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Updated: 17 नवम्बर, 2018 05:26 PM
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कांग्रेस नेता राजस्थान में बीजेपी सरकार की खामियों का खजाना दिखाने में जुटे रहते हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सचिन पायलट खुद भी कभी इस मामले में पीछे नहीं रहते. हाल ही में वसुंधरा राजे सिंधिया की तारीफ कर सचिन पायलट ने सबको सकते में डाल दिया. सचिन पायलट के मुंह से वसुंधरा की तारीफ सुन कर लोग थोड़ी देर के लिए चौंके जरूर - लेकिन वो जबरदस्त कटाक्ष था.

एक कार्यक्रम के दौरान सचिन पायलट ने कहा - 'जो काम बीजेपी में कोई नहीं कर सका... यहां तक कि देश में भी बीजेपी का कोई नेता नहीं कर सका उसे वसुंधरा राजे ने कर दिखाया... उन्होंने अमित शाह को उनकी जगह दिखाई...'

सचिन पायलट के इस कटाक्ष के साथ उनके चेहरे पर खुशी की झलक भी दिखायी दी. दरअसल, सचिन पायलट का आशय वसुंधरा राजे की जिद से था जो तमाम मौकों पर देखने को मिला - टिकट बंटवारे में भी. सचिन पायलट को लगता है वसुंधरा की जिद ही राजस्थान में बीजेपी की हार की बड़ी वजह बनेगी.

'राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा...'

2012 में बीजेपी नेता राजेंद्र राठौड़ ने एक बयान दिया था - 'राजस्थान में वसुंधरा ही भाजपा हैं और भाजपा ही वसुंधरा'. राजेंद्र राठौड़ का ये बयान भी उसी तरह चर्चित हुआ जिस तरह कभी कांग्रेस नेता देवकांत बरुआ का बयान चर्चा में था - 'इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा'. देखा जाये तो वसुंधरा ने राजस्थान में बीजेपी के लिए वो काम बहुत पहले ही कर दिखाया जो नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्तर पर किया. 2014 के आम चुनाव में भी वसुंधरा राजे ने राजस्थान की सारी सीटें बीजेपी की झोली में डाल दी थी.

amit shah, vasundhara rajeसब पर भारी वसुंधरा राजे, लेकिन नतीजे बताएंगे कब तक...

उपराष्ट्रपति रहे भैरों सिंह शेखावत को राजस्थान में सबसे कद्दावर नेता माना जाता रहा है, लेकिन उनके जमाने में भी बीजेपी कभी पूर्ण बहुमत नहीं पा सकी. ये वसुंधरा राजे ही हैं जिनकी बदौलत बीजेपी को दो बार पूर्ण बहुमत हासिल हुआ और पिछली बार तो 163 सीटों पर जीत मिल गयी.

राजस्थान में हमेशा वसुंधरा ने अपनी ही चलायी है - और मौजूदा नेतृत्व को तो ऐसा लगता है हाथ भी लगाने का मौका नहीं देना चाहतीं. ये सही है कि वसुंधरा ने अपनी चुनावी गौरव यात्रा की शुरुआत अमित शाह के साथ की, लेकिन ये कैसे भूला जा सकता है कि 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथग्रहण के मौके पर वसुंधरा राजे विदेश यात्रा पर थीं.

गौरव यात्रा के दौरान भी वसुंधरा राजे के साथ भी ज्यादातर वक्त बीजेपी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अशोक परनामी ही नजर आये. राजस्थान बीजेपी का अध्यक्ष पद ढाई महीने खाली रहा और फिर मदन लाल सैनी को कमान सौंपी गयी. खास बात ये रही कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत को कुर्सी पर बिठाना चाहते थे, लेकिन वसुंधरा की जिद के आगे उनकी एक न चली.

वसुंधरा राजे की यही जिद टिकट बंटवारे में भी देखने को मिली है. बताते हैं वसुंधरा ने केंद्रीय नेतृत्व की सारी बातों को दरकिनार करते हुए टिकट बंटवारे में पूरी तरह सिर्फ अपनी बात मनवायी है.

टिकट बंटवारे में भी वसुंधरा की जिद

विधानसभा चुनावों के मद्देनजर राजस्थान में बीजेपी ने अलग अलग लेवल आठ सर्वे कराये थे. ज्यादातर सर्वे में बीजेपी विधायकों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर होने की बातें सामने आयी थीं.

vasundhara rajeवसुंधरा की जिद और दांव पर साख...

बीजेपी आलाकमान के सामने जब प्रदेश की कोर कमेटी का पैनल आया तो संसदीय बोर्ड की बैठक में रखे जाने से पहले ही खारिज कर दिया गया. असल में कोर कमेटी 90 से ज्यादा विधायकों को दोबारा टिकट देना चाहती थी, जबकि केंद्रीय नेतृत्व इतने ही विधायकों के टिकट काटना चाहता था. केंद्रीय नेतृत्व और उनके सलाहकारों की राय रही कि मध्य प्रदेश की ही तर्ज पर सत्ता विरोधी लहर रोकने के इंतजाम किये जायें. ऐसे इंतजाम का मतलब मौजूदा विधायकों के टिकट काटना और फ्रेश चेहरों को मौका देना होता है. अमित शाह और उनकी टीम ये प्रयोग गुजरात में अब तक करती आयी है. खूब बवाल हुआ फिर भी ये प्रयोग यूपी में भी हुआ - और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में भी. अमित शाह का ये प्रयोग हमेशा सफल रहा है, लेकिन राजस्थान में इसे दोहराया ही न जा सका.

वसुंधरा राजे ने 2013 में जिन जातीय समीकरणों को आजमाया और कामयाबी हासिल की उसे छोड़ने को तैयार नहीं हुईं. राजस्थान की 200 सीटों के लिए बीजेपी उम्मीदवारों की अब तक दो सूची आ चुकी है. पहली सूची में 131 और दूसरी सूची में 31 उम्मीदवारों के नाम हैं. अब तक घोषित 162 उम्मीदवारों में 4 मंत्रियों सहित 40 विधायकों के टिकट जरूर काटे गये हैं. पहली सूची में बीजेपी ने 24 मौजूदा विधायकों के टिकट काटे थे जिनमें 11 सुरक्षित सीटों वाले रहे. दूसरी सूची में कटने वाला चर्चित नाम है - अलवर के रामगढ़ से विधायक ज्ञानदेव आहूजा का. ज्ञानदेव आहूजा अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहे हैं जिनमें जेएनयू में कंडोम वाला उनका बयान भी शामिल है.

वसुंधरा ने आलाकमान के फरमान को भले ही दरकिनार किया हो लेकिन संघ की सिफारिशों पर आंख मूंद कर अमल किया है. वसुदेव देवनानी, अरुण चतुर्वेदी, फूलचंद भिंडा, सतीश पूनिया, जोगेश्वर गर्ग और मदन दिलावर ऐसे नाम हैं जिन्हें संघ का करीबी समझा जाता है और इसी कारण उन्हें आसानी से पहली ही सूची में जगह मिल गयी.

चुनावी साल में राजस्थान में हुए उपचुनावों में बीजेपी की हार के लिए भी वसुंधरा की जिद को ही जिम्मेदार माना गया. 2018 की शुरुआत में राजस्थान की मंडलगढ़ विधानसभा के साथ साथ दो लोक सभा सीटों अलवर और अजमेर उपचुनाव में बीजेपी को कांग्रेस के हाथों का हार का मुंह देखना पड़ा था. उपचुनावों में तो केंद्रीय नेतृत्व की जरा भी दिलचस्पी नहीं दिखी जो दूसरे राज्यों में भी देखी गयी.

बीजेपी की इसी हार ने कांग्रेस का मनोबल सातवें आसमान पर पहुंचा दिया. वसुंधरा राजे ने अजमेर और मंडलगढ़ सीटों को लेकर थोड़ी बहुत दिलचस्पी दिखायी भी लेकिन अलवर के साथ उनका सौतेला व्यवहार खासा चर्चा में रहा. तब माना गया कि अलवर से बीजेपी उम्मीदवार जसवंत सिंह यादव को खुद ही चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं रही क्योंकि लोक सभा का चुनाव जीत कर वो दिल्ली नहीं जाना चाहते थे. राजस्थान बीजेपी सरकार में मंत्री जसवंत सिंह यादव को टिकट इस बार मिलेगा भी या नहीं अब तक साफ नहीं हो सका है.

तमाम सर्वे राजस्थान विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का पलड़ा भारी बता रहे हैं. मगर, वसुंधरा ने बीजेपी द्वारा कराये गये सर्वे की जगह खुद के स्तर पर मिले फीडबैक के आधार पर फैसला किया है. मजबूर केंद्रीय नेतृत्व को मौजूदा विधानसभा से ज्यादा चिंता 2019 की है.

अगर वसुंधरा परंपरा तोड़ते हुए जीत गयीं, फिर तो लोक सभा के लिए टिकटों में भी उनकी जिद का मान रखना पड़ेगा, वरना 2019 में तो केंद्रीय नेतृत्व अपने मन की बात ही करेगा. विज्ञापन की एक लोकप्रिय लाइन है डर के आगे जीत है, देखना है जिद के आगे भी जीत है क्या?

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