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Updated: 06 जनवरी, 2019 05:40 PM
आशीष वशिष्ठ
आशीष वशिष्ठ
  @drashishv
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वर्ष 2019 में राम, राहुल और राफेल तीन ग्रह एक साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राजनीतिक कुण्डली में बैठे दिखाई दे रहे हैं. चुनावी वर्ष में इन तीन ग्रहों का एक साथ एक घर में बैठना मोदी के राजनैतिक भविष्य के लिए अशुभ एवं अप्रिय स्थितियां पैदा कर सकता है. राम मंदिर, राफेल डील और राहुल गांधी तीनों परस्पर विरोधी ग्रह हैं. तीन शत्रु ग्रह अगर किसी की भी कुण्डली में एक साथ बैठ जाएं तो मुश्किलें बढ़ना तय माना जाता है. फिलवक्त नरेंद्र मोदी की राजनीतिक कुण्डली इन तीन ग्रहों के अनिष्ट दुर्योग से बुरी तरह प्रभावित दिख रही है. राम मंदिर का मुद्दा सर्वोच्च न्यायालयय में लंबित है तो वहीं राफेल पर कांग्रेस ‘चौकीदार चोर है’ का नारा बुलंदी से लगा रही है. राहुल गांधी पिछले एक-डेढ़ वर्ष में मोदी से टक्कर लेने वाले नेता के तौर पर उभरे हैं. ऐसे में राम मंदिर, राफेल डील और राहुल गांधी ने फिलवक्त मोदी की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. मोदी अशुभ ग्रहों का संकट बखूबी महसूस कर रहे हैं, और शायद वो इनकी काट भी खोज रहे हों.

भारतीय जनता पार्टी आज जिस भव्य स्वरूप और राजनीतिक हैसियत में है, उसके पीछे राम मंदिर मुद्दे का सबसे बड़ा योगदान है. दो सांसदों से पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने तक जब-जब भाजपा संकट में पड़ी, उसे राम नाम ने ही सहारा दिया. भाजपा राम मंदिर मुद्दे को राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल करती रही है. लेकिन आज ये मुद्दा ऐसे मुकाम पर पहुंच चुका है, जहां भाजपा को इस मामले में कोई बड़ा व ठोस कदम उठाना जरूरी हो गया है. आज केन्द्र और उत्तर प्रदेश दोनों जगह भाजपा की सरकार है. भाजपा के सामने एकतरफ देश की वो जनता है जिसने उसे राम मंदिर के मुद्दे पर उसे समर्थन और वोट दिए तो दूसरी तरफ वो सुप्रीम कोर्ट है जहां मामले की सुनवाई लंबित है. अर्थात् इस मुद्दे पर भाजपा की स्थिति आगे कुआं, पीछे खाई वाली है. राम मंदिर के मुद्दे पर टाल-मटोल से भाजपा के सहयोगी, हिंदुवादी संगठन और खासकर आरएसएस में भी नाराजगी का माहौल है. असल में एससी-एसटी एक्ट में अध्यादेश लाकर मोदी सरकार ने खुद अपनी मुश्किलें बढ़ाई हैं. ऐसे में राम भक्त दलील दे रहे हैं कि राम मंदिर पर भी सरकार अध्यादेश लाए. पिछले दो-तीन महीने से यह मुद्दा दोबारा चर्चा में है. साधु-सन्त, आरएसएस, वीएचपी से लेकर राम भक्त राम मंदिर निर्माण के लिये मोदी सरकार पर दबाव बना रहे हैं. राम मंदिर पर सरकार की हीला-हवाली से भाजपा के समर्थक नाराज हैं. प्रधानमंत्री मोदी ने स्पष्ट कर दिया है कि सरकार अदालत के फैसले के बाद ही कोई कदम उठाएगी. सुप्रीम कोर्ट जल्द ही नयी बेंच बनाकर सुनवाई तय करेगा. मामला चूंकि सुप्रीम कोर्ट में लंबित है, ऐसे में भाजपा की हालत मशहूर फिल्म शोले के उस हाथ कटे ‘ठाकुर’ जैसी है, जो चिल्ला तो सकता था, लेकिन बेचारा कुछ कर नहीं पाता था.

नरेंद्र मोदी, राहुल गांधी, राम मंदिर, राफेल डीलफिलवक्त नरेंद्र मोदी की राजनीतिक कुण्डली तीन ग्रहों के अनिष्ट दुर्योग से बुरी तरह प्रभावित दिख रही है.

राम मंदिर की भांति राफेल डील के मामले ने मोदी सरकार की मुश्किलें बढ़ा रखी हैं. मोदी सरकार के अब तक के कार्यकाल में कांग्रेस को ‘राफेल डील’ ही एकमात्र ऐसा अस्त्र मिला है, जिससे वो मोदी सरकार को घेर पा रही है. सड़क से लेकर संसद और चुनावी मंच से लेकर चर्चाओं तक में कांग्रेस राफेल-राफेल चिल्ला रही है. प्रधानमंत्री के बयान, वित्त मंत्री की फटकार और रक्षामंत्री के ‘निर्मल ज्ञान और धुलाई’ के बाद भी कांग्रेस इस मुद्दे पर पीछे हटने को तैयार नहीं है. सुप्रीम कोर्ट भी खरीद की प्रक्रिया पर सरकार को क्लीन चिट दे चुका है. राहुल का आरोप है कि देश का पैसा पीएम मोदी ने अनिल अंबानी के जरिए चोरी करवाया. एचएएल से 30 हजार करोड़ का अनुबंध तोड़कर अनिल अंबानी को दे दिया गया. जिसके चलते देश के प्रतिभाशाली नौजवानों का रोजगार छिन गया. राहुल के मुताबिक राफेल डील पर अगर मुकम्मल जांच होती है तो दो घोटालेबाजों के नाम निकलेंगे. जिनमें पीएम मोदी और अनिल अंबानी का नाम शामिल होगा. रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण संसद में इस मुद्दे पर सिलसिलेवार जवाब दे चुकी हैं. बावजूद इसके कांग्रेस समझने को तैयार नहीं है. कांग्रेस इस मुद्दे पर जेपीसी की मांग कर रही है. वास्तव में कांग्रेस राफेल डील में भ्रष्टाचार का कीचड़ लगाकर मोदी सरकार का दामन दागदार करना चाहती है.

पिछले लगभग छह महीने की जीतोड़ मेहनत के बाद भी कांग्रेस इस मुद्दे पर मोदी सरकार को असरदार तरीके से घेर नहीं पा रही है. लेकिन ‘चैकीदार चोर है’ का शोर मचाकर वो देश की जनता को बरगलाने का काम बखूबी कर रही है. जिसका सियासी लाभ शायद उसे पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिला भी है. हिन्दी पट्टी के तीन राज्यों में मिली कामयाबी से ‘चैकीदार चोर है’ और राफेल-राफेल का राग कांग्रेस और जोर-शोर से बजाने लगी है. यह बात दीगर है कि कांग्रेस राफेल डील में भ्रष्टाचार से जुड़ा कोई ठोस प्रमाण या दस्तावेज अब तक पेश नहीं कर पायी है. न ही वो इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में पार्टी बनने की हिम्मत जुटा पायी. कांग्रेस की कोरी बयानबाजी और कागजी हवाई आरोपों के बावजूद मोदी सरकार को सड़क से लेकर संसद और सुप्रीम कोर्ट तक में सफाई तो देनी ही पड़ रही है. संसद में हुई हालिया चर्चा में राहुल गांधी ने रक्षा मंत्री को इस मामले में क्लीन चिट देने के साथ दोबारा सीधे तौर पर प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार के आरोप मढ़े हैं. चूंकि मामला देश की रक्षा जरूरतें पूरी करने से ज्यादा सियासी हो चुका है तो इस पर सियासत कम होने की बजाय बढ़ना लाजमी है. राफेल डील में मोदी सरकार भले ही अपनी पाक साफ छवि के लाख दावे करे और स्पष्टीकरण दे. भले ही वो जो कह रही हो वो सच भी हो, बावजूद इस मामले के उसका सिरदर्द तो बढ़ा ही रखा है.

नरेंद्र मोदी की राजनीतिक कुण्डली में जिस तीसरे ग्रह ने हलचल और अव्यवस्था फैला रखी है, उस ग्रह का नाम राहुल गांधी है. वो राहुल गांधी जिसे भाजपा व उसके सहयोगी संगठन ‘पप्पू’ कहकर चिढ़ाते थे. आज उस पप्पू का आत्मविश्वास इतना बढ़ चुका है कि वो संसद में खड़ा होकर कह सकता है कि, ‘आपके लिए मैं भले ही पप्पू हूं, आपके दिल में मेरे लिए नफरत हो सकती है, लेकिन मैं आपसे बहुत प्यार करता हूं.’ खुद पर तंज कसने और हंसने के लिये हिम्मत की जरूरत होती है. वक्त के थपेड़ों ने राहुल गांधी में वो हिम्मत पैदा कर दी है. अब राहुल गांधी प्रधानमंत्री को ललकाराते हुए ‘चौकीदार चोर है’ और ‘नाकाबिल इंसान’ तक कहने में झिझकते नहीं हैं. राहुल कहते हैं कि ‘वे साबित करेंगे कि देश का चैकीदार चोर है.’

पिछले एक साल से कांग्रेस की कमान संभाल रहे राहुल अपनी छवि सुधारने के लिये कैलाश मानसरोवर यात्रा से लेकर जनेऊ धारी फोटो जारी करने के तमाम प्रपंच रच रहे हैं. अपनी व पार्टी की मुस्लिम परस्त की छवि को तोड़कर वो सॉफ्ट हिंदुत्व की छवि गढ़ने में कामयाब होते दिखाई देते हैं. गुजरात व कर्नाटक विधानसभा चुनाव में भाजपा के पसीने छुड़ाने के बाद हिंदी पट्टी के तीन राज्यों की जीत ने राहुल का राजनीतिक कद और लोकप्रियता दोनों को बढ़ाया है. अब मीडिया भी उन्हें तवज्जो देने लगा है. आज राहुल गांधी एक नये ब्रांड के तौर पर उभरते दिखाई दे रहे हैं. हां, बीच-बीच में उनकी राजनीति, विचार, बॉडी लैंग्वेज और कार्यशैली बेपटरी हो जाती है. जिससे उनकी छवि को ठेस पहुंचती है. फिलवक्त राहुल नरेंद्र मोदी का विकल्प तो नहीं बन पाये हैं, लेकिन वो स्पष्ट तौर पर मोदी के सबसे मुखर राजनीतिक विरोधी बनकर जरूर उभरे हैं. मोदी को टक्कर देने के लिये अभी उन्हें जनता से ज्यादा जुड़ाव, स्वीकार्यता हासिल करने के अलावा लगातार प्रदर्शन की जरूरत है.

लब्बोलुबाब यह है कि राम मंदिर, राफेल और राहुल गांधी मोदी की राजनीतिक कुण्डली में किसी अनिष्ट ग्रह की भांति सत्ता के घर में एक साथ बैठ गये हैं. राम मंदिर के मुद्दे पर उन्हें देश की जनता के साथ अपनी पार्टी और अपने लोगों को भी जबाव देना है. राफेल डील को कांग्रेस ने झगड़े की बजाय रगड़ा बनाने का पूरा मन और तैयारी कर ली है. वहीं तेजी से उभरते ब्रांड राहुल गांधी भी प्रधानमंत्री को आंख में आंख डालकर बात करने और बहस करने की खुली चुनौती कदम-कदम पर दे रहे हैं. मोदी को 2019 में सत्ता हासिल करने के लिये राम मंदिर, राफेल और राहुल गांधी रूपी राजनीतिक ग्रहों को शान्त करने का उपाय करना होगा. अगर इनमें से एक भी ग्रह शक्तिशाली बनकर उभर आया तो वो मोदी के दोबारा राजतिलक के अरमानों पर पानी फेरने का काम कर सकता है.

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आशीष वशिष्ठ आशीष वशिष्ठ @drashishv

लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

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