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Updated: 31 मई, 2016 04:22 PM
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बीजेपी बता तो ये रही है कि यूपी में उसका मुकाबला मुलायम सिंह यादव की पार्टी से है, न कि मायावती से. मगर, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की ताजा रणनीति पर गौर करें तो मालूम होता है कि हर कवायद के पीछे निशाने पर दलित और पिछड़ा वोट बैंक ही है.

रणनीति और तैयारी

मायावती की सत्ता में वापसी के कयासों को बल मिला पंचायत चुनावों में बीएसपी के प्रदर्शन से. सत्ताधारी समाजवादी पार्टी भी उसी हिसाब से अपनी तैयारी कर रही है.

बीजेपी के लिए असम के बाद सबसे बड़ा मिशन यूपी चुनाव ही है. बीजेपी ये तो समझ रही है कि अखिलेश सरकार को एंटी इंकम्बेंसी फैक्टर से जूझना होगा और ये बात भी मायावती की राह आसान बनाएगा. ऐसे में अगर बीजेपी भी मायावती को मुख्य प्रतिद्वंद्वी बताने लगे तो उसके खिलाफ सारी शक्तियां लामबंद हो जाएंगी. यानी वे सारे लोग जो सूबे में बीजेपी सरकार के विरोधी हैं एकजुट हो जाएंगे और उसका फायदा मायावती को मिलेगा.

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मुकाबले में मुलायम सिंह को बता कर अमित शाह एक तरह से बीएसपी के मजबूत विकल्प बनने की स्थिति को नकारने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसी हालत में अगर बीजेपी विरोधी वोटों का बंटना ही उसके लिए फायदे का सौदा होगा. इस बीच कोशिश ये भी है कि जितना भी हो सके बीजेपी मायावती के वोट बैंक में भी सेंध लगा सके. फिलहाल अमित शाह की रणनीति यही नजर आ रही है और उसी हिसाब से वो तैयारी कर रहे हैं.

समरसता स्नान

सिंहस्थ कुंभ में अमित शाह ने दलितों के साथ डुबकी तो लगाई लेकिन वैसे नहीं जैसे वो चाहते थे. पहले उनके कार्यक्रम का नाम रखा गया था - समरसता स्नान.

लेकिन इस नाम को ही लेकर विरोध होने लगा - 'कुंभ में आने वालों से कभी जाति नहीं पूछी जाती है.' शाह को समझाया गया कि इससे हिंदू समाज ही बंटा हुआ नजर आने लगेगा. जब ये बात समझ में आई तो इस स्नान का नाम बदल कर संत समागम कर दिया गया और फिर रातों रात दूसरे मठों के संतों को जुटाकर वाल्मीकि संतों और दलित लोगों के साथ सियासी डुबकी लगाई जा सकी.

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समरसता स्नान या संत समागम...

जैसे ही मायावती को शाह के दलित स्नान की भनक लगी उन्होंने सवर्ण स्नान की तैयारी शुरू कर दी. फिर मायावती ने बलिया में रसड़ा के विधायक उमाशंकर सिंह को ये टास्क पूरा करने का काम सौंपा.

उमाशंकर ने बलिया से दो स्पेशल ट्रेन बुक की जिनमें एक में 32 और दूसरे में 34 कोच लगे थे. इस स्पेशल ट्रेन से छह हजार लोगों को बलिया से उज्जैन लाया गया. ये सारे सवर्ण थे जिन्हें आर्थिक रूप से कमजोर बताया गया. उमाशंकर का कहना था कि मायावती आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों के लिए भी आरक्षण की समर्थक हैं.

समरसता भोज

दलित डुबकी के बाद अमित शाह के लिए बनारस में 31 मई को समरसता भोज का इंतजाम हुआ. इसके लिए स्थानीय बीजेपी नेताओं को एक दलित परिवार खोजने को कहा गया जहां समरसता भोज का कार्यक्रम रखा जा सके. इसके लिए वाराणसी जिले में जोगियापुर गांव को चुना गया. जोगियापुर गांव को चुनने की एक वजह ये भी हो सकती है कि ये सेवापुरी विधानसभा क्षेत्र में पड़ता है जहां से समाजवादी पार्टी के सुरेंद्र पटेल विधायक हैं.

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जोगियापुर के गिरिजा प्रसाद बिंद ने समरसता भोज के होस्ट बनाए गये. गिरिजा प्रसाद की आमदनी की जरिया मुर्गी पालन है. खाना बनाने की जिम्मेदारी परिवार की महिलाओं की रही और मीनू में पक्का नहीं बल्कि कच्चा खाना फाइनल हुआ. पक्का यानी पूड़ी पकवान और कच्चा मतलब चावल, दाल, लौकी और नेनुआ की सब्जी और छाछ.

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पक्का नहीं कच्चा भोजन...

बताते हैं कि गिरिजा प्रसाद पहले अपना दल के सपोर्टर रहे लेकिन लोक सभा चुनाव के दौरान उनके परिवार ने बीजेपी का दामन थाम लिया. लोक सभा चुनाव में अपना दल का बीजेपी के साथ गठबंधन रहा जिसकी बदौलत पार्टी को कार्यकर्ताओं की नाराजगी भी झेलनी पड़ी थी. हालांकि, इस वक्त अपना दल अंदर ही घमासान मचा हुआ है. सांसद अनुप्रिया पटेल बीजेपी के साथ हैं तो उनकी मां की अगुवाई वाला धड़ा नीतीश कुमार के साथ गठबंधन का हिस्सा बनने जा रहा है.

अब चर्चा ये होने लगी है कि बीजेपी जिसे दलित भोज के तौर पर पेश कर रही है उसके आयोजक यानी गिरिजा प्रसाद तो दलित हैं ही नहीं. मीडिया के लोगों ने जब गिरिजा प्रसाद से ये बात पूछी तो उन्होंने कहा कि वो बिंद हैं और पिछड़े वर्ग में आते हैं.

दलितों के घर राहुल गांधी के दौरे को मायावती तो नौटंकी बताती ही थी, बीजेपी भी कम शोर नहीं मचाती रही. मगर, फिलहाल अमित शाह समरसता यात्रा पर हैं. कभी समरसता स्नान तो कभी समरसता भोज. दरअसल, ये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मिशन का हिस्सा है - एक कुआं, एक मंदिर और एक श्मशान.

कहने की बात और है - लेकिन लगता है बीजेपी समाजवादी पार्टी और कांग्रेस दोनों को किनारे रख कर चल रही है और उसका पूरा फोकस हिंदुत्व के एजेंडे और मायावती के दलित वोटों पर है. बीजेपी चाहती है कि कांग्रेस उसके लिए दुधारी तलवार के तौर पर काम आए, यानी - सेक्युलर एजेंडे के तहत वो मुस्लिम वोट इतना जुटा ले कि वो न तो मुलायम के पास जाने पाए, न पूरी तरह मायावती के खाते में.

बीजेपी चाहती है कि कांग्रेस मजबूत हो, लेकिन बस इतना, जितने भर से मुलायम और मायावती को नुकसान पहुंचे - और अपनी राह अपनेआप आसान हो जाए.

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