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Updated: 10 नवम्बर, 2015 06:45 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था - लालू प्रसाद अपने बेटों को सेट करना चाहते हैं. लालू उन्हें सफलतापूर्वक सेटल कर चुके हैं - जिनमें से एक के डिप्टी सीएम बनने की भी अटकलें हैं. लालू की तकलीफ दूसरी है - मोदी ने उन्हें अलग से विश नहीं दी और उन्हें नीतीश वाली बधाई में से शेयर करना पड़ा. खैर, ये बातें बीत चुकी हैं. अब लालू लालटेन लेकर बनारस जाने वाले हैं - और उसके बाद पूरा देश.

क्या है महागठबंधन की अगली मंजिल

विधानसभा चुनाव तो यूपी में भी होंगे लेकिन अभी उसमें काफी वक्त है. यूपी में विधानसभा चुनाव 2017 में होने वाले हैं.

तो क्या यूपी चुनाव में लालू वैसी ही राजनीति करेंगे जैसी मुलायम सिंह यादव ने हाल फिलहाल बिहार में की.

नहीं. क्या इसलिए कि रिश्तेदारी में मुलायम लड़के वाले हैं और लालू लड़की वाले? बिलकुल नहीं.

मैदान में मुलायम के अलग से उतरने का बिहार में भले ही कोई असर न हुआ हो, लेकिन अगर वही हरकत यूपी में लालू करें तो उसका सीधा फायदा बीजेपी को मिलेगा - और लालू ऐसा कतई नहीं होने देंगे.

उत्तर प्रदेश में मुलायम के बेटे अखिलेश यादव मुख्यमंत्री हैं. विधानसभा की 403 सीटों में से 224 सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के पास है. इनमें 80 सीटें मायावती के पास हैं जो सत्ता में वापसी के लिए संघर्ष कर रही हैं. पिछली बार यूपी में कांग्रेस और अजीत सिंह की आरएलडी साथ चुनाव लड़े थे और उन्हें 37 सीटें मिली थीं. अगली बार कांग्रेस का रुख देखना होगा. यूपी विधानसभा में बीजेपी के 47 विधायक हैं.

दिल्ली और बिहार की हार के बीच पंचायत चुनावों से बीजेपी को अच्छी खबरें मिलीं - दिल्ली गंवाने के दो दिन बाद ही असम के कुल 743 वार्डों में से बीजेपी ने 340 वार्ड अपने नाम किए. इनमें कांग्रेस के खाते में 232 और असम गण परिषद को 39 सीटें मिलीं. इस तरह राज्य के 74 नगरपालिका बोर्ड और समितियों में से बीजेपी को 30 पर जीत मिली, जबकि कांग्रेस को 17 और एजीपी को 17 सीटें मिलीं. 2009 में हुए निकाय चुनाव में कांग्रेस को 400 से ज्यादा वार्डों में कामयाबी मिली थी.

बिहार चुनाव के नतीजे आने से पहले बनारस को छोड़कर बीजेपी को मध्य प्रदेश और राजस्थान में जबरदस्त कामयाबी मिली थी. बनारस में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में आने वाले इलाकों में बीजेपी को 48 में से 40 सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा.

बनारस के बाद लालू कहां जाएंगे - अभी ये नहीं बताया है. फिर भी समझा जा सकता है पहले वो उन्हीं इलाकों में जाएंगे जहां विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं. एक महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हर जगह अगले पोल-खोल करेंगे या फिर महागठबंधन के बाकी लोग भी होंगे?

केरल पहले, मगर जोर असम पर

यूपी से पहले 2016 में पांच राज्यों - केरल, असम, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुड्डूचेरी में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं.

केरल में हुए हाल के स्थानीय निकाय चुनावों में बीजेपी का प्रदर्शन काफी अच्छा रहा है. 140 सीटों वाली केरल विधानसभा में यूडीएफ 72 सीटों के साथ सत्ता में है जबकि विपक्षी एलडीएफ के पास 68 सीटें हैं. अब बीजेपी अपने लिए जगह बनाने में जुटी है.

अहम तो पश्चिम बंगाल भी है लेकिन उससे पहले हर किसी की नजर असम पर होगी. सत्ताधारी कांग्रेस के साथ साथ असम बीजेपी के लिए भी काफी अहम हो गया है. असम विधानसभा की 126 सीटें हैं जहां 78 सीटों के साथ कांग्रेस सत्ता में है, लेकिन उसके 9 विधायक अब बीजेपी का दामन थाम चुके हैं. असम गण परिषद सांसद पद्म हजारिका भी बीजेपी में शामिल हो चुके हैं.

असम में बीजेपी जहां सत्ता पर कब्जा जमाने में लगातार लगी हुई है, वहीं पर कांग्रेस के लिए सत्ता बचाए रखने की चुनौती है. अब इसमें महागठबंधन की कितनी भूमिका होगी, ये देखना होगा. वैसे असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई का कहना है कि नीतीश कुमार और लालू कांग्रेस के लिए चुनाव प्रचार कर सकते हैं.

पश्चिम बंगाल में पिछली बार टीएमसी और कांग्रेस गठबंधन साथ चुनाव लड़ा था, जहां उसके पास 294 में से 226 सीटें हैं. बीते महीनों में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह जहां काफी सक्रिय रहे हैं वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी खास दिलचस्पी ले रहे हैं.

ममता के साथ कहीं हां कभी ना के दौर दिल्ली-कोलकाता एक किए हुए है.

चुनाव तो तमिलनाडु और पुड्डूचेरी में भी होने वाले हैं. कांग्रेस और डीएमके के रिश्तों की डोर जहां कमजोर पड़ चुकी है, वहां बीजेपी और जयललिता की बढ़ती नजदीकियां अक्सर चर्चा में रही हैं. नए दौर में नए समीकरण बनेंगे. कहीं फासले कम होंगे कहीं ज्यादा.

बीजेपी बदलेगी रणनीति

बीजेपी का कहना है कि मोहन भागवत के बयान का बिहार चुनाव पर कोई असर नहीं रहा. बिहार चुनाव कवर करनेवाले कई पत्रकारों ने टीवी डिबेट में इस बात की पुष्टि भी की है. चुनाव के दौरान कई गांवों का दौरा करनेवाले पत्रकारों का तो यहां तक कहना था कि बहुतों को तो भागवत का नाम भी नहीं मालूम था - उनकी बात उन तक पहुंचना तो दूर की बात होगी. बयानों की चर्चा दिल्ली और पटना के अलावा बिहार के कुछ ही इलाकों तक सीमित रही होगी.

इन सबके बीच बीजेपी के वरिष्ठ नेता हुकुमदेव नारायण यादव का आकलन सबसे सटीक लग रहा है. यादव कहते हैं, "लोग बिहार की जमीन के बारे में नहीं जानते. बिहार के लोग आर्थिक असमानता से ज्यादा सामाजिक असमानता के खिलाफ लड़ते रहे हैं. इन लोगों ने लालू यादव के 'जंगलराज' और ऊंची जातियों के 'आतंकराज' को देखा है. लालू लोगों को यह समझाने में कामयाब रहे कि अगर आतंकराज आ गया तो आपका सब कुछ छिन जाएगा. आप लोगों को एक बार फिर गुलाम बना लिया जाएगा.

आरएसएस प्रमुख भागवत ने बीजेपी को अब संयम बरतने की सलाह दी है. सांप्रदायिकता के नाम पर शोर-शराबे से भी बाज आने की अमित शाह को हिदायत मिली है.

"पार्टी सामूहिक रूप से जीतती है, सामूहिक रूप से हारती है." अरुण जेटली ने फौरन ही ये बात साफ कर दी थी. इसी को हार की जिम्मेदारी लेना या देना कहते हैं. जिम्मेदारी को लेकर बड़े नेताओं पर गाज सिर्फ इतना ही गिरता है. बाकियों की बात अलग है. मंत्रियों की बात और हो सकती है. उनका वहां होना या कहीं न होना औरों की किस्मत और अपने कनेक्शन पर निर्भर करता है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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