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Updated: 17 जनवरी, 2018 08:14 PM
अमित अरोड़ा
अमित अरोड़ा
  @amit.arora.986
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भारत सरकार ने हज यात्रा के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को ख़त्म कर दिया है. सरकार हर साल इस यात्रा पर लगभग 700 करोड़ रुपये की सब्सिडी देती थी. इस रकम को अब मुस्लिम लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा पर खर्च किया जाएगा. मोदी सरकार का यह कदम सराहनीय है. इस फैसले जाहिर है कि केंद्र सरकार धर्म आधारित तुष्टिकरण के बजाए, महिला सशक्तिकरण पर काम कर रही है.

हमारे देश में एक सोच है. समाज का जो भी वर्ग परेशानियों से जूझ रहा हो या उपेक्षित हो, उसे या तो आरक्षण दे दो, आर्थिक रियायतें दे दो या फिर उसका क़र्ज़ माफ कर दो. वो चाहे दलित हो, मुस्लिम हो, या किसान. अभी तक का यही ढर्रा रहा है कि उनकी समस्या का निदान न करो, सिर्फ़ रेवड़ियां बांट दो. इस विकृत धर्म निरपेक्षता और समाजवाद ने भारत का बहुत नुकसान किया है. सरकार का कर्तव्य बनता है कि देश के नागरिकों के जीवन स्तर में तरक्की हो, वह सामाजिक और आर्थिक रूप से सक्षम बन सकें. सरकार का काम है नागरिकों को बिना भेदभाव के उन्नति के अवसर प्रदान करना. न की धर्म निरपेक्षता और समाजवाद का ढोंग करना. यदि मुस्लिम समाज के लोग आर्थिक रूप से तरक्की कर लें तो उन्हें सरकार से रियायत की ज़रूरत क्यों पड़ेगी?

hajj, subsidy, triple talaqसरकार धर्म की राजनीति नहीं विकास की राजनीति कर रही है

मुस्लिम महिलाओं की सामाजिक और आर्थिक उन्नति के लिए केंद्र सरकार प्रतिबद्ध दिखती है. भारत सरकार ने एक बार में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) के प्रथा का उच्चतम न्यायालय में विरोध किया, उसके बाद तलाक-ए-बिद्दत को ग़ैरक़ानूनी बनाने के लिए लोक सभा में विधेयक भी मंज़ूर कराया. हालांकि यह विधेयक अभी राज्यसभा में अटका पड़ा है, जहां धर्म निरपेक्षता के ठेकेदारों ने मुस्लिम महिलाओं के पक्ष में बन रहे क़ानून को विफल करने का भरसक प्रयास किया है. मुस्लिम महिलाएं इसी उम्मीद में हैं कि इस विधेयक को आगामी बजट सत्र में राज्यसभा से मंज़ूरी मिल जाएगी. परिणाम कुछ भी हो, सरकार अपनी ओर से तो प्रयास कर रही है, इस बात में कोई संदेह नहीं है.

मोदी सरकार को इतने पर ही नहीं रुकना चाहिए. मुस्लिम महिलाओं के उत्थान के लिए कई क्षेत्रों में काम की आवश्यकता है. अब सरकार का अगला अभियान मुस्लिम समाज में बहू विवाह प्रथा पर रोक लगाने का होना चाहिए. बहू विवाह प्रथा के कारण आज भी मुस्लिम महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम आंका जाता है.बहू विवाह प्रथा के कारण कई मुस्लिम महिलाएं केवल शारीरिक संतुष्टि का साधन बनकर रह गई हैं. यदि महिलाएं अपने पतियों से समानता की मांग करती हैं तो उन्हें दूसरी शादी का डर दिखाकर चुप करा दिया जाता है. जो डर मुस्लिम महिलाओं को तलाक़ शब्द से महसूस होता है वैसा ही डर अपने पति की दूसरी शादी की बात से उन्हें लगता है.

एक सभ्य समाज में स्त्री और पुरुष दोनों बराबर के नियमों के हकदार हैं. बहू विवाह प्रथा उस हक में बाधा डालती है. अतः अब समय आ गया है कि भारत सरकार इस कुरीति को सुधारने की पहल करे.

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लेखक

अमित अरोड़ा अमित अरोड़ा @amit.arora.986

लेखक पत्रकार हैं और राजनीति की खबरों पर पैनी नजर रखते हैं.

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