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Updated: 14 सितम्बर, 2016 04:23 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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खबरों पर जरा गौर कीजिए. शिवपाल यादव कहते हैं - जो नेताजी कहेंगे वहीं करूंगा. अखिलेश यादव बोल रहे हैं - मजाल किसकी है जो नेताजी की बात न माने. अखिलेश बताते भी हैं - जो भी किया है नेताजी से पूछ कर किया है - हां, कुछ अपने मन से भी किया है.

लगता तो ऐसा है जैसे समाजवादी पार्टी में घमासान मचा हो - मगर, क्या वाकई ऐसा है? यूपी में 'बाप-बेटे' की सरकार की तो खूब चर्चा रही है, लेकिन बाप-बेटे की सियासत पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया. समझने की जरूरत है.

खबर बाहर से

ब्रेकिंग न्यूज आनी शुरू हुई - यूपी सरकार के दो मंत्रियों की बर्खास्तगी से. मालूम हुआ कि सीएम अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल जैसी तत्परता दिखाते हुए भ्रष्टाचार में शामिल होने के आरोप में दोनों मंत्रियों को बाहर कर दिया. कुछ ही देर बाद खबर और लगे हाथ विपक्ष की प्रतिक्रिया भी आ गई कि परिवार कहीं भ्रष्टाचार के लपेटे में न आ जाये इसलिए दो मंत्रियों की बलि दे दी गयी.

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फिर खबर आई कि शिवपाल के करीबी चीफ सेक्रेट्री दीपक सिंघल को अखिलेश यादव ने हटा दिया. उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश यादव को समाजवादी पार्टी के यूपी अध्यक्ष पद से हटा दिया. इस पर अखिलेश यादव ने शिवपाल यादव से उनके अहम मंत्रालय छीन लिये - और...

खबर अंदर की

हाल ही में शिवपाल यादव ने संकेत दिये थे कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय जल्द हो जाएगा. मामला नेताजी के पास है, ऐसा बताया गया - जो इसके लिए बीच का रास्ता निकाल रहे थे. अब तो रास्ता भी निकाल लिया.

मुलायम सिंह के सामने दो ही चुनौतियां थीं - बेटे अखिलेश यादव की छवि बेदाग बनाये रखना और समाजवादी पार्टी को मैदान में कमजोर न पड़ने देना. इन दोनों ही चुनौतियों को मुलायम ने चुटकी बजाते निपटा दिया.

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सियासी जुगलबंदी...

अगर अखिलेश यादव के यूपी अध्यक्ष रहते कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय होता तो बचने का आखिर क्या बहाना होता. इसलिए मुलायम सिंह ने संगठन की कमान अखिलेश से लेकर शिवपाल को थमा दी. अब शिवपाल यादव संगठन को समाजवादी तरीके से चलाएंगे.

संगठन चलाना कोई पार्ट टाइम काम तो है नहीं. लिहाजा अखिलेश यादव ने शिवपाल की बड़ी जिम्मेदारियां अपने ऊपर ले लीं. जो सबसे अहम विभाग था उसे अपने ही पास रखा किसी और मंत्री को नहीं दिया.

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आखिर केंद्र के मोदी मंत्रिमंडल में भी जब फेरबदल हुआ तो ऐसे ही मंत्रियों और नेताओं की अदला बदली हुई थी. चुनाव सिर पर हैं इसलिए समाजवादी पार्टी और सरकार में भी तो एक्सचेंज ऑफर बनता ही है.

उस दिन अखिलेश यादव ने ये भी तो कहा ही था - 'वो मेरे पापा हैं...' सही बात है आखिर वो बेटे को नुकसान कैसे पहुंचाएंगे.

महागठबंधन का अक्स

बहरहाल, अब ये तो साफ हो ही चुका है कि लखनऊ में जो कुछ भी हो रहा है उसके पीछे कोई और नहीं बल्कि दिल्ली में बैठे मुलायम सिंह यादव का दिमाग है. समाजवादी पार्टी, परिवार और सरकार में हो रही हैपेनिंग पर थोड़ा ध्यान देने पर इसमें बिहार के महागठबंधन की भी झलक मिलती है. बिहार वाले महागठबंधन में तीन किरदार अहम रहे. एक, नीतीश कुमार जिनकी छवि ही सबसे बड़ा ब्रांड रहा. दो, लालू प्रसाद जिनकी जातीय राजनीति पर पकड़ जिसका पूरा इस्तेमाल किया गया. तीन, कांग्रेस जिसकी भूमिका पार्टनर के मुकाबले मीडिएटर की ज्यादा रही.

यूपी के मामले में नीतीश कुमार की भूमिका में अखिलेश यादव हैं. लालू प्रसाद का रोल शिवपाल के पास है. तीसरा पार्टनर अलग रोल में है इसलिए ये भूमिका खुद मुलायम ने अपने पास रिजर्व कर ली है. उसी पैटर्न पर यूपी में भी मुलायम सिंह अखिलेश की छवि और शिवपाल की संगठन क्षमता को एक सूत्र में पिरो कर पेश करना चाहते हैं. बिहार में ये प्रयोग सफल रहा है.

फेरबदल का फायदा

जैसे अभी शिवपाल को यूपी में पार्टी की कमान औपचारिक तौर पर सौंपी गई है ठीक उसी तरह 2012 में ये जिम्मेदारी अखिलेश यादव को सौंपी गई थी - ताकि वो पार्टी में खुल कर फैसले ले सकें. अब ये काम शिवपाल मजे से कर पाएंगे. नेताजी की मर्जी से सारे फैसले खुद ले सकेंगे - और अखिलेश की छवि पर आंच भी नहीं आ पाएगी.

शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी को बनाए रखने में लगातार सक्रिय रहे हैं. राष्ट्रीय लोग दल वाले अजीत सिंह के साथ जो भी बातचीत हुई वो शिवपाल की ही बदौलत हो पाई. अमर सिंह तो शिवपाल के चलते ही मुलायम के दिल में बने रह पाए वरना पार्टी के साथ साथ उन्हें बेदिल करने की भी कवायद चल ही रही थी. तब ये किसी को मालूम तो था नहीं कि एक दिन शिवपाल को नाराज होना पड़ेगा और मनाने के लिए अमर सिंह की जरूरत पड़ेगी. शिवपाल के कोर्ट में एक और केस पेंडिंग पड़ा है. 2012 में अखिलेश ने डीपी यादव को नो-एंट्री दिखा दिया था. अब तो रास्ता साफ है.

अब अखिलेश यादव चाहें तो, जिस तरह अतीक अंसारी को मंच पर सरेआम धक्का दिये, किसी और को भी दे सकते हैं. कोई भी हो सकता है. क्या पता अगला नंबर मुख्तार अंसारी का हो, डीपी यादव का हो. सियासत में इतना तो चलता ही है - और वैसे भी ये तो 'बाप-बेटे' की सियासत है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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