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इलेक्ट्रिक कार से एक भारतीय ने 5 साल में बचा लिए हैं 5 लाख!

    • श्रुति दीक्षित
    • Updated: 23 अप्रिल, 2019 04:41 PM
  • 23 अप्रिल, 2019 04:20 PM
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इलेक्ट्रिक गाड़ियों को भारतीय बाजार में धीरे-धीरे बढ़त मिल रही है. वो कैसे सभी ग्राहकों के लिए उपयुक्त हो सकती हैं ये नोएडा के एक व्यक्ति से पूछिए जिसने पांच साल में पांच लाख बचा लिए.

भारत में इलेक्ट्रिक कारों का चलन अभी ठीक तरह से आया नहीं है. सड़कों पर अभी भी धुआं उगलती, प्रदूषण फैलाती गाड़ियां ही दिखेंगी जो न तो हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी हैं और न ही जेब के लिए, लेकिन अधिकतर लोग ये सोचते हैं कि किया क्या जाए कोई और विकल्प भी तो नहीं. पर ऐसा सोचने वालों को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि कई ऑटोमोबाइल कंपनियां इस वक्त इलेक्ट्रिक गाड़ियां बना रही हैं और भारतीय मार्केट में लाने की तैयारी में हैं. अगर ये कारण काफी नहीं है तो एक ऐसी कहानी जानिए जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों के प्रति शायद भारत की सोच को बदलने में मदद करेगी.

जैसे बड़े होते हुए हमारे दिमाग में मारुति की एक छवि हुआ करती थी जिससे जिंदगी खुशगवार हो जाएगी और ये कार सारी जरूरतों को पूरा कर देगी. अब अधिकतर लोगों के दिमाग में एसयूवी आती है जो रईसी का अहसास करवाती है, लेकिन साथ ही साथ हमारे बजट से भी बाहर रहती है. जहां कार खरीदने की बात है तो एक बार को EMI देकर कार खरीद भी ली जाए, लेकिन उसकी मेंटेनेंस और बाकी खर्च इतने ज्यादा होते हैं कि समझ ही नहीं आता क्या किया जाए.

इलेक्ट्रिक कार इसी मुश्किल का जवाब है और यहां बात हो रही है नोएडा में रहने वाले के.वी.सुरेश की जिनकी इलेक्ट्रिक कार उन्हें 5 सालों में 1 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा की सैर करवा चुकी है. सुरेश जी ने इतनी लंबी यात्रा कर ली और उनकी कार का मेंटेनेंस और ईंधन का खर्च 1 लाख रुपए से भी कम आया और वो भी 5 सालों में.

के.वी.सुरेश ने 2014 में एक इलेक्ट्रिक कार ली थी जो उस समय भारतीय मार्केट के लिए काफी नया कॉन्सेप्ट था. अब तो बहुत सी इलेक्ट्रिक कारें भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट का हिस्सा बन चुकी हैं.

के वी सुरेश इस गाड़ी को हर रात चार्ज करते हैं.

उस समय इस इलेक्ट्रिक कार की कीमत 6...

भारत में इलेक्ट्रिक कारों का चलन अभी ठीक तरह से आया नहीं है. सड़कों पर अभी भी धुआं उगलती, प्रदूषण फैलाती गाड़ियां ही दिखेंगी जो न तो हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छी हैं और न ही जेब के लिए, लेकिन अधिकतर लोग ये सोचते हैं कि किया क्या जाए कोई और विकल्प भी तो नहीं. पर ऐसा सोचने वालों को ये भी ध्यान रखना चाहिए कि कई ऑटोमोबाइल कंपनियां इस वक्त इलेक्ट्रिक गाड़ियां बना रही हैं और भारतीय मार्केट में लाने की तैयारी में हैं. अगर ये कारण काफी नहीं है तो एक ऐसी कहानी जानिए जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों के प्रति शायद भारत की सोच को बदलने में मदद करेगी.

जैसे बड़े होते हुए हमारे दिमाग में मारुति की एक छवि हुआ करती थी जिससे जिंदगी खुशगवार हो जाएगी और ये कार सारी जरूरतों को पूरा कर देगी. अब अधिकतर लोगों के दिमाग में एसयूवी आती है जो रईसी का अहसास करवाती है, लेकिन साथ ही साथ हमारे बजट से भी बाहर रहती है. जहां कार खरीदने की बात है तो एक बार को EMI देकर कार खरीद भी ली जाए, लेकिन उसकी मेंटेनेंस और बाकी खर्च इतने ज्यादा होते हैं कि समझ ही नहीं आता क्या किया जाए.

इलेक्ट्रिक कार इसी मुश्किल का जवाब है और यहां बात हो रही है नोएडा में रहने वाले के.वी.सुरेश की जिनकी इलेक्ट्रिक कार उन्हें 5 सालों में 1 लाख किलोमीटर से भी ज्यादा की सैर करवा चुकी है. सुरेश जी ने इतनी लंबी यात्रा कर ली और उनकी कार का मेंटेनेंस और ईंधन का खर्च 1 लाख रुपए से भी कम आया और वो भी 5 सालों में.

के.वी.सुरेश ने 2014 में एक इलेक्ट्रिक कार ली थी जो उस समय भारतीय मार्केट के लिए काफी नया कॉन्सेप्ट था. अब तो बहुत सी इलेक्ट्रिक कारें भारतीय ऑटोमोबाइल मार्केट का हिस्सा बन चुकी हैं.

के वी सुरेश इस गाड़ी को हर रात चार्ज करते हैं.

उस समय इस इलेक्ट्रिक कार की कीमत 6 लाख लगभग थी. पांच साल इस कार को चलाने के बाद के.वी.सुरेश ने इस कार से 1 लाख किलोमीटर का सफर कर लिया है और एक खास इंटरव्यू में सुरेश ने बताया कि कैसे उनकी गाड़ी न सिर्फ किफायती थी बल्कि उन्हें बहुत ज्यादा कोई दिक्कर हुई नहीं. वो हर रोज़ इसी गाड़ी से सफर करते थे और रात में इसे चार्ज करते थे. एक बार चार्ज करने से ये गाड़ी 100 किलोमीटर चल जाती थी और अगर ध्यान से चलाई जाए तो 120 किलोमीटर भी चल सकती है.

सुरेश के मुताबिक कार 10 किलोमीटर हर यूनिट पर चलती थी और अगर 1 यूनिट की कीमत 5 रुपए आंकी जाए तो 1 लाख किलोमीटर चलने की कीमत 50 हज़ार ही रही होगी. उन्हें 5 सालों में इसकी मेंटेनेंस के लिए 35000 रुपए खर्च करने पड़े.

अगर इसी कीमत में पेट्रोल कार ली जाती जिसका माइलेज भी कई सालों में कम हो जाता तो 12 किलोमीटर प्रति लीटर के हिसाब से 5.8 लाख रुपए कम से कम लगते 1 लाख किलोमीटर का सफर करने में और ये तब जब पेट्रोल की कीमत 70 रुपए ही रहती. सुरेश की कार की बैटरी तो अभी तक बदली नहीं गई है.

सुरेश ने अपनी गाड़ी से करीब 4.8 लाख रुपए की बचत की जिसे एक नई गाड़ी की कीमत कहा जाए तो गलत नहीं होगा. भारतीय मार्केट में शुरुआती दौर को देखा जाए तो भले ही इलेक्ट्रिक कारों के ऑप्शन ज्यादा नहीं हैं, लेकिन लो रेंज से लेकर मिड लेवल तक ही नहीं हाई रेंज प्रीमियम लग्जरी गाड़ियों तक इलेक्ट्रिक मॉडल मिल जाएंगे.

महिंद्रा e2oPlus, एटम मोटर्स की स्टेलर, महिंद्रा की e-Verito, टाटा की टिगोर इलेक्ट्रिक, महिंद्रा की e-KV 100, टाटा टिआगो इलेक्ट्रिक, ऑडी e-Tron, निसान लीफ आदि गाड़ियां मिल जाएंगी.

ह्युंडई भी जल्द ही अपनी इलेक्ट्रिक गाड़ी Kona लॉन्च कर सकती है और कंपनी अन्य इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर भी काम कर रही है.

क्या भारत में अच्छा है इलेक्ट्रिक गाड़ियों का बाजार?

जिस तरह से भारत में इलेक्ट्रिक स्कूटर, बाइक, बस आदि लोगों के लिए अच्छा विकल्प बन चुकी हैं उसी तरह से इलेक्ट्रिक कारों के लिए भी भारतीय बाजार धीरे-धीरे तैयार हो रहा है. यहां बात सिर्फ ऑटोमोबाइल कंपनियों की नहीं हो रही बल्कि सरकार की भी हो रही है जो इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए नई स्कीम ला रही है. नितिन गडकरी तो पहले ही कह चुके हैं कि वो

इलेक्ट्रिक गाड़ियों की बिक्री बढ़ाने के लिए सरकार ने ये फैसला किया है कि हर इलेक्ट्रिक गाड़ी की बिक्री पर 1.4 लाख की डायरेक्ट सब्सिडी दी जाएगी. ये फैसला 23 अगस्त को हुई एक मीटिंग में लिया गया और इसके लिए भारत सरकार वित्त मंत्रालय ने 4500 करोड़ का फंड भी दे दिया है. ये सब्सिडी FAME स्कीम (फास्टर अडॉप्शन एंड मैन्युफैक्चरिंग ऑफ इलेक्ट्रिक (एंड हाइब्रिड) वेहिकल्स) के तहत मिलेगी. ये FAME स्कीम का फेज 2 है. हर खरीददार जो भी इलेक्ट्रिक गाड़ी खरीदेगा उसे सरकार 1.4 लाख की डायरेक्ट सब्सिडी दे सकती है. हालांकि, ये जरूरी नहीं है कि सब्सिडी 1.4 लाख की ही हो दरअसल, गाड़ी के मूल्य और बैटरी पावर, और तकनीक के आधार पर सब्सिडी तय होगी और ये गाड़ी के मूल्य के 20% से ज्यादा नहीं हो सकती.

इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए सरकार सब्सिडी की योजना भी बना चुकी है.

ये स्कीम पास तो हो गई है, लेकिन लागू कब तक होती है इसकी जानकारी अभी नहीं है. इतना ही नहीं बल्कि कई राज्यों में तेज़ी से इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए चार्जिंग स्टेशन बनवाने का काम भी तेज़ी से चल रहा है. पर सरकार को इसके लिए बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर भी बनाना होगा. सितंबर 2017 में नितिन गडकरी ने कहा था कि सरकार कार बनाने वाली कंपनियों को इलेक्ट्रिक कारों की तरफ मुड़ने को कह रही है, अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया तो जबरदस्ती सरकारी पॉलिसी उन्हें इलेक्ट्रिक कार बनाने पर मजबूर करेगी. इसके बाद 2019 तक इसके लिए स्कीम पारित भी हो चुकी है इसलिए उम्मीद है कि जल्दी ही काम होगा.

कुल मिलाकर इलेक्ट्रिक गाड़ियां एक नया और अनोखा एक्सीपियंस दे सकती हैं वो भी बिना बजट को खराब किए. अगर सरकार की सब्सिडी वाली स्कीम ठीक समय पर लागू हो जाती है तो न सिर्फ कंपनियों को बल्कि कार ग्राहकों को भी काफी फायदा होगा.

क्या इलेक्ट्रिक गाड़ियां वाकई इतनी फायदेमंद हैं?

इलेक्ट्रिक गाड़ियां प्रदूषण मिटाने में जिस तरह मदद करती हैं वो तो सभी जानते हैं. अगर इस जगजाहिर सत्य को छोड़ भी दिया जाए तो भी इलेक्ट्रिक कारें सरकारी सब्सिडी और ईंधन के खर्च के हिसाब से बहुत बेहतरीन परिणाम दे सकती हैं. पेट्रोल और डीजल के मुकाबले तो वाकई इलेक्ट्रिक गाड़ियों से काफी फायदा हो सकता है. कई कंपनियां 10 पैसे प्रति किलोमीटर के माइलेज का भी दावा करती हैं, लेकिन ये पूरी तरह से गाड़ी पर निर्भर करता है कि किस गाड़ी का कैसा माइलेज है. जहां तक मेंटेनेंस की बात है तो इलेक्ट्रिक गाड़ियों में इंजन मेंटेनेंस कम लगता है क्योंकि ये गाड़ियां इलेक्ट्रिक इंजन पर चलती हैं तो इंजन ऑयल कास्ट और इंजन में फ्रिक्शन आदि तो बिलकुल खत्म हो जाता है.

हालांकि, ऐसा नहीं है कि इलेक्ट्रिक गाड़ियों के सभी फायदे ही हैं. कोई भी इलेक्ट्रिक गाड़ी लेने से पहले लोगों को पूरी तरह से रिसर्च कर लेनी चाहिए क्योंकि अगर उनके इलाके में पावर की कमी होती है या वोल्टेज की समस्या होती है तो इलेक्ट्रिक गाड़ी एक झंझट हो सकती है. खास तौर पर इसलिए क्योंकि इसे चार्ज होने के लिए कम से कम 4-5 घंटे लगते हैं. साथ ही, इन गाड़ियों की स्पीड कम होती है. आप इनसे ज्यादा तेज़ी की उम्मीद नहीं कर सकते और बिना चार्ज किए कहीं चले गए हैं तो ये दिक्कत खड़ी कर सकती हैं क्योंकि हर जगह इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चार्ज करने की सुविधा नहीं मिल सकती.

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इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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