM
अरविंद मिश्रा
अरविंद मिश्रा
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पहले सर्जिकल स्ट्राइक फिर विधान सभा चुनावों से ऐन पहले बड़े नोटों को बंद करने का फैसला लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मास्टर स्ट्रोक खेला था. उसके बाद प्रधानमंत्री देश का सबसे बड़ा राज्य यानी उत्तर प्रदेश की कमान योगी आदित्यनाथ को सौंप कर एक और बड़ा मास्टर स्ट्रोक खेला.

नोटों को बंद करने का फैसला तो सही मायने में मास्टर स्ट्रोक निकला लेकिन योगी आदित्यनाथ को यूपी का मुख्यमंत्री का दायित्व सौपना कितना कारगर साबित होगा ये तो आनेवाला समय ही बताएगा. लेकिन सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर बीजेपी के इतने बड़े दांव के पीछे रणनीति क्या है?

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लोकसभा 2019 की तैयारी !

आख़िरकार काफी मशक्कत के बाद योगी आदित्यनाथ को यूपी के मुख्यमंत्री का ताज सौंप दिया गया. केंद्र सरकार मई में अपने कार्यकाल का तीसरा साल पूरा कर लेगा. ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव यानी 2019 को ध्यान में रखते हुए ये फैसला लिया गया प्रतीत होता है. बीजेपी को एक ऐसे चेहरे की ज़रूरत थी जो बीजेपी के यूपी के 2014 लोकसभा के प्रदर्शन को बरकरार रखे.

उत्तर प्रदेश बीजेपी के लिए सबसे अहम इसलिए भी है क्योंकि यहां से सर्वाधिक 80 सांसद चुने जाते हैं और ऐसा माना जाता है कि केंद्र की सत्ता की चाभी भी इसी राज्य के पास होती है. पिछली बार बीजेपी ने यहां से अकेले दम पर 71 सीटें जीतकर रिकॉर्ड बनाया था. इसमें शायद और दावेदारों की तुलना में योगी आदित्यनाथ बिलकुल सही फिट हो रहे थे.

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कट्टर हिंदुत्व की छवि

योगी की छवि कट्टर हिंदुत्व ,बीजेपी के फायर ब्रान्ड नेता और पूर्वांचल के कद्दावर नेता की थी. प्रधानमंत्री मोदी का विकास का एजेंडे के साथ हिंदुत्व का घोल शायद बीजेपी की नैय्या 2019 के लोकसभा में पार लगा देगी. पहली बार साल 1998 में सबसे युवा सांसद के तौर पर चुनकर संसद पहुंचने वाले योगी आदित्यनाथ की क्षेत्र में लोकप्रियता का आलम ये है कि चुनाव दर चुनाव इनकी जीत का अंतर बढ़ता ही चला गया. गोरखपुर, बस्ती और आज़मगढ़ मंडल की कम से कम 40 सीटों पर सीधा प्रभाव रखने वाले योगी कई बार पार्टी लाइन से अलग भी जाते रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ कोई एक्शन पार्टी नहीं ले पाई.

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यही वजह है कि लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी ने योगी को साधने में कभी चूक नहीं की. उपचुनावों से लेकर आम चुनावों तक योगी बीजेपी के स्टार प्रचारक रहे और पूर्वांचल के इस संन्यासी ने पश्चिम में भी खूब जलवा बिखेरा और हर सभा में भारी भीड़ खींची और शायद जिसका नतीजा देखने को भी मिला और सम्भवतः आगे मिलते भी रहेगा.

योगी को मुख्यमंत्री बनाने के बाद पब्लिक के ज़हन से जात का वहम भी दूर हो गया. ऐसा इसलिए क्योंकि साधु का कोई जात नही होती. इससे साफ हो गया कि योगी को मुख्यमंत्री बनाने से हिंदुत्व का एजेंडा बीजेपी के लिए जारी रहेगा और मोदी का 'सबका साथ-सबका विकास" को थोड़ा झटका ज़रूर लग सकता है. लेकिन झटके से ज़्यादा पार्टी के लिए वोटों का ध्रुवीकरण होगा और इसके लिए योगी को महारथ भी हासिल है.

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मोदी का विकल्प ?

योगी आदित्यनाथ को देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री का ताज पहनाकर आरएसएस ने शायद जूनियर मोदी की तलाश अभी से ही शुरू कर दी है. इसकी ज़रूरत आरएसएस को इस लिए भी पड़ रही होगी क्योंकि प्रधानमंत्री मोदी का कद लगातार चुनाव जीतने के बाद बढ़ता ही चला गया और कुछ समय बाद वो आरएसएस का भी न सुने इसके लिए इसे एक दूसरी पंक्ति का नेता खोजकर भी पहले से रखना होगा. थोड़े समय के लिये अगर मान भी लिया जाए कि ऐसा नहीं होगा तो भी मोदी के रिटायर होने के बाद उनके स्टेचर का एक नेता तो चाहिए ही.

आदित्यनाथ का बेबाक अंदाज़ और हिन्दुत्ववादी चेहरा उनकी सियासत की सबसे बड़ी खूबी है लेकिन मुख्यमंत्री के तौर पर ये दोनों खूबियां उनके और बीजेपी के लिये कितना फायदेमंद होगा ये तो आनेवाला समय ही बताएगा. हालांकि परिणाम चाहे जो भी हो. भगवा चेहरे की ये पहचान आज यूपी के मुख्यमंत्री के ऐतिहासिक पन्नों में एक नया दस्तावेज बन कर शामिल तो अवश्य हो चुकी है.

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लेखक

अरविंद मिश्रा अरविंद मिश्रा @arvind.mishra.505523

लेखक आज तक में सीनियर प्रोड्यूसर हैं.

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