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Updated: 22 अक्टूबर, 2019 11:23 AM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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महाराष्ट्र और हरियाणा में विधानसभा चुनाव आखिरकार संपन्न हो गए हैं. हालांकि, वोटिंग बहुत ही कम हुई है. वैसे तो मतदान की रफ्तार सुबह से ही सुस्त थी, लेकिन यूं लगा था कि शायद शाम होते-होते इसमें कुछ बढ़त दिखेगी. लेकिन जिस तरह देश में आर्थिक मंदी छाई हुई है, वैसे ही वोटिंग के दिन मतदान में भी रिकॉर्ड मंदी देखने को मिली. जहां एक ओर शाम 6 बजे तक महाराष्ट्र में 56 फीसदी वोटिंग हुई, वहीं दूसरी ओर हरियाणा में 63 फीसदी वोटिंग हुई. यहां आपको बता दें कि हरियाणा में पिछले 19 सालों में सबसे कम वोटिंग हुई है. वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में भी करीब 10 सालों में सबसे कम मतदान हुआ है. अब सवाल ये उठता है कि आखिर लोग अपने घरों से बाहर क्यों नहीं निकले? वैसे एक्सपर्ट तो इसकी मुख्य वजह यही बता रहे हैं कि लोगों में निराशा है, लेकिन ये अकेली वजह नहीं है, जिसके चलते पिछले 19 सालों में मतदान में रिकॉर्ड मंदी देखने को मिल रही है. आइए जानते हैं किन वजहों से हुआ ऐसा.

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव, हरियाणा विधानसभा चुनाव, नरेंद्र मोदी, राहुल गांधीहरियाणा में पिछले 19 सालों में सबसे कम वोटिंग हुई है. महाराष्ट्र में भी करीब 10 सालों में सबसे कम मतदान हुआ है.

1- निश्चिंत भाजपा

इसमें तो कोई दोराय नहीं है कि दोनों ही राज्यों के विधानसभा चुनावों को लेकर भाजपा पूरी तरह से निश्चिंत थी. भाजपा को पता था कि जीत तो उनकी ही होगी, क्योंकि विपक्ष का दूर-दूर तक कोई नामोनिशां नहीं है. यही वजह है कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने भी लोगों को बहुत अधिक जोर देकर वोटिंग नहीं करवाई. अगर यही मुकाबला टक्कर का होता तो हर पार्टी के कार्यकर्ता अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचते और कोशिश करते कि वो लोग वोट डालने पहुंचें.

2- हताश विपक्ष

वोटिंग कम होने की दूसरे सबसे बड़ी वजह है हताश विपक्ष. न तो कांग्रेस का कोई अता-पता है, ना ही बाकी विरोधी पार्टियों का. हताश विपक्ष पहले से ही अपनी हार कबूल कर चुका है. उन्हें ये पता है कि जीतना तो है नहीं, इसलिए ऐसा लग रहा है मानों उन्होंने जीत के लिए हाथ-पैर मारना भी छोड़ दिया है. महाराष्ट्र में तो तब भी विपक्ष की ओर से कुछ हलचल दिख रही है, लेकिन हरियाणा में तो विपक्षी खेमे में सन्नाटा पसरा है.

3- कैंपेन में आक्रामकता की कमी

किसी भी चुनाव में कैंपेन की आक्रामकता भी लोगों के अंदर वोटिंग के लिए उत्साह जगाने का काम करती है. इस बार न तो हरियाणा में, ना ही महाराष्ट्र में वो कैंपेन की वो आक्रामकता दिखी. पीएम मोदी ने हरियाणा में सिर्फ 7 रैलियां कीं, जबकि अमित शाह और राजनाथ सिंह ने करीब 15 रैलियां की थीं. भाजपा जानती थी कि विपक्ष अभी इस हालत में नहीं है कि हरियाणा को उससे छीन सके, ऐसे में कैंपेन उतने आक्रामत नहीं थे, जबकि विपक्ष जानता था कि उसका हारना तय है, तो उसकी रैली में भी आक्रामकता नहीं दिखी. हालांकि, महाराष्ट्र में भाजपा ने थोड़ा आक्रामकता दिखाई, लेकिन विपक्ष वहां भी कमजोर ही रहा. पीएम मोदी ने महाराष्ट्र में अकेले ही लगभग 10 रैलियां कीं, अमित शाह ने करीब 20 और फडणवीस ने भी बहुत सारी रैलियां कीं. लेकिन विपक्ष की ओर से रैलियों में आक्रामकता नहीं दिखी. राहुल गांधी ने दोनों राज्यों में मिलाकर कुल 7 रैलियां कीं और सोनिया गांधी की महेंद्रगढ़ में एक रैली होनी थी, वो भी कैंसिल हो गई. कांग्रेस इस चुनाव में कैंपेन के लेवल पर बिल्कुल नाकारा साबित हुई है.

4- जनता के सामने विकल्प नहीं

कम वोटिंग की एक अहम वजह है लोगों की निराशा. महाराष्ट्र में तो पिछले 9 सालों में सबसे कम वोटिंग हुई है, लेकिन हरियाणा में तो पिछले 19 सालों में सबसे कम वोटिंग हुई है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि जनता की निराशा कम वोटिंग होने की सबसे बड़ी वजह है. ऐसा नहीं है कि हर किसी को भाजपा पसंद है, लेकिन जिन्हें भाजपा पसंद नहीं है, उनके सामने दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है. ऐसे में बहुत से वो लोग भी हैं, जिन्हें इस चुनाव में ये तय किया होगा कि किसी को वोट नहीं देंगे.

5- टक्कर का मुकाबला नहीं

अगर क्रिकेट मैच भी दो टक्कर की टीमों का ना हो तो मजा नहीं आता, फिर ये तो राजनीति है, चुनाव है. चुनावी अखाड़े में अगर एक पहलवान के साथ किसी कमजोर को लड़ाया जाएगा तो देखने का क्या मजा, कौन जीतेगा ये तो सभी को पता होगा. कुछ ऐसा ही हुआ है महाराष्ट्र और हरियाणा के विधानसभा चुनाव में भी. भाजपा जैसी मजबूत पार्टी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस सामने थी, जो पहले से ही पस्त है. वो कांग्रेस, जिसका अध्यक्ष कौन बनेगा, ये भी अब तक फाइनल नहीं हो पाया है. राहुल गांधी का बर्ताव देखकर ये लगता है मानो उन्हें राजनीति करने का मन ही ना हो. इस चुनाव में मतदान फीका पड़ने की सबसे बड़ी वजह यही है कि लोगों को मुकाबला टक्कर का नहीं लगा.

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