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मानव अंतरिक्ष मिशन की ओर इसरो की जोरदार छलांग

    • राहुल लाल
    • Updated: 08 जुलाई, 2018 01:43 PM
  • 08 जुलाई, 2018 01:43 PM
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किसी अंतरिक्ष यात्री को स्पेस में भेजे जाने के दौरान जब रॉकेट लॉन्च पेड से छोड़ा जाता है तब क्रू को ही सबसे ज्यादा खतरा रहता है. ऐसे में इसरो के इस टेस्ट को महत्वपूर्ण सफलता माना जा सकता है.

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अंतरिक्ष यात्रियों से जुड़े अभियान की दिशा में एक और कामयाबी हासिल की है. इसरो ने क्रू एस्केप सिस्टम का सफल परीक्षण किया है जो अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम है.

क्या है क्रू एस्केप सिस्टम

क्रू एस्केप सिस्टम अंतरिक्ष अभियान को रोके जाने की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को वहां से निकलने में मदद करेगा. दूसरे शब्दों में, मानव मिशन लॉन्च करते वक्त अगर किसी कारणवश रॉकेट प्रणाली या कहीं कोई अन्य खराबी आ गई तो विध्वंस से पहले अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित निकालकर एक दूरी पर सफलतापूर्वक उतारने में यह तकनीक मददगार होगी. किसी अंतरिक्ष यात्री को स्पेस में भेजे जाने के दौरान जब रॉकेट लॉन्च पेड से छोड़ा जाता है तब क्रू को ही सबसे ज्यादा खतरा रहता है. यही कारण है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सुरक्षा को अत्यधिक प्राथमिकता दी जाती है, ऐसे में इसरो के इस टेस्ट को महत्वपूर्ण सफलता माना जा सकता है. इससे पहले सिर्फ 3 देशों- अमेरिका, रूस और चीन के पास इस तरह की सुविधा है. भारत ने पहली बार के परीक्षण में ही यह सफलता हासिल कर ली.

अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है

गुरुवार को 5 घंटे उल्टी गिनती के बाद श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से डमी क्रू मॉडयूल के साथ 12.6 टन वजनी क्रू स्पेस सिस्टम का सुबह 7 बजे परीक्षण किया गया. यह परीक्षण 259 सेकेंड में सफलतापूर्वक खत्म हो गया. इस दौरान क्रू मॉडयूल के साथ क्रू एस्केप सिस्टम ऊपर की ओर उड़ा और फिर श्री हरिकोटा से 2.9 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में पैराशूट की मदद से उतर गया. परीक्षण उड़ान के दौरान लगभग 300 सेंसर ने विभिन्न मिशन प्रदर्शन मानकों को रिकॉर्ड किया. इसरो के अनुसार, प्रथम परीक्षण में...

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अंतरिक्ष यात्रियों से जुड़े अभियान की दिशा में एक और कामयाबी हासिल की है. इसरो ने क्रू एस्केप सिस्टम का सफल परीक्षण किया है जो अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण कदम है.

क्या है क्रू एस्केप सिस्टम

क्रू एस्केप सिस्टम अंतरिक्ष अभियान को रोके जाने की स्थिति में अंतरिक्ष यात्रियों को वहां से निकलने में मदद करेगा. दूसरे शब्दों में, मानव मिशन लॉन्च करते वक्त अगर किसी कारणवश रॉकेट प्रणाली या कहीं कोई अन्य खराबी आ गई तो विध्वंस से पहले अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित निकालकर एक दूरी पर सफलतापूर्वक उतारने में यह तकनीक मददगार होगी. किसी अंतरिक्ष यात्री को स्पेस में भेजे जाने के दौरान जब रॉकेट लॉन्च पेड से छोड़ा जाता है तब क्रू को ही सबसे ज्यादा खतरा रहता है. यही कारण है कि अंतरिक्ष कार्यक्रमों में सुरक्षा को अत्यधिक प्राथमिकता दी जाती है, ऐसे में इसरो के इस टेस्ट को महत्वपूर्ण सफलता माना जा सकता है. इससे पहले सिर्फ 3 देशों- अमेरिका, रूस और चीन के पास इस तरह की सुविधा है. भारत ने पहली बार के परीक्षण में ही यह सफलता हासिल कर ली.

अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम है

गुरुवार को 5 घंटे उल्टी गिनती के बाद श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से डमी क्रू मॉडयूल के साथ 12.6 टन वजनी क्रू स्पेस सिस्टम का सुबह 7 बजे परीक्षण किया गया. यह परीक्षण 259 सेकेंड में सफलतापूर्वक खत्म हो गया. इस दौरान क्रू मॉडयूल के साथ क्रू एस्केप सिस्टम ऊपर की ओर उड़ा और फिर श्री हरिकोटा से 2.9 किमी दूर बंगाल की खाड़ी में पैराशूट की मदद से उतर गया. परीक्षण उड़ान के दौरान लगभग 300 सेंसर ने विभिन्न मिशन प्रदर्शन मानकों को रिकॉर्ड किया. इसरो के अनुसार, प्रथम परीक्षण में लॉन्च पैड पर किसी भी जरूरत पर क्रू सदस्यों को सुरक्षित बचाने के परिणाम को दिखाया गया. इस दौरान क्रू एस्केप सिस्टम ने सफलतापूर्वक क्रू मॉडयूल को गुरूत्वाकर्षण के सुरक्षित स्तर के भीतर रखा और सुरक्षित जी लेवल से ऊपर नहीं जाने दिया.

मानव मिशन के लिए इसरो की तैयारियां

इसके पहले 2007 में सैटेलाइट रीएन्ट्री परीक्षण, 2014 में जब जियोसिंक्रोनस उपग्रह का परीक्षण वाहन(जीएसएलवी) मार्क-3 का परीक्षण हुआ था, तब भारत ने एक डमी क्रू मॉडयूल टेस्ट किया था. उसके साथ-साथ अंतरिक्ष यात्रियों के स्पेस सूट का टेस्ट हुआ है. बहुत सारे परीक्षण साथ-साथ चल रहे हैं. इसरो धीरे-धीरे कदम उठाकर सूक्ष्म तकनीक के विकास में लगा है. वह अंतरिक्ष में भारतीय यात्रियों को भेजने की तैयारी कर रहा है, ताकि जब सरकार से अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की स्वीकृति मिले, तो इसरो की तैयारियां पूरी हो गई हों.

मानव अंतरिक्ष मिशन की चुनौतियां

मानव अंतरिक्ष मिशन सामान्य उपग्रहों से काफी अलग होता है. सामान्य उपग्रह मिशन पूरी तरह से रोबोटिक होते हैं, लेकिन मानव मिशन में भेजे गए अंतरिक्ष यात्रियों को हर हालत में सुरक्षित वापस लाने के लिए तकनीकी मजबूती और उसकी गुणवत्ता बहुत अधिक होना जरूरी है. भारत अभी उसकी ओर कदम बढ़ा रहा है. पिछले साल जीएसएलवी-मार्क-3 डी-1 रॉकेट के सफल परीक्षण से ही स्पष्ट था कि यही रॉकेट भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को लेकर जाएगा. भारत के भविष्य के अंतरिक्ष यात्री को "गेगानॉट्स या व्योमैनॉट्स" का नाम दिया गया है. भविष्य में अंतरिक्ष यात्रियों को स्पेस में भेजने के कार्यक्रम के लिए इसरो ने भारत सरकार से पिछले वर्ष ही 15,000 करोड़ रूपये आवंटन की मांग की है. जब भारत पहली बार अपने अंतरिक्ष यात्रियों को भेजेगा, तो उन्हें धरती की कम दूरी की कक्षा अर्थात लो अर्थ ऑरबिट में भेजा जाएगा ताकि उन्हें सफलतापूर्वक वापस भी लाया जाए.

इसरो अध्यक्ष के. सिवन ने भी कहा कि परीक्षण शानदार और पूरी तरह सफल रहा. उन्होंने भी कहा कि क्रू एस्केप सिस्टम स्वदेशी मानव युक्त अंतरिक्ष मिशन का एक बेहद महत्वपूर्ण भाग है. अगले परीक्षण के दौरान स्पेस कैप्सूल को उड़ान अवस्था में ही अलग करने की कोशिश होगी. मानव मिशन के लिए कई उपकरणों, प्रणालियों की आवश्यकता है जिसमें से कुछ का परीक्षण गुरुवार को हुआ तथा कई प्रणालियों का परीक्षण भविष्य में किया जाएगा.

मानव मिशन हेतु अंतरिक्ष यान में जीवन रक्षक तंत्र तैयार करना होगा. उसमें ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति, नियंत्रित दबाव, पर्यावरण, खाद्य आपूर्ति, मानव कचरा निस्तारण और अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा प्रणाली के साथ-साथ आपात स्थिति में उन्हें बचाने की तकनीक होनी चाहिए.

वैश्विक मानव अंतरिक्ष अभियान और भारत

सोवियत संघ ने वोस्तोक-1 अभियान के द्वारा 12 अप्रैल 1961 को यूरी गागरिन को अंतरिक्ष भेजा. यूरी अंतरिक्ष पहुंचने वाले पहले व्यक्ति बने. इसके बाद सोवियत संघ की चुनौती को स्वीकार करते हुए 1961 में ही अमेरिका ने मरकरी मिशन लॉन्च किया. फ्रीडम-7 अंतरिक्षयान पांच मई को एलन शेफर्ड को फ्लोरिडा से लेकर रवाना हुआ. इस तरह अंतरिक्ष पहुंचने वाले एलन पहले अमेरिकी बने.

आर्थिक महाशक्ति का आभास कराने के लिए अमेरिका और रूस को टक्कर देना चीन के लिए जरुरी था. लिहाजा 2003 में चीन ने यह अभियान अंतरिक्ष रवाना किया. इसके तहत 15 अक्टूबर को यांग लीवी अंतरिक्ष पहुंचने वाले पहले चीनी नागरिक बने. भारतीय वायु सेना के पूर्व पायलट राकेश शर्मा ने रूस के सोयूज टी-11यान से दो अप्रैल 1984 को अंतरिक्ष की उड़ान भरी. अंतरिक्ष पहुंचने वाले पहले और अब तक एक मात्र भारतीय नागरिक बने.

इस तरह "ह्यूमन स्पेस फ्लाइट" करने वाले केवल तीन देश रूस, अमेरिका और चीन हैं. ये तीनों ही देश अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने और वापस लाने के मामले में आत्मनिर्भर हैं. अगर भारत अंतरिक्ष में यात्री भेजने में कामयाब रहा तो वो ऐसा करने वाला चौथा देश बन जाएगा. अंतरिक्ष के क्षेत्र में इसरो लगातार बहुत अहम छलांग लगा रहा है. इस परीक्षण से स्पष्ट हो गया कि अंतरिक्ष यात्रियों को वापस लाने की तकनीक अब भारत के पास भी है.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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