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Updated: 12 नवम्बर, 2015 07:34 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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बीजेपी के संस्थापकों में से एक लालकृष्ण आडवाणी ने छह मौकों पर रथयात्रा निकाली, लेकिन इनमें दो अहम हैं. एक रथयात्रा राम मंदिर निर्माण के संकल्प को लेकर थी. लेकिन उसने बीजेपी को देश की पार्टी बनाया. और यह भी घोषित किया कि आडवाणी के नेतृत्व‍ वाली यह पार्टी हिंदू हितों को प्रमुखता देती है. दूसरी रथयात्रा तब निकाली, जब माना जा रहा था कि वे रिटायर हो रहे हैं. 2011 में वे निकले तो यूपीए सरकार के भ्रष्टा चार का विरोध करने थे, लेकिन बड़ा उद्देश्यं खुद को एक सक्रिय राजनेता के रूप में स्थाीपित रखना था.

88 साल के आडवाणी के लिए अब मुश्किल है कि वे एक और रथयात्रा निकालें, लेकिन उसके लायक मौका तो आ ही गया है. क्योंकि-

1. यदि उन्हें लगता है कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह के कारण बिहार में पार्टी की हार हुई है, तो जरूरत नहीं है कि वे दबे स्वर में कहें कि नेतृत्व को इसकी जिम्मेरदारी लेनी चाहिए.

2. उन्हें मान लेना चाहिए कि मार्गदर्शक मंडल और कुछ नहीं, बल्कि उनके लिए मोदी के द्वारा बनाया गया सन्यास आश्रम है.

3. उन्हें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि उन्हों ने ही बीजेपी की स्थापना की. और 35 साल बाद भी उस पर उनका पूरा हक है.

4. यह स्पष्ट करने के लिए कि वे भले ही 88 साल के हों, लेकिन वे अब भी पार्टी हित में फैसला ले सकते हैं.

5. राजनीतिक इतिहासकार जानते हैं कि बीजेपी के पहले अध्यक्ष अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में पार्टी 1984 का लोकसभा चुनाव हारी थी, तो उनके नरमपंथ को हटाकर आडवाणी को अध्यक्ष बनाया गया. अब समय ने फिर करवट ली है. दिल्ली और बिहार में हार के बाद यदि अमित शाह की अति कट्टर हिंदूवादी रणनीति फेल हुई है, तो उसको बीजेपी के भीतर चैलेंज या करेक्ट करने की अथॉरिटी आडवाणी के अलावा और किसमें है?

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लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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