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जानिए किसने बनाया बुलेट को 'रॉयल'

    • मोहित चतुर्वेदी
    • Updated: 23 मई, 2017 02:59 PM
  • 23 मई, 2017 02:59 PM
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एक आया, जब भारत की सड़कों पर राज करने वाली रॉयल इनफील्‍ड बुलेट की हालत चल चुकी गोली की तरह हो गई थी. फिर एक शख्स आया और उसने इस मोटरसाइकिल में बारूद भर दिया.

खबर है कि रॉयल इनफील्‍ड इटली की मशहूर मोटरसाइकिल कंपनी डुकाटी को खरीदने जा रही है. क्रूजर बाइक की दुनिया में जो रुतबा हार्ले डेविडसन का है, आला दर्जे की स्‍पोर्ट्स बनाने वाली कंपनियों में वैसा ही नाम डुकाटी का है. फिलहाल यह कंपनी फॉक्‍सवैगन के अधीन है, जो इसे बेचने पर विचार कर रही है. खैर, बड़ी बात यह है कि दुनिया की इस जानी-मानी कंपनी को खरीदने वालों में सबसे आगे चल रही है रॉयल इनफील्‍ड. जो इस सदी की शुरुआत में बंद होने की कगार पर थी.

हैरान करने वाली है रॉलय इनफील्‍ड की कहानी

ब्रिटिश कंपनी रॉयल इनफील्‍ड का यह ब्रांड वैसे तो 1949 में ही भारत द्वारा खरीदा जा चुका था, लेकिन यह चर्चा में 1955 में आया, जब भारत सरकार ने रॉयल इनफील्‍ड कंपनी को 800 बाइक का ऑर्डर दिया था. यह मोटरसाइकिलें पुलिस और सेना के लिए मंगवाई गई. उसके बाद से ही इसकी पहचान फोर्स वालों की सवारी के रूप में बन गई.

इसे या तो पुलिस वालों या फिर किसी दबंग व्‍यक्ति के पास ही पाया जाता था. और यही बात इसकी तरक्‍की में रुकावट भी थी. बेहद भारी होने के साथ-साथ इस बाइक को किक मारना किसी हलके-पतले आदमी के बूते की बात नहीं थी. किसी अनाड़ी को तो यह किक अच्‍छा खासा दर्द भी दे जाती थी. इन मोटरसाइकिलों के साथ दूसरी परेशानी थी, इनके गियर. जो आम मोटरसाइकिलों में बाईं ओर थे, तो बुलेट में दाहिनी ओर.

रॉयल एन्फील्ड की तकदीर और तस्वीर बदल दी सिद्धार्थ लाल ने

सन् 2000 का वो टर्निंग पाइंट

26 साल के सिद्धार्थ लाल ने जब रॉयल इनफील्‍ड के सीईओ पद को संभाला तो कंपनी बहुत बुरे दौर से गुजर रही थी. बुलेट के खरीदार न के बराबर थे. फिर सिद्धार्थ ने अपने आइकन रही मोटरसाइकिलों में कुछ बदलाव...

खबर है कि रॉयल इनफील्‍ड इटली की मशहूर मोटरसाइकिल कंपनी डुकाटी को खरीदने जा रही है. क्रूजर बाइक की दुनिया में जो रुतबा हार्ले डेविडसन का है, आला दर्जे की स्‍पोर्ट्स बनाने वाली कंपनियों में वैसा ही नाम डुकाटी का है. फिलहाल यह कंपनी फॉक्‍सवैगन के अधीन है, जो इसे बेचने पर विचार कर रही है. खैर, बड़ी बात यह है कि दुनिया की इस जानी-मानी कंपनी को खरीदने वालों में सबसे आगे चल रही है रॉयल इनफील्‍ड. जो इस सदी की शुरुआत में बंद होने की कगार पर थी.

हैरान करने वाली है रॉलय इनफील्‍ड की कहानी

ब्रिटिश कंपनी रॉयल इनफील्‍ड का यह ब्रांड वैसे तो 1949 में ही भारत द्वारा खरीदा जा चुका था, लेकिन यह चर्चा में 1955 में आया, जब भारत सरकार ने रॉयल इनफील्‍ड कंपनी को 800 बाइक का ऑर्डर दिया था. यह मोटरसाइकिलें पुलिस और सेना के लिए मंगवाई गई. उसके बाद से ही इसकी पहचान फोर्स वालों की सवारी के रूप में बन गई.

इसे या तो पुलिस वालों या फिर किसी दबंग व्‍यक्ति के पास ही पाया जाता था. और यही बात इसकी तरक्‍की में रुकावट भी थी. बेहद भारी होने के साथ-साथ इस बाइक को किक मारना किसी हलके-पतले आदमी के बूते की बात नहीं थी. किसी अनाड़ी को तो यह किक अच्‍छा खासा दर्द भी दे जाती थी. इन मोटरसाइकिलों के साथ दूसरी परेशानी थी, इनके गियर. जो आम मोटरसाइकिलों में बाईं ओर थे, तो बुलेट में दाहिनी ओर.

रॉयल एन्फील्ड की तकदीर और तस्वीर बदल दी सिद्धार्थ लाल ने

सन् 2000 का वो टर्निंग पाइंट

26 साल के सिद्धार्थ लाल ने जब रॉयल इनफील्‍ड के सीईओ पद को संभाला तो कंपनी बहुत बुरे दौर से गुजर रही थी. बुलेट के खरीदार न के बराबर थे. फिर सिद्धार्थ ने अपने आइकन रही मोटरसाइकिलों में कुछ बदलाव किए. उनकी पहचान रही ताकत और इंजन की आवाज को बदले बिना. कुछ नए मॉडल उतारे. और लौटाए लाए रॉयल इनफील्‍ड की खोई हुई पहचान को.

सिद्धार्थ ने सबसे ज्‍यादा बदलाव किया डिस्‍ट्रीब्‍यूटर्स के स्‍तर पर. मोटरसाइकिल को ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों के बीच ले गए. युवाओं को जोड़ने वाले फीचर मोटरसाइकिल में डाले. कठोर किक को आसान बनाया और सेल्‍फ स्‍टार्ट का फीचर भी डाला.

बाजार के जानकार कहते हैं कि किसी ऑटो कंपनी के कायापलट का अनूठा उदाहरण है रॉलय इनफील्‍ड. 2001 में यदि किसी व्‍यक्ति ने 55 हजार रु. की बुलेट खरीदने के बजाए यदि इतने रुपए का निवेश आयशर मोटर्स के शेयर्स (17.50 रु./शेयर)  खरीदकर किया होता तो आज उसके पास पुरानी बुलेट बाइक के बजाए 8.5 करोड़ रुपए होते.

आखिर क्‍या है इस दीवानगी की वजह

मोटरसाइकिलों में यदि कोई दबंग है तो रॉयल इनफील्‍ड बुलेट. 'डग-डग-डग' की रौबदार आवाज. चलाने वाले की काया जैसी भी हो, लेकिन इस मोटरसाइकिल की सवारी करते हुए उसका सीना तन ही जाता है. ये एक ऐसी मोटरसाइकिल है, जिसके बारे में यह मायने नहीं रखता है कि वह किस सन में बनी है.

देशभर में लोगों ने इसके रूप में मनचाहा परिवर्तन कराया है. लेकिन इस शाही दुपहिया सवारी की सल्‍तनत हमेशा इतनी ताकतवर नहीं रही है. एक वो दौर भी आया था, जब यह कंपनी बंद होने की कगार पर थी. आज सबका सपना है कि घर में रॉयल एन्फील्ड आए. अब ये बाइक हर युवा दिलों की धड़कन बन चुकी है.

बुलेट को रॉयल बनाया इस शख्स ने

1971 में रॉयल एनफील्ड ने ब्रिटेन में बाइक बनाना बंद कर दिया था, लेकिन इंडिया में बुलेट बनती रही. बुलेट की सालाना बिक्री कम होकर 2000 हो गई. तब आयशर ग्रुप के पूर्व सीईओ विक्रम लाल के बेटे सिद्धार्थ ने कमान संभाली और घाटे को मुनाफे में बदल दिया. 2000 में सिद्धार्थ लाल रॉयल एन्फील्ड के CEO बने. हर साल रॉयल एन्फील्ड की बिक्री बढ़ती जा रही है. कंपनी ने 2005 में 25 हजार रॉयल एन्फील्ड बेंची.

जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. लगातार तरक्की के बाद 2012 में 81,464 मोटरसाइकिलें बिकीं. साल 2015 में रॉयल एनफील्ड 'बुलेट' ने 50% की ग्रोथ के साथ बिक्री के नए रिकॉर्ड बनाए. 2016 वित्त वर्ष में 1,47,618 एन्फील्ड बिकीं तो 2017 मार्च में समाप्त चौथी तिमाही में कंपनी ने 1,78,345 मोटरसाइकिल की बिक्री की. कंपनी के नए संयंत्र के अगस्त 2017 तक चालू हो जाने की संभावना है जिसकी 2017-18 में उत्पादन क्षमता 8,25,000 मोटरसाइकिल होगी. अब कंपनी विदेशों में अपना बिजनेस फैलाने की प्लानिंग कर रही है. 

15 में से 13 बिजनेस बेचे

2004 में सिद्धार्थ लाल ने आयशर ग्रुप के सीईओ का पद संभाला, तब ग्रुप 15 सेक्टर में एक्टिव था, लेकिन किसी मार्केट का लीडर नहीं था. सिद्धार्थ ने 13 बिजनेस बेच दिए. फिर उन्होंने ट्रक के अलावा बाइक के बिजनेस पर पूरा फोकस किया. सिद्धार्थ लाल जब रॉयल एन्फील्ड के CEO बने तो वो 26 साल के साथ. यंग माइंड के साथ उन्होंने कंपनी को जिस तरह ऊचाईयों तक पहुंचाया वो काबिले तारीफ है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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