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Updated: 10 फरवरी, 2023 05:46 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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त्रिपुरा (Tripura Election 2023) में बीजेपी नहीं चाहती कि मुकाबला त्रिकोणीय हो. वास्तव में ऐसा हुआ तो खतरा बड़ा हो सकता है. वोटों का तीन हिस्सों में बंटवारा हो सकता है. बीजेपी और लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन के अलावा टिपरा मोथा पार्टी के भी अच्छे प्रदर्शन की संभावना जतायी जा रही है.

पांच साल की सरकार के बाद सत्ता विरोधी लहर है. कर्नाटक की ही तरह बीजेपी नेतृत्व को त्रिपुरा से भी अच्छी रिपोर्ट तो नहीं ही मिली है. कर्नाटक और त्रिपुरा दोनों ही राज्यों में बीजेपी मुख्यमंत्री बदल चुकी है. हालांकि, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा और त्रिपुरा में बिप्लब देब को हटाये जाने की वजहें अलग अलग रही हैं - लेकिन न तो माणिक साहा त्रिपुरा में और न ही बसवराज बोम्मई कर्नाटक में कोई करिश्मा दिखा पाने के काबिल लग रहे हैं.

तभी तो बीजेपी के बड़े नेताओं का पूरा अमला त्रिपुरा चुनाव में कूद पड़ा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह (Amit Shah) और नॉर्थ-ईस्ट में बीजेपी के सबसे बड़े इलेक्शन मैनेजर हिमंत बिस्वा सरमा तो शुरू से ही मोर्चे पर डटे हैं, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ साथ यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जोरदार चुनाव कैंपेन कर रहे हैं.

अगर मुकाबला त्रिकोणीय न होकर दो पक्षों में ही हो तो लोगों को लगेगा कि बीजेपी के खिलाफ कोई कोई एक ही विकल्प है, तो वे उसके हिसाब से फैसला लेंगे. अगर बीजेपी को सामने से चैलेंज करने वाला विकल्प सही नहीं लगेगा तो लोग फिर से बीजेपी से ही काम चलाने का फैसला करेंगे - केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह असल में लोगों को यही बात समझाना चाहते हैं.

अमित शाह ने 2023 के अपने चुनावी दौरों की शुरुआत भी त्रिपुरा से ही की थी. और वहां पहुंचते ही लोगों को अयोध्या दर्शन का चुनावी पैकेज पेश कर दिये. राहुल गांधी का ध्यान खींचते हुए लोगों को अयोध्या में मंदिर निर्माण पूरे होने की तारीख भी बता डाली - 1 जनवरी, 2024.

अव्वल तो पूरे त्रिपुरा में लेफ्ट और कांग्रेस का गठबंधन ही बीजेपी के लिए बड़ा चैलेंज है, लेकिन आदिवासी इलाकों में शाही परिवार से आने वाले प्रद्योत देबबर्मा (Pradyot Deb Barma) की टिपरा मोथा पार्टी अपने बाकी दोनों प्रतिद्वंद्वियों की हालत खराब किये हुए है - लेकिन बीजेपी नेता अमित शाह के बयानों में प्रद्योत देबबर्मा का प्रभाव क्षेत्र बढ़ा चढ़ा कर पेश किया जाने लगा है.

अमित शाह के हाल के त्रिपुरा दौरे के बाद बीजेपी और टिपरा मोथा में ही सवाल जवाब होता देखा गया है. अमित शाह ने टिपरा मोथा पर लेफ्ट-कांग्रेस गठबंधन से अंदर ही अंदर हाथ मिलाने का आरोप लगाया तो प्रद्योत देबबर्मा ने बीजेपी को ही कई राज्यों में बी-टीम के तौर पर पेश करना शुरू कर दिया.

बीजेपी अपने पांच साल के शासन की तारीफ के साथ साथ डबल इंजन के फायदे समझा रही है, जबकि लेफ्ट और कांग्रेस गठबंधन बीजेपी के खिलाफ अपनी जंग को लोकतंत्र बचाने की लड़ाई के तौर पर पेश कर रहा है - और त्रिपुरा के पूर्व महाराज के उत्तराधिकारी प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मन का दावा है कि वो वहां के मूल आदिवासियों की लड़ाई लड़ रहे हैं.

टिपरा मोथा के जरिये प्रद्योद देबबर्मा चुनावी मैदान में आदिवासियों के लिए अलग राज्य की लड़ाई लड़ने की कोशिश कर रहे हैं. प्रद्योद देबबर्मा की ये लड़ाई 'ग्रेटर टिपरालैंड' के रूप में अलग राज्य बनाने की लड़ाई है - देखा जाये तो प्रद्योत देबबर्मा भी के. चंद्रशेखर राव और शिबू सोरेन के रास्ते पर चलते हुए राजनीति करना चाहते हैं. तेलंगाना के लिए केसीआर और झारखंड के लिए शिबू सोरेन भी ऐसी ही लड़ाइयां लड़ चुके हैं. फर्क ये है कि केसीआर और सोरेन ने आंदोलन का रास्ता अपनाया था, प्रद्योत देबबर्मा चुनावी राजनीति की मदद ले रहे हैं.

ये तो ADC यानी ऑटोनामस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल के चुनावों में मिली कामयाबी ही है जिसके बाद प्रद्योत देबबर्मा जोश से भरे हुए हैं - और वही उनके आदिवासियों के लिए अलग राज्य की मांग को मजबूत कर रहा है.

त्रिपुरा की साठ विधानसभा सीटों पर 16 फरवरी को एक ही चरण में चुनाव होना है - और वोटो की गिनती के साथ साथ नतीजे दो मार्च को आने की अपेक्षा है.

ये बी-टीम क्या होती है?

त्रिपुरा में लेफ्ट और कांग्रेस पर जोरदार हमलों के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का फोकस बदला है. अब उनके निशाने पर सीधे सीधे टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत देबबर्मा आ गये हैं. अमित शाह अब लेफ्ट और कांग्रेस को तो पूरी तरह नकार देते हैं, लेकिन टिपरा मोथा के नेता का नाम लेकर ज्यादा महत्व देने की कोशिश करते हैं.

विधानसभा चुनावों में बीजेपी की ये रणनीति अक्सर देखी गयी है कि वो मुकाबले में सामने खड़ी पार्टी की जगह किसी तीसरे नंबर की पार्टी को टारगेट पर लाने की कोशिश करती है. जैसे ही बीजेपी की तरफ से हमला बोला जाता है, तीसरे दर्जे की पार्टी रिएक्ट करती है, और फिर चर्चा में वे दो ही रह जाते हैं. मुख्य दावेदार को चर्चा में बने रहने के लिए नये हथकंडे अपनाने पड़ते हैं - अमित शाह फिलहाल त्रिपुरा में ऐसी ही कोशिश कर रहे हैं.

pradyot deb barma, amit shahशाही परिवार से आने वाले प्रद्योत देबबर्मा किंग मेकर बन पाएंगे या अमित शाह की चालों में उलझ कर रह जाएंगे?

हाल ही में अमित शाह ने टिपरा मोथा पर सीपीएम और कांग्रेस की लीग में शामिल होने का आरोप लगाया था - और देखते ही देखते टिपरा मोथा के नेता प्रद्योत देबबर्मा शुरू हो गये. बीजेपी को बीजेपी की ही भाषा में जवाब ही नहीं दिया, बल्कि बीजेपी की आसपास के राज्यों में औकात ही बताने लगे.

अमित शाह के आरोपों पर प्रद्योत देबबर्मा का कहना रहा, मैं देश के गृह मंत्री को बताना चाहता हूं कि माणिक्य कबीला किसी के सामने नहीं झुकता... और ये किसी की बी-टीम नहीं है.

प्रद्योत देबबर्मा अपने दादा महाराजा बीर बिक्रम का नाम लिये जाने से भी खासे खफा दिखे, बोले - 'मैं आपको बताना चाहता हूं... आप समझ लें कि बीर बिक्रम का पोता अपनी जमीन, अपने लोग... किसी को नहीं बेचेगा, - और फिर जोर देकर बोले, 'हम किसी की बी-टीम नहीं हैं.'

और फिर ये समझाना शुरू किया कि कैसे बीजेपी कई राज्यों में बी-टीम बनी हुई है. देबबर्मा ने समझाया कि बीजेपी नगालैंड में बी-टीम है. मेघालय, शिलॉन्ग और गारो हिल्स में बीजेपी किसी और पार्टी की बी-टीम है. बीजेपी मिजोरम में किसी और दल की बी-टीम है. तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी एआईएडीएमके की बी-टीम है.

बीजेपी से अपनी पार्टी की तुलना करते हुए प्रद्योत देबबर्मा बोले, बीजेपी कई पार्टियों की बी-टीम है... टिपरा मोथा एक छोटी पार्टी है - ये पार्टी झुकती या समझौता नहीं करती है.

कौन कौन है त्रिपुरा के मैदान में?

टिपरा मोथा ने अकेले मैदान में उतरने से पहले बीजेपी और कांग्रेस-लेफ्ट दोनों पक्षों के नेताओं से गठबंधन के लिए काफी मोलभाव किया था, लेकिन एक शर्त ऐसी रही कि कोई भी तैयार नहीं हुआ - वो शर्त रही लिखित तौर पर अगल ग्रेटर टिपरालैंड के मुद्दे पर सपोर्ट का आश्वासन.

सार्वजनिक तौर पर तो कोई भी पार्टी टिपरा मोथा के अलग राज्य का समर्थन करने को राजी नहीं हुई, लेकिन बीजेपी को छोड़ कर कोई भी राजनीतिक दल प्रद्योत देबबर्मा को खुल कर टारगेट करने की हिम्मत नहीं दिखा पा रहा है.

लिखित आश्वासन देने को भले ही राजी न हो, लेकिन कांग्रेस भी सीधे सीधे ग्रेटर टिपरालैंड की डिमांड को खारिज नहीं कर पा रही है. बीजेपी भी अब जाकर टिपरा मोथा के खिलाफ आक्रामक हुई है, पहले वो भी काफी हद तक खामोशी ही बरत रही थी - और ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस भी टिपरा मोथा की मांग से कुछ कुछ सहमत लगती है.

त्रिपुरा चुनाव को लेकर अगर सबसे पहले कोई राजनीतिक दल एक्टिव देखा गया तो वो है तृणमूल कांग्रेस. 2021 के पश्चिम बंगाल चुनावों की जीत के बाद से ही ममता बनर्जी ने अपनी टीम रवाना कर दी थी. और तब प्रशांत किशोर की टीम भी पूरे मनोयोग से जुटी हुई थी.

ममता बनर्जी और उनके भतीजे अभिषेक बनर्जी दोनों ही काफी दिनों से त्रिपुरा में टीएमसी को खड़ा करने की कोशिश कर रहे हैं. ऐसा करने के लिए वे कांग्रेस को तोड़े और सूबे की कमान सौंप दी. अब भी ममता बनर्जी और अभिषेक बनर्जी त्रिपुरा के मोर्चे पर डटे हुए हैं.

तृणमूल कांग्रेस के महासचिव अभिषेक बनर्जी लोगों से कहते फिर रहे हैं, कई साल तक आपने सीपीएम का राज देखा... वे त्रिपुरा को खत्म कर डाले - और फिर लोगों को समझाते हैं, 'अब सीएमएम के गुंडों ने ही बीजेपी की जर्सी डाल ली है.'

टिपरा मोथा की दावेदारी कितनी मजबूत है?

टिपरा मोथा ने अपने चुनाव घोषणापत्र में ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ के लिए लड़ाई लड़ने का वादा किया है. साथ ही, 20 हजार नयी नौकरियां, जनजातीय परिषद के लिए पुलिस फोर्स और आत्मसमर्पण करने वाले उग्रवादियों के लिए एकमुश्त पैकेज की भी घोषणा की है.

सत्ता में वापसी के लिए जूझ रही बीजेपी की तरफ से भी संकल्प पत्र जारी किया जा चुका है. बीजेपी का मैनिफेस्टो जारी करते हुए जेपी नड्डा ने त्रिपुरा में सरकार बनने पर मेधावी छात्राओं को स्कूटी देने की घोषणा की है. बीजेपी ने गरीबों के लिए पांच रुपये में भोजन देने की स्कीम लाने की भी बात की है.

बाकी बातें अपनी जगह हैं लेकिन ये तो है कि बीजेपी कांग्रेस और लेफ्ट के गठबंधन से भारी दबाव महसूस कर रही है. यही वजह है कि टिपरा मोथा का नाम लेकर चुनावी माहौल बीजेपी के पक्ष में करने की कवायद चल रही है.

एक तरफ नॉर्थ-ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के संयोजक हिमंत बिस्वा सरमा समझा रहे हैं कि टिपरा मोथा को एक वोट भी देने का मतलब वो वोट बर्बाद करने जैसा है - और अमित शाह समझाते हैं कि कैसे टिपरा मोथा और वाम मोर्चा के बीच गुप्त समझौता हो चुका है.

वाम मोर्चा में सीपीएम 47 सीटों पर और कांग्रेस 13 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. पूरे वक्त लेफ्ट और कांग्रेस को लड़ते देखा गया, लेकिन चुनाव आते ही दोनों ने हाथ मिला लिये. असल में और कोई चारा भी न बचा था. मीडिया से बातचीत में बीजेपी से कांग्रेस में लौट आये सुदीप रॉय बर्मन दलील दे रहे हैं कि किसी को तो बलिदान देना ही था - वैसे भी ये गठबंधन बीजेपी के सामने अस्तित्व बचाने के लिए ही हुआ है.

बातचीत में कांग्रेस नेता एक और महत्वपूर्ण जानकारी दे डालते हैं जिसके बड़े राजनीतिक मायने हैं. सुदीप रॉय बर्मन का कहना है कि चुनाव नतीजे आने के बाद टिपरा मोथा से भी गठबंधन किया जा सकता है.

कांग्रेस नेता की ये बात तो बीजेपी के पक्ष में ही जा रही है. अमित यही बात तो समझा रहे हैं. भले ही सुदीप रॉय बर्मन टिपरा मोथा के कांग्रेस के साथ ही गठबंधन का इशारा कर रहे हों, लेकिन अभी चुनावी गठबंधन में होने की वजह से दायरे में तो सीपीएम भी अपनेआप आ जाती है.

फिर तो अमित शाह जो कह रहे हैं, वो सही ही है. टिपरा मोथा 42 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. खास बात ये है कि 42 में से टिपरा मोथा के 22 उम्मीदवार गैर आदिवासी नेता हैं. त्रिपुरा में 20 सुरक्षित सीटें हैं. टिपरा मोथा की सबसे बड़ी ताकत वे सीटें हीं हैं - और अमित शाह की नजर वहीं टिकी हुई लगती है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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