New

होम -> सियासत

 |  7-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 27 नवम्बर, 2019 02:35 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
  • Total Shares

अंतत: महाराष्ट्र सरकार का गठन (Maharashtra Government Formation) होने जा रहा है. उद्धव ठाकरे मुख्‍यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहे हैं (Uddhav Thackeray oath taking ceremony). जिस तरह का हाई वोल्टेज ड्रामा महाराष्ट्र (Maharashtra) में देखने को मिला है, शरद पवार (Sharad Pawar) निर्णायक भूमिका में हैं. या कहें कि रिमोट कंट्रोल की भूमिका में. वैसे ही, जैसे कभी बाल ठाकरे थे. बीजेपी-शिवसेना गठबंधन टूटने के बाद से चले सियासी घटनाक्रम के केंद्र में शरद पवार ही रहे हैं. लेकिन उनकी ताकत और सूझबूझ का असली असर देखने को मिला शनिवार की सुबह अजित पवार की बगावत के बाद. इस पूरे सियासी संघर्ष में जैसा रवैया शरद पवार का रहा है वो खुद ब खुद इस बात की पुष्टि कर देता है कि सियासत की इस फिल्म के महानायक शरद पवार हैं. महाराष्ट्र में जो भी हो रहा है, जिस तरह समीकरण बन रहे हैं. बिगड़ रहे हैं. विधायकों की हॉर्स ट्रेडिंग (Horse Trading In Maharashtra) से लेकर होटल में मीडिया के सामने उन्हें पेश करने तक सब कुछ पवार के इशारे पर हो रहा है. आज जिस मुहाने पर महाराष्ट्र की राजनीति खड़ी है इस पूरी लड़ाई के विनर शरद पवार हैं.

शरद पवार, एनसीपी, अजित पवार, शिवसेना, सीएम, Sharad Pawar  महाराष्ट्र में शरद पवार ने साबित कर दिया है कि जब भी बात कूटनीति की आएगी वो चाणक्य से कम नहीं हैं

मराठा सियासत में शरद पवार का कद देखने और समझने के लिए हमें कुछ कल्पनाओं का अवलोकन करना पड़ेगा. जिनके बाद इस बात का अंदाजा लग जाएगा कि, शरद पवार ने न सिर्फ परिपक्वता और अनुभव का परिचय दिया. बल्कि ये भी बता दिया की उन्हें महाराष्ट्र की सियासत में किंगमेकर यूं ही नहीं कहा जाता. तो आइये जानें कि मराठी सियासत में शरद पवार के कद को कैसे पावरफुल बनाती नजर आ रही हैं चंद कल्पनाएं:

1. क्‍या शरद पवार की सहमती से भाजपा को देने पहुंचे थे समर्थन अजित पवार?

राजनीति अवसरों का खेल है. ऐसे में व्यक्ति शरद पवार हो तो भले ही कोई इस बात को समझे या नहीं समझे न समझे मगर वो उसे जरूर समझेगा. शरद पवार और उनकी राजनीति को समझना कितना मुश्किल है इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि उनका दायां हाथ क्या करने वाला है इसकी जानकारी उनके बाएं हाथ को भी नहीं होती. महाराष्ट्र की सियासत में जो सियासी घमासान अजित पवार के उपमुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद मचा कह सकते हैं कि ये सब शरद पवार के मार्गदर्शन, उनकी देख रेख में हुआ.

ये बात किसी से छिपी नहीं है कि अजित पवार के ऊपर भांति भांति के गंभीर आरोप लगे हैं. हो सकता हो कि शरद पवार ने ही भाजपा के साथ डील की हो कि उन्हें अजीत का समर्थन इस शर्त पर मिलेगा कि पहले भाजपा को अजित के दामन पर लगे दाग धोने होंगे. शरद पवार इस पेचीदा वक़्त की बारीकियां बखूबी समझते हैं. वो जानते थे कि सत्ता सुख पाने के लिए भाजपा किसी भी सीमा तक आ सकती है. शरद पवार का दिमाग जो बातें सोच रहा था हुआ भी कुछ वैसा ही. भाजपा ने अजित पवार के दामन पर लगे दाग धूल दिए और अब जबकि अजित उप मुख्यमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे चुके हैं इस पूरे मामले में अगर किसी की बुरी तरह से किरकिरी हुई है तो वो और कोई नहीं बल्कि भाजपा है.

शरद कुमार के तेज दिमाग की बदौलत ये बात निकल कर सामने आ गई है कि जब बात फायदे की आयगी तो भाजपा किसी भी सीमा तक जा सकती है. अब अगर इस पूरी कहानी में शरद पवार को देखें तो उनका चरित्र पूर्व की अपेक्षा वर्तमान में और पाक साफ़ हुआ है.

2. क्‍या बिना शरद पवार की जानकारी के अजित ने दिया भाजपा को समर्थन?

इस पूरे मामले में कल्पना का एक खाका ऐसे भी सेट किया जा सकता है कि जब महाराष्ट्र की सियासत में बड़ा उलट फेर हुआ और अजित ने भाजपा को समर्थन दिया. इस पूरे घटनाक्रम की कोई जानकारी शरद पवार के पास नहीं थी. कह सकते हैं कि जैसा माहौल तब महाराष्ट्र में चल रहा था शायद ही शरद पवार ने सोचा हो कि अजित ऐसा कुछ कर सकते हैं.

अजित पवार के राज्य के मुख्यमंत्री की शपथ लेने के बाद जिस तरह शरद पवार ने उन्हें काम नहीं करने दिया और जैसे वो पूरी एनसीपी को साथ लेकर खड़े हो गए उन्होंने न सिर्फ भाजपा बल्कि तमाम दलों को ये सबक दे दिया कि राजनीति में कमजोर मोहरों की कोई बिसात नहीं है और बात जब उनकी अपनी पार्टी की आएगी तो वहां बिना उनकी मर्जी के पत्ता तक नहीं हिल सकता.

कल्पना के इस पक्ष में भले ही अजित ने शरद को किसी भी तरह की कोई जानकारी न दी हो मगर जैसे वो अपने तमाम विधायकों को साथ लेकर आए ये बता देता है कि महाराष्ट्र की सियासत में हर कोई अजीत पवार नहीं बन सकता.

3. अजित पवार को भाजपा के खेमे में जाते शरद पवार ने देखा, लेकिन चुप रहे?

हम इस बात को बार बार दोहरा रहे हैं कि महाराष्ट्र क्या देश की राजनीति तक में शरद पवार के कद को छोटा समझना एक बड़ी भूल है. बात महाराष्ट्र और अजित पवार की चल रही है तो बता दें कि जिस वक़्त अजित पवार पार्टी से बगावत कर विरोधियों के खेमे की तरफ कूच करने का मूड बना रहे थे उस वक़्त ये पूरी जानकरी शरद पवार के पास थी. शरद चुपचाप तमाशा देख रहे थे और नहले पर दहला मारने पर विचार कर रहे थे.

शरद पवार, अजित पवार के राजनीतिक गुरु हैं. इस बात से वाकिफ थे कि सत्ता की चाशनी में डूबी मलाई खाने के लिए अजित ऐसा कुछ न कुछ तो जरूर करेंगे. यही वो कारण था कि पार्टी बचाने के लिए उन्होंने सिंगापुर से बेटी सुप्रिया को बुलवाया और बारामती से चुनाव लड़वाया.

शरद चाहते थे कि अजित पवार गलत फैसला लें ताकि उनकी राजनीतिक जमीन खींचकर उन्हें उनके कद से अवगत करा दिया जाए. हुआ कुछ ऐसा ही है शरद पवार ने अपने प्लान के जरिये पूरी दुनिया को बता दिया है कि अजित पवार गद्दार हैं और किसी भी सूरत में उनपर भरोसा नहीं किया जा सकता.

शरद के दोनों हाथों में लड्डू

पहले भाजपा को समर्थन देने, फिर अजित पवार के इस्तीफे के बाद शरद पवार को अपनी ताकत पर यकीन हो गया है. महाराष्ट्र के इस सियासी महासंग्राम में जो कुछ भी हुआ है वो ये साफ़ कर देता है कि यहां शरद पवार एक महानायक की भूमिका में हैं. महाराष्ट्र की राजनीति के अंतर्गत शरद पवार में वो काबिलियत है कि वो क्षण भर में किसी को भी राजा और किसी को भी रंक बना सकते हैं.

अजित पवार को पटरी पर लाकर जहां एक तरफ शरद पवार ने ये सन्देश दिया है कि स्थिति कोई भी हो पूरी एनसीपी उनके पीछे हैं तो वहीं भाजपा पर भी दबाव बना है कि किसी भी बड़े फेर बदल में शरद पवार की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता. वहीं बात शिव सेना की हो तो पार्टी और उद्धव ठाकरे दोनों को इस बात का एहसास हो गया है कि बिना इनके समर्थन या फिर इन्हें साथ लिए सत्ता संभालना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है.

अब जबकि साफ़ हो गया है कि उद्धव ठाकरे ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बनेंगे, लेकिन उन पर ये हमेशा दबाव रहेगा कि शरद पवार उनकी सरकार की नस कभी भी दबा सकते हैं. उनके पास ताकत भी है, और इसकी राजनीतिक सूझ-बूझ भी. शिव सेना पर भी ये दबाव है कि वो एनसीपी को सत्ता में मुख्य हिस्सेदारी दें. इसलिए इस पूरे गुणा भाग और जोड़ तोड़ में जो भूमिका शरद पवार की रही है कहा जा सकता है कि उनके दोनों हाथों में लड्डू है और वो खुद इस बात से वाकिफ हैं. 

ये भी पढ़ें -

House-training: नेताओं की खरीद-फरोख्त लीगल करने का वक़्त आ गया है

Horse Trading का जिक्र Supreme Court ने किया, जानिए उसका इतिहास और राजनीति से जुड़ाव

अजित पवार को क्या मिला महाराष्ट्र के राजनीतिक उलटफेर में?

     

लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय