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Updated: 18 फरवरी, 2016 09:14 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
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ये विडम्बना ही है कि एक तरफ अमेरिकी जेल में बंद आतंकी हेडली द्वारा 26/11 हमले की ऑनलाइन पूछताछ में भारत के समक्ष पाकिस्तान पोषित आतंकवाद की पोल खोली जा रही थी, तो वहीँ दूसरी तरफ अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद से लड़ाई के नाम पर अमेरिकी वायुसेना द्वारा इस्तेमाल किया जाने वाला एफ-16 जैसा अत्याधुनिक लड़ाकू विमान देने की कवायद कर रहा था.

यह लड़ाकू विमान पाकिस्तान को बेचे जाने के प्रस्ताव का अमेरिकी रिपब्लिकन और डेमोक्रेटिक दोनों दलों के प्रभावशाली सांसदों द्वारा विरोध किया गया तथा इधर भारत ने भी अमेरिकी राजदूत रिचर्ड वर्मा को तलब कर इस सम्बन्ध में अपनी नाखुशी जाहिर की, लेकिन इन सब विरोधों को नज़रंदाज़ कर ओबामा प्रशासन ने इस प्रस्ताव को आगे बढ़ा दिया.

इस सम्बन्ध में अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कांग्रेस को अधिसूचित किया है कि वह पाकिस्तान सरकार को एफ-16 ब्लॉक 52 विमान, उपकरण, प्रशिक्षण और साजो सामान से जुड़ी संभावित विदेशी सैन्य बिक्री करने को मंजूरी दे रहा है. हालांकि  अभी यह प्रस्ताव कांग्रेस के पास जाएगा और वहां से मंजूरी के बाद ही आगे बढ़ सकेगा. कांग्रेस की आपत्ति की स्थिति में प्रक्रियाएं बेहद जटिल हो जाएंगी और मामला लम्बा खींचने की स्थिति में आ जाएगा.

अतः कह सकते हैं कि प्रक्रियाओं के दृष्टिकोण से पाकिस्तान को अभी यह विमान बेचने का रास्ता ओबामा प्रशासन के लिए साफ़ नहीं हुआ है लेकिन, यहाँ सवाल विमानों के बिकने से अधिक अमेरिका की नीयत का है. सवाल यह कि अमेरिका के सामने जब अनेक माध्यमों से यह बात आती रही है और अमेरिका खुद कई दफे इस बात को स्वीकार भी चुका है कि पाकिस्तान आतंकवाद के नाम पर मिल रही अमेरिकी मदद का इस्तेमाल आतंकियों के संरक्षण और संवर्द्धन तथा भारत विरोधी अभियानों में करता है, इसके बावजूद वह पाकिस्तान को एफ-16 जैसा अत्याधुनिक विमान देने का फैसला कैसे कर सकता है?

सामरिक विशेषज्ञों का मत है कि आम तौर पर एफ-16 को आतंकवाद से लड़ाई के लिए प्रयोग भी नहीं किया जाता है, इसका प्रयोग विशेष रूप से दो देशों के बीच होने वाले युद्धों में ही होता है. फिर इस विमान का पाकिस्तान की आतंक विरोधी लड़ाई में क्या काम जो ओबामा प्रशासन अपने सांसदों के विरोध को नज़रन्दाज करके भी यह विमान पाकिस्तान को देने पर अड़ा हुआ है ? ये प्रश्न कहीं न कहीं आतंकवाद के विरुद्ध लड़ाई में अमेरिकी निष्ठा पर गहरे सवाल खड़े करते हैं और अमेरिका पर लगने वाले इस पुराने आरोप को बल देते हैं कि अमेरिका की आतंकवाद से लड़ाई सिर्फ एक नूरा-कुश्ती ही है, जिसके तहत पहले वो आतंकी पैदा करता है, उनका पोषण करता है और फिर जब वे उसे ही चुनौती देने लगते हैं तो उन्हें मिटा देता है.

एक तथ्य यह भी गौर करने लायक है कि अभी भारतीय गणतंत्र दिवस के अवसर पर जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति फ्रांसवा ओलांद भारत आए थे तो भारत और फ़्रांस के बीच राफेल जैसे अत्याधुनिक लड़ाकू विमान जो फ्रांसीसी सेना द्वारा इस्तेमाल किए जाते हैं, की खरीद के समझौते पर हस्ताक्षर हुए थे. इस समझौते के तहत फ़्रांस से भारत को 126 राफेल विमान मिलने हैं जो कुछ प्रक्रियाओं के बाद मिल जाएंगे.

यूँ तो अभी भी भारतीय वायुसेना के समक्ष पाकिस्तानी वायुसेना कहीं नहीं ठहरती, तिसपर राफेल के भारतीय वायुसेना में शामिल होने के बाद तो भारतीय वायुसेना की ताकत और बढ़ जाएगी. अब चूंकि, भारत ने ऐसे अत्याधुनिक विमानों की खरीद के लिए रूस और अमेरिका को छोड़ फ्रांस को चुना तो पूरी संभावना है कि अमेरिका द्वारा पाकिस्तान को एफ-16 बेचने के निर्णय के जरिये कहीं न कहीं भारत के राफेल का जवाब देने की भी एक कोशिश की गई है. तभी तो वहां की सरकार अपने सांसदों के विरोध तक को नज़रंदाज़ कर रही है, अन्यथा पाकिस्तान को मदद देना ऐसा कोई विषय नहीं है जिसको टाला या परिवर्तित न किया जा सके. लेकिन ऐसा किया जा रहा है तो इसके पीछे कहीं न कहीं अमेरिका द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से भारत को यह सन्देश देने या ब्लैकमेल करने की कोशिश है कि अगर तुम हमारी साझीदारी नहीं चुनोगे तो हम पाकिस्तान को साझीदार बना लेंगे.

दरअसल शुरूआती समय में भारत का केवल एक रक्षा सहयोगी था- रूस. मनमोहन सरकार के कार्यकाल में इस स्थिति में परिवर्तन आया और रूस के साथ अमेरिका भी भारत की प्राथमिकता में आ गया. हालांकि इस अवधी में अमेरिका से भारत ने अधिकांशतः सिर्फ कागज़ी समझौते ही किए, जमीन पर उसे अमेरिका से कोई विशेष लाभ नहीं मिला.  लेकिन वर्ष 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद जब देश का नेतृत्व बदला तो धीरे-धीरे नीति में भी परिवर्तन आया. अब भारत रक्षा सहयोग के मामले में रूस और अमेरिका तक केन्द्रित रहने की बजाय बहुविकल्पीय नीति पर चलने लगा है. अब उसने फ़्रांस, इजरायल, आदि देशों की तरफ भी अपना ध्यान केन्द्रित किया है. निष्कर्ष यह कि अब भारत कई राष्ट्रों से रक्षा सहयोग लेने लगा है.

अब भारत जैसे बड़े बाजार से अपने अधिकार में कमी आने की  बात अमेरिका को निश्चित ही खटक रही होगी जिसे भारत-फ्रांस के हालिया राफेल समझौते ने और बढ़ा दिया. परिणाम यह हुआ कि वो तमाम विरोधों के बावजूद पाकिस्तान को एफ-१६ बेचने पर उतारू है.

स्पष्ट है कि यह काफी हद तक व्यापारिक हितों का मामला है. लेकिन अपनी इस अप्रत्यक्ष हठधर्मिता के अन्धोत्साह में अमेरिका संभवतः यह नहीं समझ पा रहा कि उसकी ये गतिविधियाँ और कुछ करें न करें, पर दक्षिण एशिया में हथियारों की होड़ का माहौल ज़रूर पैदा करेंगी. अगर उसे लगता है कि पाकिस्तान को एफ-16 देकर वो उसे भारत के बराबर शक्तिशाली बना देगा या भारत को इससे अपनी तरफ झुका लेगा तो वो बड़े मुगालते में है. उसे समझना होगा कि अब भारत पहले की तरह दूसरों पर निर्भर रहने वाली स्थिति से बाहर आकर एक सशक्त और समर्थ राष्ट्र बन चुका है और वो अब अगर किसी को दबाएगा नहीं तो किसीसे दबेगा भी नहीं. रही बात पाकिस्तान की तो वो भारत के समक्ष सामजिक, आर्थिक और राजनीतिक  से लेकर सैन्य व्यवस्था तक किसी भी स्तर पर कहीं नहीं ठहरता. इसलिए पाकिस्तान को ताकत देकर अमेरिका सिर्फ और सिर्फ दक्षिण एशिया का माहौल और अपनी छवि ही ख़राब करेगा. इससे सीधे-सीधे भारत को कोई समस्या नहीं होने वाली है.

इस स्थिति के मद्देनज़र भारत को भी चाहिए कि वो अबसे पाकिस्तान पोषित आतंकवाद के सम्बन्ध में अमेरिका से शिकायत करने की नीति को ख़त्म करे. निश्चित ही मोदी सरकार के आने के बाद से पाकिस्तान के सम्बन्ध में भारत की अमेरिका परस्ती में कमी  आई है, लेकिन उचित होगा कि इसे पूरी तरह से ख़त्म किया जाय. भारत, पाकिस्तान और उसके आतंकवाद दोनों से निपटने में खुद ही सक्षम है, इसलिए उसकी शिकायतें अमेरिका से करना बंद करे और अपने स्तर पर जो कर सकता है, कार्रवाई करे.

भारत की अमेरिका सम्बन्धी नीति यह हो कि अमेरिका को पाक तथा रक्षा सहयोग के सम्बन्ध में किसी भी विषय में आवश्यकता से अधिक महत्व न दिया जाय. भारत के पास आज रक्षा सहयोगियों की कोई कमी नहीं है, इसलिए इस सम्बन्ध में अमेरिका को कोई विशेष तवज्जो न दे. भारत इस नीति पर चले तो अमेरिका खुद अपनी सारी अकड़ भूल भारत की तरफ आएगा क्योंकि, भारत का बाजार उसकी जरूरत है और इसे वो छोड़ नहीं सकता.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

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