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Updated: 17 नवम्बर, 2015 06:36 PM
अभिषेक पाण्डेय
अभिषेक पाण्डेय
  @Abhishek.Journo
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रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने ISIS के खिलाफ लड़ाई के लिए दुनिया को एकजुट होने का आह्वान किया है. हाल ही में पेरिस में इस आतंकी संगठन के हमले में सैकड़ों बेगुनाहों की मौत के बाद इसके खात्मे के प्रति दुनिया के ताकतवर देश एकजुट नजर आ रहे हैं. सीरिया में अमेरिका और रूस पहले से ही ISIS के खिलाफ हवाई हमले कर रहे हैं.

अब तक इस लड़ाई में अपेक्षाकृत कम सक्रिय रहा फ्रांस पेरिस हमलों के बाद पूरी ताकत से लड़ाई में कूद गया है और ISIS को नेस्तनाबूत करने का संकल्प लिया है. लेकिन सवाल तो यही है कि क्या दुनिया सच में ISIS के खिलाफ लड़ाई में एकजुट है? फिलहाल भले ही सब एकजुट नजर आ रहे हों लेकिन अमेरिका से लेकर, रूस तक सभी के इस लड़ाई में अपने-अपने फायदे हैं. उधर पुतिन ने यह भी कहा है कि करीब 40 देश ऐसे हैं जहां से ISIS को आर्थिक मदद मिलती है. इससे तो ऐसा लगता है कि ताकतवर देशों के स्वार्थी रवैये के कारण शायद ही कभी ISIS का खात्मा किया जा सके.

दुनिया के 40 देशों से मिलती है ISIS को मददः

तुर्की में जी-20 देशों के सम्मेलन के दौरान रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने जोर देकर कहा कि उनके देश की खुफिया एजेंसी के पास इस बात के सबूत हैं कि दुनिया के करीब 40 देशों से इस आतंकी संगठन को आर्थिक मदद मिलती है और इनमें से कुछ देश तो जी-20 के सदस्य हैं. हालांकि पुतिन ने किसी भी देश का नाम नहीं लिया. पुतिन ने कहा कि उन्होंने जी-20 के सदस्य देशों को सैटेलाइट से ली गईं पेट्रोलियम पदार्थों की अवैध तस्करी की तस्वीरें दिखाई हैं. जिनसे पता चलता है कि कैसे दुनिया के कई ताकतवर देश ISIS की मदद कर रहे हैं. पुतिन ने नाम भले ही नहीं लिया लेकिन ISIS की मदद के पीछे अमेरिका और सऊदी अरब जैसे कई प्रमुख देशों के हाथ होने के आरोप लगते रहे हैं.

रूस और अमेरिका के अपने हितःपेरिस हमलों के बाद रूस के राष्ट्रपति पुतिन और अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने आईएसआईस के खात्मे का संकल्प दोहराया है. अमेरिका को सीरिया में ISIS के खिलाफ हवाई हमले करते हुए एक साल हो गया है. रूस पिछले कुछ महीनों से ही इस लड़ाई में कूदा है. वैसे तो दोनों ही आईएसआईस के खिलाफ लड़ रहे हैं लेकिन गहराई से देखने पर हकीकत कुछ और ही नजर आती है.

अमेरिका ISIS के खिलाफ जंग छेड़े हुए है. शुरू में अमेरिका ने सीरिया के उन विद्रोही गुटों को हथियार और आर्थिक मदद देकर तैयार किया जो ISIS के खिलाफ लड़ सकें. लेकिन बाद में इन विद्रोही गुटों के अपने हथियार अलकायदा के सहयोगी नुसरा फ्रंट को सौंपने से अमेरिकी योजना फेल हो गई. अब अमेरिका का कहना है कि वह इस लड़ाई में नई सेना उतारने के बजाय वहां लड़ रहे विद्रोही गुटों को ही आर्थिक और हथियारों की मदद उपलब्ध कराएगा.

अमेरिका बशर को सत्ता से बेदखल करना चाहता है क्योंकि पिछले चार सालों के दौरान सीरिया में गृहयुद्ध में मारे गए लगभग 3 लाख लोगों की हत्याओं के लिए असद की सेना ही जिम्मेदार है. असद द्वारा सुन्नियों पर किए गए अत्याचार ने ही इस समुदाय के युवाओं को जेहादी बनने के लिए उकसाया. इसलिए अमेरिका का मानना है कि बशर की विदाई ही शांति बहाली का एकमात्र रास्ता है.

इसके उलट रूस सीरिया में शांति बहाली के लिए बशर अल असद को सत्ता में बनाए रखना चाहता है. रूस हमेशा से असद का समर्थक रहा है और उसे हथियार और आर्थिक मदद देता रहा है. रूस पर आरोप लगते रहे हैं कि वह ISIS के खिलाफ हवाई हमले न करके बशर के खिलाफ पश्चिमी देशों द्वारा समर्थित सीरियाई विद्रोहियों को निशाना बना रहा है. इसमें अमेरिका द्वारा ट्रेनिंग प्राप्त लड़ाके भी रूस के निशाने पर हैं. ऐसा करके रूस इस लड़ाई को ISIS बनाम बशर बनाना चाहता है और पश्चिमी देशों को बशर की सत्ता का समर्थन करने के लिए मजबूर कर रहा है.

इससे रूस पश्चिमी देशों को यह संदेश भेज रहा है कि ISIS के खात्मे के लिए बशर का सत्ता में रहना जरूरी है. बशर की बदौलत रूस सीरिया में अपना प्रभाव बढ़ाना चाहता है और उसकी यह कोशिश मिडिल-ईस्ट एशिया में अमेरिका वर्चस्व को चुनौती देकर नया शक्ति संतुलन स्थापित करने की कोशिशों का नतीजा है.

ISIS को उभारने के पीछे अमेरिका का हाथ? आज भले ही अमेरिका ISIS को शैतान कह रहा हो लेकिन खुद उसी पर इस संगठन को खड़ा करने का आरोप लगता रहा है. ठीक उसी तरह जैसे उसने 80 के दशक में अफगानिस्तान में रूस को घेरने के लिए अलकायदा को खड़ा किया था. यहां भी अमेरिका ने दुनिया के दूसरे सबसे बड़े तेल उत्पादक देश इराक को अस्त-व्यस्त करने और सीरिया में अव्यवस्था फैलाकर मिडिल-ईस्ट एशिया में खुद को मजबूत करने के लिए ISIS को पैसों से लकर हथियार देने तक में मदद की. ये बात और है कि अलकायदा की तरह ही अब ISIS अमेरिका के लिए भस्मासुर बनता नजर आ रहा. ऐसे में अब उसे इस आंतकी संगठन के खात्मे के लिए कार्रवाई करनी पड़ रही है. अमेरिका की ही तरह सऊदी अरब और कुछ अन्. मुस्लिम देशों पर भी दिखावे के लिए ISIS के खिलाफ लड़ाई लड़ने लेकिन अंदर से उसकी मदद करने के आरोप लगते रहे हैं.

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लेखक

अभिषेक पाण्डेय अभिषेक पाण्डेय @abhishek.journo

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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