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कहां जा रही है दुनिया? जन्‍म लेने वाला है एक बच्‍चा जिसके तीन पेरेंट़स होंगे...

    • आईचौक
    • Updated: 09 जून, 2016 02:57 PM
  • 09 जून, 2016 02:57 PM
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ब्रिटेन दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है, जहां माता, पिता और एक अन्य महिला डोनर के डीएनए से आइवीएफ बच्चा जन्म लेगा. अगले साल के अंत तक तीन पेरेंट्स का पहला बच्चा दुनिया में आ जाएगा.

अगर आपको लग रहा है कि हम बेकार की बात कर रहे हैं, तो भी हम यही कहेंगे कि ये सच है. अब तक हम यही जानते थे कि एक स्त्री और एक पुरुष ही एक बच्चे के माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन जिस तरह इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक के जरिए कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है, ठीक उसी तरह अब तीन लोगों के डीएनए से एक बच्चा जन्म ले सकता है.

विज्ञान के इस युग में ऐसा पहली बार होने जा रहा है. ब्रिटेन में तीन लोगों के डीएनए से आइवीएफ बेबी के जन्म को ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कामंस ने पिछले साल कानूनी मान्यता दी थी. हालांकि इस तकनीक का विरोध भी हुआ था, लेकिन इसे मंजूरी देने के लिए कानून तक बदल दिया गया. बेहद विवादित रही इस तकनीक की बदौलत ब्रिटेन दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है, जहां माता, पिता और एक अन्य महिला डोनर के डीएनए से आइवीएफ बच्चा जन्म लेगा. अगले साल के अंत तक तीन पेरेंट्स का पहला बच्चा दुनिया में आ जाएगा.

 इस तरह से जन्मा बच्चा अनुवांशिक रूप से अपने माता-पिता का ही होगा

वैज्ञानिकों का मानना है कि ये तकनीक उन दंपत्तियों के लिए बेहद कारगर सिद्ध होगी जिनके बच्चे भयंकर अनुवांशिक बीमारियों से पीड़ित हैं. इस तकनीक के जरिए ये माता-पिता किसी दूसरी महिला के एग से एक स्वस्थ बच्चा पा सकते हैं. इस तरह से जन्मे बच्चे के तीन माता-पिता होंगे- एक उसके पिता, दूसरी उसकी मां, और तीसरी वो महिला जिसने अपना एग डोनेट किया है.

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अगर आपको लग रहा है कि हम बेकार की बात कर रहे हैं, तो भी हम यही कहेंगे कि ये सच है. अब तक हम यही जानते थे कि एक स्त्री और एक पुरुष ही एक बच्चे के माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन जिस तरह इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) तकनीक के जरिए कृत्रिम गर्भाधान किया जाता है, ठीक उसी तरह अब तीन लोगों के डीएनए से एक बच्चा जन्म ले सकता है.

विज्ञान के इस युग में ऐसा पहली बार होने जा रहा है. ब्रिटेन में तीन लोगों के डीएनए से आइवीएफ बेबी के जन्म को ब्रिटिश संसद के हाउस ऑफ कामंस ने पिछले साल कानूनी मान्यता दी थी. हालांकि इस तकनीक का विरोध भी हुआ था, लेकिन इसे मंजूरी देने के लिए कानून तक बदल दिया गया. बेहद विवादित रही इस तकनीक की बदौलत ब्रिटेन दुनिया का ऐसा पहला देश बन गया है, जहां माता, पिता और एक अन्य महिला डोनर के डीएनए से आइवीएफ बच्चा जन्म लेगा. अगले साल के अंत तक तीन पेरेंट्स का पहला बच्चा दुनिया में आ जाएगा.

 इस तरह से जन्मा बच्चा अनुवांशिक रूप से अपने माता-पिता का ही होगा

वैज्ञानिकों का मानना है कि ये तकनीक उन दंपत्तियों के लिए बेहद कारगर सिद्ध होगी जिनके बच्चे भयंकर अनुवांशिक बीमारियों से पीड़ित हैं. इस तकनीक के जरिए ये माता-पिता किसी दूसरी महिला के एग से एक स्वस्थ बच्चा पा सकते हैं. इस तरह से जन्मे बच्चे के तीन माता-पिता होंगे- एक उसके पिता, दूसरी उसकी मां, और तीसरी वो महिला जिसने अपना एग डोनेट किया है.

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क्या है ये तकनीक-

कोशिकाओं में मौजूद माइटोकॉन्ड्रिया, भोजन को ऊर्जा में बदलता है. अगर माइटोकॉन्ड्रिया में कोई डिफेक्ट आ जाता है तो कई लाइलाज अनुवांशिक बीमारियां उत्पन्न हेती हैं. लेकिन 'mitochondrial replacement' तकनीक के जरिए उस दोषपूर्ण या फॉल्टी माइटोकॉन्ड्रिया को डोनेट किए गए एग के स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया से बदल दिया जाएगा और अनुवांशिक बीमारियां मां से बच्चे में ट्रांसफर नहीं हो पाएंगी.

माइटोकांड्रियल डीएनए एक व्यक्ति के कुल डीएनए में केवल 0.1 परसेंट होता है. यह मेटाबोलिज्म को तो इफेक्ट करता है लेकिन व्यक्ति के फिजिकल अपीयरेंस जैसे चेहरे की बनावट, आंखों के रंग और पर्सनैलिटी डिसाइड नहीं करता. इस तरह से जन्मा बच्चा अनुवांशिक रूप से अपने माता-पिता का ही होगा, लेकिन उसके पास एक दूसरे इंसान का स्वस्थ माइटोकॉन्ड्रिया होगा.

हो गई है पूरी तैयारी-

वैज्ञानिकों का दावा है कि ये तकनीक महिलाओं के लिए बिल्कुल सुरक्षित है. और वो पहली महिला पर इसका प्रयोग करने के लिए एकदम तैयार हैं. शोधकर्ताओं ने लैब में 200 थ्री पेरेंट एब्रियो तैयार कर लिए हैं. Human Fertilisation & Embryology Authority अब ये निर्णय लेगी कि क्या ये तकनीक आईवीएफ ट्रीटमेंट के लिए सुरक्षित है या नहीं. और अगर यहां से हरी झंडी मिल जाती है तो अगले साल पहला बच्चा दुनिया में आ जाएगा, और इससे 150 महिलाओं को लाभ होगा. 

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आईवीएफ तकनीक से विज्ञान ने निसंतान दंपत्तियों को संतान के रूप में जीवन की सबसे बड़ी खुशी दी है. आईवीएफ ने जो विश्वास लोगों में जगाया है, ये माइटोकॉन्ड्रियल रिप्लेसंमेंट उसी विश्वास की अगली कड़ी साबित हो सकती है. अब बचा है तो सिर्फ थोड़ा सा इंतजार. 

इस लेख में लेखक ने अपने निजी विचार व्यक्त किए हैं. ये जरूरी नहीं कि आईचौक.इन या इंडिया टुडे ग्रुप उनसे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.

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