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शुरू हुई चिकन की खेती... अब बिना हलाल के खाइए मुर्गा

    • आईचौक
    • Updated: 25 मार्च, 2017 12:41 PM
  • 25 मार्च, 2017 12:41 PM
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अमेरिका ने चिकन की खेती कर दी है. अमेरिका के एक फूड स्टार्टअप मेम्फिस मीट्स ने दुनिया में पहली बार लैब में चिकन तैयार करने का दावा किया है.

सोचिए आपको चिकन खाने को मिले और मुर्गे की मारने की भी जरूरत न पड़े तो... आप सोच रहे होंगे कि ये क्या बेतुकी बात है. लेकिन अमेरिका ने ऐसा कर दिखाया है. अमेरिका ने चिकन की खेती कर दी है. अमेरिका के एक फूड स्टार्टअप मेम्फिस मीट्स ने दुनिया में पहली बार लैब में चिकन तैयार करने का दावा किया है.

यानी ऐसा चिकन जिसके लिए किसी मुर्गे को मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यानी पशु प्रेमी भी खुश और आपको मिलेगा वैसा ही टेस्ट.

कैसे बनाया गया चिकन...

कंपनी की रिसर्च टीम ने इसे लैब में सेल्फ-रिप्रोड्यूसिंग सेल्स से तैयार किया है. इसके लिए रिसर्च टीम ने चिकन की एक सिंगल सेल (कोशिका) का इस्तेमाल किया है. इसका खुलासा 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' में छपी एक रिपोर्ट में किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार इस हफ्ते की शुरुआत में कम्पनी ने कुछ स्वाद प्रेमियों को बुलाकर अपने लैब में बनाए हुए चिकन और डक का स्वाद भी टेस्ट करवाया. रिपोर्ट के मुताबिक ये काफी सफल रहा. जिन लोगों ने भी इस चिकन को चखा, उनका कहना था कि इसका स्वाद बिलकुल असली चिकन और डक के मीट से मिलता-जुलता है और वे इसे दोबारा खाना पसंद करेंगे.

फायदे भी बहुत* जानवरों को मारना नहीं पड़ेगा* बड़ी आबादी के लिए फूद मुहैया हो पाएगा. * लैब में मीट उत्पादन से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रुकेगा* जानवरों को बड़ी मात्रा में एंटीबायोटिक्स खिलाई जाती हैं. इससे एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस होने का खतरा पैदा हो गया है. उस पर भी रोक लगेगी.

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यानी ऐसा चिकन जिसके लिए किसी मुर्गे को मारने की जरूरत नहीं पड़ेगी. यानी पशु प्रेमी भी खुश और आपको मिलेगा वैसा ही टेस्ट.

कैसे बनाया गया चिकन...

कंपनी की रिसर्च टीम ने इसे लैब में सेल्फ-रिप्रोड्यूसिंग सेल्स से तैयार किया है. इसके लिए रिसर्च टीम ने चिकन की एक सिंगल सेल (कोशिका) का इस्तेमाल किया है. इसका खुलासा 'वॉल स्ट्रीट जर्नल' में छपी एक रिपोर्ट में किया गया है.

रिपोर्ट के अनुसार इस हफ्ते की शुरुआत में कम्पनी ने कुछ स्वाद प्रेमियों को बुलाकर अपने लैब में बनाए हुए चिकन और डक का स्वाद भी टेस्ट करवाया. रिपोर्ट के मुताबिक ये काफी सफल रहा. जिन लोगों ने भी इस चिकन को चखा, उनका कहना था कि इसका स्वाद बिलकुल असली चिकन और डक के मीट से मिलता-जुलता है और वे इसे दोबारा खाना पसंद करेंगे.

फायदे भी बहुत* जानवरों को मारना नहीं पड़ेगा* बड़ी आबादी के लिए फूद मुहैया हो पाएगा. * लैब में मीट उत्पादन से ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन रुकेगा* जानवरों को बड़ी मात्रा में एंटीबायोटिक्स खिलाई जाती हैं. इससे एंटीबायोटिक्स रेजिस्टेंस होने का खतरा पैदा हो गया है. उस पर भी रोक लगेगी.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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