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Updated: 03 मार्च, 2015 12:33 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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'आप' का क्या होगा? फिलहाल ये एक बड़ा सवाल है. केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री हैं और आप के संयोजक भी हैं. सवाल एक व्यक्ति के दोनों पदों पर रहने पर उठाए गए हैं. पार्टी व्यक्ति केंद्रित होती जा रही है - सबसे बड़ा सवाल यही उठाया गया है. एक संभावना ये है कि सवाल-जवाब होते रहेंगे, पार्टी भी चलती रहेगी. लोकतांत्रिक ढांचे में ये प्रतिरोधक क्षमता की तरह हैं. सवाल उठाने की गुंजाइश जितनी रहेगी ढांचा उतना ही मजबूत रहेगा. पार्टी का लोकतांत्रिक स्वास्थ्य उतना ही दुरुस्त रहेगा. लोकतंत्र की यही खूबसूरती है. वरना, बर्बाद गुलिस्तां होने से रोक भी कौन सकता है.

बुधवार, 4 मार्च को आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई है. आप की उठापटक पर अब तक चुप रहे अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट में कहा है, ''पार्टी में जो कुछ भी हो रहा है, मैं उससे बहुत दुखी व आहत हूं. दिल्ली की जनता ने हम पर जो भरोसा जताया है, उससे धोखा है.'' ये बैठक गर्मागर्म होगी इस बात की तो गारंटी है. आइए अब इस प्रस्तावित मीटिंग के स्वरूप और संभावनाओं को समझने की कोशिश करते हैं -

1. हो सकता है योगेंद्र यादव खुद को बैठक से दूर रखें. इतना तो तय है कि इस बैठक में योगेंद्र यादव सबके निशाने पर होंगे. बैठक में वो टेप सुनाया जाएगा जिसमें आप कार्यकर्ता और एक पत्रकार की बातचीत की रिकॉर्डिंग है. योगेंद्र यादव पर लगाए गए आरोपों में से एक ये है कि उन्होंने मीडिया में पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाली खबरें परोसी. ये टेप आरोपों के सबूत के तौर पर पेश किए जाएंगे. प्रशांत भूषण अपने पूर्व निर्धारित कार्यक्रम की बात कह बैठक में आने से पहले ही मना कर चुके हैं. ऐसे में योगेंद्र मीटिंग में अकेले पड़ सकते हैं इसलिए दूर रहने का कोई बहाना निकाल सकते हैं.

2. हो सकता है योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को पॉलिटिकल अफेयर्स कमेटी से निकाल दिया जाए. जैसी कि खबरें आ रही हैं. इनके विरोधियों का कहना है कि जब तक ये लोग पीएसी में रहेंगे, डिस्टर्ब करते रहेंगे इसलिए इनसे जल्द से जल्द निजात पाना ही पार्टी के हित में होगा. लोकतंत्र में किसी के खिलाफ कार्रवाई से पहले उसे अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाता है और अरविंद केजरीवाल इसके पक्षधर भी हैं. ऐसे में ये भी हो सकता है कि दोनों के खिलाफ कारण बताओ नोटिस जारी हो और उन्हें अपना पक्ष रखने का मौका दिया जाए.

3. हो सकता है योगेंद्र यादव बैकफुट पर आ जाएं. योगेंद्र यादव ने सोमवार को एक ट्वीट में कहा था, "'यह वक़्त बड़ी जीत के बाद बड़े मन से, बड़े काम करने का है. देश ने हमसे बड़ी उम्मीदें लगाई हैं. छोटी हरकतों से खुद को और इस आशा को छोटा न करें." वैसे तो इन शब्दों के सैकड़ों मायने हो सकते हैं लेकिन अगर इन्हें सीधे तौर पर समझा जाए तो लगता है कि योगेंद्र यादव झगड़ा नहीं चाहते. जैसा कि वो बाहर भी कहते रहते हैं कि 'अभी हम नये नये हैं. अभी हम सीख रहे हैं' - और पार्टी फोरम में भी इसी लाइन पर कह दें कि जो उनके मन की बात थी उन्होंने कह दी बस, उनका इरादा न तो पार्टी को नुकसान पहुंचाना रहा और न किसी को दुख देना. इसके साथ ही सीजफायर हो जाए.

4. हो सकता है अरविंद केजरीवाल संयोजक का पद छोड़ दें. एक ट्वीट में केजरीवाल का कहना है: ''मैं इस झगड़े में नहीं पडूंगा, बल्कि दिल्ली में सरकार चलाने पर ध्यान दूंगा. जनता के भरोसे को किसी भी हालत में नहीं टूटने दूंगा.' संभव है केजरीवाल नये संयोजक के लिए पार्टी के अंदर चुनाव कराने की पहल करें जिसका शायद ही कोई विरोध कर पाए. सब कुछ ठीक ठाक चलता रहे इसके लिए केजरीवाल का एक लोकतांत्रिक और राजनीतिक कदम ये भी हो सकता है.

5. हो सकता है कोई बीच का रास्ता निकाला जाए. जिस तरह केजरीवाल दिल्ली के मुख्यमंत्री होते हुए सारे विभाग मनीष सिसोदिया के हवाले कर चुके हैं, उसी तरह वो पार्टी में कुछ सह-संयोजक बनाकर जिम्मेदारियां उनके हवाले कर दें. ऐसे में योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण को सह-संयोजक या वरिष्ठ सह-संयोजक के पद ऑफर किये जाएं. बात तभी बनेगी जब इन्हें ये पद मंजूर हों. राजनीति में कुछ समस्यों का एक हल ये भी होता है कि समाधान को टाल दिया जाए. पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने इस फॉर्मूले को खूब अप्लाई किया और उन्हें उसका फायदा भी मिला. मुमकिन है केजरीवाल भी इस मामले में 'वेट एंड वाच' का रास्ता अख्तियार कर लें. वैसे भी केजरीवाल पांच मार्च से इलाज के लिए 10 दिन की छुट्टी पर जा रहे हैं.

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मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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