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गारंटी मिलने वाली है कि विमान हादसे में जान नहीं जाएगी !

    • आईचौक
    • Updated: 22 मई, 2017 08:08 PM
  • 22 मई, 2017 08:08 PM
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इंजीनियरों ने विमान दुर्घटना के हालात में यात्रियों की जान बचाने का तोड़ निकाल लिया है.

22 मई भारतीय विमान इतिहास का काला दिन है. कम ही लोगों को याद होगा कि आज ही के दिन 2010 में दुबई से मैंगलोर आ रहा एयर इंडिया का बोइंग 737-800 विमान आखिरी मौके पर हादसे का शिकार हो गया. इस हादसे में 158 लोगों की मौत हो हुई थी. ये इतने बड़े पैमाने पर हुआ अकेला हादसा नहीं है, इससे पहले भी भारतीय उड्डयन में दो बड़े हादसे हो चुके हैं.

इसमें 1996 में दिल्ली के पास चरखी दादरी में दो विमान आपस में टकरा गए थे और इस हादसे में 349 लोग मारे गए थे. दूसरा, 1978 में एयर इंडिया के ही एक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से 213 लोग मारे गए थे. ये भारतीय विमान उड्डयन इतिहास से जुड़ी तीन बड़ी घटनाए हैं. यही नहीं कभी न कभी ऐसे हादसे होते रहते हैं.

इतिहास में दर्ज ये हादसे तो कभी भुला नहीं सकते, लेकिन अब ऐसी टेक्नोलॉजी आ गई हैं जो हादसों को तो नहीं रोकेगी, लेकिन यह सुनिश्चित कर देगी कि इसमें किसी की जान न जाए. अब आप सोच रहे होंगे कि हवा में यदि विमान खराब हुआ तो मरने के अलावा और क्‍या चारा होगा. लेकिन, इंजीनियरों ने इसी बात का चैलेंज लिया और एक तोड़ निकाल दिया.

इंजीनियर्स ने हादसों से बचने के लिए ऐसी तकनीक ढूंढ निकाली है जो वाकई शानदार है. यहां उन्होंने बताया कि किस तरीके से आपातकालीन स्थिति में विमान के केबिन को अलग कर के उस में सवार लोगों की जान बचाई जा सकती है. इस नए डिजाइन में टेक-ऑफ, लैंडिंग और उड़ान के समय कैबिन को विमान से अलग किये जाने पर यात्री को जमीन पर या पानी में सुरक्षित उतारा सकता है.

विमान इंजीनियर व्लादिमीर तातारेंको ने इतना तक कह दिया कि, अगर कोई विमान दुर्घटना होती है तो उसमें...

22 मई भारतीय विमान इतिहास का काला दिन है. कम ही लोगों को याद होगा कि आज ही के दिन 2010 में दुबई से मैंगलोर आ रहा एयर इंडिया का बोइंग 737-800 विमान आखिरी मौके पर हादसे का शिकार हो गया. इस हादसे में 158 लोगों की मौत हो हुई थी. ये इतने बड़े पैमाने पर हुआ अकेला हादसा नहीं है, इससे पहले भी भारतीय उड्डयन में दो बड़े हादसे हो चुके हैं.

इसमें 1996 में दिल्ली के पास चरखी दादरी में दो विमान आपस में टकरा गए थे और इस हादसे में 349 लोग मारे गए थे. दूसरा, 1978 में एयर इंडिया के ही एक विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने से 213 लोग मारे गए थे. ये भारतीय विमान उड्डयन इतिहास से जुड़ी तीन बड़ी घटनाए हैं. यही नहीं कभी न कभी ऐसे हादसे होते रहते हैं.

इतिहास में दर्ज ये हादसे तो कभी भुला नहीं सकते, लेकिन अब ऐसी टेक्नोलॉजी आ गई हैं जो हादसों को तो नहीं रोकेगी, लेकिन यह सुनिश्चित कर देगी कि इसमें किसी की जान न जाए. अब आप सोच रहे होंगे कि हवा में यदि विमान खराब हुआ तो मरने के अलावा और क्‍या चारा होगा. लेकिन, इंजीनियरों ने इसी बात का चैलेंज लिया और एक तोड़ निकाल दिया.

इंजीनियर्स ने हादसों से बचने के लिए ऐसी तकनीक ढूंढ निकाली है जो वाकई शानदार है. यहां उन्होंने बताया कि किस तरीके से आपातकालीन स्थिति में विमान के केबिन को अलग कर के उस में सवार लोगों की जान बचाई जा सकती है. इस नए डिजाइन में टेक-ऑफ, लैंडिंग और उड़ान के समय कैबिन को विमान से अलग किये जाने पर यात्री को जमीन पर या पानी में सुरक्षित उतारा सकता है.

विमान इंजीनियर व्लादिमीर तातारेंको ने इतना तक कह दिया कि, अगर कोई विमान दुर्घटना होती है तो उसमें यात्रियों को सही सलामत बचाया जा सकता है. यही कारण है कि इस डिजाइन को पूरा करने के लिए तातारेंको 3 साल काम कर रहे हैं. इस पूरी प्रक्रिया में पैराशूट को कैबिन के छत पर लगाया जाएगा और कैबिन के विमान से अलग होने पर वह अपने आप खुल जाएगा. देखिए वीडियो :

कैबिन के तल में रबर ट्यूब होंगे, जो जमीन पर गिरने की स्थिति में कुशन और पानी में गिरने की स्थिति में उसे डूबने से बचाएंगे.

आप सफर कर रहे हैं तो सामान तो साथ में होगा ही, तो इसके लिए भी इसमें निचली जगह रखी गई है जहां आपके साथ आपका सामान भी सुरक्षित रह सकता है. देखिए किस तरीके से ऊपर की तरफ पैराशूट और नीचे की तरफ सामान रखा जा सकता है. आंकड़ों की माने तो साल भर में करोड़ो उड़ान भरी जाती है. हर साल विमान हादसों में औसत 500 लोगों की जान जाती है. शोध में पाया गया है कि 8 प्रतिशत हादसे उड़ान भरते समय और 21 प्रतिशत हादसे लैंडिंग के समय होते हैं. बाकी 71 प्रतिशत हादसे उड़ान के दौरान ही होते हैं. और यह टेक्‍नोलॉजी ऐसे हालात में सबसे ज्‍यादा कारगर हो सकती है. एक सर्वे में पाया गया है कि यदि ऐसी किसी टेक्‍नोलॉजी वाले विमान का यात्रा टिकट 15 प्रतिशत महंगा भी हो तो 95 फीसदी यात्री उसे सहर्ष चुकाने को राजी हैं.

तो इंतजार कीजिए, इस कॉन्‍सेप्‍ट को हकीकत में बदलने का.

( कंटेंट : सुंदरम् झा, इंटर्न, iChowk)

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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