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Updated: 18 मई, 2016 04:15 PM
अनूप श्रीवास्तव
अनूप श्रीवास्तव
  @anup.srivastava.798
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अमर सिंह भले ही समाजवादी पार्टी में न हो, लेकिन मुलायम सिंह के दिल में हैं, यह साबित हो गया. आजम खां तथा राम गोपाल के विरोध के बाद भी अमर सिंह समाजवादी पार्टी से राज्यसभा का टिकट मिला. समाजवादी पार्टी के चुनाव प्रभारी तथा महासचिव शिवपाल यादव ने राज्यसभा तथा विधान परिषद उम्मीदवारों की आधिकारिक घोषणा की. शिवपाल यादव ने कहा कि अमर सिंह को लेकर पार्टी में कोई मतभेद नहीं है.

उन्होंने कहा कि मैं संसदीय दल की बैठक में मौजूद था. वहां पर अमर सिंह के नाम को लेकर कोई विवाद नहीं हुआ. इसी के साथ बेनी प्रसाद वर्मा के साथ ही अमर सिंह भी भी छह वर्ष बाद समाजवादी पार्टी में वापसी वापसी हो गई है.

राजनीति में दोस्ती और दुश्मनी की भंगुरता की वाली कहावत बहुत आम है. दो साल से जारी चर्चाओं पर विराम लगाते हुए समाजवादी पार्टी ने मंगलवार को अमर सिंह को अपना लिया. पार्टी ने उन्हें एक बार फिर से राज्यसभा का टिकट थमाया है. इसकी घोषणा खुद सपा अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई और उत्तर प्रदेश के कैबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने की. हालांकि अमर सिंह अभी भी समाजवादी पार्टी के पूर्णकालिक सदस्य नहीं बने हैं.

अमर सिंह चौथी बार बनेगें राज्यसभा सांसद

अमर सिंह को मुलायम सिंह ने 6 साल पहले 2010 में पार्टी से निकाल दिया था. लेकिन मुलायम ने सबको चौंकाते हुए एक बार फिर उन्हें पार्टी में एंट्री दी है. समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा के लिए कुल 7 नामों का ऐलान किया है. अगले साल यूपी चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी ने अमर सिंह को शामिल कर उनकी अहमियत बता दी है. अमर सिंह चौथी बार राज्यसभा सांसद बनेंगे. अमर सिंह को पहली बार 1996 में समाजवादी पार्टी ने राज्यसभा सांसद बनाया था. मुलायम सिंह के करीबी माने जाने वाले अमर सिंह को 2002 और 2008 में भी राज्यसभा भेजा गया. 2008 में जब न्यूक्लियर डील के मुद्दे पर लेफ्ट यूपीए सरकार से अलग हुआ तब अमर सिंह की वजह से ही समाजवादी पार्टी ने यूपीए की सरकार बचाई.

2010 में आजम खान से विवाद पर मुलायम ने अमर सिंह को पार्टी से निकाल दिया था. इसके बाद अमर सिंह ने लोकमंच नाम की पार्टी बनाई और 2012 का विधानसभा चुनाव लड़ा. लेकिन उनकी पार्टी कोई सीट नहीं जीत पाई. इसके बाद वो लोक दल में शामिल हुए और 2014 में लोकसभा चुनाव लड़ा लेकिन वहां भी हार गए. 2014 में राज्यसभा की सदस्यता खत्म होने के बाद उन्होंने संन्यास का ऐलान किया था. समाजवादी पार्टी राज्य सभा में कांग्रेस और बीजेपी के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है.

1995 में बनी अमर-मुलायम की जोड़ीः

समाजवादी पार्टी में कॉ़रपोरेट कल्चर लाने और बॉलीवुड नेताओं की एंट्री का श्रेय अमर सिंह को जाता है शख्सियत, पैसे, बॉलीवुड और अपने संपर्कों के लिए मशहूर अमर सिंह 1995 में मुलायम के करीब आए थे. एक साल के भीतर दोनों नेताओं के बीच इतने मधुर संबंध हो गए कि अमर सिंह को राज्यसभा भेज दिया गया. इसके बाद 2002 और 2008 में भी वे राज्यसभा के लिए चुने गए. अमर सिंह खुद को मुलायम का छोटा भाई और सेवक बताते रहे हैं. कई बार वह खुद को हनुमान और मुलायम को राम बता चुके हैं.

दोनों एक दूसरे के जरूरतमंद, हो सकता है फंड का फायदाः

अमर सिंह की इस वापसी के बाद अब मुलायम सिंह को परिवार और पार्टी में एकजुटता बनाए रखनी होगी. उत्तर प्रदेश में आजम खान और अमर सिंह के बीच सालों से चल रही वर्चस्व की लड़ाई अभी थमी नहीं है. दोनों नेता सार्वजनिक मंचों पर एक-दूसरे के खिलाफ बयान देने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं. अगर अमर सिंह को दिल्ली की राजनीति की बागडोर सौंपी जाती हैं यहां उनका टकराव रामगोपाल यादव से होगा. इस सब के बीच लखनऊ के गलियारों में जो चर्चा है उसके मुताबिक जितनी जरूरत अमर सिंह को सपा की है उतनी ही बड़ी जरूरत अमर सिंह भी सपा के लिए बन गए हैं.

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2010 में पार्टी से निकाले जाने के छह साल बाद सपा ने अमर सिंह को राज्यसभा का टिकट देकर पार्टी में वापसी तय कर दी है

दिल्ली में रहकर वो जिस तरह से उद्योगपतियों, पूंजीपतियों को सपा के पक्ष में साधने का आर्थिक काम करते थे, उनके जाने के बाद से दिल्ली में वह स्थान रिक्त ही पड़ा रहा. चुनावों के समय अक्सर सपा को उनकी याद आती रही. लेकिन अंदरूनी दबाव के कारण मुलायम सिंह चाहकर भी उन्हें जोड़ने से हिचकते रहे. जानकारों के मुताबिक लोकसभा चुनावों में सपा की खराब हालत की एक वजह उसका आर्थिक रूप से कमजोर होना भी था. खैर अब देखना होगा कि अमर सिंह की वापसी से सपा को 2017 विधानसभा चुनाव में कितना फायदा साबित होगा.

अमर सिंह की वापसी को आजम खान ने बताया दुखद प्रकरणः

अमर सिंह के सपा में वापस आने पर उनके धुर विरोधी कहे जाने वाले आजम खान ने पार्टी में उनकी वापसी को दुखद प्रकरण बताया है आजम ने कहा है कि मुलायम पार्टी के मालिक हैं और उनके फैसले के आगे किसी का कोई अधिकार नहीं बनता है. अब इसे आजम की नारजगी कहे या कुछ और लेकिन अमर के पार्टी में वापसी और राज्यसभा भेजे जाने के बाद आजम रामपुर पहुच गए जहां आजम ने कहा कि जहां तक इस मामले को मैं समझता हूँ कि ये एक दुखद प्रकरण है. लेकिन नेता जी पार्टी के मालिक हैं. लिहाजा मालिक के फैसले के आगे  किसी का कोई अधिकार नहीं बनता है. 

जब उनसे वापसी के बारे में पूछा गया तो उनका कहना था अब इतना तो मैं नहीं कह सकता लेकिन बरहाल ज़िक्र अच्छा नहीं हो रहा है  इसके बाद आजम से पूछा गया की अमर की वापसी पर उनका स्टैण्ड क्या रहेगा इसका जवाब देते हुए आजम बोले की पार्लियमेंट्री बोर्ड में अपनी-अपनी बात सुनने दो इसलिए हम कह रहे है. ये दुखद प्रकरण है. लेकिन क्योंकि नेता जी राष्ट्रीय अध्यक्ष है इसलिए मालिक के फैसले को चुनौती नहीं दी जा सकती है.

अमर सिंह पर एक नजरः

अमर सिंह समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ सदस्य एवं महासचिव रह चुके है. उन्होंने कोलकाता के सेंट ज़ेवियर्स कॉलेज एंड यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ लॉ से बीए, एलएलबी की शिक्षा प्राप्त की है. अमर सिंह के परिवार में पत्नी पंकजा कुमारी सिंह और दो पुत्रियां हैं. भारतीय राजनीति में अमर सिंह उस समय बुलंदी पर थे, जब यूपीए सरकार के अमेरिका के साथ प्रस्तावित परमाणु समझौते के कारण भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने अपना समर्थन वापस ले लिया था और सरकार अल्पमत में आ गई थी. उस समय अमर सिंह ने ही मुलायम सिंह यादव को समर्थन देने के लिए राजी किया था.

2010 में गिरी अमर सिंह पर गाजः

नवंबर, 2009 में फिरोजाबाद उपचुनाव में सपा की हुई हार को लेकर यादव परिवार और अमर सिंह में अनबन शुरू हुई. इस चुनाव में मुलायम सिंह ने अपनी बहू डिंपल यादव को टिकट दिया था. हार के बाद अमर सिंह ने कहा था कि सपा को उसका अतिविश्वास ले डूबा. जनवरी, 2010 में अमर सिंह ने महासचिव समेत पार्टी के तीन पदों से यह कहते हुए इस्तीफा दे दिया था कि अब वो अपने स्वास्थ्य का ख्याल रखना चाहते हैं. हालांकि उस समय कहा गया कि सिंह पार्टी में अपने घटते हुए कद से नाराज थे. दस दिनों तक इस्तीफे पर चुप रहने वाले मुलायम ने बाद में उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया.

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अमर सिंह के धुर विरोधी रहे सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान अमर सिंह की वापसी से नाखुश हैं

राष्ट्रीय लोकमंच पार्टी का गठनः

अमर सिंह ने 6 जनवरी 2010 को समाजवादी पार्टी के सभी पदों से इस्तीफा दे दिया था. 2 फरवरी 2010 को सपा प्रमुख मुलायम ने उन्हें पार्टी से बर्खास्त कर दिया. अमर सिंह कुछ दिनों तक राजनीतिक रूप से निष्क्रिय थे, लेकिन कुछ ही दिनों बाद उन्होंने अपनी पार्टी बना ली और उसका नाम रखा 'राष्ट्रीय लोक मंच ' लेकिन यह पार्टी भी अमर सिंह का राजनीतिक वसंत नहीं लौटा सकी.

निकाले जाने पर अमर ने कहा था कि सपा एक पहिये की हो गई हैः

13 फरवरी 2012 को को अमर सिंह ने अपने चंदौली दौरे पर सपा से अपने निकाले जाने को कहा था कि सपा अब एक पहिये की हो गई है. और एक पहिये की सायकिल सड़क पर नहीं बल्कि सर्कस में चलती है. हालांकि वह इस दौरान अपने फ्यूचर प्लान के बारे में अमर सिंह का साफ़ कहना था की पूर्वांचल की ग़ुरबत के लिए सियासत करना है. पूर्वांचल उनका मुद्दा है. गौरतलब है कि अमर सिंह ने जंहा एक ओर अपने निकाले जाने को लेकर कहा था कि सपा अब एक पहिये की हो गई है. तो अब सपा में शामिल होने पर दो पहिये की साइकिल माना जा रहा है.

लोकसभा चुनाव से पहले राष्ट्रीय लोकदल में शामिलः

आम चुनाव 2014 से ठीक पहले अमर सिंह और अभिनेत्री जया प्रदा अजीत सिंह की पार्टी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) में शामिल हो गए थे. सिंह फतेहपुर सीकरी से चुनाव लड़े और बुरी तरह हार गए. जया प्रदा ने मुरादाबाद से चुनाव लड़ा था और उन्हें भी हार का सामना करना पड़ा.

'कैश फॉर वोट' कांड में अमर सिंह को खानी पड़ी थी जेल की हवाः

अमर सिंह पर भ्रष्टाचार के कई बड़े मामले भी चल रहे हैं. नवंबर 1996 में वह राज्यसभा के सदस्य मनोनीत हुए. 2008 में मनमोहन सरकार के विश्वास मत हासिल करने की बहस के दौरान अमर सिंह, सुधींद्र कुलकर्णी, बीजेपी के दो सांसदों और दो अन्य को दिल्ली की एक अदालत ने 2008 के वोट के बदले नोट मामले में आरोप मुक्त कर दिया. गौरतलब है कि इस दौरान संसद में एक करोड़ रुपए के नोटों की गड्डियां दिखाई गई थीं. सांसदों ने आरोप लगाया कि मनमोहन सरकार ने अमरसिंह के माध्यम से उनके वोट खरीदने की कोशिश की थी. छह सितंबर 2011 को अमर सिंह भाजपा के दो सांसदों के साथ तिहाड़ जेल भेजे गए. 'कैश फॉर वोट' कांड में अमर सिंह को जेल की हवा भी खानी पड़ी. हालांकि, इस मामले में दिल्ली की एक अदालत ने उन्हें नवंबर, 2013 में क्लीन चिट दे दी थी.

अमर और मुलायम के बीच 2014 में जमी बर्फ में पिघलाने की कोशिशः

14 साल तक सपा में रहे 62 वर्षीय अमर सिंह को 2010 में पार्टी से निकाल दिया गया था. इसके बाद करीब चार साल तक अमर सिंह सपा और मुलायम से दूर-दूर रहे. अगस्त, 2014 में धीरे-धीरे रिश्तों पर जमी बर्फ को पिघलाने की कवायद देखने को मिली. इसके साथ ही अटकलों का दौर शुरू हो गया था कि अमर सिंह अब या तब सपा में शामिल हो सकते हैं. इन अटकलों के साथ ही यादव परिवार के भीतर जारी खींचतान भी सतह पर आने लगी.

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अमर सिंह और मुलायम के रिश्तों पर जर्मी बर्फ 2014 से ही पिघलने लगी थी

अमर सिंह की वापसी पर आजम और रामगोपाल ने दर्ज कराई नाराजगीः

2012 में उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से कुछ महीने पहले अमर सिंह की वापसी की खबरें अंधड़ की तरह उठी थी लेकिन राज्यसभा सांसद और मुलायम के भाई रामगोपाल यादव और कैबिनेट मंत्री आजम खान दोनों ने मिलकर अंधड़ पर ठंडा पानी डाल दिया. अमर सिंह रह गए. मंगलवार को हुई सपा की संसदीय दल की बैठक में एक बार फिर से दोनों नेताओं ने अपनी नाराजगी भी दर्ज कराई. हालांकि, इस मुद्दे पर उन्हें मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और शिवपाल सिंह यादव का साथ नहीं मिला.

अमर के चलते कई नेताओं ने पार्टी छोड़ाः

मुलायम सिंह यादव ने राममनोहर लोहिया के आदर्शों पर 1992 में समाजवादी पार्टी का गठन किया था. 1997 में केंद्र में मुलायम सिंह रक्षा मंत्री के पद पर थे और उस समय लखनऊ में समाजवादी पार्टी कार्यकारिणी की बैठक एक पांच सितारा होटल में आयोजित की गई. समाजवादी पार्टी में कारपोरेट कल्चर लाने और बॉलीवुड नेताओं की एंट्री का श्रेय अमर सिंह को जाता है. दबी जुबान में नेता कहने लगे थे कि अमर सिंह ने नेताजी को बिगाड़ दिया. धीरे-धीरे समाजवादी पार्टी के कई वरिष्ठ नेता अमर सिंह की कार्यप्रणाली के चलते खफा होकर पार्टी छोड़ने लगे. इसमें राजबब्बर, बेनी प्रसाद वर्मा, आजम खान जैसे दिग्गज समाजवादी नेता शामिल थे. अमर सिंह के चलते मोहन सिंह और जनेश्वर मिश्रा जैसे दिग्गज नेता पार्टी में हाशिए पर चले गए थे.

अमर सिंह को लेकर मुलायम ने दिया था बयानः

मुलायम के खुद के कुछ बयान  सामने आये थे अमर सिंह के लिए जरूर फायदे के रहे हैं अभी कुछ दिन पहले जब  सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने  इटावा में कहा- पूर्व सांसद अमर सिंह भले ही उनके दल में नहीं हैं, लेकिन उनके दिल में बसे हुए हैं. पार्टी ने तो उन्हें निकाल दिया था, पर दिल से कभी बाहर नहीं किया. उनके रिश्ते कभी खराब नहीं हुए आज भी पहले जैसे रिश्ते हैं.

साथ साथ दिखने लगे थे अमर-मुलायमः

मुलायम सिंह और अमर की नजदीकियां पिछले काफी समय से देखी जा रही हैं और कई कार्यक्रमों में अमर मुलायम के साथ नजर आ रहे थे. मुलायम के घर में हुए शादी समारोह में भी अमर सिंह ने बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था इतना ही नहीं इससे पहले मुलायम सिंह के जन्मदिन पर भी शिवपाल साथ साथ नजर आये थे इस बीच कयास भी लगाये जा रहे थे की जल्द ही अमर की सपा में वापसी हो सकती है.

लेखक

अनूप श्रीवास्तव अनूप श्रीवास्तव @anup.srivastava.798

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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