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Updated: 09 फरवरी, 2016 06:34 PM
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विरोधी भले ही कहें कि लालू ने बेटों को सेट कर दिया, ये उनका हक है. तेजस्वी को तो नहीं, लेकिन तेज प्रताप को लेकर तो यही लगता है कि लालू उन्हें ट्रेन कर हैं, ये बात अलग है वो अपनी स्टाइल में ट्रेनिंग दे रहे हैं. पहले लालू ने तेजस्वी को प्रोजेक्ट किया, फिर राबड़ी को नये सिरे से तराशा, अब तेज की ही बारी है.

लेकिन बड़ा सवाल ये है कि आखिर तेज प्रताप खामोश क्यों हैं. क्या लालू उन्हें बोलने नहीं देते? क्या तेज को बोलने देने में लालू को कोई डर सता रहा है?

तेज की खामोशी

वैसे तेज ने जब पहली बार बोला तभी बवाल मचा. महुआ की उस सभा में तेज ने कहा कि वो चुनाव लड़ने की सोच रहे हैं - और महुआ से ही. इतना सुनते ही एक स्थानीय आरजेडी नेता के समर्थक उखड़ गये - देखते ही देखते उस नेता और तेज के समर्थकों में हाथापाई होने लगी. मंच पर लालू प्रसाद भी मौजूद थे - जब मामला थम नहीं रहा था तो लालू को दखल देना पड़ा. बहरहाल, किसी तरह समझा बुझा कर लालू ने उन्हें शांत कराया.

पिछले महीने राघोपुर में पुल निर्माण के काम के उद्घाटन के मौके पर नीतीश कुमार, लालू प्रसाद और तेजस्‍वी सभी ने भाषण दिये, लेकिन तेज प्रताप कुछ नहीं बोले.

तेज प्रताप की खामोशी बाहर ही नहीं, बल्कि विधानसभा में भी उन्हें ज्यादातर चुप ही देखा जा रहा है. जब विधान परिषद का सेशन चल रहा था तो चर्चा थी कि वो अपने विभाग से जुड़े प्रश्नों के उत्‍तर देंगे, लेकिन वो तो पहुंचे ही नहीं. तब उनकी तबीयत खराब बताई गई.

बाकी काम तो चल भी जाते लेकिन शपथ तो खुद ही लेनी पड़ती है. उसमें भी तेज प्रताप अटक गये और 'अपेक्षित' को 'उपेक्षित' पढ़ गये थे.

इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में आरजेडी प्रवक्‍ता मनोज झा कहते हैं, ‘उन्हें लगता है कि वो अपनी बात लोगों को ठीक से समझा नहीं पाते. पर, वो तेजी से सीख रहे हैं और जल्द ही अच्छे स्पीकर के रूप में देखे जाएंगे.’

तेज की ट्रेनिंग

लालू प्रसाद के भाषण देने का निराला अंदाज है. उनकी राजनीति की भी अपनी अलग स्टाइल है. शायद इसीलिए तेज को ट्रेनिंग देने के लिए भी उन्होंने कोई नायाब तरीका ही खोजा होगा. भई, हर किसी को एक ही तरीके से ट्रेन तो किया नहीं जा सकता. जो तरीका तेजस्वी पर लागू हुआ, या जो तरीका राबड़ी के लिए कारगर साबित हुआ - ये जरूरी तो नहीं कि तेज के मामले में भी असरदार हो.

तेज की ट्रेनिंग पीरियड का ही एक वाकया है. उस दिन तो हर कोई हैरान हो उठा जब स्वास्थ्य विभाग के कार्यक्रम में तेज की जगह उनके लालू प्रसाद पहुंच गये. बताया गया तेज को कोई और काम था.

सरकार बनने के बाद तेजस्वी और तेज से मिलने अफसर घर जाते तो लालू से भी मिलते. अफसर तेजस्वी से बात करते तो लालू भी कुछ करने को बोल ही देते.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के अनुसार, एक दिन तेज के विभाग का एक अफसर मिलने 10, सर्कुलर रोड पहुंचा. तेजस्वी और तेज दोनों भाई लालू और राबड़ी के साथ रहते हैं.

रिपोर्ट में बताया गया है कि जैसे ही वो अफसर लालू की बगल में बैठा, लालू ने तेज को बाहर भेज दिया - ये कहते हुए कि उन्हें कुछ महत्वपूर्ण बात करनी है.

कुछ दिन पहले आरजेडी के अधिवेशन में राबड़ी का भाषण हुआ. राबड़ी की हर बात पर ताली बजी. इस भाषण में राबड़ी ने आरएसएस को टारगेट किया था - बूढ़े बूढ़े लोग हाफ पैंट पहनते हैं. इसे इत्तेफाक कहें या कुछ और जल्द ही आरएसएस का गणवेश बदलने वाला है. चाहें तो अगली बार राबड़ी इसका क्रेडिट भी ले सकती हैं. राबड़ी का ये निखरा अंदाज लालू के तराशने के बाद ही तो देखने को मिला है. फिर तेज को भी तो थोड़ा वक्त देना ही होगा. तब तक उनकी चुप्पी को ही समझना होगा. मगर चुप्पी तो हमेशा सवाल खड़े करती है.

तो क्या तेज की भी खामोशी भी किन्हीं हजार जवाबों से अच्छी है? लेकिन तेज की ये खामोशी किसकी आबरू रख रही है?

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