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फिर आ रहा है 'स्‍काईलैब' ! बेकाबू हो गया चीन का उपग्रह

    • आईचौक
    • Updated: 14 जुलाई, 2016 08:15 PM
  • 14 जुलाई, 2016 08:15 PM
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चीन का एक भारीभरकम उपग्रह उसके काबू में नहीं रहा और वह धरती से टकरा सकता है. चीन ने अभी तक आधिकारिक रूप से इस बारे में कुछ नहीं कहा है. आरोप है कि वो जानबूझकर तथ्यों को छिपा रहा है.

दक्षिण चीन सागर में कब्जा करने के लिए कृत्रिम टापू बनाने से लेकर लगभग हर मसले पर अड़ियल रवैया अपनाने का आदी हो चुका चीन फिर चर्चा में है. इस बार मसला अंतरिक्ष का है. दरअसल, चीन का पहला स्पेस स्टेशन तियांगॉन्ग-1 सवालों के घेरे में है. बताया जा रहा है कि चीन के अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस स्पेस स्टेशन से नियंत्रण खो चुके है. इसका सीधा मतलब है कि बेकाबू हो गया है और कभी भी धरती से टकरा सकता है.

तियांगॉन्ग-1 का कुल वजन 8.5 मेट्रिक टन है और यह करीब 34 फीट लंबा और 11 फीट चौड़ा है. इसका वजन और बड़ा आकार ही इसे ज्यादा खतरनाक बना देता है. दरअसल, स्पेस से कोई चीज धरती की ओर आती है तो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते ही घर्षण से आग लग जाने के कारण वह नष्ट हो जाती है. लेकिन तियांगॉन्ग-1 आकार में इतना बड़ा है कि हो सकता है कि आग लग जाने के बावजूद उसके कुछ हिस्से बाकी रह जाए.

तियांगॉन्ग-1 के गिरने की खबर से दुनिया सकते में.

अगर इस स्पेस स्टेशन के टुकड़े समुद्र में या किसी वीरान जगह पर गिरते हैं फिर तो नुकसान नहीं के बराबर होगा. लेकिन अगर ये रिहायशी इलाकों या कहीं और गिरते हैं तो खतरा बढ़ जाएगा.

चौंकाने वाली बात ये है कि चीन ने अभी आधिकारिक रूप से इस पर कुछ नहीं कहा है. उस पर आरोप लग रहा है कि वो जानबूझकर तथ्यों को छिपा रहा है. लेकिन दुनिया भर की मीडिया में और कई वैज्ञानिकों के बीच इस लेकर गहमागहमी जारी है. हालांकि कई जानकार इसे अटकलबाजी भी बता रहे हैं.

कैसे हुआ खुलासा-

अंतरिक्ष में विभिन्न देशों द्वारा भेजे जाने वाले उपग्रहों पर नजर रखने वाले एक सैटेलाइट ट्रैकर हैं थॉमस डॉरमन. सबसे पहले...

दक्षिण चीन सागर में कब्जा करने के लिए कृत्रिम टापू बनाने से लेकर लगभग हर मसले पर अड़ियल रवैया अपनाने का आदी हो चुका चीन फिर चर्चा में है. इस बार मसला अंतरिक्ष का है. दरअसल, चीन का पहला स्पेस स्टेशन तियांगॉन्ग-1 सवालों के घेरे में है. बताया जा रहा है कि चीन के अंतरिक्ष वैज्ञानिक इस स्पेस स्टेशन से नियंत्रण खो चुके है. इसका सीधा मतलब है कि बेकाबू हो गया है और कभी भी धरती से टकरा सकता है.

तियांगॉन्ग-1 का कुल वजन 8.5 मेट्रिक टन है और यह करीब 34 फीट लंबा और 11 फीट चौड़ा है. इसका वजन और बड़ा आकार ही इसे ज्यादा खतरनाक बना देता है. दरअसल, स्पेस से कोई चीज धरती की ओर आती है तो पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करते ही घर्षण से आग लग जाने के कारण वह नष्ट हो जाती है. लेकिन तियांगॉन्ग-1 आकार में इतना बड़ा है कि हो सकता है कि आग लग जाने के बावजूद उसके कुछ हिस्से बाकी रह जाए.

तियांगॉन्ग-1 के गिरने की खबर से दुनिया सकते में.

अगर इस स्पेस स्टेशन के टुकड़े समुद्र में या किसी वीरान जगह पर गिरते हैं फिर तो नुकसान नहीं के बराबर होगा. लेकिन अगर ये रिहायशी इलाकों या कहीं और गिरते हैं तो खतरा बढ़ जाएगा.

चौंकाने वाली बात ये है कि चीन ने अभी आधिकारिक रूप से इस पर कुछ नहीं कहा है. उस पर आरोप लग रहा है कि वो जानबूझकर तथ्यों को छिपा रहा है. लेकिन दुनिया भर की मीडिया में और कई वैज्ञानिकों के बीच इस लेकर गहमागहमी जारी है. हालांकि कई जानकार इसे अटकलबाजी भी बता रहे हैं.

कैसे हुआ खुलासा-

अंतरिक्ष में विभिन्न देशों द्वारा भेजे जाने वाले उपग्रहों पर नजर रखने वाले एक सैटेलाइट ट्रैकर हैं थॉमस डॉरमन. सबसे पहले उन्होने ही इसे लेकर खुलास किया. उनका दावा है कि वे शुरू से तियांगॉन्ग-1 पर नजर रख रहे हैं और उन्हें लगता है कि अब ये स्पेस स्टेशन चीन के नियंत्रण से बाहर हो गया है.

थॉमस डॉरमन ने स्पेस डॉट कॉम वेबसाइट को बताया है, 'अगर मेरी बात सही है तो चीन आखिर समय तक इंतजार करेगा और फिर आखिर में बताएगा कि उसके स्पेस स्टेशन के साथ कोई समस्या है.'

चीन ने तियांगॉन्ग-1 को 2011 में लॉन्च किया था और वो ये बता चुका है कि 2013 में इस स्पेस स्टेशन ने काम करना बंद कर दिया था.

गौरतलब है कि चीन के अंतरिक्ष कार्यक्रमों को लेकर हमेशा ये आरोप लगते रहे हैं कि वह अपने मिशन के बारे में बहुत खुल कर सारी बातें सामने नहीं रखता जैसा कि दुनिया के दूसरे देश करते हैं. वैसे, सबसे दिलचस्प बात ये भी है कि चीन इसी साल सितंबर में तियांगॉन्ग-2 के लॉन्च की घोषणा भी कर चुका है.

पहले भी हो चुकी है ऐसी घटना

1979 में ऐसी ही एक घटना हुई थी जब अमेरिका का पहला स्पेस स्टेशन स्काईलैब अनियंत्रित तरीके से धरती से टकराया था. शुरू में तो नासा समझ नहीं सका कि स्पेस स्टेशन कहा गिरेगा. बाद में उसने अनुमान दिया कि स्टेशन के टुकड़े हिंद महासागर और ऑस्ट्रेलिया के 7,400 किलोमीटर के दायरे में गिरेंगे. लेकिन उस संभावित खतरे से तब पूरे एशिया और यूरोपीय देशों में हलचल मच गई थी.

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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